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ओह! ऋतुराज न करना संशय.....


ओह! ऋतुराज न करना संशय आना ही है।
तुमको दूषित प्रकृति पर जय पाना ही है।

धरा प्रदूषण का हालाहल पी कर मौन।
जीवन को संरक्षण तब देगा कौन?

ग्रीष्‍म, शरद, बरखा ने अपना कहर जो ढाया।
देख रहे अब शीत, शिशिर का रूप पराया।

तुम भी कहीं न सोच बैठे हो साथ न दोगे।
तब कैसे तुम वसुन्‍धरा का मान करोगे ?

जगत् जननी के पतझड़ आंचल को लहराओ।
वसन्‍तदूत भेजा है हमने फौरन आओ।

दो हमको संदेश पुन: जीवन का भाई।
भेजो पवन सुमन सौरभ की जीवनदायी।

हम संघर्ष करेंगे हर पल ध्‍यान रखेंगे।
उपवन, कानन, प्रकृति, धरा की शान रखेंगे।

स्‍वच्‍छ धरा निर्मल जल सुरभित पवन बहेगी।
वसुधा वासंती आंचल को पहन खिलेगी।

--गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल'

एम. एफ. हुसैन की पेंटिग्स पर झूमते लोग


आज बसंत पंचमी है। मेरा वास्तविक जन्म दिन । परिचय में जो मैने लिखा- वह मेरे स्व० पिताजी का स्कूल में दाखिला के समय लिखाई गई तिथि है। इस अवसर पर अपनी एक कविता जो मैंने वर्ष १९९९ में लिखी थी, आप सबकी नज़र कर रहा हूँ।

सरस्वती पूजा

सरस्वती की प्रतिमा
भांग या शराब के नशे में चूर
थिरकते कदम
उल्लू बनकर उछलते-कूदते
कमसिन लड़के-लड़कियाँ
लाउड-स्पीकर पर तेज फिल्मी धुन
'ऐ क्या बोलती तू' .... या 'छम्मा-छम्मा'

जबरदस्ती उगाहे चन्दे की कमाई
और खर्च के हिसाब का झगड़ा
सांस्कृतिक कार्यक्रम के प्रोत्साहन पर
मोहल्ले के दादा का आशीष वचन
अपने ही घर के बच्चों की पंडाल में जाने की ज़िद
मेरी सलाह को दकियानूसी बताकर हंसना

दुःख और क्षोभ से बंद आंखों ने देखा
पंडाल की दीवारों पर हर जगह
एम. एफ. हुसैन की नृत्य करती सरस्वती
और उस पर झूमते लोग

पहचाना
ये वही लोग थे
जो जला रहे थे
एक दिन
एम. एफ. हुसैन की पेंटिग्स ।

----देवेन्द्र पाण्डेय