प्रतियोगिता से देवेन्द्र कुमार मिश्रा की हम कुछ कुण्डलियाँ लेकर हाज़िर हैं, जिन्होंने १२वाँ स्थान भी बनाया। पिछले महीने भी हमने देवेन्द्र की ही सावन पर कुछ कुण्डलियाँ प्रकाशित किया था।
पुरस्कृत कविता- खुपिया बज्र
आसमान आतंक बदरिया, देश धरा पर छाए।
सभी लोग हैं सहमे-सहमे, दामिनि बन गिर जाए।।
दामिनि बन गिर जाए, स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त।
ई-मेल बना यमदूत, खुशियों को कर दे ध्वस्त ।।
जमी जड़े जहाँ आतंकी, उखाडो इन्हें करो बीरान।
मुट्ठी का एहसास दिला दो, बिखरे छठा इन्द-धनुषी आसमान ।।
देश खडा बारूद ढेर पर, खेलें आतंकी खेल ।
करके चैलेन्ज ई-मेल भेजते, हुई सरकारें फेल।।
हुई सरकारें फेल, नेता तू-तू मैं-मैं करते ।
भोले-भाले निरीह लोग, बेवजह निर्दोष मरते ।।
कभी साईकिल-कभी टिफिन में, दहशतगर्दी बेश ।
पल भर में क्या हो, भय में सारा देश ।।
बुलेटप्रूफ जाकिट वाहन से, नेता चलते आज ।
आम नागरिक नहीं सुरक्षित, रहा कराह समाज ।।
रहा कराह समाज, सरकारें ढाढस बधाएं ।
घायल-मरने बालो को, रूपये देकर मरहम लगाएं ।।
सयंम-सयंम बोली रटते, इनके तरह-तरह के रूप ।
ऐसा समय आज है आया, हुई नाकाम बुलेट प्रूफ ।।
सुरक्षा ऐजेन्सी नाकाम, केन्द्र-राज्य हैं दूर ।
राजनीति कर रोटी सेंकें, जनमानस मजबूर ।।
जनमानस मजबूर, लालच में आ जाता ।
दंगा-फसाद, तकलीफें सहता, फिर भी समझ न पाता ।।
नवीन तकनीकि आतंकी, सीख के देते परीक्षा ।
अपना वही पुराना ढर्रा, खतरे में आज सुरक्षा ।।
आज देश की सभी एजेन्सी, आपस में मिल जाओ ।
नाश हो आतंकवाद का, ऐसा बज्र बनाओ ।।
ऐसा बज्र बनाओ, सुदृढ हो खुपिया तंत्र ।
सुख-सुविधाओ से परिपूर्ण हों, इन्हें दो ऐसा मंत्र ।।
बाहर से दुश्मन दिखता है, घर के भेदी इन्हें न लाज ।
आतंकवाद का हो सफाया, ऐसा कानून लाओ आज ।।
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४, ३॰५, ६॰७५, ४॰७, ७
औसत अंक- ५॰१९
स्थान- चौदहवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५, ३, ५॰१९ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰३९६६
स्थान- बारहवाँ
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
देवेन्द्र जी,
आपका कहना बिलकुल ठीक है। यह तो पूरे देश की हालत हो गई है। और यह अब कुछ दिनों की नहीं, हमेशा की सी लगती है।
आज की हालत का सच्चा बयान! धन्यवाद!
देवेन्द्र जी आप को सफलतापूर्वक कुण्डलियाँ लिखने की बधाई!
देवेन्द्रजी,
भाव अच्छे है. सभी कुंडलियों में मात्र दोष है. दोहा, छंद, सोरठा, चोपाई, कुण्डलियाँ, इत्यादि पारम्परिक विधाओ को प्रश्रय मिलना चाहिए.
कुंडलियों के आरम्भ में दोहा फ़िर चार चरण होते है.प्रत्येक चरण में. चोबीस मत्राए, दोहे का अन्तिम चरण रोला का पहला चरण एवं कुंडली का पहला व अन्तिम शब्द सामान होता है.
आपको बधाई, लिखते रहिये.
सादर
विनय के जोशी
बात अच्छी है, लेकिन कहने में शायद आप बहुत पीछे रह गए।
आपसे गुजारिश है कि आप यदि किसी विधा को उठाएँ तो उसका सही से पालन करें। विनय जी की बातों पर ध्यान दें। किसी भी विधा में यदि सही से रचना की जाए तो रचना दिल को छू जाती है, अन्यथा विधा का मज़ाक हो जाता है।
ध्यान दीजिएगा।
आज के समय के हिसाब से आप की रचना बहुत अच्छी है यही सब तो हो रहा है
सादर
रचना
डा. रमा द्विवेदीsaid...
देवेन्द्र जी,
कविता अच्छी है लेकिन ‘खुपिया’ की जगह ‘खुफिया’ होना चाहिए...शीर्षक पर भी ऐसा ही लिखा है...शायद टाइपिगं की गलती है...शुभकामनाओं सहित।
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