शोक , ना अवसाद है,
मेरी रूह बे-औलाद है।
परदा करे वो इसलिए,
परदे में हीं आज़ाद है।
फ़िक्र आईने की क्यूँ,
संगत में जो बर्बाद है।
यम आना इत्मीनान से,
तबियत अभी नाशाद है।
तुम सबकी बद्दुआओं से,
दुनिया मेरी आबाद है।
दुखता है दिल इंसान का,
’तन्हा’ हीं एक अपवाद है।
शब्दार्थ:
यम = यमराज
नाशाद= उदास, गमगीन
-विश्व दीपक ’तन्हा’
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21 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छी गजल है
तन्हा जी
बस गजल का मतला ज्यादा पसंद नही आया
सुमित भारद्वाज
मतले का अर्थ समझ नही आ रहा मुझे
सुमित भारद्वाज
परदा करे वो इसलिए,
परदे में हीं आज़ाद है।
.
बहुत बढ़िया और सटीक
कम शब्दं में बहुत कुछ कह दिया
saadar,
vinay
सोच रही थी कौसा शे'र कॉपी करून कहने के लिए के ये अच्छा लगा ... फिर उल्टा किया ... सोचा कौnसा कम अच्छा लगा ..दोनों बार नाकाम रही :) बहुत ही बढ़िया रचना !
(ग़ज़ल है या नहीं ये निर्णय लेने की न जानकारी है न काबिल हूँ! .. जो भी है, अच्छी लगी!) मतला और मकता बहुत पसंद आया |
अब क्या कहूं vd bhai
आज भी आपकी रचना सुरों से अलंकृत है!
मेरा भी लेखन आपके शब्दों-से सु-संस्कृत है!!
बस ऐसा लगा कि कभी मैं भी आपके तरह लिख पाउं!
रूपम जी!
गज़ल है या न्हीं ये तो मुझे भी पता नहीं। इसलिए इस बार चेप्पियों में गज़ल नहीं लिखा है मैने ;)
पिछली बार लिखा था तो लोगों ने सिरे से नकार दिया था :P
सभी मित्रों का शुक्रिया रचना पसंद करने के लिए!
दुष्यंत कुमार ने अरबी और हिन्दी के शब्दों का सुंदर समायोजन किया है अपने शे'रो में। आपकी इस कलमकारी में भी आबाद/नाशाद/आज़ाद के साथ अपवाद का मेल सुंदर है। छोटी-छोटी पंक्तियाँ, बड़ी-बड़ी बातें।
सतसईया के दोहरे॰॰॰॰ वाली बात है।
सुमित जी,
कवि कह रहा है कि रूह या आत्मा के सुपुत्र दुःख, पीड़ा, अवसाद, शोक ही तो हैं और चूँकि कवि की रूह इनसे खाली है, इसलिए बे-औलाद है। (जहाँ तक मैं समझा)
सबसे बढ़िया पंक्ति मुझे लगी-
फ़िक्र आईने की क्यूँ,
संगत में जो बर्बाद है।
यहाँ कवि कहता है कि आइना टूटे या बचे, रहे या रहे, खुद का अक्स देखने के लिए उसकी क्या ज़रूरत है। मेरे साथ में, मेरी संगत में जो है , वो बर्बाद है। मतलब संगत से गुण होत है, संगत से गुण जात॰॰॰॰ सुमित जी समझ ही गये होंगे आप।
शोक , ना अवसाद है,
मेरी रूह बे-औलाद है।
bahut badhiya tanha ji!!
आह!
गजब का कसाव है कविता में.मजा आ गया
आलोक सिंह "साहिल"
शोक , ना अवसाद है,
मेरी रूह बे-औलाद है।
tanha bhai,
form me wapas aa gaye aap.
Niyam kaanoon se uupar bhav hote hain, aap usme hamesha se khare utarte hain.
Gazal ho ya na ho, asar to karti hai.
तनहा जी ,
दुखता है दिल इंसान का,
’तन्हा’ हीं एक अपवाद है।
हिन्दी और उर्दू का बहुत अच्छा संगम किया है इस रचना में . बहुत सुंदर .बधाई
यम आने से पहले कई बार द्वार में दस्तक देता है। साधारण आदमी हर बार घबड़ा जाता है । कोई पंहुचा हुआ फकीर ही इतने विश्वास से कह सकता है--
यम आना इत्मीनान से
तबियत अभी नाशाद है
-देवेन्द्र पाण्डेय।
तन्हा भाई.. मैंने सोचा कि जो पंक्तियाँ मुझे अच्छी लगी हैं उन्हें कमेंट करते हुए पोस्ट करूँगा..
"शोक , ना अवसाद है,
मेरी रूह बे-औलाद है।
परदा करे वो इसलिए,
परदे में हीं आज़ाद है।
फ़िक्र आईने की क्यूँ,
संगत में जो बर्बाद है।
यम आना इत्मीनान से,
तबियत अभी नाशाद है।
तुम सबकी बद्दुआओं से,
दुनिया मेरी आबाद है।
दुखता है दिल इंसान का,
’तन्हा’ हीं एक अपवाद है।"
शैलेश भाई.. बहुत अच्छे तरीके से आपने मतलब समझा दिये...
एक एक शे’र बार बार पढ़ा जाना चाहिये...
फिर भी,
मेरा सबसे पसंदीदा शे’र:
यम आना इत्मीनान से,
तबियत अभी नाशाद है।...
बहुत सुंदर रचना आप ने जो अर्थ बताया वो भी बहुत अच्छी तरह से
बधाई हो
सादर
रचना
यम आना इत्मीनान से,
तबियत अभी नाशाद है।
बहुत खूब तन्हा जी
शोक है न अवसाद है .एक ही बात है दो भाषाओं में जब की अगर है खुशी न अवसाद है तो भावः ग़ज़ल का भावः बने और अगली रूह बस आजाद है या रूह आज आजाद है लिखें तभी ग़ज़ल के मीटर पर आयेगी तनहा जी नौसिखियों की वह-वही कहीं न लेजायेगी तन्हाजी
है खुशी न अवसाद है
२ १ २ २ ,२ १२ नवसाद पढ़ें
रूह आज आजाद है
२ १२२, २१२ जाजाद ज + आजाद और सारी ग़ज़ल को इस मीटर पर बैठाएं तब ग़ज़ल कहलाएगी
anaam bandhu!
maine to shuroo mein hi likh diya hai ki main koi gazal nahi likh raha. :)
kabhi itmeenaan se aapse gazal seekhoonga. meter ki jaankaari to mujhe hai hi nahi. Phir se wahi kahoonga ki aap apna parichay dete to seekh paata kuchh.
aap tippaniyon ka shukriya.
bahut badhai ghazal hai tanha
एक बार दो मित्र एक नाई और एक जाट राह साथ जा रहे थे.. घनिष्ट मित्र थे तो एक दूसरे की टाँग खिचाई भी होती रहती थी तो नाई मित्र चिढाने के उद्देशय से कहते हैं
'जाट जाट तेरे सर पर खाट'
जाट मित्र को कुछ सूझा नहीं कुछ देर बाद सोचकर कहते हैं
'नाई नाई तेरे सर पर कोल्हू'
इस पर नाई मित्र कहता है ले ये भी कोई बात हुई.. इसमें राह ( लय) तो बनी ही नही..
तो जाट मित्र : राह बनो ना बनो तू बोझ तो मरेगा ही.......
यही बात भाई की रचना की..
सच में वजन है ...
तन्हा जी ..क्या कहूँ? देर से टिप्पणी कर रहा हूँ माफी चाहूँगा..
आपकी ग़ज़ल तो दिल में उतर गयी... आपकी कलम में बहुत निखार आ गया है.. छोटे मीटर में लिखना वैसे भी कठिन होता है पर आपने तो कमाल ही कर दिया ! बस यूँ ही लिखते रहिए...
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)