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Saturday, October 18, 2008

जिस्म कमाने निकल गया है


कवि नाज़िम नक़वी इनदिनों हिन्द-युग्म का आतिथ्य स्वीकारे हुए हैं। आवाज़ पर ईद के बहाने और कविता पृष्ठ पर ग़ज़लों के बहाने आप सभी इनसे रूबर हो ही चुके हैं। आज पढ़ते हैं इनकी एक और ग़ज़ल॰॰

सूरज हाथ से फिसल गया है
आज का दिन भी निकल गया है

तेरी सूरत अब भी वही है
मेरा चश्मा बदल गया है

ज़ेहन अभी मसरूफ़ है घर में
जिस्म कमाने निकल गया है

क्या सोचें कैसा था निशाना
तीर कमां से निकल गया है

जाने कैसी भूख थी उसकी
सारी बस्ती निगल गया है

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21 कविताप्रेमियों का कहना है :

Sajeev का कहना है कि -

waah....kamaal

Nikhil का कहना है कि -

"ज़ेहन अभी मसरूफ़ है घर में
जिस्म कमाने निकल गया है"
ये तो कमाल की पंक्तियाँ हैं....आप अब अतिथि रहे ही कहाँ....हम सब पाठकों के दिल में जगह बना ली है आपने....

Anonymous का कहना है कि -

behatarin gajal.
alok singh "sahil"

अमिताभ मीत का कहना है कि -

बहुत अच्छा है भाई.

Anonymous का कहना है कि -

ज़ेहन अभी मसरूफ़ है घर में
जिस्म कमाने निकल गया है

क्या सोचें कैसा था निशाना
तीर कमां से निकल गया है

जाने कैसी भूख थी उसकी
सारी बस्ती निगल गया है

सुंदर ग़ज़ल
सादर
रचना

सुधि सिद्धार्थ का कहना है कि -

वाह! क्या बात है "ज़िस्म कमाने निकल गया" इन पंक्तियों को पढ़कर ऐसा लगा कि जो बात आज हर किसी के दिल में हैं वो आपने अपनी गज़ल के माध्यम से सबके सामने रख दी.....बहुत-बहुत बधाई....सुधी सिद्घार्थ

neelam का कहना है कि -

तेरी सूरत अब भी वही है
मेरा चश्मा बदल गया है
kahte hain ,gaalib ka andaaj e bayaan kuch aur hai

सीमा सचदेव का कहना है कि -

ज़ेहन अभी मसरूफ़ है घर में
जिस्म कमाने निकल गया है
एक ही शेयर में आपने बहुत बड़ा सच्च ब्यान कर दिया |

सुशील छौक्कर का कहना है कि -

बहुत ही उम्दा।

दीपाली का कहना है कि -

तेरी सूरत अब भी वही है
मेरा चश्मा बदल गया है

ज़ेहन अभी मसरूफ़ है घर में
जिस्म कमाने निकल गया है

हर शेर बहुत उम्दा है..

अनुपम अग्रवाल का कहना है कि -

बहुत अच्छे विचार और अच्छी ग़ज़ल |
नाजिम नकवी जी इतने अच्छे शायर हैं
पर एक बात सीखना चाहता हूँ कि ;
क्या चौथी लाईन में '' बदल गया है'' रदीफ़ और काफिया में माना जा सकता है वरना क्यूँ कर वाजिब हैं

Manuj Mehta का कहना है कि -

nazim naqwi sahab
aapne hindyugm ka aathitya sweekara, iske liye tahe dil se shukriya, bahut hi khoobsoorat ghazal hai, Jism amane nikal gaya hai, bahut hi shaandaar alfaaz.
bahut sunder abhivyakti

Anonymous का कहना है कि -

bura n maane samajhayen

सूरज हाथ से फिसल गया है
२ २ ,२१ १ १ १ २ २ २
आज का दिन भी निकल गया है
२ १ २ २ २ १ २ १ २ २
???? वजन बहर ??

ripu

SURINDER RATTI का कहना है कि -

बहुत अच्छा लिखा है आपने बधाई - सुरिन्दर रत्ती मुंबई

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

बहुत बढ़िया। मारक हैं आपके शे'र।

Unknown का कहना है कि -

वाह
गज़ल बहुत बढिया लगी पढकर अच्छा लगा

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

बहुत दिनो बाद अंतरजाल से जुड़ पाया--------बहुत दिनो बाद एक अच्छी गज़ल पढ़ पाया।

तेरी सूरत अब भी वही है
मेरा चश्मा बदल गया है।

--वाह। क्या बात है।
--देवेन्द्र पाण्डेय।

Anonymous का कहना है कि -

very thoughtful poem thanks to your effort
sunilsonu@in.com
sunilkumarsonus@yahoo.com


SUNIL KUMAR SONU

Anonymous का कहना है कि -

कई दिनों से यायावरी कर रहा था और नेट की दुनिया से कटा हुआ था (कितना सुकून मिलता है)आज देखा तो हिंद युग्म ने मेरी एक और ग़ज़ल को इज़्ज़त बख़्शी और अपने दिल में जगह दी... आप सब पाठकों की प्रतिक्रियाएं इस बात का सुबूत हैं... शायद अनुपम जी ने जानना चाहा है... जी अनुपम जी, इस ग़ज़ल में -गया है- को रदीफ बनाया गय है और निकल, बदल, संभल, निगल को क़ाफ़िये को तौर पर इस्तेमाल किया गया है... एक पाठक को किसी शेर के वज़न से शिकायत है... जी रिपू जी, पता नहीं आपने कैसे count किया है... दोनों पंक्तियां 24 कैरट खरी हैं... वैसे पंकज सुबीर जी ने ये बीड़ा उठाया है कि ग़ज़ल की पाठशाला से लोगों को फ़यदा पहुंचाएंगे... हां वज़न के लिये मैं आपको बता दूं कि कभी-कभी वज़न के लंगड़ेपन को भी मान्यता दी जाती है... विशेष परिस्थितियों में जैसे -ह- की बढ़ोत्तरी को नज़रअंदाज़ किया जाता है... anyway आप सबका बहुत शुक्रिया कि आपको रचना पसंद आई...

नाज़िम नक़वी

pushpesh pant का कहना है कि -

naqvi jo ko sadar charan sparsh pranam..
bhaut dino baad bhaut umda gazal pada paaya ...har vazood ki andar ye yahi kahani ye aapki gazal ne bakhoobi sikhaya.....

maza aa gaya naqvi ji ....qasam se !

Unknown का कहना है कि -

Akmal’s Files

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