आज बसंत पंचमी है। मेरा वास्तविक जन्म दिन । परिचय में जो मैने लिखा- वह मेरे स्व० पिताजी का स्कूल में दाखिला के समय लिखाई गई तिथि है। इस अवसर पर अपनी एक कविता जो मैंने वर्ष १९९९ में लिखी थी, आप सबकी नज़र कर रहा हूँ।
सरस्वती पूजा
सरस्वती की प्रतिमा
भांग या शराब के नशे में चूर
थिरकते कदम
उल्लू बनकर उछलते-कूदते
कमसिन लड़के-लड़कियाँ
लाउड-स्पीकर पर तेज फिल्मी धुन
'ऐ क्या बोलती तू' .... या 'छम्मा-छम्मा'
जबरदस्ती उगाहे चन्दे की कमाई
और खर्च के हिसाब का झगड़ा
सांस्कृतिक कार्यक्रम के प्रोत्साहन पर
मोहल्ले के दादा का आशीष वचन
अपने ही घर के बच्चों की पंडाल में जाने की ज़िद
मेरी सलाह को दकियानूसी बताकर हंसना
दुःख और क्षोभ से बंद आंखों ने देखा
पंडाल की दीवारों पर हर जगह
एम. एफ. हुसैन की नृत्य करती सरस्वती
और उस पर झूमते लोग
पहचाना
ये वही लोग थे
जो जला रहे थे
एक दिन
एम. एफ. हुसैन की पेंटिग्स ।
----देवेन्द्र पाण्डेय
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31 कविताप्रेमियों का कहना है :
देवेन्द्र जी ,
पिछली हँसी ठिठोली के बाद अब इतनी संजीदा कविता ,बस और क्या कहें ,आप वाकई वो नेकदिल इंसान हैं ,जो अपने भारत की गरिमा को लेकर बेहद संवेदनशील है ,शत ,शत नमन है आपको |
जन्मदिन की बधाई स्वीकारें देवेंद्र जी..
कविता बहुत अच्छी है... संजीदा रचना तो है ही.. सत्य को सामने लाती हुई...
जन्मदिन की शुभकामनायें...
देवेन्द्र जी
सर्वप्रथम जन्मदिन की बहुत बधाई स्वीकार करें
माँ सरस्वती का वरदान तो आप पर भरपूर है व बना रहे !!
दुःख और क्षोभ से बंद आंखों ने देखा
पंडाल की दीवारों पर हर जगह
एम. एफ. हुसैन की नृत्य करती सरस्वती
और उस पर झूमते लोग
अन्तर्मन को जगाता हुआ सा चित्रण
अद्भुत !!!
देवेन्द्र जी ,
जन्मदिन की मुबारक बाद ...
आपने तो जो भी सोच कर लिखा हो ...पर जो मुझे समझना था वो ही मैंने समझा है.....
जो हुसैन की पेंटिंग के इर्द गिर्द नाच रहे हैं ...वो ही हुसैन की पेंटिंग को ...जला कर आए थे......................
यानी.............
उन्हें वास्तव में नहीं मालूम था के वो क्या कर रहे हैं......उन्हें बस एक जूनून के....एक वहशियत के कारण बस जला डालनी थीं वो महान कलाक्रेतियाँ ..
जाने ...या अनजाने .....आपकी इस रचना से मुझे बड़ा सुकून मिला है....
अगर आप मुझ से असहमत हों तो भी बताएं ...पर आपकी कविता तो यही कह रही है जो मैंने कहा..............
देवेन्द्र जी क्या सुंदर लिखा है
जन्म दिन की शुभकामना
बधाई
रचना
देवेन्द्र जी
आपकी कविता बहुत सुन्दर है। मानव मन की एक अति से दूसरी अति पर कूदने की प्रवृत्ति को कविता के माध्यम से अच्छी तरह दर्शाया है ।
देवेन्द्र जी
आपकी कविता बहुत सुन्दर है। मानव मन की एक अति से दूसरी अति पर कूदने की प्रवृत्ति को कविता के माध्यम से अच्छी तरह दर्शाया है ।
देवेन्द्रजी,
जन्मदिवस पर हार्दिक शुभकामनाये ,
मां सरस्वती की आप पर एसी ही कृपा बनी रहे
आपके व्यंग में पैनापन और परिपक्वता है , बधाई |
सादर,
विनय के जोशी
बहुत सुंदर !
कहीं ना कहीं मन के भाव बस उतर गए हैं लेखनी में |
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाये :)
मनु जी-
जो लोग हुसैन की पेटिंग्स को माँ सरस्वती का अपमान समझ रहे थे वे क्या कर रहे हैं ! शराब पी कर माँ सरस्वति की प्रतिमा के सामने अश्लील फिल्मी धुनों पर नृत्य करना क्या सरस्वति पूजन है ? यह सब देखकर मुझे ऐसा लगा मानों जो काम हुसैन नहीं करना चाहते थे वो ये सरस्वति भक्त उल्लू बनकर, अनजाने में ही किए जा रहे हैं-- माँ सरस्वति का अपमान....!
मैने इसी प्रवृत्ति पर चोट करने का प्रयास किया है।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
" jo kaam hussain nahin karnaa chaahte the........"
shukriyaa aapka meri bhaawnaaon ko kawitaa mein dhaalne kaa.......
mera koi naata to nahin hai...par jis tarah se hussain ko apnaa mulk chhodanaa padaa hai........ye kaaaran mujhe badi takleef dete hain.....
aapne sahi unki pol khol di hai...jinhe kalaa ki samajh nahi hai ,....bas nagntaa dikhti hai...
aur khud kaa ye haal hai...
shukriyaa...
देवेन्द्र जी मै आपकी बात से बिलकुल सहमत नही हूँ, ही सकता है आपने कुछ लोगो कि सरस्वती माँ की पूजा करते देख ऐसा लिखा हो, पर वो लोग पूरे समाज का नेतृत्व नही करते
और मुझे हुसैन के बारे मे ज्यादा तो नही पता पर orkut और समाज से जो सुनने को मिला है, उससे इतना पता लगा कि उसने भगवान की नग्म तस्वीरे बनाई थी और आप ऐसे व्यकित की तरफदारी कैसे कर सकते हो?
मनु भाई,
कला की समझ तो मुझे भी ज्यादा नही है, पर कला और अश्लीलता मे कुछ तो अंतर होता है?
क्या हुसैन के काम को कला समझना चाहिए?
सुमित भाई,
कला और अश्लीलता........फर्क तो होता है दोनों में ...
और इतना बारीक भी नहीं होता के समझा ना जा सके.कभी कभार को छोड़ कर...लेकिन जब हम उसमें कला के अलावा और भी कुछ देखने लगें तो ..सब गड्ड मड्ड हो जाता है...और कभी कभी ये अन्तर होने को इतना महीन भी होता है के .आप या मैं तो क्या...अच्छे अच्छे जानकार नहीं समझ पाते ......
अभी पिछले दिनों बच्चन की मधुशाला पर विवाद उठा था ....आपको लगता है की बच्चन ने वो लाइने किसी का दिल दुखाने के लिए लिखी होंगी......मुझे तो बिल्कुल भी नहीं लगता....अपने अंदाज़ में उन्होंने एक बहुत बड़े सत्य को जिस प्रतीक में ढालकर कहा ..वो कुछ लोगो के गले से नहीं उतरा ............
कला में कुछ और दाल कर देखा और हो गया...........गड्ड मड्ड
और सुनिए एक बेहद मज़े की बात.....सब लोग सुन कर हसेंगे मुझ पर ...मेरी बेअक्ली पर...
मेरे इस ऊट पटांग कमेंट पर..............
" के वो पेंटिंग्स मैंने कभी देखि ही नहीं हैं.......जिन पर मैं बोले जा रहा हूँ...""
हैं ना एक अजीब सी बात .....एकदम पागलों के जैसी........क्यों....????
पर मैंने एकाध दो पेंटिंग्स देखि हैं और उन्ही के आधार पर ...उसे भी ठीक समझ रहा हूँ...जो कभी नहीं देखा.....क्योंकि मैं अगर देखूँगा तो ये सोच कर नहीं देखूँगा के मैं हिन्दू हूँ ....और बनाने वाला किसी और धरम का है...
एक बात होती है ये भी.....के बगैर देखे ...खैर..
पर में इस बारे में बहस नही कर सकता के वो लोग जिनका ज़िक्र कविता में है...वो कितने भक्त हैं..अपनी अपनी समझ की बात है...अपने अपने दिल की बात है..आदमी को समझने की बात है....
कमेन्ट शायद ज्यादा बड़ा हो गया ..सो बंद करता हूँ...
देवेन्द्र जी, जब आपने कविता में लिखा कि :
"एम. एफ. हुसैन की नृत्य करती सरस्वती
और उस पर झूमते लोग"
तो यह उल्टी दिशा में तेज भागना ही हुआ।
सुमित जी-
मैं हुसैन की उन तश्वीरों की तरफदारी नहीं कर रहा। अति सर्वथा वर्जित है। लेकिन मेरा यह भी विश्वास है कि कोई कलाकार अपनी कृतियों के माध्यम से किसी को अपमानित नहीं करना चाहता । वैसे ही कोई भक्त अपनी पूजा के माध्यम से भी अपने आराध्य देव को अपमानित नहीं करना चाहता। हरिहर जी ने सही लिखा - एक अति से दूसरे अति पर कूदने की प्रवृत्ति-यह ठीक नहीं है।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
मनु भाई,
जहा तक मधुशाला की बात है तो मै कहूगा मुझे इस बात पर कोई आपत्ती नही है कि बच्चन मे कहा "मंदिर मस्जिद बैर कराते मेल कराती मधु शाला" हालाकि उन्होने मंदिर का नाम लिया है पर मुझे इस बात पर कुछ गलत नही लगा,
वैसे तो हुसैन की पेंटिग मैने भी नही देखी और जहाँ तक कला को देखने की बात है तो मै हिन्दु दृष्टिकोण से नही देखता, लेकिन ये चित्रकारी पूरे समाज, जो भगवान को मानता है उस को बुरी लगेगी और अगर हुसैन किसी और धर्म के भगवान की भी ऐसी चित्रकारी करता तब भी मै हुसैन की बुराई करता, क्योकि वो हिन्दु समाज को नही पर किसी और समाज का तो दिल दुखा रहा होता.
और जो बात पूरे समाज को चोट पहुचाए उसका विरोध तो करना चाहिए, या हमे आखे बंद कर लेनी चाहिए?
अभी कुछ समय पहले हिन्द युग्म पर चार छोटी कविताए छपी थी, जिससे कुछ पाठको को बुरा लगा क्योकि कवि ने बहन से जो गुजारिश की थी, वो कुछ पाठको को अच्छी नही लगी क्योकि शायद पाठक कविता मे कवि के स्थान पर खुद को रखकर कविता पढ रहे थे,
मैने इस बात को इसलिए कहा क्योकि जब कवि ने किसी की तरफ इशारा भी नही किया तब भी लोगो के दिल को ठेस पहुची और हुसैन ने तो चित्रकारी ही भगवान पर बनाई थी, ऐसे मे मै कैसे चुप रह सकता हूँ
जब कोई कलाकार किसी के माता पिता, बहन, भाई के बारे मे कुछ कहता है तो क्या दुसरा व्यकित ये भी नही कह सकता कि तुम ने ऐसा क्यो किया?
देवेन्द्र जी,
आपकी कविता पढने के बाद मैने अपने दोस्त को फोन किया, जो सरस्वती पूजा मे जाता है, मैने उससे पूछा क्या वहा पर ऐसा होता है जैसा कविता मे लिखा है तो वो भडक गया क्योकि वहा ऐसा कुछ नही होता, उसने मुझ से कहा कि कवि को कविता लिखने से पहले संसकृति के बारे मे ठीक से जान लेना चाहिए, और चंद लोगो को ऐसा करते देख पूरे समाज को दोष नही देना चाहिए
यहा पर जहा तक मुझे समझ आया आपने पूरे समाज को दोष नही दिया पर क्या ऐसा कृत्य वो ही लोग कर रहे थे जिन्होने पेंटिग्स जलाई थी?
क्योकि कविता मे तो उनही पर निशाना साधा गया है
सुमित जी ,
बच्चन जी की " चिर विधवा है मस्जिद तेरी सदा सुहागन मधुशाला "
और
" शेख बुरा मत मानो इसका ,साफ़ कहूं तो मस्जिद को,
अभी युगों तक ध्यान लगाना सिखलाएगी मधुशाला "
पंक्तियाँ विवादित हैं.....इन पर गौर कर के उसी नज़रिए से देखे ....एक दम उसी नजरिये से ...इमानदारी से....जिस से पेंटिंग्स देख रहे हैं..........फ़िर बताये ...
मुझे तो ये बिल्कुल सही लग रही हैं........
चलिए एक और उदाहरण.....हरिहर जी भी यहाँ हैं.......
पिछले दिनों इनकी एक कविता "अभागी मैं " आईए थी..मैंने भी अच्छा लिखा था शायद इस के बारे में....फ़िर नीलम जी की टिपण्णी आई ...वो पढ़ी ...उस नजरिये से देखा ..वो भी कुछ ग़लत नहीं लगा ....हो गए ना.. एक ही चीज के बारे में.... एक ही आदमी के.... एक ही दिन में... दो अलग अलग ख्याल......... हो सकता है के आप मुझे नवाज शरीफ की तरह लुढ़कने वाला लोटा या थाली का बैंगन समझे....पर मुझे उनकी बात में भी दम लगा ...अब छोडो चलो आपको बता दूँ के मैडम जी अंग्रेजी में लिख कर भी यूनिपाठक बन गई हैं मतलब यूनिपाठिका......मैं तो बधाई दे आया हूँ आप लोग भी अब इस महफ़िल को बर्ख्वास्त करें और यूनी कवि और यूनिपाठिका को बधाई दें हिन्दी में.....हा...हा..हां...हा...
सुमित जी हम आपकी बात से काफ़ी कुछ सहमत हैं ,
कुछ बातें हमारे जेहन
में भी हैं ,जो आपके सामने रखना जरूरी है ,
सरस्वती भक्त उल्लू (गौर करें उल्लू लक्ष्मी का वाहन है )उल्लू तो कभी सरस्वती भक्त हो ही नही सकते वो सिर्फ़ लक्ष्मी जी की पूजा करतें हैं |इसलिए उन उल्लुओं को उनके हाल पर ही छोड़ दिया जाय तो बेहतर होगा |
एक जापानी पत्रकार का कहना है कि भारतीय जब अकेला होता है तो दुनिया का सर्वश्रेष्ठ
आदमी है ,और जब वो भीड़ होता है तो निकृष्ट व्यक्ति होता है ,अमूमन ऐसा ही होता है ,हमारी इल्तिजा है सभी से की वो अपने आपको भीड़ बनने से बचाए ,कलाकार का कोई मजहब नही होता ,यह आमिर खुसरो ने भी कई साल पहले दिखाया था , कलाकार को किसी की भावना पर चोट करने का कोई अधिकार नही है ,अंग्रेज कहते हैं कि- your freedom ends from where our nose starts .
"अति सर्वथा वर्जयेत " हरिहर जी आपने भी यही कहा है ,तो सारे गिलेशिकवे ख़तम हमारी तरफ़ से बाकी अपनी आप जाने |
अब हिन्दी में हंसने की बारी है ,तो हो जाएँ शुरू ,
हु हु हु हु हु हु हहह हा अह हा अह अह हा अह हा क्रम टूटना नही चाहिए जैसे लिखा गया है ठीक वैसे ही हँसना है सभी को |
बढिया है देवेंद्र जी..
निखिल
मनु भाई,
एक बात कहना चाहता हूँ, यदि इन लाइनो मे मस्जिद की जगह मंदिर होता तब भी मुझे कोई आपत्ती नही होती, यहाँ पर आप मस्जिद और मंदिर का शाब्दिक अर्थ लगा रहे हो, पर वास्तव मे यहाँ पर मस्जिद और मंदिर का अर्थ वाईज और पुजारी से है या जो लोग धर्म के नाम पर लोगो को गलत शिक्षा देते है उन से है,
आप मुझे एक बात बताओ कि मै फिदा हुसैन की पेंटिग को किस दृष्टिकोण से देखूं जो मुझे बुरा ना लगे, मुझे तो ऐसा कोई दृष्टिकोण नजर नही आता
मनु भाई, यदि इस विष्य पर बहस की जाए तो कोई निर्णय नही निकलेगा, हम(आप और मैं) हिन्दयुग्म की अगली मिटिंग मे मिलेंगे और अपने अपने तर्क एक दूसरे को बताएंगे आप को जो बात मेरी समझ आये ग्रहण करना और मुझे जो आपकी समझ आयेगी ग्रहण करूगा
मनु भाई,
जरा जल्दी मे था मै इसलिए आपका मैसज पूरा नही पढ पाया, यहाँ पर बिजली की बडी समस्या है पता नही चलता कब काट लेते है, इसलिए जल्दी मे reply किया था, आपने कहा है बैठक खत्म तो यही ठीक है, जैसा आप कह रहे हो, मै भी आपकी तरह हर चीज को दोनो नजरिये से देखता हूँ
नीलम जी,
जल्दी की वजह से आपका मेसेज भी नही पढ पाया था, मेरे विचारो से सहमति के लिए धन्यवाद
सुमित भारद्वाज
पर हुसैन को मै अब भी सही नही मानता
हुसैन को मै भी सही नही मानता उसने भगवान की नग्म तस्वीरे बनाई थी और आप ऐसे व्यकित की तरफदारी कैसे कर सकते हो?
"अति सर्वथा वर्जयेत "
कविता बहुत अच्छी है...
जन्मदिन की बहुत बधाई स्वीकार करें
Certainly the way of celebrating the goddess Saraswati`s Pooja is nonsense.It should not be like this.At least the songs should be devotional.
But to criticize Hussain`s art is also ,in my view ,is not correct.Dance itself is an art and if goddess Sarswati is dancing in his art then no one should think it negatively. God Shiva,Krishna etc. also perform very nice dances(according to hindu mythology).
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)