किरणों के
पांखी तो
दिन
माह
बरस को
यादों में बदल
उड़ जाते है,
रह जाते है हम
सुनसान द्वीप में
धधकते ज्वालामुखी की तरह
बूंद बूंद झुलसते सपने
राख राख उछलते लम्हे
जलते
पिघलते
उबलते
तह दर तह
जमा होते अहसास
पर्वत के अश्रु
पत्थर होने से लेकर
सूरज के कदमों तले
रौंदे जाने तक
संज्ञाशून्य बने रहना है
या........
दर्द का ज्वालामुखी
सीने में दफ़न किए
एक दिन ख़ुद ही
दफ़न हो जाना है |
.
विनय के जोशी
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
रह जाते है हम
सुनसान द्वीप में
धधकते ज्वालामुखी की तरह
बूंद बूंद झुलसते सपने
राख राख उछलते लम्हे
बहुत सुन्दर कविता विनय जी!
दर्द का ज्वालामुखी
सीने में दफ़न किए
एक दिन ख़ुद ही
दफ़न हो जाना है
" bhut sunder or sach, srahneye"
REgards
वाह विनय जी गजब की अभिव्यक्ति
दर्द का ज्वालामुखी
सीने में दफ़न किए
एक दिन ख़ुद ही
दफ़न हो जाना है
सुन्दर
सुंदर बिम्ब।
या फ़िर,
बनके
बूँद एक ओस की
फना हो जाना है .
यही तो जीवन की कविता है. बहुत खूब,विनय जी
बार-बार पढने का मन कर रहा है..ऐसा लग रहा है की जैसे अपनी ही अनकही भावनाओ को शब्द रूप में देख रही हु.
यथार्थ और गंभीर कविता
जलते
पिघलते
उबलते
तह दर तह
जमा होते अहसास
पर्वत के अश्रु
पत्थर होने से लेकर
सूरज के कदमों तले
रौंदे जाने तक
संज्ञाशून्य बने रहना है
बहुत सुंदर. वाह!
bimb kaafi ache hai
दर्द का ज्वालामुखी
सीने में दफ़न किए
एक दिन ख़ुद ही
दफ़न हो जाना है
बहुत खूब
बधाई
सादर
रचना
शब्द--बिम्ब---प्रवाह सभी मन मोहक हैं।
अंत घोर निराशावादी है।
-------------------
--सूरज के कदमो तले
रौंदे जाने तक
संग्याशून्य बने रहना है
या-------------
दर्द का ज्वालामुखी
सीने में दफन किए
एक दिन ख़ुद ही
दफ़न हो जाना है।
--के पश्चात मेरे विचार से
या--------।
लिखकर
एक और विकल्प की संभावना छोड़ देनी चाहिए थी।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
विनय जी, क्या खूब बिम्ब हैं... सुंदर..
सराहने एवं मार्गदर्शन हेतु आभार |
आप सब का प्रोत्साहन ही प्रेरणा है |
सादर,
विनय
behad umda
ALOK SINGH "SAHIL"
बहुत सुंदर!
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