आज जिस कवयित्री का परिचय हम आपसे करवाने जा रहे हैं, उनकी आवाज़ से बहुत से पाठक ज़रूर परिचित होंगे (विशेषतौर से वे पाठक जिन्हें रेडियो में आकाशवाणी और एफएम गोल्ड सुनना पसंद है)। जी हाँ, यूनिकवि प्रतियोगिता के सातवें स्थान की कविता की रचनाकारा माला शर्मा उसी आवाज़ की दुनिया की युवा हस्ताक्षर हैं। आकाशवाणी, विविध भारती, ज्ञानवाणी एफ एम, डीडी १, डीडी भारती, डीडी न्यूज इत्यादि मीडिया हाउसों में बतौर संवाददाता, उद्घोषक, समाचार उद्घोषक, समाचार वाचक-कम-अनुवादक इत्यादि के तौर पर अपनी सेवाएँ दे रहीं माला शर्मा विगत ५ वर्षों से आवाज़ के जरिए लोगों तक पहुँचती रही हैं। हिन्द-युग्म इनकी रचनात्मक प्रतिभा को पाठकों के समक्ष लेकर आया है।
पुरस्कृत कविता- शोर
उफान कर टीसता है दीवार का शोर
मौन कहकहा लगाता है, चीखें चुप है
असमंजस में है घरघराता बादल
बहकता है उसका अंतर्मन
तभी अचानक चीखें उबल पड़ी
मौन सन्नाटा बुनने लगा
दीवार चुप है सम्मंदर में नाभि गहरा गई है
तुम भी बुन दो ना एक आहट एक दस्तक एक हलकी सी थाप
मैं भी बुनूँगी सिसकियों का जाल तड़प की दास्ताँ
मैं कहूँ तो चुप हो जायेगी समंदर की भँवरें
तुम फिर बोलोगे ख़ुद नहीं समझोगे
अपनी और समंदर का शोर फिर चीखें चुप हो जाएँगी
तुम फिर दीवार को देखोगे वो बोलेगा
पर इस बार सिर्फ़ तुम्हीं सुनोगे, बुनोगे फिर से जाल
उलझा कर कट जायेगी बंध जायेंगे तकरीर और तहरीर
तुम जाल की गांठ तोड़ना चाहोगे
एक दलदल निकल आयेगा
हर टूटते गांठ के साथ तो चलो
बादलों के संग दुश्मनी निभाएं
बरस जायें एक साथ पनप जायें
सुगबुगाहटों को पंख लगा आयें ...
सुगबुगाहटों को पंख लगा आयें...
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७, २, ४, ६, ३, ८॰१
औसत अंक- ५॰०१६६७
स्थान- उन्नीसवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ५, ५॰०१६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰३३८८८९
स्थान- सातवाँ
पुरस्कार- कवि शशिकांत सदैव की ओर से उनकी काव्य-पस्तक 'औरत की कुछ अनकही'
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
वाव! क्या बात है.
बधाई हो जी.
आपको यहाँ पाकर अच्छा लगा.
आलोक सिंह "साहिल"
बहुत ख़ूब.
तुम भी बुन दो ना एक आहट एक दस्तक एक हलकी सी थाप
मैं भी बुनूँगी सिसकियों का जाल तड़प की दास्ताँ
मैं कहूँ तो चुप हो जायेगी समंदर की भँवरें
कविता स्वयम में ही एक जाल बुनती है ..
अच्छी लगी
कुछ पंक्तिया तो बहुत ही सुंदर है....
हिन्दयुग्म पर अति रहे ताकि हम पाठको ko आपकी कविताये पढने का भी मौका मिले.
माला जी
युग्म पैर आपका स्वागत है. कविता बहुत सुंदर लिखी है आपने. बधाई स्वीकारें.
मैं भी बुनूँगी सिसकियों का जाल तड़प की दास्ताँ
मैं कहूँ तो चुप हो जायेगी समंदर की भँवरें
अच्छे शब्द और भाव
एक बार में कविता मुझे समझ नहीं आयी शायद कविता की जटिलता रही हो या मेरी जडता..
पुनः पढा कवियित्री ने मन के अंतर्द्वन्द को निकाल कर रखा हैं, बहुत अच्छी अभिव्यक्ति
तुम जाल की गांठ तोड़ना चाहोगे
एक दलदल निकल आयेगा
हर टूटते गांठ के साथ तो चलो
बादलों के संग दुश्मनी निभाएं
बरस जायें एक साथ पनप जायें
सुगबुगाहटों को पंख लगा आयें ...
सुगबुगाहटों को पंख लगा आयें...
बहुत खूब..
माला जी आपका युग्म पर ह्रदय से स्वागत है..
यहाँ देख एक सुखद अनुभूति हो रही है..
तुम जाल की गांठ तोड़ना चाहोगे
एक दलदल निकल आयेगा
हर टूटते गांठ के साथ तो चलो
बादलों के संग दुश्मनी निभाएं
बरस जायें एक साथ पनप जायें
सुगबुगाहटों को पंख लगा आयें ...
kavita acchi lagi...
कविता में उलझकर रह जाता है मन। बहुत कम समझ में आती है। लेकिन पढ़कर लगता है कि बढ़िया है। कविताएँ प्रेषित करती रहें।
तुम जाल की गांठ तोड़ना चाहोगे
एक दलदल निकल आयेगा
हर टूटते गांठ के साथ तो चलो
बादलों के संग दुश्मनी निभाएं
बरस जायें एक साथ पनप जायें
सुगबुगाहटों को पंख लगा आयें ...
सुगबुगाहटों को पंख लगा आयें...
बहुत सुंदर लिखा है
सादर
रचना
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Dhirendra pandey
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Dhirendra pandey
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