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Wednesday, September 17, 2008

वाह! मंत्री जी हों तो नत्थूलाल जैसे हों, वरना न हों


आतंकवाद
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घटना घटी
नैतिकता के आधार पर
मंत्री जी घटनास्थल पर गये
घटना की निंदा की
मारे गये परिवारों के प्रति
संवेदना प्रकट की
और हर संभव सहायता का वचन दिया।

वाह!
मंत्री जी हों तो नत्थूलाल जैसे हों
वरना न हों।

आज फिर घटना घटी
मंत्री जी की नैतिकता फिर जागी
घटना स्थल पर गये
घटना की घोर निंदा की
दोषियों को पकड़कर
तत्काल मुकदमा चलाने का आदेश दिया
दूरदर्शन पर बार-बार दर्शन दिया
और हर संभव सहायता का वचन दिया।

वाह!
मंत्री जी हों तो नत्थूलाल जैसे हों
वरना न हों।

बार-बार घटना घटी
हर बार मंत्री जी की नैतिकता जागी
हर बार संवेदना प्रकट की
बार-बार दूरदर्शन पर दर्शन दिया

वाह!
मंत्री जी हों तो नत्थूलाल जैसे हों
वरना न हों।

नहीं किया
तो सिर्फ दो काम नहीं किया

एक
आजादी के इकसठ वर्षों के बाद भी
देश में
ऐसी व्यवस्था को जन्म नहीं दिया
कि ऐसी घटनाएँ
बार-बार न घटें।

दो
नैतिकता के आधार पर
अपना इस्तिफा नहीं दिया।

वाह!
मंत्री जी हों तो नत्थूलाल जैसे हों
वरना न हों।

--देवेन्द्र कुमार पाण्डेय

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

दीपाली का कहना है कि -

वाह कवि हो तो आपके जैसा..
जो इस तरह के जवलंत मुद्दों को इतनी आसानी के साथ लिखा जाते है
बढ़िया कविता है.सरल होने के साथ ही गंभी अर्थ समेटे हुए है

Smart Indian का कहना है कि -

सत्य वचन! कविता भी अच्छी है.
हमारे देश में कमी देशभक्तों की नहीं है बल्कि राजनैतिक इच्छा-शक्ति की है.

Harihar का कहना है कि -

सच बात है देवेन्द्र जी !

देश में
ऐसी व्यवस्था को जन्म नहीं दिया
कि ऐसी घटनाएँ
बार-बार न घटें।

neelam का कहना है कि -

नत्थू लाल जैसे क्योँ ,शिव राज पाटिल जैसे क्योँ नही ?????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????

Unknown का कहना है कि -

अच्छी कविता है।
पता नही हमारा देश कब नत्थू लाल जैसे मंत्रियो से छुटकारा पाएगा

सुमित भारद्वाज

विश्व दीपक का कहना है कि -

बहुत हीं गहरा कटाक्ष।

देश की ऎसी स्थिति देखकर हर कवि-हृदय खिन्न एवं आक्रोशित होता है, परंतु जो अपने गुस्से पर काबू रखकर ऎसी रचना करता है, उसे हीं सच्चे मायने में कवि कहते हैं।

बधाईयाँ।

शोभा का कहना है कि -

आजादी के इकसठ वर्षों के बाद भी
देश में
ऐसी व्यवस्था को जन्म नहीं दिया
कि ऐसी घटनाएँ
बार-बार न घटें।

दो
नैतिकता के आधार पर
अपना इस्तिफा नहीं दिया।

वाह!
मंत्री जी हों तो नत्थूलाल जैसे हों
वरना न हों।
देवेश जी आपने तो कमल ही कर दिया. पढ़कर मज़ा आ गया. सुंदर व्यंग्य लिखा है. बहुत-बहुत बधाई.

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

एक बार मैंने नेता पर एक पंक्ति लिखी थी-

आलोचनाओं की सूई किन्हें चुभोते हो
ये तो नेता हैं, गधों सी इनकी खाल है।

Pooja Anil का कहना है कि -

वाह!
मंत्री जी हों तो नत्थूलाल जैसे हों
वरना न हों।

बहुत बढ़िया कटाक्ष है , बधाई

Anonymous का कहना है कि -

में भी एसा ही कुछ सोच रही थी आप ने दिल की बात लिख दी
बहुत खूब
सादर
रचना

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

बहुत बढ़िया कटाक्ष है...

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