तुम्हे मन्दिर की घंटियों में मैंने पाया है,
मैं महसूस करता हूँ तुमको ही अज़ानों में...
अक्सर मां की लोरी की तरह ही बोल तेरे,
अक्सर घोल देते हैं मिठास मेरे कानों में....
अब न मंज़िल ही कोई और न हमसफर कोई,
न हुआ एक भी सफर मेरा, और न हमसफर कोई...
मैं फ़िर भी इन उम्मीदों के सहारे चल रहा हूँ,
अनगिन वेदना के क्षणों में जल रहा हूँ...
कि तुम इस धूप में भी बरगदों की छाँव बनकर.
कि बनकर तुम किसी झरने का कलकल स्वर,
सुख! अमर सुख! दे सको मेरी थकानों में...
मैं अगणित बार खंडित हो रहा हूँ, दिन-प्रतिदिन;
मैं कितनी बार जीते-जी मरा करता हूँ तुम बिन;
बहारें हैं ज़माने में, मेरी खातिर है पतझड़;
इस मायावी दुनिया में खड़ा हूँ हाशिये पर,
मेरी श्रद्धा, मेरा भी प्रेम अब मायावी बनेगा?
दो आत्माओं का मिलन (भी) दुनियावी बनेगा??
सजेंगे आस्था के फूल दुनिया की दुकानों में....
मैं थक कर चूर हो जाऊं तो सहलाना मुझे तुम,
ये दुनिया जब लगे छलने तो बहलाना मुझे तुम;
ये सौदे, दोस्त-दुश्मन और अय्यारी की बातें;
मेरे बस की नही हमदम; ये दुनियादारी की बातें;
मेरे आँसू यही कहते हैं तुमसे बार-बार(बार-बार!)
मुझे लेकर चलो (लेकर चलो!) इस मायावी दुनिया के पार
दफ़न हो जाएँ किस्से भी हमारे दास्तानों में...
तुम्हे मंदिर की घंटियों में मैंने पाया है,
कि मैं महसूस करता हूँ तुमको ही अज़ानों में,
अक्सर माँ की लोरी की तरह ही बोल तेरे,
अक्सर घोल देते हैं मिठास मेरे कानों में...
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
मेरे बस की नही हमदम; ये दुनियादारी की बातें;
अच्छी कविता है ...............
अब न मंज़िल ही कोई और न हमसफर कोई,
न हुआ एक भी सफर मेरा, और न हमसफर कोई...
मैं फ़िर भी इन उम्मीदों के सहारे चल रहा हूँ,
अनगिन वेदना के क्षणों में जल रहा हूँ...
कि तुम इस धूप में भी बरगदों की छाँव बनकर.
कि बनकर तुम किसी झरने का कलकल स्वर,
सुख! अमर सुख! दे सको मेरी थकानों में...
बहुत सुंदर लगी आपकी यह रचना
तुम्हे मंदिर की घंटियों में मैंने पाया है,
कि मैं महसूस करता हूँ तुमको ही अज़ानों में,
अक्सर माँ की लोरी की तरह ही बोल तेरे,
अक्सर घोल देते हैं मिठास मेरे कानों में...
जो भाव आपने इन पंक्तियों में उभरने की कोशिश की है,उन्हें मैं बड़ी शिद्दत से महसूस कर सकता हूँ,सुंदर
आलोक सिंह "साहिल"
मुझे आपकी कविता बहुत अच्छी लगी! खास कर ये पंक्तियाँ,में थक कर चूर हो जाऊं ,तो सहलाना मुझे तुम........दफ़न हो जाएँ किस्से भी हमारे,दस्तानों में! बहुत बढ़िया बहुत-२ बधाई और दीपावाली की शुभकामनायें !
मुझे आपकी कविता बहुत अच्छी लगी! खास कर ये पंक्तियाँ,में थक कर चूर हो जाऊं ,तो सहलाना मुझे तुम........दफ़न हो जाएँ किस्से भी हमारे,दस्तानों में! बहुत बढ़िया बहुत-२ बधाई और दीपावाली की शुभकामनायें !
Vedana ke in swaron men ek swar .... Vedana,virah ko adbhut chitran aapki kavita men sahaj udghatit ho raha hai. bahut achhi lagi rachna.
छंद-मुक्त कविताओं की मुझसे ज़रा कम बनती है | आपका नाम देखा तो कविता पढ़ी |
छंद-मुक्त कविताओं में जो एक बात, मुझे, बहुत महत्त्वपूर्ण लगाती है वो है "कविता/भावनाएं अपनी मगर दर्पण पाठक का" | जो जिस बहाव में लिखा जा रहा है, अगर पाठक उसी के साथ उसी गति से बह सकता है तो यह बड़ी उपलब्धि है |
आपकी कविता, ख़याल .... बहुत पसंद आया | बस, उस बहाव से बह नहीं पाई जिस बहाव से इतने खूबसूरत भाव लिखे गए हैं | Try putting yourself in the shoes of the reader and re-read the composition. Articulation/expression of feelings could have been better.
कविता का भाव तो समझ आ गया पर कविता दिल को नही छू सकी
शायद भाव मे नयापन नही लगा या मैने भाव गलत समझा
सुमित भारद्वाज
:) अच्छी लगी!
अब न मंज़िल ही कोई और न हमसफर कोई,
न हुआ एक भी सफर मेरा, और न हमसफर कोई...
मैं फ़िर भी इन उम्मीदों के सहारे चल रहा हूँ,
अनगिन वेदना के क्षणों में जल रहा हूँ...
कि तुम इस धूप में भी बरगदों की छाँव बनकर.
कि बनकर तुम किसी झरने का कलकल स्वर,
सुख! अमर सुख! दे सको मेरी थकानों में...
निखिल जी बहुत दिन बाद आपको पढने का अवसर मिला..
अच्छी लगी रचना पर भाव थोड़े कम लगे niche की पंक्तियों में.
तुम्हे मंदिर की घंटियों में मैंने पाया है,
कि मैं महसूस करता हूँ तुमको ही अज़ानों में,
अक्सर माँ की लोरी की तरह ही बोल तेरे,
अक्सर घोल देते हैं मिठास मेरे कानों में...
कविता में भाव बहुत सुंदर है और ये प्रभावित भी करते हैं एक सुंदर रचना
सादर
रचना
दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ
सभी को धन्यवाद...
मैं अगणित बार खंडित हो रहा हूँ, दिन-प्रतिदिन;
मैं कितनी बार जीते-जी मरा करता हूँ तुम बिन;
बहारें हैं ज़माने में, मेरी खातिर है पतझड़;
इस मायावी दुनिया में खड़ा हूँ हाशिये पर,
मेरी श्रद्धा, मेरा भी प्रेम अब मायावी बनेगा?
दो आत्माओं का मिलन (भी) दुनियावी बनेगा??
सजेंगे आस्था के फूल दुनिया की दुकानों में....
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bahut badhiya!!
--
randhir
अच्छी कविता है, पर क्या कुछ छोटी नही हो सकती थी!
मुहम्मद अहसन
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