मैं एक
आम आदमी हूँ
अज़र-अमर
और शाश्वत
आम आदमी हूँ
अज़र-अमर
और शाश्वत
हर बार मुझे
कुचला, जलाया
सताया जाता है
फिर भी--
हर बार ज़िन्दा
हो जाता हूँ --
एक संजीवनी है
जो हर बार
जिला जाती है
नेता,अभिनेता
पुलिस अधिकारी
सभी कर्मचारी
मेरी ही फिक्र में
घुलते रहते हैं
मुझे नष्ट करने के
स्वप्न बुनते रहते हैं
किन्तु मेरा कुछ
नहीं बिगाड़ पाते
मेरी जिजीविषा
कभी नहीं मरती
मेरे अन्तर में
विश्वास की लौ
जगमगाती है
और मुझे
विश्वास दिलाती है
कि मैं विशिष्ट हूँ
अति विशिष्ट
इसीलिए मुझे
मिटाने वाले मिट गए
और मैं आज भी
जिए जा रहा हूँ
संकटों में भी
मुसकुरा रहा हूँ ।
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
बेहद सीधी और बेहद असरदार कविता....
इसीलिए मुझे
मिटाने वाले मिट गए
और मैं आज भी
जिए जा रहा हूँ
संकटों में भी
मुसकुरा रहा हूँ
"shandaar shabon mey srahney kaveeta"
Regards
शोभा जी! बढिया...बहुत बढिया!!
एक आम आदमी की ताकत उसकी जीजिविषा ही है-
इसीलिए मुझे
मिटाने वाले मिट गए
और मैं आज भी
जिए जा रहा हूँ
संकटों में भी
मुसकुरा रहा हूँ ।
अच्छे भाव।
बेहद सहज तरीके से परोसी गई,लाजवाब कविता.
आलोक सिंह "साहिल"
Shobha ji, aapne apne style me badlaw kiya,
aur kya khoob kiya.
bahut hi asardar.
सीधे-सरल शब्दों में बड़ी बात।
कविता आम आदमी के लिए लिखी गयी है और आम आदमी तक पंहुचने का दम रखती है।
बधाई----।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
मैं एक
आम आदमी हूँ
अज़र-अमर
और शाश्वत
.
इन शब्दों में बहुत वज़न है,
बधाई, अच्छी रचना के लिए |
सादर,
विनय
शोभा जी,
बहुत साधारण शब्द.. पर असर जबर्दस्त..
"हर बार मुझे
कुचला, जलाया
सताया जाता है
फिर भी--
हर बार ज़िन्दा
हो जाता हूँ --
एक संजीवनी है
जो हर बार
जिला जाती है "...
शोभा जी
आप की सभी कवितायें मुझे पसंद आती है आप बहुत अच्छा लिखती हैं
सादर
रचना
बहुत खूब! यह कविता दिल में गहराई तक उतर गयी.
मेरी जिजीविषा
कभी नहीं मरती
मेरे अन्तर में
विश्वास की लौ
जगमगाती है
बहुत सुन्दर कविता !शोभा जी
badhiya lekhan.
badhai sweekarein.
आपकी शोभा कलम है, युग्म की शोभा आप
शीतल हिम सम लेखनी, भाव आपके भाप ।
वाकई खूबसूरत ,सरल,सहज बह रही है कविता श्याम सखा श्याम
मेरी जिजीविषा
कभी नहीं मरती
मेरे अन्तर में
विश्वास की लौ
जगमगाती है
really Shobhaji, as usual, beautiful kavita, aam aadmi ki jijivisha ka varnan kartai hui...
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