ओह! ऋतुराज न करना संशय आना ही है।
तुमको दूषित प्रकृति पर जय पाना ही है।
धरा प्रदूषण का हालाहल पी कर मौन।
जीवन को संरक्षण तब देगा कौन?
ग्रीष्म, शरद, बरखा ने अपना कहर जो ढाया।
देख रहे अब शीत, शिशिर का रूप पराया।
तुम भी कहीं न सोच बैठे हो साथ न दोगे।
तब कैसे तुम वसुन्धरा का मान करोगे ?
जगत् जननी के पतझड़ आंचल को लहराओ।
वसन्तदूत भेजा है हमने फौरन आओ।
दो हमको संदेश पुन: जीवन का भाई।
भेजो पवन सुमन सौरभ की जीवनदायी।
हम संघर्ष करेंगे हर पल ध्यान रखेंगे।
उपवन, कानन, प्रकृति, धरा की शान रखेंगे।
स्वच्छ धरा निर्मल जल सुरभित पवन बहेगी।
वसुधा वासंती आंचल को पहन खिलेगी।
--गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल'