दुनिया पर मंडरा रहे आतंक के बादलों को देख हर संवेदनशील व्यक्ति आतंकित है। भारत के जाने-माने साहित्यकार निदा फ़ाज़ली भी इससे अछूते नहीं है। मुम्बई में हुई २६ नवम्बर की घटना पर निदा ने भी एक कविता लिखी, जिसका प्रकाशन हम उन्हीं की अनुमति से हिन्द-युग्म पर कर रहे हैं। नये पाठकों को बता दें कि ७० वर्षीय निदा फाज़ली का जन्म दिल्ली में हुआ और प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर में हुई। विभाजन के वक़्त इनके पिता जो खुद एक जाने-माने शायर थे, पाकिस्तान चले गये, परंतु निदा भारत रुक गये। निदा एक बार एक मंदिर के पास से गुजर रहे थे तो उन्होंने सूरदास का वह भजन सुना जिसमें सूरदास ने राधा का कृष्ण से वियोग होने के दुःख का वर्णन किया था। इस भजन ने निदा को बहुत प्रभावित किया और इससे ही प्रभावित होकर निदा ने कविता में अपना पहला गंभीर प्रयास किया। निदा फाजली मानते थे कि उर्दू कविता का दायरा सीमित है, निदा ने उर्दू कविता के आकाश को महाकवि
टी॰ एस॰ इलियट, गोगोल, एंटन पावलोविच चेखोव (Anton Pavlovich Chekhov) तथा
ताकासाकी इत्यादि को पढ़कर फैलाया। ये
मीर और ग़ालिब के अंदाज़-ए-बयाँ के भी समर्थक रहे, साथ ही साथ
कबीर तथा मीरा के गेयात्मकता के भी अनुगामी। निदा को इनके कविता-संग्रह
'खोया हुआ सा कुछ' के लिए
१९९८ का साहित्य-अकादमी पुरस्कार भी मिला। इन्होंने फिल्मों में भी गीत लिखें, जिसमें
रज़िया-सुल्तान, आप ऐसे तो ना थे, यात्रा, सुर तथा सरफ़रोश के नाम उल्लेखनीय है। निदा के ऊपर लिखने के लिए कीबोर्ड पर बिना रुके चलने वाली उँगलियाँ चाहिए, फिलहाल इतना सामर्थ्य मुझमें नहीं है। साहित्यकार का साहित्य ही उसकी पहचान होता है। फिलहाल हम उनकी कविता पढ़ते हैं।
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मनु बे-तक्खल्लुस |
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जो भी हुआ था किसने किया था..
पता नहीं है...
बस इतना मालूम है हमको
जिंदा इंसानों के बिखरे टुकड़ों में
मेरा बच्चा भी शामिल था...
कोई किसी की अंगूठी को अपना रिश्ता मान रहा था...
कोई किसी के नाम को उसकी एनक से पहचान रहा था...
मेरे मातम का कोई भी नाम नहीं था...
किसे बताती वो कैसा था …?
छोटे-छोटे हाथ पांव थे…
बच्चा था.... बच्चों जैसा था...
पता नहीं जिस क़ब्र पे उसके नाम का पत्थर लगा हुआ है
उसमें वो कितना है लेकिन...
घर के ताक़ में उसकी जो तस्वीर लगी है
उसमें वो पूरा है अबतक…
पांच साल का चांद ये मेरा यूं ही रहेगा पूरा
मैं ज़िंदा हूं जब तक...
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
28 कविताप्रेमियों का कहना है :
ऐसे शायर के बारे में मैं क्या टिपण्णी करूँ... बस यही के वो घटना किसी का भी दिल दयाला सकता है जिसके आँख से आंसू न गिरे ,रोया तो मगर वो भी था..
ऐसे शायर को मेरा सलाम कहिये...
अर्श
पता नहीं जिस क़ब्र पे उसके नाम का पत्थर लगा हुआ है
उसमें वो कितना है लेकिन...
घर के ताक़ में उसकी जो तस्वीर लगी है
उसमें वो पूरा है अबतक…
पांच साल का चांद ये मेरा यूं ही रहेगा पूरा
मैं ज़िंदा हूं जब तक...अद्भुद रचनावली
निदा जी को सादर नमन है ...
जो भी हुआ था किसने किया था..
पता नहीं है...
बस इतना मालूम है हमको
जिंदा इंसानों के बिखरे टुकड़ों में
मेरा बच्चा भी शामिल था...
बहुत दर्दनाक वाक्या था। निदा जी की लेखनी के शब्द दिल से निकलते है।
जो भी हुआ था किसने किया था..
पता नहीं है...
बस इतना मालूम है हमको
जिंदा इंसानों के बिखरे टुकड़ों में
मेरा बच्चा भी शामिल था...
super, fantabolous line.....
इतने बडे शायर के लिये कम से कम भूमिका तो अच्छी लिखें भाषा सुधार कर लिखा करें।
सम्मानीय लोगों के नाम के साथ आदर- सूचक शब्द हमारी संस्कृति की परंपरा है इसे हमें
ध्यान में रखना चाहिए।
श्री anonymous महोदय,
श्री सचिन तेंदुलकर, श्री अमिताभ बच्चन, सुश्री लता मंगेशकर सुना है आपने कभी?? मुझे तो कहीं कोई अपमानजनक शब्द नज़र नहीं आया....
वैसे आप अपना परिचय देते तो ठीक था....
निखिल
अनजान महोदय,
सादर प्रणाम।
जहां तक मेरा ख्याल है सम्माननीय और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व हम और आप जैसे आम लोगों की तरह सम्मान सूचक शब्दों के मोहताज नहीं होते। उनकी प्रतिभा, कला और लेखन की... दुनिया मोहताज होती है। कहते हैं ना थोथा चना बाजे घना... जितना छोटा इंसान होगा उतने ही थोथे तरीकों से सम्मान की आकांक्षा रखेगा। माफी चाहती हूं... लेकिन कलाकारों को इस तरह के अपने पूर्वाग्रहों से मुक्त रखिए।
किसी भी इतने ऊंचे कद के इंसान के लिए मुझे कोई भी आपतिजनक बात नहीं लगी एनी माउस जी..
बाकी हिंद युग्म का मैं सदा आभारी हूँ ,और आज तो शैलेश जी ने मेरा शेर मेरे कार्टून सहित जिस हस्ती के चरणों में रखा है ,इसके लिए दुबारा शुक्रिया अदा करता हूँ....नज़्म और शाएर के बारे में लिखने को कलम बेहद छोटी है
निदा फ़ाज़ली जी को शत् शत् नमन
कविता को सम्मान
सादर !!!
"...mere maatam ka koi bhi naam nhi tha..." dard ka mukammal tarjumaa, jazbaat ki shiddat, ek.ek lafz meiN manzar.byaani, aur ehsaas ki pakeezgi...sb kuchh mehsoos hua iss umda, meaari aur hassaas nazm ko parh kar .
Nida Faazli... adab ki duniya ka ek mo`tbar naam, ek twaareekh.saaz shakhshiyat.
Hindyugm ko mubarakbaad !!
---MUFLIS---
निदा फाजली जी की बहुत सी गजले मैने रेडियो पर "अंदाज-ए-बयां" में सुनी है, उनकी कलम की तारीफ के लिए मेरे पास शब्द ही नही है
ये कविता दिल को छू गयी
सुमित भारद्वाज
निदा फ़ाजली... नाम पड़ा तो झट से सीधे कविता पर पहुँचा.. बिना भूमिका पढें.. :-)
अब क्या कहूँ...जिस स्तर के वे हैं...
दिल छू जाती है ये कविता...
"श्री एनी माऊस’ ( अच्छा नाम दिया मनु जी :-)) को अपना जवाब मिल गया होगा..
निदा फा़ज़ली की आशीर्वाद पाकर हिन्दयुग्म परिवार आज धन्य हुआ।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
भूमिका अब पढ़ी.. :-)
मुझे इन सब की जानकारी नहीं थी...
ज्ञान बढ़ाने के लिये धन्यवाद.
वैसे... मैंने कोशिश करी की हर सम्मानित व्यक्ति के नाम के आगे "श्री" लगाने की..और फिर पढ़ने की...सिर्फ निदा फ़ाजली के नाम के आगे ही क्यों?... उदाहरण के तौर पे..
श्री सूरदास... या श्री कालिदास..श्री कबीर... श्री गालिब... श्री मीर...
तरूश्री जी ने सच कहा..
सम्माननीय और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व हम और आप जैसे आम लोगों की तरह सम्मान सूचक शब्दों के मोहताज नहीं होते। उनकी प्रतिभा, कला और लेखन की... दुनिया मोहताज होती है।
मेरे मातम का कोई भी नाम नहीं था...
किसे बताती वो कैसा था …?
छोटे-छोटे हाथ पांव थे…
बच्चा था.... बच्चों जैसा था...
निदा फाज़ली जी की यह कविता दर्द और उम्मीद का अद्भुत संगम है, जिसमें एक माँ से उसका बच्चा कभी अलग नहीं हो सकता , निदा जी को सादर नमन .
^^पूजा अनिल
निदा फाजली जी की सोच और उनकी लेखनी को नमन है कुछ कहूँ तो छोटा मुहँ बड़ी बात होगी
बस इतना कहना चाहती हूँ की कविता का एक एक शब्द मानो कई बातें लिए हुए है .अभी तक तो ३ बार पढ़ चुकी हूँ
सादर
रचना
मैं आप सबसे एक बात जानना चाहता हूँ आप सबने 'निदा जी' या 'निदा फाज़ली जी' क्यों लिखा है सिर्फ
निदा लिखिये ना जैसे परिचय में लिखा गया है, ' निदा की कविता बहुत पसंद आई' ,निदा को नमन' लिखिए
और मनु 'जी' आपने शैलेश के साथ आदर सूचक 'जी' क्यों लगाया है? तपन 'जी' ये 'तनुश्री' के साथ
जी क्यों लगाया आपने? सिर्फ 'श्री' ही आदर- सूचक शब्द नहीं है महानुभवो..!!
युग्म पर निदा फाजली साहब के हस्ताक्षर देख(भले परोक्ष हीं)हृदय प्रसन्न हो गया।
साथ में मनु जी का रेखाचित्र एवं शब्दचित्र भी प्रशंसनीय है।
-तन्हा
अनाम ,अन्जान पर बहुत परेशान आप्को मालूम नही शायद जब व्यक्ति बहुत लोकप्रिय हो जाता है तो वह तुम हो जाता है जैसे भगवान , जैसे मां आदि.अगर सकारात्मक होगें तो शायद कुछ सीख पायेंगें-
अनाम
एनी माउस जी ...मनु मनु ने तो निदा का नाम ही नहीं लिखा....
बाकी बात शैलेश "जी" ,,"तपन "जी" ,,तरुश्री "जी",,रचना"जी",,,,,की......तो हम लोग तो इसे ही हैं कोई दो पायदान ऊपर तो कोई दो पायदान नीचे.........आप आदमी की बात कर रहे हैं.
बात यहाँ शायरी के देवता की हो रही है.......
बाकी माँ को , बाप को.....देवता को लोग श्री श्री १००८ से लेकर "तू" तक बोल सकते हैं..उनका हक़ है.प्यार है.........कभी सूफी पढ़ना सुनना....
शैलेश जी तपन जी तो हमारे बॉस हैं.हम से मुखातिब रहते हैं.......निदा या निदा जी या श्री श्री निदा जी आदरणीय नहीं .बल्कि दोस्त हैं .........हर उस के .जो उन्हें चाहता है..चाहे वो दस साल का बच्चा ही क्यों न हो......चाँद को हम अरक चढाते हैं ....हमेशा तू बोलते हैं...कभी नहीं कहते के श्री चाँद जी निकल आए हैं....हाथ जोड़ लो........
अब सोने का टाइम हो गया है.
वरना और भी बातें होतीं..........ऐसे दिल न दुखाया करो आप जो भी हो ..एनी माउस जी ..
"आज न जाने मैं क्या कह के उठूँ,
आज तन्हाई भी है .........भी है""
खाली जगह छोड़ दी है .....अगर निदा की नज़र पड़ गयी तो ख़ुद भर देगा.
गुड नाईट ..............
aadarneey Nikhil ji ! mujhe lagta hai..jahaaN jahaaN jo bhi kahaa likha gaya hai, sb bhaavnaao ke vashibhoot ho kr hi kahaa gya hai.
lafz chahe jo bhi rahe hoN, mn mei bhaav kisi ke bhi bure nhi haiN, aisa mera vishwas hai.
Ab iss behas ko viraam de dena chahiye.
Aap ki vinamrtaa anukaraneey hai.
khairkhwaah......
---MUFLIS---
अभी हम तो रह ही गए मुफलिस जी ,मनु जी हम इन्हे ,पर्दानशीं कहते हैं ,ये हैं बहुत ही शातिर भी ,माननीय जी ,
तुलसी दास की पंक्तियाँ हैं ,याद दिलवाना चाहती हूँ इनको ,
जा की रही भावना जैसी ,
प्रभु मूरत देखि तिन तैसी |
अब तो अपना परदा उठाओ एनी -माउस जी
एक एनिमाउस को दूसरे एनिमाउस का नमस्कार। भईया काहे अंधे को आँख दे रहे हो। ये बडे लोग हैं सब जानते हैं आदरणीय लोग हैं अपना बोरिया लपेटो। काहे आ गये यहाँ पढने किसने बुलाया था?
निदा जी के लेखन पर कोई टिप्पणी कैसे कर सकता है
सूरज को कोई कैसे सूरज दिखा सकता है
ये उनके दिल से निकली हुयी बात है
गहरे जज़्बात हैं,
निदा अपने आप में अपनी तारीफ ख़ुद हैं ऐसे लोगों को खुदा इतनी ज़िन्दगी दे की यह दुनिया को अपने अल्फाज़ की आंखों से दिखा सके
आमीन
हषम अब्बास नकवी
यह बेहद खुशी की बात है,मन तरंगित हो उठा.
एक बात समझ नहीं आती,की जब भी कसी को कुछ सलाह देना होता है या फ़िर उल्टा पुल्टा कहना होता है तो अनाम क्यों बन जाते हैं,ये तो सरासर बेनियाजी है हुजुर...........
आप सामने आईये अगर कुछ भी ऐसा है जो सही नहीं है आपके हिसाब से तो उसे आगे आकर बदलवाया जा सकता है,न की यूँ लुका छिपी करके..........खेद है की आपकी बुद्धि में में छेद है.
आलोक सिंह "साहिल"
निदा जी ,
आपकी कविता व् आपको शत -शत नमन ,
दोहे और प्रकृति से जीवन को सीख देती हुई रचनाए ,
और "सुर" के वो सभी गाने जो आपने कलम बद्ध किये हैं ,हमे बेहद प्रिय हैं ,एक बार फिर से आपका आभार व्यक्त करतें हैं ,
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)