शीर्ष १० कविताओं से आगे बढ़ते हैं। ग्यारहवें स्थान की कविता इन दिनों हिन्द-युग्म पर अत्यधिक सक्रिय निपुण पाण्डेय 'अपूर्ण' की है। ३१ दिसम्बर १९८३ को उत्तराखंड के एक छोटे से पहाडी क़स्बा 'चम्पावत' में जन्मे निपुण हिन्द पर नई दस्तक हैं। अपूर्ण की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव से हुई, उसके बाद २००५ में लखनऊ से इन्होंने संगणक विज्ञान में अभियांत्रिकी स्नातक की डिग्री ली। इनके घर का वातावरण साहित्यिक था जो इनकी रुचि कविताओं और ग़ज़लों के प्रति बढ़ाने में हमेशा मददगार रहा | गुलज़ार, सुमित्रानंदन पन्त से बहुत प्रभावित हैं | कविता लिखने का शौक तो पहले से ही था परन्तु कभी-कभी ही लिख पाते थे | अभी कुछ समय से कविताओ को कंप्यूटर पे टाइप कर के सहेज लेते हैं | वेब पोर्टल्स जो की हिन्दी साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए तत्पर हैं, को देख कर उत्साह और बढ़ा। वर्तमान में कवि 'प्रगत संगणन विकास केन्द्र (C-DAC), मुंबई' में स्टाफ वैज्ञानिक (Staff Scientist) के पद कार्यरत हैं।
कविता- अभी तो भोर है सफर की
आज कुछ अलग है,
पहले भी हलचल थी
पर दबा दी गई |
शायद वो क्षणिक ही थी,
पर आज कुछ अलग है,
वेदना तीव्र है,
कुछ भय सा भी है,
कुछ बेबसी है,
मन क्षुब्ध सा है,
धमनियो में विद्रोह है,
कुचल रहा हूँ,
फिर भी कहीं
निराशा का स्वर है,
पर अभी तो भोर है सफर की,
फिर ऐसा क्यों है ......
मन में ऊहापोह है,
विचारो में उथल-पुथल है ,
भावनाओं का सागर उफान पर है,
भय है कहीं
किनारों को काट न दे,
मेरा कुछ अंश
बह न जाये,
मैं, मैं न रह जाऊँ,
फिर कहीं
मैं अकिंचन
इन सब की तरह
निर्जीव न बन जाऊँ,
और अपनी तरह
लोगों के चेत को बस
जाते हुए देखता न रह जाऊँ |
नहीं बनना मुझे निर्जीव,
नहीं खोना है मुझे
मेरे किसी अंश को,
विद्रोह है कहीं
पर अब नहीं दबाऊंगा उसे ,
इस मोड़ पर आकर
फ़िर कुचलना नहीं है इसे,
अब नहीं भागूँगा इससे,
अब कुछ करना ही होगा,
प्रश्न को हल करना ही होगा |
आज टाला गर इसे
बात ख़त्म न होगी,
फिर नासूर बन कर उभरेगी ,
आज विचार करना ही होगा ,
सही और ग़लत का,
अंतर में समाना ही होगा,
प्रश्न का उत्तर
खोजना ही होगा,
पूर्ण हल
जाने बिना जाने न दूँगा,
फिर इसे आने न दूँगा.......
इस सफर की साँझ तक
फिर इसे आने न दूँगा.......
इस सफर की सांझ तक ........
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰५, २, ५, ५, ४, ६॰८
औसत अंक- ५॰०५
स्थान- अठारहवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ३, ५॰०५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ४॰६८३३
स्थान- ग्यारहवाँ
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
निपुण जी, आप काव्य रचना में भी अपने नाम की ही तरह निपुण हैं. लिखते रहिएगा क्योंकि सच कहें तो ...
मन में ऊहापोह है,
विचारो में उथल-पुथल है ,
भावनाओं का सागर उफान पर है,
निपुण की भोर का सफर तो देख लिया और क्या क्या सामान है.
आज टाला गर इसे
बात ख़त्म न होगी,
फिर नासूर बन कर उभरेगी ,
आज विचार करना ही होगा ,
सही और ग़लत का,
aapki kavita ki jo panktiyaan hume pasand aayi ,wo humne likh di .achchi prastuti
नहीं बनना मुझे निर्जीव,
नहीं खोना है मुझे
मेरे किसी अंश को,
विद्रोह है कहीं
पर अब नहीं दबाऊंगा उसे ,
इस मोड़ पर आकर
फ़िर कुचलना नहीं है इसे,
अब नहीं भागूँगा इससे,
अब कुछ करना ही होगा,
प्रश्न को हल करना ही होगा |
बहुत सुंदर.
मन में ऊहापोह है,
विचारो में उथल-पुथल है ,
भावनाओं का सागर उफान पर है,
भय है कहीं
किनारों को काट न दे,
मेरा कुछ अंश
बह न जाये,
मैं, मैं न रह जाऊँ,
फिर कहीं
मैं अकिंचन
इन सब की तरह
निर्जीव न बन जाऊँ,
और अपनी तरह
लोगों के चेत को बस
जाते हुए देखता न रह जाऊँ |
आपकी सजगता पसंद आई..
मन पर एक छाप छोड़ती है.
कविता सुंदर और सरल है...
आपको यहाँ देख कर खुशी हुई...
आगे भी ये सफर जरी रखिये.
कविता का शीर्षक पसंद आया....
हिंदयुग्म पर दिखते रहें..
निखिल
वैसे तो कविता ठीक ठाक लगी,पर ये पंक्तियाँ खासकर जंचीं. आज टाला गर इसे
बात ख़त्म न होगी,
फिर नासूर बन कर उभरेगी ,
आज विचार करना ही होगा ,
सही और ग़लत का,
लिखते रहिये,शुभकामना
आलोक सिंह "साहिल"
नहीं बनना मुझे निर्जीव,
नहीं खोना है मुझे
मेरे किसी अंश को,
विद्रोह है कहीं
पर अब नहीं दबाऊंगा उसे ,
इस मोड़ पर आकर
फ़िर कुचलना नहीं है इसे,
अब नहीं भागूँगा इससे,
अब कुछ करना ही होगा,
प्रश्न को हल करना ही होगा |
आप की कविता के भावः बहुत ही अच्छे हैं शब्दों का चयन भी उत्तम है
बधाई
सादर
रचना
नहीं बनना मुझे निर्जीव,
नहीं खोना है मुझे
मेरे किसी अंश को,
विद्रोह है कहीं
पर अब नहीं दबाऊंगा उसे ,
इस मोड़ पर आकर
फ़िर कुचलना नहीं है इसे,
अब नहीं भागूँगा इससे,
अब कुछ करना ही होगा,
प्रश्न को हल करना ही होगा |
आप की कविता के भावः बहुत ही अच्छे हैं शब्दों का चयन भी उत्तम है
बधाई
सादर
रचना
आज टाला गर इसे
बात ख़त्म न होगी,
फिर नासूर बन कर उभरेगी ,
आज विचार करना ही होगा ,
सही और ग़लत का,
अंतर में समाना ही होगा,
प्रश्न का उत्तर
खोजना ही होगा,
पूर्ण हल
जाने बिना जाने न दूँगा,
फिर इसे आने न दूँगा.......
इस सफर की साँझ तक
बहुत ही सुंदर और प्रेरणादायक विचार हैं. जैसी ओजस्वी भावना है वैसी ही प्रभावी कविता भी. आपको बहुत आगे जाना है. बधाई स्वीकारें!
बहुत खुब निपुण जी, एक दिन आपकी कविताये आपके नाम को जरुर सार्थक करेंगी
बहुत बहुत धन्यवाद आपकी बधइयो एवं प्रोत्साहन के लिए ...................
नहीं बनना मुझे निर्जीव,
नहीं खोना है मुझे
मेरे किसी अंश को,
विद्रोह है कहीं
पर अब नहीं दबाऊंगा उसे ,
इस मोड़ पर आकर
फ़िर कुचलना नहीं है इसे,
अब नहीं भागूँगा इससे,
अब कुछ करना ही होगा,
प्रश्न को हल करना ही होगा |
कविता अच्छी लगी
कविता की कुछ पंक्तिया पढने के बाद कविता का समापन कैसा होगा ये आभास हो गया था
सुमित भारद्वाज
very nice poem nipun .. I liked it very much .. very much realistic .. keep it up ..
Really Sir ur poem is awesome,its touchng the feelings...
Keep it up...
And also suggest me that how can i enter in this field...
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