यारो मैने खूब ठगा है
खुद को भी तो खूब ठगा है
पहले ठगता था औरों को
कुछ भी हाथ नहीं तब आया
जबसे लगा स्वयं को ठगने
क्या बतलाऊं,क्या-क्या पाया
पहले थी हर खुशी पराई
अब तो हर इक दर्द सगा है
किस-किस को फांसा था मैने
कैसे-कैसे ज़ाल रचे थे
अपनी अय्यारी से यारो
अपने बेगाने कौन बचे थे
औरों के मधुरिम-रंगो में
मन का कपड़ा आज रंगा है
जबसे अपने भीतर झांका
क्या बेगाने या क्या अपने
इक नाटक के पात्र सभी हैं
झूठे हैं जीवन के सपने
दुश्मन भी प्यारे अब लगते
इतना मन में प्रेम-पगा है
ऋषियो-मुनियों ने फरमाया है
माया धूर्त,महा ठगनी है
उनका हाल न पूछो हमसे
जिनको लगती यह सजनी है
जिसके मन में बसती है यह
उसके दिल में दर्द जगा है
जग की हैं बातें अलबेली
जन्म-मृत्यु की ये अठखेली
जिसने औढ़ा,प्रीत का पल्ला
पीर-विरह की उसने झेली
जीवन तो है सफर साँस का
मौत साँस के साथ दगा है
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20 कविताप्रेमियों का कहना है :
जग की हैं बातें अलबेली
जन्म-मृत्यु की ये अठखेली
जिसने औढ़ा,प्रीत का पल्ला
पीर-विरह की उसने झेली
जीवन तो है सफर साँस का
मौत साँस के साथ दगा है
अच्छी लगी आपकी रचना
जग की हैं बातें अलबेली
जन्म-मृत्यु की ये अठखेली
जिसने औढ़ा,प्रीत का पल्ला
पीर-विरह की उसने झेली
जीवन तो है सफर साँस का
मौत साँस के साथ दगा है
अच्छा लिखा है.सस्नेह.
यथार्थ को गुनगुनाता गीत।
कबिरा आप ठ्गायिये ,और न ठगिये कोय |
आप ठगे सुख होत है ,और ठगे दुःख होय
yahi bhaav hai na aapki kavita ka ,
ati sundar.
बहुत अच्छे शब्द,
स्वत: बोलती तरन्नुम
.
जबसे लगा स्वयं को ठगने
क्या बतलाऊं,क्या-क्या पाया
पहले थी हर खुशी पराई
अब तो हर इक दर्द सगा है
.
यह स्वयम को ठगना नही, इमानदारी है |
सादर,
विनय
जग की हैं बातें अलबेली
जन्म-मृत्यु की ये अठखेली
जिसने औढ़ा,प्रीत का पल्ला
पीर-विरह की उसने झेली
हमको अच्छा खूब लगा है
यारो मैने खूब ठगा है...
जीवन तो है सफर साँस का
मौत साँस के साथ दगा है
बहुत खूब श्याम जी .
डा. रमा द्विवेदीsaid...
बहुत खूब ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...ये पन्क्तियां बहुत अच्छी लगीं...
जीवन तो है सफर साँस का
मौत साँस के साथ दगा है
यदि इस को स्वर मिल जाए तो जय ही बात हो
सादर
रचना
एक ही दिन में हिन्दयुग्म पर तीन बेहतरीन रचनायें... क्या बात है!!!
जीवन तो है सफर साँस का
मौत साँस के साथ दगा है...
बहुत बढ़िया....
श्याम जी किन किन पंक्तियों की बात करुं
बेहद प्रभावशाली! मधुर और लयबद्ध!
पहले ठगता था औरों को
कुछ भी हाथ नहीं तब आया
जबसे लगा स्वयं को ठगने
क्या बतलाऊं,क्या-क्या पाया
पहले थी हर खुशी पराई
अब तो हर इक दर्द सगा है
यथार्थवादी एवं दार्शनिक रचना।
कविता एक साँस में पढी जा सकती है, यदि एक दो-जगहों पर कुछ मात्राएँ हटा दी जाएँ।
जैसे-
अपने बेगाने कौन बचे थे,
ऋषियो-मुनियों ने फरमाया है
ये दोनों पंक्तियाँ सामान्य की तुलना में थोड़ी बड़ी हैं। ध्यान दीजिएगा।
वैसे बाकी रचना १०० में १०० के लायक है।
बधाई स्वीकारें।
आप सभी का आभार आपने गीत को गले लगाया ,
तनहा जी मात्राएँ १६ ही हैं यहाँ भी ,श्याम सखा श्याम
जबसे अपने भीतर झांका
क्या बेगाने या क्या अपने
इक नाटक के पात्र सभी हैं
झूठे हैं जीवन के सपने
बढिया लिखा
पढ कर अच्छा लगा
सुमित भारद्वाज
जग की है बाते अलबेली
जन्म-मृतु की ये अठखेली
जिसने ओढा,प्रीत का पल्ला
पीर-विरह की उसने झेली
जीवन तो है सफर सांस का
मौत साँस के साथ दगा है.
अद्भुत पंक्तिया है....
जीवन तो है सफर साँस का
मौत साँस के साथ दगा है।
---लगता है ये पंक्तियाँ अंतिम साँस तक मुझे याद रहेंगी और इनके साथ श्याम सखा 'श्याम'।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
श्यामजी वाकई ,जीवन तो है h सांस का ,मौत साँस के साथ दगा है,दगा जो हम न चाहते हुए भी करते हैं |हम तो युग्म पर नए हैं और सच कहूं केवल आप के कारण ठहर जाते हैं यहाँ | माधवी
har bar ki tarah is baar bhi shandaar.
ALOK SINGH "SAHIL"
har bar ki tarah is baar bhi shandaar.
ALOK SINGH "SAHIL"
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