२३ जनवरी का दिन
एक अविस्मरणीय तिथि बन आता है
और
एक गौरवशाली इतिहास को
सम्मुख ले आता है
एक विलक्षण व्यक्तित्व
अचानक आँखों में प्रकट होजाता है
और
भारत की तरूणाई को
जीवन मूल्य सिखा जाता है।
एक अद्भुत और तेजस्वी बालक
इतिहास के पन्नों से निकल आता है
और
टूटे,बिखरे राष्ट को
संगठन सूत्र सुनाता है।
एक मरण माँगता युवा
आकाश से झाँकता है
और
पश्चिम की धुनों पर थिरकते
मोहान्ध युवकों को
कर्तव्य का पथ दिखलाता है
सौन्दर्य से लबालब
एक तेजस्वी युवा
आँखोंमें बस जाता है
और
प्रेम को
वासना की गलियों से निकाल
त्याग की सर्वोच्च राह बताता है
एक सशक्त और प्रभावी नेता
हमारी कमियों को दिखाता है
और
जाति-पाति की संकीर्णता से दूर
एकता का पाठ पढ़ाता है।
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
Hi Shobha,
This is the firs time I have gone Trough your blog,
its wonderful, I will keep reading u r blogs.
GAURAVSALI ITIHAS...ACHHA HAI BLOG KE BAHANE HI KAI CHIJE GHUMARNE LAGATI HAI..ANYATHA KAHA KISE PHURSAT...LIK SE HATKAR LIKHA..ACHHA LAGA.
bahut acchi rachana shobha ji
अच्छी रचना है।
neta ji, subhash chandra bose k balidan ko aaj shayd desh bhool chuka hai
mujhe bahut dukh hota hai kyuki hamare desh k jyadatar bachcho ko neta ji aur bhagat singh ji ki date of birth tak nahi pata hoti
sumit bhardwaj
शोभा जी , बहुत सुंदर वर्णन किया है नेताजी का...मगर इन सबको क्या हो गया ..?? सभी अंग्रेजी में......!!!
इन्हें इनाम विनाम नहीं चाहिए क्या ....???
नर नाहर थे अप्रतिम, वीर सुभाष महान.
कलम धन्य होती 'सलिल', कर उनका गुणगान.
शोभा थे भू धाम की, भारत माँ की आन.
आजादी में थी बसी, नेताजी की जान.
जन-गण को दे प्रेरणा, त्याग शौर्य बलिदान.
नहीं देश-हित से बड़ा, है कोई अरमान.
सिर्फ़ न तेईस जनवरी, हर दिन करिए गान.
नेताजी से बन सकें, बच्चे सभी जवान.
एक सूत्र में बाँधकर, सुदृढ़ गढी कमान.
टूटे-बिखरे राष्ट्र को, मरकर दिया विहान.
नील गगन से झाँकता, वीर सुभाष महान.
देता है संदेश नित, ऊँची भरो उडान.
भोग ऐश आराम तज, माँ पर हो कुर्बान.
तुम करतब ऐसे करो, युग गाये गुणगान.
देशभक्ति ही धर्म है, यही जाति पहचान.
जो न सत्य यह जानता, 'सलिल' सत्य नादान.
आदम तो होते सभी, लेकिन कुछ इन्सान.
'सलिल' देश-हित समर्पित, धरती के भगवान.
माँ सरस्वती दीजिये, सिर्फ़ यही वरदान.
'सलिल' देश-हित शीश दे, उफ़ न करे जबान.
shobha ji,shayad aapko pata na ho netaji mere preranashrot hain,
dhanywaad aapne unke vishay mein padhwaya..........
ALOK SINGH "SAHIL"
नेता जी को याद करना अच्छा लगा...
इस देश में केवल गाँधी नेहरू ही याद किये जाते हैं..
अभी हाल ही में एक सर्वे हुआ था बच्चों के बीच.. गाँधी-नेहरू के अलावा न शास्त्री, न पटेल न ही तिलक और न ही बोस के चित्र बच्चे पहचान पाये.. ये चिंता का विषय है कि इस तरह का पाठ्यक्रम चलाया जाता है इस देश में...
नेता जी पहले कांग्रेस में थे.. अगर उसी में रहते तो शायद आज राष्ट्रपिता या राष्ट्रबंधु बने होते.. पर उन्होंने पार्टी बदली और राजनीति के भेंट चढ़ गये..
प्रणाम नेता जी... आलोक की तरह वे बहुत से लोगों के प्रेरणास्रोत हैं.. मेरे भी...
मनु जी, सुमित और आलोक बिगड़ गये हैं.. :-) एक शे’र या कार्टून होता इस पर तो..:-)
सलाम है युग पुरूष को
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