कर्ण कुण्डल घूंघर बाल
कपोल ताम मदमद चाल
मन बसंत तन ज्वाला
नैत्र क्षैत्र डोरे लाल ।
पनघट पथ ठाडे पिया
अरण्य नाद धडके जिया
तन तृण तरंगित हुआ
करतल मुख ओढ लिया ।
आनन सुर्ख मन हरा
उर में आनंद भरा
पलकों के पग कांपे
घूंघट पट रजत झरा ।
चितवन ने चोरी करी
चक्षु ने चुगली करी
पग अंगुठा मोड लिया
अधरों पर उंगली धरी ।
कंत कांता चिबुक छुई
पूछी जो बात नई
जिव्हा तो मूक भई
देह न्यौता बोल गई ।
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
चितवन ने चोरी करी
चक्षु ने चुगली करी
पग अंगुठा मोड लिया
अधरों पर उंगली धरी ।
क्या लयबद्ध रचना है , भई वाह इसमे तो कुछ संगीत मिला दे सजीव जी तो पूर्ण से परिपूर्ण रचना होगी यह |
साधुवाद विनय जी
बसंत के आगमन पर सुंदर
रंग बिखेरती सुंदर रचना विनय जी !!
सरस्वती का ले वरदान
ऋतुराज बसंत है आया !!!
सभी को बसंत की शुभकामनाएं !!!
अद्भुत शब्द चित्रण से बसंत आमत्रण----वाह !बिहारी की याद आ गई--ढेर सारी बधाइयाँ और बहुत-बहुत आभार इतनी अच्छी कविता भेजने के लिए। सिर्फ पहले बंद में -नैत्र क्षैत्र- के प्रयोग से संशकित हूँ--पहली बार बढ़ा सा लगता है।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
मस्त रचना;..मजे से गाने काबिल .
मज़ा आ गया..............
badhaai ho........
अहा!!!
चितवन ने चोरी करी
चक्षु ने चुगली करी
पग अंगुठा मोड लिया
अधरों पर उंगली धरी ।
वाह...
चितवन ने चोरी करी
चक्षु ने चुगली करी
पग अंगुठा मोड लिया
अधरों पर उंगली धरी ।
सुंदर रचना नीलम जी और मनु जी ने सही कहा है स्वर मिलजाए इस को तो क्या बात हो
सादर
रचना
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