कोई मेरे जख्म सी दे, चैन आये तब कहीं
कोई मेरे गम खरीदे, चैन आये तब कहीं
जिस्म तो तूने नवाजा, खूबसूरत है उसे
गर कहीं से रूह भी दे, चैन आये तब कहीं
सूखकर सहरा हुए हैं, नैन मेरे देख तो
इनको सुख की भी नमी दे, चैन आये तब कहीं
छू रहे हैं दुश्मनों वेफ हौसले आकाश को
उनको भी तू इक गमी दे चैन आये तब कहीं
है लबालब झोली मौसम की गमों से भर रही
फूलों को भी तू हँसी दे, चैन आये तब कहीं
हैं लगी लाशें भी अपना चैन खोने आजकल
मौत को भी जिंदगी दे चैन आये तब कहीं
अश्क तो तूने बहुत मुझको दिये हैं ऐ खुदा
पर लबों को तू हँसी दे चैन आये तब कहीं
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ेलुन[ फ़ाइलुन]
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
हां अब इन लबों को इक हंसी की ज़रुरत है। बहुत बढिया लिखा आपने।
हैं लगी लाशें भी अपना चैन खोने आजकल
मौत को भी जिंदगी दे चैन आये तब कहीं
क्या बात कही है आज कल तो यही हो रहा है
छू रहे हैं दुश्मनों वेफ हौसले आकाश को
उनको भी तू इक गमी दे चैन आये तब कहीं
आमीन
सादर
रचना
श्याम जी, मत्ले का शे'र अच्छा लगा-
''कोई मेरे जख्म सी दे, चैन आये तब कहीं
कोई मेरे गम खरीदे, चैन आये तब कहीं''
चौथे शे'र में 'गमी दे' की जगह 'सबक दे' होता तो ज्यादा बेहतर नहीं होता...?
हरकीरत जी -आपकी बात माने तो काफिया उड़ जायेगा | ग़ज़ल कीप्रारम्भिक जानकारी हेतु सभी ग़ज़ल प्रेमियों का मेरे ब्लॉग google blog. gazal k bahane पर स्वागत है श्याम सखा श्याम
जी श्याम जी,जब कभी गजल सीखने का मन हुआ जरुर आऊँगी , गमी दे शब्द से भाव स्पष्ट
नही हो रहा था बस इसलिए कहा वैसे मुझे अंदेशा था कि ये शब्द गजल की रचना प्रक्रिया
के मद्देनजर रखा गया होगा ...शुक्रिया बताने के लिए।
aaj ke pur.soz halaat ki aqqaasi karti hui ek steek ghazal... lafz, lehjaa, khyalaat, peshkaari sb umdaa....badhaaee !! Aap ke izhaar ki taa`eed karte hue...
"hai jahaaN maatam, unheiN tu hauslaa ab kar ataa ,
jo hai maanga, ab sabhi de, chain aaye tb kaheeN"
---MUFLIS---
हैं लगी लाशें भी अपना चैन खोने आजकल
मौत को भी जिंदगी दे चैन आये तब कहीं
-सच कहते हैं-मृत प्राय बन गए इंसानों मे जीवन आ जाने से चैन और अमन आने की कुछ आशा बाँध सकेगी.
पढने को तो पढ रहा हूँ मैं बहुत गजलें मगर
और भी यदि 'श्याम' की दे, चैन आये तब कहीं.
आपके सभी शेयर बहुत पसंद आए विशेषकर
सूखकर सहरा हुए हैं, नैन मेरे देख तो
इनको सुख की भी नमी दे, चैन आये तब कहीं
""बे-तक्ख्ल्लुस"" की अरज बेजा न बरबाद हुई .
पाँव की बेडी हटी और ग़ज़ल आजाद हुई""
बेमकता कहने के लिए शुक्रिया....
है लबालब झोली मौसम की गमों से भर रही
फूलों को भी तू हँसी दे, चैन आये तब कहीं
मुझे यह शे`र पसंद आया |राम अवतार
सूखकर सहरा हुए हैं, नैन मेरे देख तो
इनको सुख की भी नमी दे, चैन आये तब कहीं
खूबसूरत शेर
मज़ा आ गया पड़ कर
श्यामजी रचना दर्द और सहजता दोनों का भावः लेकर चली है
बहुत खूब!!
सादर
हैं लगी लाशें भी अपना चैन खोने आजकल
मौत को भी जिंदगी दे चैन आये तब कहीं
उम्दा गज़ल!
बधाई स्वीकारें।
-तन्हा
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