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Wednesday, December 03, 2008

आतंकवादी


सुबह
आँख खुलते ही मैंने देखा
मच्छरदानी के भीतर बहुत से मच्छर हैं
मोटे-मोटे, लाल-लाल
मेरा खून पीकर मस्त
छोटे-छोटे छिद्रों से
बाहर निकलने का मार्ग ढूँढ़ने में व्यस्त
लम्बे पैरों वाले रक्त पिपासु मच्छर !

नहीं
कोई मुझे काट नहीं रहा था
न ही मेरे शरीर का कोई अंग
इनके काटने से दुःख रहा था
मैंने सोचा
मुक्त कर दूं इन्हें कैद से
नाहक क्यों गंदा करूं अपना हाथ
इन्हें मारकर।

तभी अखबार वाला अखबार दे गया
लेटे-लेटे पढ़ने के लिए उठाया
हेडलाइन्स पर निगाह गई-
मुम्बई में आतंकवादियों द्वारा सौ से अधिक लोगों की हत्या
मरने वालों में
हेमंत करकरे, अशोक काम्टे, विजय सालस्कर भी-----
आगे पढ़ने की इच्छा नहीं हुई

मुझे अपनी भूल का एहसास हुआ
मैने मच्छरदानी को चारों ओर से कस कर बंद कर दिया
और चुन चुनकर मच्छरों को मारने लगा।

हर बार
जब मेरी हथेलियाँ आपस में टकरातीं
तो उससे निकलने वाली करतल ध्वनि
मुझे और हिंसक बना देती

धीरे-धीरे सारे मच्छर मर गये
मैंने देखा-
मेरी हथेलियों में मेरा ही खून उतर आया था
मैंने उठकर हाथ धोया
और चाय की प्याली में
नई सुबह की धूप घोलकर पीने लगा।

--देवेन्द्र कुमार पाण्डेय

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16 कविताप्रेमियों का कहना है :

हरकीरत ' हीर' का कहना है कि -

वाह ! देवेन्‍द्र जी... काफी करारी चोट की है आपने ,उपमा भी अच्‍छी दी । इस बार का जोश जरूर
रंग लायेगा उम्‍मीद है।

तेजेन्द्र का कहना है कि -

देवेन्द्र कुमार पाण्डेय जी,

मछरदानी के मछर का उदहारण सराहनिए है
सच है, आतंकवाद का मछर देश का खून चूस रहा है | बहुत दिनों तक हम सभी इससे विमुख हो कर बैठे रहे | अब स्तिथि ये है की वो निडर हो कर हमारी सीमाएँ लाँघ कर हमें लहूलुहान कर रहा है |अब समय आ गया है की इन्हें मसल दिया जाये |

आपके लिखे आखरी कुछ पंक्तियाँ मेरे मन मैं प्रशन खडे करती है

"मेरी हथेलियों में मेरा ही खून उतर आया था"

देश के भीतर पनपता आंतकवाद | जिसमे मारने वाले भी हम है और मरने वाले भी हम हैं

"मैंने उठकर हाथ धोया और चाय की प्याली में नई सुबह की धूप घोलकर पीने लगा।"

क्या ये हमारी आदत बन गए की हम इन आम हो रही घटनाओं से कोई सबक नही लेते ?

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

पीकर अपनो खून भये मच्छर मोटे लाल
बखत आयगो है इन्हें कर देयो आज हलाल
कर देयो आज हलाल बबाल सब कट जायेगो
आतंकी को ग्रहण मुलक से हट जायेगो
आओ चबायें बीडा, भरें छाती में खूब जुनून
अब दिखलाओ मच्छरों पीकर अपनो खून

सीमा सचदेव का कहना है कि -

मच्छरों की उपमा आपने बहुत सटीक दी है |

Anonymous का कहना है कि -

बहुत खूब मच्छरों के माध्यम से कितनी गहरी बात कही आप ने
सादर
रचना

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

बहुत अच्छी उपमा और अब शायद वक्त आ गया है मच्छरों को मारने का...

Unknown का कहना है कि -

इन मच्छरो को मारोगे ये और आयेगे, ये जिस पानी मे पैदा होते है, उस पानी को सुखाने का वक्त आ गया है, पर जब तक मच्छर अधिकार वाले जिन्दा है हम उस तालाब को कैसे सुखायेंगें?

सुमित भारद्वाज

Unknown का कहना है कि -

यहाँ मच्छरो को भी मानव की क्षेणी मे रक्खा जाता है, और इन मच्छरो के डंक से आम इंसान मरता है

सुमित भारद्वाज

Guftugu का कहना है कि -

देवेन्द्र जी ,बधाई
एक संवेदनशील रचना जो सिखा गई कि संवेदना और गुस्से को बचाना ही नही वरन उन्हें व्यक्त करने का भी समय आगया है
स्मिता मिश्रा

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma का कहना है कि -

पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आतंकवाद रूपी ये मच्छर हमारे आस-पास के अव्यवस्था रूपी गंदगी के कारण ही पैदा होते हैं. गंदगी हटायें मच्छर पैदा ही न होंगे.

आपका
महेश

विश्व दीपक का कहना है कि -

देवेन्द्र जी!
आपने आतंकवादियों की सही औकात बताई है। बस अब उस दिन का इंतजार है जब हम भी अपनी ताकत जान लें और इन मच्छरों को उनकी असली जगह पहुँचा दें....गंदी नाली में!!!!

रचना के लिए बधाईयाँ।
-तन्हा

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

सभी पाठकों को बहुत-बहुत धन्यवाद जिन्होने कविता पर अपने विचार व्यक्त किए। कविता भेजते वक्त मै अपनी अकविता लेखन शैली से डर रहा था मगर प्रंशसा ने भ्रम दूर किया।
तेजेन्द्र जी-
"मेरी हथेलियों में मेरा ही खून उतर आया था।"
वस्तुतः हम सभी संवेदनशील होने के कारण मानवतावादी हैं। किसी भी आदमी के खून से अपना हाथ रंगे, यह शर्मनाक है। समय आने पर, समग्र की भलाई में ऐसा भी करना पड़ता है--यही धर्म है।
"मैने उठकर हाथ धोया और चाय की चुश्कियों में नई सुबह की धूप घोल कर पीने लगा।"
नहीं जो आपने लिखा वह नहीं--- मैं 'नई सुबह' की बात कर रहा हूँ। वह दिन आएगा जब हमारा देश इन आतंकवादियों को मारकर नई सुबह की हवा में सांस ले सकेगा।
धन्यवाद।
--देवेन्द्र पाण्डेय।

prem ballabh pandey का कहना है कि -

yek achhi kawita lagi....
magar jehan me yek bat aai ki kya aatankwadi bhi itane spasta roop se dikhai de sakate hain?....
your`s
prem

Anonymous का कहना है कि -

Pandey ji, Aap Kalam Key Sipahi Lagtey Hai.
Aaiye desh ke dushmno ka sir Kalam Kartey hai.
Raj Bhai

raybanoutlet001 का कहना है कि -

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Unknown का कहना है कि -

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