खूनी मंजर
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वो सात दशक बूढी आखें
सूखे आँसू रोये रोये...
एक सात बरस का ये बचपन
माँ बाप बहन भाई खोये...
पथाराई आँखें बापू की
बेटा अब तक घर नहीं लौटा
राखी भी रह-रह बिलख रही
खो गया भाई भी इकलोता
लाशें लाशों को देख हँसी
ना रहा कोई रोने वाला
वरना मरता हर रोज कोई
इतना कुनबा खोने वाला ।
ललकार
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छुप छुप के धमांके करने से
दुधमुँहों की लोथ बिखरने से
साबित होती एक बात मगर
तू कोई जानवर से बद्तर
तू मरे से परे निष्प्रान कोई
ना धर्म जाति ईमान कोई
ना तेरा अल्लाह ईश कोई
ना ही तेरा भगवान कोई....
माँ का कुछ दूध पिया है गर
तो मिला आँख सन्मुख आकर
क्यूँ चूहों सा छुपता बुझदिल
भोले बे-गुनाहों के कातिल
ये खूनी खेल बर्बरता का
बस भ्रम है तुझे सफलता का
जाहिर करता खिसियानापन
नापाक तेरी असफलता का
ये मंजर दहशतगर्दी के
है नमूने सब नामर्दी के
यदि फड़क रही तेरी बाजू
तो क्यूँ न सामने आता तू
हिम्मत है सामने लड़ आकर
यूँ पीठ भौंकने से खंजर
अच्छा है डूबकर मर जाना
लेकर के पानी चुल्लूभर
तू खोद रहा है स्वंम कब्र
जो टूट गया जिस रोज सब्र
जिन्दा तुझे दफन करेंगे हम
भारतमाता की हमें कसम
हम शांत हैं तो तू ये न जान
लेता नहीं अपना लहू उफान
सौ बार निछावर वतन हेतु
हमें जान से प्यारा हिन्दोस्तान
हमें जान से प्यारा हिन्दोस्तान
हमें जान से प्यारा हिन्दोस्तान
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
"bhut khaufnak, dardnak or dil dehlne wala vakya, apne lakar mey jo aatmvishwas or kuch kr gujerne key jubaat pesh kiya hai, lajvab hain"
Regards
राघव जी!
बहुत दिनों के पश्चात आप युग्म पर नज़र आए। दुआ करता हूँ कि सब ठीक हो।
दोनों रचनाएँ अपने ध्येय में सफल होती हैं। मुझे दूसरी रचना कुछ ज्यादा हीं जुझारू एवं हृदयस्पर्शी लगी।
काश ऎसा जुझारूपन हम सब भारतीयों में उतर जाए तब तो दहशतगर्दों की कोई खैर नहीं।
बहुत दिनों बाद आपका लिखा पढ़ा ...बहुत दर्दनाक था जो भी हुआ .आपने आज की सिथ्ती पर सही लिखा है लिखते रहे
राघव जी,
बहुत ही सुंदर लिखा है. आपने तो यथार्थ को एकदम जीवित ही कर दिया. बहुत बढ़िया. वाह
पहली कविता को थोड़ा और विस्तारित करते।
बहुत सार्थक, समयोचित लिखा |
आज इसी हुंकार की आवश्यकता है | हौसले का हथियार सबसे विश्वस्त है |
सादर,
विनय
भूपेंद्र जी ,
बहुत दिनों बाद आप युग्म पर दिखे....
खूनी मंज़र और ललकार दोनों ही कवितायेँ आज के परिप्रेक्ष्य में सत्य को साबित करती लगी .बहुत खूब
काश कुछ एसा ही हो हम इस को रोक सकें
बहुत अच्छा लिखा है आप ने
सादर
रचना
सही में बहुत दिनों बाद आपको पढ़ रहा हूँ और इस बार हास्य कवि के रूप में नहीं बल्कि वीर रस से भरे कवि के रूप में...
दूसरी कविता पढ़ कर मन में आक्रोश भर आता है...
इस विषय पर और भी ऐसी रचनाएँ होनी चहिये, राघव जी सशक्त लिखा है
क्या कहूँ शब्द नही है...बहुत बढ़िया लिखा है.
हर बार इसी होसले के साथ आगे बढ़ेंगे चाहे कितनी भी हिंसक घटनाये हमें तोड़ने की कोशिश करे.
जीना इसी का नाम है
खूनी मंजर के बाद
चित्र में
तलवार की धार
और इससे भी तेज
आपकी ललकार
वाह
कम ही दिखता है
शब्दों का ऐसा
चमत्कार।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
राघव जी,
बहुत ही सुंदर लिखा है. यथार्थ को जीवित कर दिया. बहुत बढ़िया.
wo saat dashak budhi aankhe
kya baat hai ,aajaadi ki keemat hum kis kis tarike se kab tak chkaayenge ,ya alllah ab bus kar ,ab ye khuni manjar ab aur nahi ,ab to raham kar ,
तू कोई जानवर से बद्तर
तू मरे से परे निष्प्रान कोई
ना धर्म जाति ईमान कोई
ना तेरा अल्लाह ईश कोई
ना ही तेरा भगवान कोई....
na hai koi sharam na hyakoi ,
kuch to socho namak ki bhi jo ,
tumhaare lahoo me hai ,
chand logon ke fuslaane se tum
apni maa ko bhi maaroge
ye to kisi insaan ki jaat nahi
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