बहुत दिनों से ख़ुद को टाल के बैठा हूं
गीत हूं लेकिन बिन सुर-ताल के बैठा हूं
शायद कोई मोटी मछली फ़ोन करे
टेलीफ़ोन में कांटा डाल के बैठा हूं
सच्ची बात है सबकुछ सच ही होता है
मैं क्यों इतनी ख़ुशियां पाल के बैठा हूं
कारोबारी ज़हन बनाना मुश्किल था
अब मैं ख़ाली जेब संभाल के बैठा हूं
इतनी फ़ुर्सत कहां कि ख़ुद से बात करूं
आज ज़रा सा वक़्त निकाल के बैठा हूं
अतिथि कवि- नाज़िम नक़वी
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
शायद कोई मोटी मछली फ़ोन करे
टेलीफ़ोन में कांटा डाल के बैठा हूं
सच्ची बात है सबकुछ सच ही होता है
मैं क्यों इतनी ख़ुशियां पाल के बैठा हूं
बहुत सुंदर लिखा है.
दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
दीवाली आप के और आप के परिवार के लिए सर्वांग समृद्धि लाए!
सच्ची बात है सबकुछ सच ही होता है
मैं क्यों इतनी ख़ुशियां पाल के बैठा हूं
इतनी फ़ुर्सत कहां कि ख़ुद से बात करूं
आज ज़रा सा वक़्त निकाल के बैठा हूं
गज़ल अच्छी लगी
ये दो शे'र बहुत अच्छे लगे
सुमित भारद्वाज
:) बहुत बढिया! :(
जब फुर्सत हो तब स्वीकार करियेगा प्रणाम
तब तक सामने आपकी ग़ज़ल डाल के बैठा हूँ |
ज़माना जान गया है कि आपकी है खाली जेब
फ़िर भी बहुत ढेर सी उम्मीदें पाल के बैठा हूँ |
इतनी फ़ुर्सत कहां कि ख़ुद से बात करूं
आज ज़रा सा वक़्त निकाल के बैठा हूं
अच्छा लिखा है.
बहुत अच्छी ग़ज़ल!इतनी फुर्सत कहाँ की ख़ुद से बात करूँ, आज ज़रा सी फुर्सत निकाल के बैठा हूँ! बहुत अच्छा शेर.,
इतनी फ़ुर्सत कहां कि ख़ुद से बात करूं
आज ज़रा सा वक़्त निकाल के बैठा हूं
आज के समय में फुर्सत के पल ही तो नही मिलते
सादर
रचना
बहुत सुंदर
आलोक सिंह "साहिल"
आपकी ग़ज़लों का इंतज़ार रहता है, हर शेर कमाल का है भाई
इस ग़ज़ल में न ग़ज़ल की नग्म्गी है न उस की लतीफ़ रवाएत , न कोई नई तशबीह या ख्यालों की ताजगी .
मुहम्मद अहसन
इस का बज़न क्या है
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