काव्य-पल्लवन सामूहिक कविता-लेखन
विषय - दीपावली
अंक - उन्नीस
माह - अक्तूबर 2008
दीपावली यानि दीपों की श्रृंखला। यह त्योहार प्रतीक है बुराई पर अच्छाई की जीत का। कहा जाता है कि इस दिन राम रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे। दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में ऐसा भी माना गया है कि इस दिन कृष्ण ने नरकासुर का वध किया। तमिल में दीपावोली कहा जाता है (यहाँ ओली का अर्थ है रोशनी)। जैन धर्म में इस दिन को भगवान महावीर के निर्वाण के रूप में माना गया है। यही वह दिन है जब सिखों के छठें गुरु हरगोविंद सिंह जी जेल से रिहा हुए। दीवाली शब्द दीपावली का ही बिगड़ा हुआ रूप है। दीवाली का त्योहार एक साथ कईं त्योहार ले कर आता है। शुरुआत होती है वासु बरस से। इस दिन गाय और बछड़े को पूजा जाता है। फिर आता है धनतेरस। ये त्रयोदशी को आता है और भगवान धन्वंतरी की जयंती के रूप में मनाया जाता है। अगले दिन होता है नरक चतुर्दशी यानि नरकासुर का वध। गुजराती में कहते हैं कालि चौदस और राजस्थान में रूप चौदस। दक्षिण भारत में ये दिन बड़ा माना गया है। अमावस्या के दिन होती है लक्ष्मी और गणेश की पूजा। और फिर अगले दिन गोवर्धन पूजा। इस दिन भगवान कृष्ण ने इंद्र को हरा गोवर्धन पर्वत उठाया था। गुजरात में इस दिन नया वर्ष आरंभ होता है। और अंत में है भाई दूज। गुजराती में भाई बिज और बंगाल में भाई फोटा। यह दिन भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित किया गया है।
पूरा एक सप्ताह देश भर में त्योहारों की रौनक रहती है। क्यों न हम भी आज से ही दीपावली की शुभकामनाओं के साथ इस त्योहार की शुरुआत करें। दीपों और रोशनी के त्योहार में हम लेकर आयें 29 कविताओं से सजी श्रृंखला।
आपको हमारा यह प्रयास कैसा लग रहा है?-टिप्पणी द्वारा अवश्य बतायें।
*** प्रतिभागी ***
| डॉ॰ कमल किशोर सिंह | कविता रावत | हरिहर झा | अम्बरीष श्रीवास्तव | अरुण मित्तल 'अद्भुत' | देवेन्द्र पाण्डेय | रचना श्रीवास्तव | हरकीरत कलसी ’हकीर’ | विवेक रंजन श्रीवास्तव | आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' | सुधीर सक्सेना 'सुधि' | ए.एम.शर्मा | महेश कुमार वर्मा | गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल' | सी.आर.राजश्री | जीतेन्द्र कुमार तिवारी " मेजर" | सुनील कुमार ’सोनू’ | सविता दत्ता | शोभा महेंद्रू | प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव | विशाल मिश्रा | नीति सागर | कपिल गर्ग | विपिन पंवार "निशान" | प्रदीप मानोरिया | पंखुड़ी कुमारी | शारदा अरोड़ा | कमलप्रीत सिंह | अनिरुद्ध सिंह चौहान |
~~~अपने विचार, अपनी टिप्पणी दीजिए~~~
जलाई जो तुमने-
है ज्योति अंतस्तल में ,
जीवन भर उसको
जलाए रखूंगा
तन में तिमिर कोई
आये न फिर से,
ज्योतिर्मय मन को
बनाए रखूंगा.
आंधी इसे उडाये नहीं
घर कोइ जलाए नहीं
सबसे सुरक्षित
छिपाए रखूंगा.
चाहे झंझावात हो,
या झमकती बरसात हो
छप्पर अटूट एक
छवाए रखूंगा
दिल-दीया टूटे नहीं,
प्रेम घी घटे नहीं,
स्नेह सिक्त बत्ती
बनाए रक्खूँगा.
मैं पूजता नो उसको ,
पूजे दुनिया जिसको ,
पर, घर में इष्ट देवी
बिठाए रखूंगा.
---डा. कमल किशोर सिंह
आओ मिलकर दीप जलाएं
अँधेरा धरा से दूर भगाएं
रह न जाय अँधेरा कहीं घर का कोई सूना कोना
सदा ऐसा कोई दीप जलाते रहना
हर घर -आँगन में रंगोली सजाएं
आओ मिलकर दीप जलाएं.
हर दिन जीते अपनों के लिए
कभी दूसरों के लिए भी जी कर देखें
हर दिन अपने लिए रोशनी तलाशें
एक दिन दीप सा रोशन होकर देखें
दीप सा हरदम उजियारा फैलाएं
आओ मिलकर दीप जलाएं.
भेदभाव, ऊँच -नीच की दीवार ढहाकर
आपस में सब मिलजुल पग बढायें
पर सेवा का संकल्प लेकर मन में
जहाँ से नफरत की दीवार ढहायें
सर्वहित संकल्प का थाल सजाएँ
आओ मिलकर दीप जलाएं
अँधेरा धरा से दूर भगाएं.
---कविता रावत
भई कैसा है उजियारा जब कि अमावस काली आई
बोले आकाश से पटाखे धरती पे दीवाली आई
नासमझी में चाशनी कढ़ाई से लार क्यों टपकाये
सजधज के बहुत, मिठाई से भरी वो थाली आई
दीये की ज्योति में भाव बदले रंग बदले ज़माने के
जीवन था बेरंग कितना, अब गालों पर लाली आई
क्यों सब थे नाराज, बैठे गाल फुलाये जब
दीपों से दीप जले तो घर में खुशहाली आई
बेसुध थी रात कुछ भान ओढ़ने का किसको?
अब नथनी नाक में और कानों में बाली आई
फैके हम पर निगाह फुरसत न थी घरवाली को
“ दीवाली मुबारक हो ! ” कहती हुई साली आई
---हरिहर झा
गणपति गणना कर रहे, सरस्वती के साथ |
लक्ष्मी साधक सब दिखें, सबको धन की आस ||
ज्ञान उपासक कम मिले, खोया बुद्धि विवेक |
सरस्वती को पूजते, मानव कुछ ही एक||
लक्ष्मी वैभव दे रहीं, वाहक बने उलूक |
दोनों हाथ बटोरते, नहीं रहे सब चूक ||
अविनाशी सम्पति मिले, हंसवाहिनी संग |
आसानी से जो मिले, छेड़े आगे जंग ||
लक्ष्मी हंसा पर चलें, ऐसा हो संयोग |
सुखमय भारत देश हो, आये ऐसा योग ||
जन जन में सहयोग हो, देश प्रेम का भाव |
हे गणेश कर दो कृपा, पार करो अब नाव ||
हम सबकी ये प्रार्थना, उपजे ज्ञान प्रकाश |
दीपों के त्यौहार में, हो सबमें उल्लास ||
--अम्बरीष श्रीवास्तव
ये प्रकाश का अभिनन्दन है
अंधकार को दूर भगाओ
पहले स्नेह लुटाओ सब पर
फिर खुशियों के दीप जलाओ
शुद्ध करो निज मन मंदिर को
क्रोध-अनल लालच-विष छोडो
परहित पर हो अर्पित जीवन
स्वार्थ मोह बंधन सब तोड़ो
जो आँखों पर पड़ा हुआ है
पहले वो अज्ञान उठाओ
पहले स्नेह लुटाओ सब पर
फिर खुशिओं के दीप जलाओ
जहाँ रौशनी दे न दिखाई
उस पर भी सोचो पल दो पल
वहाँ किसी की आँखों में भी
है आशाओं का शीतल जल
जो जीवन पथ में भटके हैं
उनकी नई राह दिखलाओ
पहले स्नेह लुटाओ सब पर
फिर खुशियों के दीप जलाओ
नवल ज्योति से नव प्रकाश हो
नई सोच हो नई कल्पना
चहुँ दिशी यश, वैभव, सुख बरसे
पूरा हो जाए हर सपना
जिसमे सभी संग दीखते हों
कुछ ऐसे तस्वीर बनाओ
पहले स्नेह लुटाओ सब पर
फिर खुशियों के दीप जलाओ
--अरुण मित्तल 'अद्भुत'
सुना है राम
कि तुमने मारा था मारीच को
जब वह
स्वर्ण मृग बन दौड़ रहा था
वन-वन।
सुना है
कि तुमने मारा था रावण को
जब वह
दुष्टता की हदें पार कर
लड़ रहा था तुमसे
युध्य भूमी में
सोख लिए थे तुमने उसके अमृत-कलश
अपने एक ही तीर से
विजयी होकर लौटे थे तुम
मनी थी दीवाली
घर-घर।
मगर आज भी
जब मनाता हूँ विजयोत्सव
जलाता हूँ दिये
तो लगता है कि कोई
अंधेरे में छुपकर
हंस रहा है मुझपर
फंस चुके हैं हम
फिर एक बार
रावण-मारीच के किसी बड़े षड़यंत्र में।
आज भी होता है
सीता हरण
और भटकते हैं राम
घर में ही
निरूपाय
नहीं होता कोई
लक्ष्मण सा अनुज
जटायू सा सखा
या हनुमान सा भक्त
लगता है
सब मर चुके हैं तुम्हारे साथ
जीवित हैं तो सिर्फ
मारीच और रावण !
तुम सिर्फ एक बार अवतरित हुए हो
और समझते हो कि सदियों तक
तुम्हारे वंशज
मनाते रहें
विजयोत्सव !
आखिर तुम कहाँ हो मेरे राम ?
--देवेन्द्र पाण्डेय
कहा उस ने
आओ प्रिये दीवाली मनाएं
अपने संग होने की
खुशियों में समायें
आओ प्रिये दीवाली मनाएं
हाथ पकड़
दिए के पास लाई
जलाने को जो उसने लौ उठाई
तभी देखा
दूर एक घर
अंधेरों में डूबा था
बम के धमाके से
ये भी तो थरराया था
आँगन में उनके
करुण क्रन्दन का साया था
पड़ोस डूबा हो जब अन्धकार में
तो घर हम अपना कैसे सजाएँ
तुम ही कहो प्रिये
दीवाली हम कैसे मनाएं?
कर के हिम्मत उसने
एक फुलझडी थमाई
लाल बत्ती पे गाड़ी पोछते
उस मासूम की
पथराई ऑंखें याद आई
याचना के बदले मिला तिरस्कार
पैसों के बदले दुत्कार
घर में जब गर्मी न हो
वो पटाखे कैसे जलाये
जब है खाली उसके हाथ
हम फुल्झडियां कैसे छुडाएं ?
तुम ही कहो प्रिये
दीवाली हम कैसे मनाएं ?
जब खाया नही
तो दूध कहांसे आए
छाती से चिपकाये बच्चे को
सोच रही थी भूखी माँ
मिठाइयों की महक से
हो रही थी और भूखी माँ
खाली हो जब पेट अपनों के
कोई तब जेवना कैसे जेवे
अब तुम ही कहो प्रिये
दिवाली हम कैसे मनाएं?
भरी आँखों से
देखा उसने
फ़िर लिए कुछ दिए ,पटाखे मिठाइयां
संग ले मुझको
झोपडियों की बस्ती में गई
हमारी आहट से ही
नयन दीप जल उठे
पपडी पड़े होठ मुस्काए
सिकुड़ती आंतों को
आस बन्धी
अंधियारों में डूबा बच्पन
आशा की किरण से दमक उठा
अमावस की काली रात में
जब प्रसन्नता की दामिनी चमक उठी
तो अब आओ प्रिये
दीवाली हम खुशी से मनाये
सुनो न
दीवाली हम सदा एसे मनाएं
--रचना श्रीवास्तव
सोचती हूँ दिवाली
इस बार तुम आई तो
तुझे कहाँ रखूँगी
पिछले वर्षो की तरह
इस बार भी तुम आओगी
उसी नीम के पेड़ पर
जहाँ हर बार मैं तुम्हें
टांग देती हूँ लडि़यों में
दीवारों पर,
कोने में उपजे कैक्टस पर,
या काँटों की उस झाड़ पर
जो कहीं मन के विराने में
उपजी है
वर्षो से
ढूंढ दरख्त की
टहनियों में
टांग दूंगी तुझे
और देखूंगी एकटक
कैसा लगता है
हरियाली के बिना
रौशनी का जहाँ
इस बार भी
तुम आओगी चेहरे पर
वही हजारों सवाल लिए
हाथों की मेंहदी...
कलाइयों की चुडि़याँ...
माथे की बिन्दिया...
महावर,रंगोली,वंदनवार...
सब कहाँ हैं...?
मैं मुस्कुरा उठूँगी
वही बेजां सी
फीकी मुस्कुराहट
जो हर बार तुम्हें
परोस देती हूँ
मिठाई के थाल में
और कहती हूँ
''स्वागत है''
जानती हूँ
इस बार भी तुम
फिर वही
रंगोली का लाल टीका
जड़ दोगी
मेरे माथे पर
जो हर बार तुम
चुरा लाती हो
मेरे लिए
सुहागिनों के आँगन से
वर्षों से
तुम मुझे
इसी तरह तो
जीना सिखलाती रही हो
कभी शमां बन,
कभी दीया बन,
कभी बाती बन,
दूसरों के लिए
सोचती हूँ दिवाली
इस बार तुम आई तो
तुम्हें कुछ भेंट दूंगी
क्या दूँ...?
हूं....ह...?
अपना पहला काव्य-संग्रह
'इक-दर्द'...?
जो मेरे जीवन के
बीस वर्षो का
सरमाया भी है
लोगी ना...??
--हरकीरत कलसी ’हकीर’
दीपावली पर सत्कार का, इजहार रंगोली
उत्सवी माहौल में, अभिसार रंगोली
खुशियाँ हुलास और, हाथो का हुनर हैं
मन का है प्रतिबिम्ब, श्रंगार रंगोली
धरती पे उतारी है , आसमां से रोशनी
है आसुरी वृत्ति का, प्रतिकार रंगोली
बहुओ नेबेटियों ने, हिल मिल है सजाई
रौनक है मुस्कान है, मंगल है रंगोली
पूजा परंपरा प्रार्थना, जयकार लक्ष्मी की
शुभ लाभ की है कामना, त्यौहार रंगोली
संस्कृति का है दर्पण, सद्भाव की प्रतीक
कण कण उजास है, संस्कार रंगोली
बिन्दु बिन्दु मिल बने, रेखाओ से चित्र
पुष्पों से कभी रंगों से अभिव्यक्त रंगोली
अक्षरों और शब्दों से, हमने भी बनाई
हिन्द युग्म ने सजाई , दीवाली पे रंगोली
--विवेक रंजन श्रीवास्तव
दीप ज्योति बनकर हम
जग में नव प्रकाश फैलाएं.
आत्म और परमात्म मिलाकर
दीप-ज्योति बन जाएँ...
दस दिश प्रसरित हो प्रकाश
तम् तनिक न हो अवरोध.
सबको उन्नति का अवसर हो
स्वाभिमान का बोध.
पढने, बढ़ने, जीवन गढ़ने
का सबको अधिकार.
जितना पायें, शत गुण बाँटें
बढे परस्पर प्यार.
रवि सम तम् पी, बाँट उजाला
जग ज्योतित कर जाएँ.
अंतर्मन का दीप बालकर
दीपावली मनाएँ...
अंधकार की कारा काटें,
उजियारा हो मुक्त.
निज हित गौड़, साध्य सबका हित,
जन-गण हो संयुक्त.
श्रम-सीकर की विमल नर्मदा,
'सलिल' करे अवगाहन.
रचें शून्य से स्रष्टि समूची,
हर नर हो नारायण.
आत्म मिटा विश्वात्म बनें,
परमात्म प्राप्त कर पायें.
'मैं' को 'हम' में कर विलीन,
'सब' दीपावली मनाएँ...
एक दीप गर जले अकेला,
तूफां उसे बुझाता.
शत दीपो से जग रोशन हो,
अंधकार डर जाता.
शक्ति एकता में होती है,
जो चाहे वह कर दे.
माटी के नन्हें दीपक को
तम् हरने का वर दे.
बने अमावस भी पूनम,
यदि दीप साथ जल जाएँ.
स्नेह-साधना करें अनवरत
दीपावली मनाएँ...
--आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
ज्योति-पर्व की इस बेला में
आलोकित है मन का आँगन.
खुशियों का संसार पुलकता
दीपों की मीठी बातों से
पग-पग सुमन लुटाते सौरभ
स्नेह भरे कोमल हाथों से
दो अस्फुट बोलों से गूंजे
अधरों का अभिमंत्रित गुंजन.
फुलझडियों-सा क्षण-भंगुर है
जीवन इससे रास रचाए
वायु प्रकम्पित लौ की आभा
हर दीये की आस जगाए
गंध-सिक्त परिवेश हमारा
साझीदार हुआ जब चंदन.
शाम खड़ी है नदी किनारे
चिड़िया-सी मुस्काती, गाती
दीपकाल में आई दुलहन
कुछ सकुचाती, कुछ शरमाती
तन में सिहरन, मन में पुलकन
झिलमिल दीपों के क्षण पावन.
मेरी पलकों पर आ बैठा
उजियारे का स्वप्न सुहाना
दो मोती ढुलके गालों पर
याद किया जब प्यार पुराना
तुम्हें समर्पित दीपमालिका
श्रंगारित ज्योतिर्मय तन-मन.
--सुधीर सक्सेना 'सुधि'
वो बचपन की दीपावली......
वो लक्ष्मी के पैरो की अल्पना
वो गन्ने की सुंदर लक्ष्मी का बनना
वो खील खिलोनो बताशों का बिखरना
वो कलाकंद बर्फी बतिशो का जमना
वो फूलझडी अनारो कंदीलों का लरजना
वो घी के दिए मोमबत्तियों का जलना
वो गेंदे के फूलो से द्वार का सजना
वो रिस्तो का खिलखिलाहट से खनकना
वो दोस्तों संग मिलकर सभी का चहकना
वो नए परिधानों से सजना संवरना
वो त्यौहार दीपावली का सुंदर सलोना ...
ये आज की दीपावली ........
ये स्टीकर से सजी हुई अल्पना
ये लक्ष्मी की सुंदर मूर्ति का बनना
ये खील खिलोनों बताशों का सिमटना
ये ऊपहार मेवो मिठाइयों का बटना
ये पटाखों बमों का गर्जना
ये बल्बों की माला से जगमगाना
ये प्लास्टिक के फूलो व झालर से सजना
ये रिस्तो का खोना
ये दोस्तों का बहाना
ये नए परिधानों में ऐठना इतराना
ये त्यौहार प्रदुषण व शोर का है ताना बाना
न प्रदूषण आडम्बर शोर का भय हो
ये त्यौहार दीपावली का सर्व मंगलमय हो !!!!!
--ए.एम.शर्मा
होती थी यह वर्षों पहले
जब दिवाली में जलते थे दिये
पर अब चाहे हो जैसे
दिवाली में जलते हैं पैसे
छोड़ते हैं बम-पटाखे
और छोड़ते हैं रॉकेट
फैलाते है प्रदुषण
बढ़ाते हैं बीमारी
चाहे हो जैसे
पर दिवाली में जलते हैं पैसे
दिवाली मैं दिये अब जलते नहीं
दिये के स्थान पर है अब मोमबत्ती
मोमबत्ती का स्थान भी ले लिया अब बिजली
बिना बिजली के नहीं होता अब दिवाली
पर आपस में ख़ुशी बाँटने के जगह
खेलकर जुआ करते हैं पैसे की बर्बादी
चाहे हो जैसे
पर दिवाली में जलते हैं पैसे
दिवाली में जलते हैं पैसे
--महेश कुमार वर्मा
धरती पर उतर आया जैसे सितारों का कारवां
टूटते तारों का उल्कापात सा आभास
आकाश में जाते पटाखों से फूटता प्रकाश
टिमटिमाते दीपों से लगती
झिलमिलाते सितारों की दीप्ति
दूर तक दीपवालियों से नहाई हुई
उज्जवल वीथियाँ
लगती आकाशगंगा सी पगडंडिया
एक अनोखा पर्व
जिसने पैदा कर दिया
पृथ्वी पर एक नया ब्रह्माण्ड
सूर्य, चंद्र और आकाश भी दिग्भ्रमित
सैकडों प्रकाशवर्ष दूर यह कैसा प्रकाश
धरती पर उतर आया आकाश
सितारों को कैसे चुरा लिया पृथ्वी ने मेरे आँगन से
चाँद ने भी सुना कि चुरा लिया है चांदनी को
और अप्रितम सौंदर्य का प्रतिमान बनी है धरा
उसकी चांदनी को ओढे
पीछे पीछे दौड़ा आया क्षितिज के उस पार से सूर्य
किसने किया दर्प चूर उसका
रात में फैला यह अभूतपूर्व उजास
नहीं हो सकता यह चाँद का प्रयास
ओह ! चाँद का प्रतिरूप
धरती का यह अनोखा रूप
पर्वों का लोक पृथ्वी
जहाँ हर ऋतु में नृत्य करती धरा
कभी वासंती, कभी हरीतिमा, कभी श्वेतवसना वसुंधरा
अथक यात्रा में संलग्न धरा
तुम धन्य हो !
अमर रहे
मेरे प्रकाश से कहीं ऊर्जस्वी तुम्हारा यह पर्व
मैं अनंत काल तक दूँगा तुम्हें प्रकाश
चाँद बोला- मैं भी अनंतकाल तक बिखेरूँगा शीतलता
धरा है, तो है हमारा अस्तित्व
हलाहल से भरे रत्नानिधि के आगोश में
नीलवर्ण अस्तित्व
दिनकर के आतप से तप कर
स्वर्णिम बना तुम्हारा अस्तित्व
स्वत्वाधिकार है तुम्हें मनाने का
यह प्रकाश पर्व.
--गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल'
दिवाली देखो कैसी रौनक लायी
दीपो की छठा देखो फ़िर निखर आई
वैर भाव भूल कर समानता का पैगाम लायी
आतिशबाजी मिठाई के संग खुशियों की सौगात लायी
बच्चों की आँखों देखो कैसे खिल गई
जवानों की हर अरमान पूरी हो गई
बड़े बूढों की जैसे जिंदगी सफल हो गई
दिवाली के इंतजार की वेला ख़त्म हो गई
दीपो की पंक्ति धारा को शोभित करती हैं
तारें जैसे नभ को सुशोभित करती हैं
ये रंगीला पर्व कितनी सुंदर लगती है
उत्साह की ये घड़ी मन में तरोताजा रहती है
दिलों दिमाग में हमेशा छाई रहती है
सुसज्जित वातावरण काफी आकर्षक लगती है
दिवाली बहुत सुहावनी लगती है
दिवाली कैसी मनोरम लगती है
दिवाली बड़ी लुभावनी लगती है
दिवाली कितनी खूबसूरत लगती है
--सी.आर राजश्री
आज एक वर मांगता हूँ मैं तो अपने राम से,
दीप को प्रज्वलित कर दो आप अपने नाम से.
पाप का अँधेरा मिटे,
और शान्ति का साम्राज्य हो.
बंद हो जाए लड़ाई मजहबों के नाम से.
आज एक वर मांगता हूँ मैं तो अपने राम से,
दीपक जले फ़िर प्रेम का,
सौहार्द की हो रोशनी.
चलने लगे फ़िर से ये दुनिया राम के आदर्श पे.
राम के आदर्श पे धरती बने फ़िर स्वर्ग सी.
कहे कवि "मेजर" ये दुनिया है तेरे एहसान से.
आज एक वर मांगता हूँ मैं तो अपने राम से,
दीप को प्रज्वलित कर दो आप अपने नाम से.
--जीतेन्द्र कुमार तिवारी " मेजर"
आँखों से आँखों में मोहब्बत के दीये जलाना
झिलमिल-झिलमिल दीपों सा हिल-मिल के खुशी मनाना
कहीं ज्ञान का कही विज्ञान का रोशनी बीखेर
अँधेरा अदंर हो या बाहर तुम प्रेम से दीये जलाना
चाँद सूरज काफी नही है जग का तम हरने को
भर-भर मुट्ठी मशाल कोने -कोने पे जलाना
खंडहर हो या आलीशान महलें भेद-भाव न कर
अँधेरा रास न आया कीसी को तू हर जगह दीप जलाना
ये क्या बात हुई दिवाली में ही सिर्फ दीये जले
मकसद तमस मिटाना है तू वजह-बेवजह दीप जलाना
बुझे नही ज़िंदगी का चिराग किसी आंधी-तूफान से
गम और निराशा की कही कालिमा न रहे तू इतना दीप जलाना
--सुनील कुमार ’सोनू’
मनानी है ईश कृपा से इसबार दीपावली
वहीं, उन्हीं के साथ जिनके कारण
यह भव्य त्योहार आरम्भ हुआ
और वह भी उन्हीं के धाम अयोध्या जी में
अपने घर तो हर व्यक्ति मना लेता है दीपावली
परन्तु इस बार यह विचित्र इच्छा मन में आई है
हाँ छोटी दीवाली तो अपने घर में ही होगी
पर बड़ी रघुनन्दन राम सियावर राम जी के साथ
कितना आनन्द आएगा जब जन्म भूमि में
रघुवर जी के साथ मैं छोड़ूँगी पटाखे और फुलझड़ियाँ
जब मैं उनकी आरती करूँगी
जब मैं दीए उनके घर में जलाऊँगी
उस आनन्द को कैसे वर्णन करूँ जो
इस जीवन को सफल बनाएगा
मैं गर्व से कहूँगी कि हाँ मैने इस जीवन का
सच्चा आनन्द आज ही प्राप्त किया है
अपलक जब मैं रघुवर को जब उन्हीं के भवन में
निहारूँगी वह क्षण परमानन्द सुखदायी होंगें
हे रघुनन्दऩ कृपया जल्द ही मुझे वह दिन दिखलाओ
इन अतृप्त आँखों को तृप्त कर दो
चलो इस बार की दीपावली मेरे साथ मनाओ
इच्छा जीने की इसके बाद समाप्त हो जाएगी
क्योंकि सबसे प्रबल इच्छा जो मेरी तब पूरी हो जाएगी
--सविता दत्ता
दीपावली नाम है प्रकाश का
रौशनी का खुशी का उल्लास का
दीपावली पर्व है उमंग का प्यार का
दीपावली नाम है उपहार का
दीवाली पर हम खुशियाँ मनाते हैं
दीप जलाते नाचते गाते हैं
पर प्रतीकों को भूल जाते हैं ?
दीप जला कर अन्धकार भगाते हैं
किन्तु दिलों में -
नफरत की दीवार बनाते है ?
मिटाना ही है तो -
मन का अन्धकार मिटाओ
जलाना ही है तो -
नफ़रत की दीवार जलाओ
बनाना ही है तो -
किसी का जीवन बनाओ
छुड़ाने ही हैं तो -
खुशियों की फुलझड़ियाँ छुड़ाओ
प्रेम सौहार्द और ममता की
मिठाइयाँ बनाओ ।
यदि इतना भर कर सको आलि
तो खुलकर मनाओ दीवाली
--शोभा महेंद्रू
दीप ऐसे जलायें इस दिवाली की रात
कि जो देर तक,दूर तक उजाला करें
हो जहाँ भी, या कि जिस राह पर
पथिक को राह दिखला सहारा करें
जब अंधेरा हो घना घटायें घिरें
राह सूझे न मन में बढ़ें उलझने
देख सूनी डगर, डर लगे तन कंपे
तय न कर पाये मन क्या करें न करें
तब दे आशा जगा आत्म विश्वास फिर
उसके चरणो की गति को संवांरा करें
दीप ऐसे जलायें इस दिवाली की रात
कि जो देर तक, दूर तक उजाला करें
हर घड़ी बढ़ रही हैं समस्यायें नई
अचानक बेवजह आज संसार में
हो समस्या खड़ी कब यहाँ कोई बड़ी
समझना है कठिन बड़ा व्यवहार में
दीप ऐसे हो जो दें सतत रोशनी
पथिक की भूल कोई न गवारा करें
दीप ऐसे जलायें इस दिवाली की रात
कि जो देर तक, दूर तक उजाला करें
रास्ते तो बहुत से नये बन गये
पर बड़े टेढ़े मेढ़े हैं, सीधे नहीं
मंजिलों तक पहुंचने में हैं मुश्किलें
होती हारें भी हैं, सदा जीतें नहीँ
जूझते खुद अंधेरों से भी रात में
पथ दिखायें जो न हिम्मत हारा करें
दीप ऐसे जलायें इस दिवाली की रात
कि जो देर तक, दूर तक उजाला करें
--प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव
धमाकों ने देश हिलाया
नदियों ने भी कहर ढाया
न जाने कितने अनाथ हुए
और कितने मांगे उजड़ गईं
उन उजड़ी मांगो के सामने
पूजा कर तिलक लगाता कैसे
आखिर मैं दिवाली मनाता कैसे
सहमी हुई साँसों को लिए
टूटे सपने टूटी आशायें भारी
उन घबराई पथराई सी आँखों को
इस आसमान में आखिर
आतिशबाजी दिखाता कैसे
आखिर मैं दिवाली मनाता कैसे
इन बेसहारा परिवारों
में अब भूखा बचपन सोता है
एक रोटी के टुकड़े के लिए
माँ से लड़कर वो रोता है
उन भूखी आँखों के सामने
रिश्तों में मिठाई बाँटता कैसे
आखिर मैं दिवाली मनाता कैसे
कुछ शर्म अभी भी बाकी थी
ज़मीर की इज्ज़त बाकी थी
अपनी ही आत्मा को
अपनी नज़रों में गिराता कैसे
आखिर मैं दिवाली मनाता कैसे
--विशाल मिश्रा
मैं हूँ एक वीरान खंडहर मगर,
एक दीपक प्यार का तुम जला जाना .........
ढह गई है दीवारें जज्बातों की,
तुम अरमानों की झालर लगा जाना............
एक दीपक.........
टूट चुकी है खिड़कियाँ भी अरमानों की,
तुम उम्मीदों की कीलें लगा जाना...........
एक दीपक .........
चाहत के तुम्हारे इस रंग रोगन से,
यह खंडहर भी अब रोशन लगता है,
दी झालर जो तुमने अरमानों की,
तो इस दिवाली तुम इनको जगमगा जाना ...................
एक दीपक तुम प्यार का जला जाना!
--नीति सागर
आई दीवाली फिर इक बार, हो जाओ सब तैयार
सबको हर बार देते हैं,इस बार खुद को दो उपहार
उचित हो व्यवहार हमारा, न किसी को दुख पॅंहुचाएँ
करे नाश हमारी बुराई का, सब एक ऐसा दीप जलाएँ ।
अधिकारों को तो समझो ही, कर्तव्यों को भी बखूबी निभाओ
लापरवाही त्याग कर ज्ञान को अमल में लाओ
संसाधन है सभी अमूल्य, न कभी व्यवहार गंवाओ
घर को रखते साफ हो, देश को भी स्वच्छ बनाओ ।
राजनीति की कुटिलता से, है भयभीत आज का समाज
कोई नेता न बन पाए तो बन जाता है राज
कर एकजुट सबको आम आदमी की ताक़त को अब जगाना है
तोड़ो और राज करो की भ्रष्ट नीति से इक बार फिर देश को बचाना है ।
श्री राम ने तो मारा था दस सिरों वाले इक रावण को
हिंसा,आतंकवाद,भ्रष्टता जैसे कईं रावण अब हैं कईं कईं सिर उगाए
आओ कुचल कर सिर आज इन सभी रावणों का
समाज को फिर उन्नति और समृद्धि की राह पर ले जाएँ ।
मुख पर ही नहीं, मन में भी हो छाई प्रसन्नता सबके
इस बार ऐसे दीपावली के इस त्यौहार को मनाओ
सत्य नैतिकता की ज्योत जलाकर करो प्रकाशित पथ सबका
खुद को जन जन को एक नई दिशा दिखाओ ।
--कपिल गर्ग
आओ मिलकर कुछ ऐसे दीप जलाएं
जात - पांत, राग - द्वेष का भेद - भाव मिटायें
सत्य - आहिंसा का मार्ग अपनाएं
आओ मिलकर कुछ ऐसे दीप जलाएं
अत्याचार - आतंकवाद को हम जड़ से मिटायें
धरती पर शुख - शान्ति , भाईचारा ले कर आयें
आओ मिलकर कुछ ऐसे दीप जलाएं
प्यासे को पानी पिलायें , भूखे को खाना खिलाएं
धरती पर सुख - समर्धि का प्रकाश ले कर आयें
आओ मिलकर कुछ ऐसे दीप जलाएं
--विपिन पंवार "निशान"
दीपो की कतार से ,एकता औ प्यार से
उर के उल्लास से, जीवन के प्रकाश से
खुशियाँ फैलाई हैं , दीवाली आई है
दीवाली आई है ,दीवाली आई है
राम राज्य शान की, मुक्ति वर्धमान की
न्याय और नीति की , अहिंसा की रीति की
याद ये दिलाई है दीवाली आई है
दीवाली आई है,दीवाली आई है
कितु चुभन काँटा है, जाति वर्ग बांटा है
मुम्बई है नगर महा , राम राज्य था जो यहाँ
रीति सब भुलाई है दीवाली आई है
दीवाली आई है, दीवाली आई है
राज-बाल धौंस में , स्वारथ की हौंस में
भूल गए एकता, कौन आज देखता
राम की दुहाई है, दीवाली आई है
दीवाली आई है, दीवाली आई है
अहिंसा है वीर की , बापू महावीर की
आतंक का ही साया है , स्वार्थ जूनून माया है
भूला भाई , भाई है , दीवाली आई है
दीवाली आई है,दीवाली आई है
इस प्रकाश पर्व पर , मन का सब तिमिर हर
हिंसा मन के रावण सब , विजय उनपे पाकर अब
दीवाली मनाई है दीवाली आई है
दीवाली आई है ,दीवाली आई है
--प्रदीप मानोरिया
दीप जले हर दिल में
ऐसी हो ईस बार दिवाली
न भेद रहे कभी नाम पे
चाहे राम हो या हो अली ||
फोड़ने में पटाखे ,
कहीं किसी का घर न जल जाए |
हम मनाये सड़क पर दीवाली ,
पास कोई मासूम बच्चा आंसू न छलकाए ||
परिवार के साथ शहर की दीवाली
और लक्षी पूजन भी हो जाए |
पर ध्यान रहे इंतज़ार में फ़ोन के
गांव में माँ भूखी न सो जाए ||
हमारे धमाकों से कहीं ,
किसी को बड़े धमाके की याद न आ जाए |
अपनी खुशी में कहीं ,
हम उनके के गम न भूला जायें ||
बाहर उजाला बहुत करा ,
चलो अब अंदर का अँधेरा मिटा दे |
अपनी बंधी सीमाओं को फैलाकर,
दुसरे को भी अपनेपन का अहसास दिला दे ||
दीपावली की रौशनी
आपके घर को जगमगाए |
जो भी तमन्ना हो अधूरी
अबकी वो पूरी हो जाए ||
लक्ष्मी पूजन के बाद भी
लक्ष्मी कहीं न जाए |
जो घी भरे दीये में आपने
दुगुना हो वापस वो आए ||
ये दीये , ये फूलझड़ी , ये पटाखे
जिन्दगी के आकाश में सितारे बन जाए |
आप कल कहीं भी रहे
पर ये पल कभी याद से न जाए ||
--पंखुडी कुमारी
आओ लक्ष्मी मैया
घर है धो पोंछ कर ,रोषनी से सजाया हुआ
मैंने मन में है तेरा सिंहासन जमाया हुआ
मेरा आग्रह ,मेरा प्रेम ,मेरा ये भाव
तेरा सिंदूर ,रोली ,दीपक होंगें
मेरी ताली ,मेरी बोली
तेरा घंटी ,मंजीरा होंगें
मेरे मन में उठती आस्था की महक
तेरे इत्र की खुषबू होंगें
मेरा झूमता हुआ सिर
तेरा हिंडोला होगा
आओ ,लक्ष्मी मैया
किस तरह आओगी ?
मेरे मन मिन्दर में मूरत बन कर
तेरी आहट को पहचानती हूं
जिस तरह आती हो तुम,
भक्तों के दिलों में लहर बन कर
--शारदा अरोड़ा
टिमटिम टिमटिम करते जो तारे
गुम हो गए आज हैं सारे
जगमग जगमग दीप जले हैं
प्रकाश पर्व घर आँगन सारे
बच्चे सभी खुशियों से चहकें
घर में दीवाली आज हमारे
मिठाई और खील बताशे
खूब हैं बांटे ,पास हमारे
टिमटिम करती है रोशन सी कतारें
अंधिआरा काटें फिर भी न हारें
धूम धाम है पटाखों की बहुत
शोर बहुत है, फिर भी स्वीकारें
पावन पर्व आज है अपना
पूजा करें पण प्राण सवारें
--कमलप्रीत सिंह
ऐसा इक दीप जलाएं दीप जले दीप जले,
खुशियों के दीप जले, आज देखो दीप जले,
फूल खिले दीप जले ,
बिखरी बहार है,खुशी का त्यौहार है,
खुशी फूल सी खिले,दीप जले दीप जले,
जले दीप चहुँ ओर,खुशी की बहार है,
दीपों की मालाएँ हैं ,जगमग संसार है,
हम सब एक होकर आज ऐसे दीपक जलाएं ,
सदियों तक न बुझ सके ,ऐसे आओ दीप जलाएं ,
सपनों के दीप जले ,मन में तरंग उठे ,
ऐसी हिलोर उठे,सबको ले संग चले,
नीच हो न ऊँच हो,सब हों इक समान ,
ऐसा यह पर्व मने ,सब को ले संग चले ,
तो आओ इसको हम,संग मनाएं ,
आओ संग दीप जलाएं ,
तम की इस निशा को मिलकर भोर बनाएं ,
आओ सब एक साथ, एक स्वर में एक गीत गुनगुनाएं ,
आओ सब एक साथ एक आँगन में बस एक दीप ऐसा जलाएं,
सदियों तक न बुझ सके एसा इक दीप जलाएं ,
आओ भारतियों हम एक साथ दीपावली मनाएं ,
हम दीपावली मनाएं, दीपावली मनाएं
--अनिरुद्ध सिंह चौहान
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50 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत ही सुंदर संकलन. इस दीपमालिका के सभी दिए एक से बढ़कर एक जगमग कर रहे हैं. सभी कवियों और पाठकों को दीपावली पर्व और नए संवत्सर के लिए बधाई!
सभी कवियों-पाठकों को दीपावली की ढेर सारी बधाइयॉ
हास्य रस के कवियों को-फुलझड़ियाँ
वीर रस के कवियों को-सुतली बम
ऋंगार रस के कवियों को-मोमबत्तियाँ
करुण-क्रंदन करने वाले कवियों को-रोशनी
उन कवियों को जिन्हें मेरी कविता पंसद आयी
मोतीचूर के लढ्ढू
और-----------------
जिन्हें मेरी कविता पंसद नहीं आई उन्हें
एक बीड़ा मगही बनारसी पान ।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
सभी साथियों को दीपावली की ढेरों शुभकामनाएं.
कविताओं पर चर्चा बाद में करेंगे.
आलोक सिंह "साहिल"
देवेंद्र जी,
आपका मोतीचूर का लड्डू हमने खा लिया....आपकी कविता वाकई बड़ी अच्छी है...पूरा संकलन ही अच्छा है...दीपक-पर्व की ढेरों शुभकामनाएं....
आपको सपरिवार दीपावली व नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये
दीपावली के अवसर पर एक साथ दीपावली पर प्रकाशित इस कविताओं की श्रृखला के प्रकाशक, कवियों व पाठकों को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएँ.
ऊपर में दीपावली पर्व के संबंध में जो जानकारी दे गयी है वह ठीक है. पर कवियों का Email ID या संपर्क का कोई अन्य सूत्र या पता भी दिया जाना चाहिए.
पुनः दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएँ.
http://popularindia.blogspot.com
दीपमालिका के शेष सभी रचनाकारों, हिन्दयुग्म परिवार के सभी सदस्यों और पाठकों को धनतेरस, छोटी दीवाली और बड़ी दीवाली की शुभकामनाएँ.
'आकुल'
(deepawali ki shubh kaamnaaeiN)
rasme duniya bhi hai, mauqa bhi hai, dastoor bhi.. lekin kis qadar mushkil hai unn be.lafz jazbaat aur ehsaas ki ghutan bhari pursoz awaaz ko sun pana jo "harkirat haqeer" ki deepawali ke avsar par kahee gai kavita meiN saaf sunaee de rahi hai. Shilp aur kathya ke nayaab sangam aur pur.asar izhaar ka kaamyaab andaaz... Saadhuwaad svikaareiN....
देवेन्द्र जी,शोभा जी और सलिल जी आप लोगो की कवितायें प्रभावी लगीं.
शेष अन्य साथियों ने भी अच्छा लिखा,सभी साथियों को बहुत बहुत साधुवाद.
आलोक सिंह "साहिल"
"aatm mitaa vishvaatm bneiN, parmaatm praapt kr paaeiN, `maiN ko `hum` meiN kr vileen, sub deepawali manaaeiN.." aaj such much aise aahwaan ki aawashaykta hai, dri`rh sankalp aur naitik`ta se paripurn vyavhaar hi tyohaar manaana hai...asl charaaghaaN hai. Aacharyaa Salil ji ko naman.
हिंद युग्म ने जलाये
काव्य दीप चोबीस
सभी एक से एक हैं
न उन्नीस न बीस
दर्द अभावों को भुला
मना सकें हम हर्ष
हर कविता, हर शब्द में
व्याप सके उत्कर्ष
श्री वास्तव में पा सकें
जाग्रत रहे विवेक
हर रचना सविता सदृश
नीति युक्त हो नेक
बसें ह्रदय में शारदा
पंखुडी कमल निशान
शोभा कही न जा सके
सुधि-बुधि करे बखान
आकुल हुआ हकीर है
लख रतिनाथ विदग्ध
हो प्रदीप अनिरुद्ध तो
तम् विशाल हो दग्ध
सलिल राजश्री पा बने
अमल सुनील जितेन्द्र
मन महेश तन कपिल हो
आत्मजयी देवेन्द्र
नेह नर्मदा वर्मदा
दीवाली की रात
शर्मा मत खुशियाँ मना
बने रात भी प्रात
रमा रमा में मन रहा,
किसको याद रमेश
बलिहारी है समय की
दिया जलाए दिनेश.
काव्य-पल्लवन को मिले
लक्ष्मी का आशीष
चित्र गुप्त साक्षात् हो
हर रचना में ईश
- आचार्य संजीव सलिल
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
सभी चोबीस कवियों के नाम समाहित
sabhi rachnaye stariya hain. jyoti parva deepawali ko pratibimbit karati ye rachnaye deepotsav ke vibhinn paksho ko ujagar karate hain. is mouke par main yehi kahunga---deep jalaye aaj pyar ke...mite kalush-tam jeet-har ke...nagar-dagar ho jag ujiyara...rukh mode hum katu byar ke........inhi shubhkamnao ke sath-----------rakesh praveer----patna
मेरी ओर से हिन्दयुग्म के सभी कवियों एंवम पाठकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !
रचना जी,आपकी कविता के भाव तो बहुत अच्छे हैं,बहुत सही बात उठाने की कोशिश की है,पर मुझे यह कविता नहीं लग सकी.
इसके लिए माफ़ी,हैप्पी दिवाली.
आलोक सिंह "साहिल"
हकीर साहब आपने अच्छी कविता लिखी है इसमें दो राय नहीं,
कविता और दिवाली दोनों के लिए बधाई.
आलोक सिंह "साहिल"
विवेक जी, अंत की पंक्ति में हिन्दयुग्म को लाकर आपने ज्यादा कुछ कहने से रोक दिया,पर व्यक्तिगत स्तर पर मुझे काफी बोझिल लगी कविता.थोड़ा हलके शब्दों या यूँ भी इसे हल्का बनाया जा सकता था.
हप्पी दिवाली.
आलोक सिंह "साहिल"
सलिल जी,एक बार फ़िर मैंने आपकी कविता पढ़ी,और एकबार फ़िर मुझे कविता अच्छी लगी,बेहतरीन संदेश.
हप्पी दिवाली.
आलोक सिंह "साहिल"
सुधीर जी, कमाल है ओये,आपकी कविता पर बड़ी देर से नजर गई,बहुत सुब्दर.
हप्पी दिवाली.
आलोक सिंह "साहिल"
शर्मा जी,दिवाली को बिल्कुल सही तरह से बताया,पर क्या इसे पुरी कविता कह सकते हैं?
हैप्पी दिवाली.
आलोक सिंह "साहिल"
सबसे पहले 'साहिल' जी की खबर ले लूँ...! साहिल जी क्या बात है सवेरे- सवेरे दिवाली मनानी शुरु कर दी...??
एक तो इतनी सारी टिप्पिणियाँ दूसरे औरतें भी पुरुष नजर आने लगे...? भई मैं 'साहब' नहीं 'साहिबा' हूँ। मुफलिस जी औरआपको कविता पसंद आई ,शुक्रिया'। 'मुफलिस' जी आप तो बहोत अच्छे गजलकार हैं आपकी रचनाओं का इन्तजार रहेगा । देवेन्द्र जी आपकी कविता सबसे अच्छी लगी मोतीचर के लड्डू मुबारक !
रचना जी आपने अच्छा विषय चुना पर कविता और बेहतर हो सकती थी । लय में कमी सी लगी आचार्य संजीव वर्मा'सलिल' जी की रचना एक उत्कृष्ट रचना है। निती सागर, विशाल मिश्र।,सुधीर जी की रचनाएं अच्छी लगी। गोपाल कृष्ण,'आकुल',जीतेन्द् सुनील,शोभा,श्रीवास्तव,कपिल,विपीन प्रदीप पंखुडी जी को भी बधाई।
सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकानाएँ!
''उदास सी पलकों में है बस इतनी सी याचना
जब मैं दीप जलाऊँ , हाथ जरा तुम थामना''
'' आप सभी को दिवाली की ढेरो शुभकामनाएं''
हरकीरत कलसी 'हकी़र'
कविताओं के दिए में इसी तरह
जगमगाती रहे शब्दों की बाती,
यही हमारी थाती !
संकलन के कवियों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
-अमित पुरोहित
हिंद युग्म परिवार में सभी को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
सभी कवितायें बहुत ही सुंदर हैं.बिल्कुल जगमगाते दीपक की तरह.-सभी प्रतिभागियों को भी बधाई.
roshni ke tyohaar meiN tim`timaate 24 deeyoN ka noor har paRhne wale ke mun ko raushan kr rahaa hai... shrinkhlaa ke liya haardik badhaai. "Shobha mahendru" ji ki kvita unke dil meiN machal rahe armaan ko darshaati hai, maanavta ke prati unki komal magar sachchii bhaawnaaoN ko prakat karti hai. iss baar `vishaya.vishesh` hone ke kaaran ujaagar nahi hua lekin aap kavita ki takneek se vaaqif lagti haiN... Shubh.kaamnaaeiN
वाकई...इस दिवाली पे हिन्दयुग्म का यह पृष्ठ दीप मालाओं से सज उठा है...
हर कविता दिवाली को बखूबी परिभाषित करती है..
देवेन्द्र जी और शर्मा जी की कविता बहुत पसंद आई...
aap सभी को दिवाली की हार्दिक बधाई...
sari kavitayen bahut achchhi hai .
rachana ji aap ki kavita bahut hi achchhi lagi khas kar ye line
जब खाया नही
तो दूध कहांसे आए
छाती से चिपकाये बच्चे को
सोच रही थी भूखी माँ
मिठाइयों की महक से
हो रही थी और भूखी माँ
खाली हो जब पेट अपनों के
कोई तब जेवना कैसे जेवे
अब तुम ही कहो प्रिये
दिवाली हम कैसे मनाएं?
devendra ji aap ki ye line bahut pasand aai
मगर आज भी
जब मनाता हूँ विजयोत्सव
जलाता हूँ दिये
तो लगता है कि कोई
अंधेरे में छुपकर
हंस रहा है मुझपर
फंस चुके हैं हम
फिर एक बार
रावण-मारीच के किसी बड़े षड़यंत्र में।
harikirat ,shobha ji ki kavita bhi bahit achchhi lagi
mahesh
संजीव जी आप ने तो बहुत ही अच्छी कविता लिखी है .सभी नाम हैं इस में
बधाई हो
हिन्द युग्म परिवार के सभी सदस्यों को दीप पर्व की शुभ कामनाएं .सभी की कवितायें एक से बढ़ के एक है मुझे तो बहुत अच्छी लगी सभी रचनाएँ
सादर
रचना
एक ही मंच पे दीपावली की इतनी सुंदर कवितायें पढने को मिली इस के लिए हिन्द युग्म को धन्यवाद .
मुझे देवेन्द्र जी ,रचना जी ,शोभाजी ,प्रदीप जी की कवितायें बहुत पसंद आई बाकि सभी की कवितायें भी अच्छी हैं
शिप्रा
वाह क्या बात है एक से बढ़कर एक सलिल जी आपने कविता रुपी टिपण्णी में वो सब कह दिया जो मैं कहना चाहता हूँ, खुशी की बात ये है की इनमें से अधिकतर नाम युग्म के पटल पर नए हैं ....बहारें लौट आई हैं ....बधाई हो तपन जी और शैलेश जी.
एक दिवाली वह थी
मन कोमल था
चित्त सरल था
दिन निश्छल था
आँख में सपने थे
मन में घात नही था
कोई भय दिन रात नही था
निर्मल आकांक्षाएं थीं
पर महत्वाकांक्षाएं नही थीं सब सुंदर अति सरल
उपहारों की आड़ में प्रतिघात नही था
नकली बात नही थी
झूठी सौगात नही थी
कुछ दीप जले थे घर की चौखट पर
कुछ दीप जले थे घर के आँगन में
शेष दीप जले थे सब मन के आँगन में
अब ऐसी कोई दिवाली नही आती
अब मन के दीप नही जलते
विजय विद्रोही
घोर आर्तनाद ,
अभेद्य धुवां ,
तुमुल कोलाहल,
उपहारों की कष्टमयी रूढियां
पिटे पिटाए संबोधन
रस्मी बातें
नकली टिप्परियाँ
कृतिम मुस्कानें
क्या बस यही दिवाली है !
विजय विद्रोही
बच्चों का दिवाली गीत
दिवाली आई दिवाली आई
घर घर दीप जलाने आई
दिवाली आई दिवाली आई
लैया, खील बताशे लायी
दिवाली आई दिवाली आई
फुलझरियां, बम, पटाखे लायी
दिवाली आई दिवाली आई
खुशियाँ संग बटाने आई
दिवाली आई दिवाली आई
धनतेरस का बाज़ार सजाने आई
दिवाली आई दिवाली आई
दोस्ती का संदेश सुनाने आई
मुहम्मद अहसन
ओ हर की कीरत!
मैं दीवाली तेरे बिना अधूरी हूँ. तुझे क्या पता तेरे काव्य संग्रह की हर कविता ही नहीं हर पंक्ति और हर शब्द को मैंने जिया है. मैं दीवाली केवल दिए की रोशनी में नहीं जीती मैं तो हर की कीरत गाने वाले हर मन में हर पल जीती हूँ. तूने मुझे नीम पर टांगा लेकिन मैं तेरे मन में आशा का दिया बनकर जलती रही, तेरी कलम से उतर कर पाठक तक पहुंच कर उसे भी रोशन करूंगी और मेरे साथ तेरा तन भले न हो तेरा अवचेतन तो होगा ही, जिसने मुझे यह रूपाकार दिया है.
तू जाने या न जाने पर हर फकीर ख़ुद को हकीर ही मानता है. जो अपने अहम के कलस को खाली कर सेवा की कलसी को सर पर रख लेता है, वह गुरु को प्यारा होता है और गुरु स्नेह-सलिल से उसको आशीष देते हैं.
सभी को हमारी और से भी दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें.
स्तरीय कविताएं. बधाई
हिन्द युग्म परिवार के सभी साथियों एवं रचनाकार मिञों को दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं...
- प्रदीप जिलवाने, खरगोन म.प्र.
de\iwali par isse roshan uphar-prayas aur kuchh bhala kya ho sakta hai.. sadhuwad sabhi kavijan ko..
pawan
एक से बढ्कर एक सुंदर रचनाएं। सभी कवियों और पाठ्कों को और हिन्दयुग्म को दीपावली की हार्दिक बधाई !
सबकी कवितायेँ लगें , सत्ताईस उपहार |
जगमग जगमग हैं सभी, आनंदित संसार ||
काव्य पल्लवन सज गया, सुरभित चली बयार |
मंगलमय सबको रहे, दीपों का त्यौहार ||
सादर,
-- अम्बरीष श्रीवास्तव
आज मेरे युग्म पर...ऐसे ऐसे आये हुए हैं,,,
के मेरी तो दिवाली ही हो गयी है....
आप सभी को...
दिवाली मुबारक हो..
हिन्दयुग्म की चेष्टाएं झिलमिला उठीं हैं। आपकी ईमानदारी व प्रयासों की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। सारी रचनाएं अपनी एक अलग विषिष्ट पहचान बनाने में सक्षम हैं। सरस, रोचक और एक सांस में पठनीय। बधाई।
युगुल हाथों में संजोये वह दिया है
प्रेम लय गति प्राण बोए वह दिया है
वह दिया है जो तिमिर को दूर कर दे
नेह मय विश्वास भर दे वह दिया है
दीपावली के प्रति शुभकामनायें |
अवधेश
अध्यक्ष,
हिंदी साहित्य परिषद् सीतापुर
kaviavadheshshukla@gmail.com
Aap sabko deep parv mangalmay ho.
A.P. Bharati # 09897791822
ap.bharati@yahoo.com
ये रचनायें अतुलनीय हैं , इनकी जितनी प्रशंसा की जाये, कम है... आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें...
ये रचनायें अतुलनीय हैं , इनकी जितनी प्रशंसा की जाये, कम है... आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें...
sabhi ko diwali mubarak ho
इनकी जितनी प्रशंसा की जाये, कम है...
ये रचनायें अतुलनीय हैं , .
आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें...
साभार
Thank You
वंदे मातरम्
Vande Matram
डॉ. प्रकाश सोनी
Mumbai
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