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Saturday, September 27, 2008

जिस कूचे-गली से मेरा यार हो कर गया


उसका तसव्वुर जो ज़हन से हो कर गया ........
मेरा फिर कत्ल हुआ मैं फिर से मर गया ................

जबसे अटका हैं वो कहीं गोसा-ए-जिगर में ,
इसका असर भी याद नहीं उसका भी असर गया ....

दुनिया वालो बेकार हैं मेरी ज़री पर रोक लगाना
सूरज हूँ जब चाहे चढ़ जाऊँ जब चाहे उतर गया ...............

महफिल मैं कराहते हुए देखा जो उसको
खुश हूँ की ना मेरा कोई वार बेअसर गया

जो साथ नहीं तू मेरे तो यूँ काटी हैं जिंदगी
कभी यहाँ रुक गया कभी वहाँ ठहर गया

इबादत-ए खुदा के तौर तरीके बदल जाते हैं …
जिस कूचे-गली से मेरा यार हो कर गया

जबसे पी लिया हैं तेरे झूठे प्याले से पानी ....
हर शराब का असर मुझ पर बेअसर गया ...

हैसियत दिखाने को एक ज़र्रा हटा जगह से ....
कई गाँव तबाह हुए एक शहर बिखर गया ...

तराना-ए-ख़ुशी वो सुना कर गया हैं “अनु”
थकी-थकी इस रूह को और बीमार कर गया

--अनुराधा शर्मा

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

Straight Bend का कहना है कि -

तराना-ए-ख़ुशी वो सुना कर गया हैं “अनु”
थकी-थकी इस रूह को और बीमार कर गया

वीनस केसरी का कहना है कि -

उसका तसव्वुर जो ज़हन से हो कर गया ........
मेरा फिर कत्ल हुआ मैं फिर से मर गया ................


बहुत उम्दा किस्म के शेरों के लिये आपकी बधाई...



आपकी सोंच आपकी कहन अच्छी लगी

वीनस केसरी

Anonymous का कहना है कि -

जबसे पी लिया हैं तेरे झूठे प्याले से पानी ....
हर शराब का असर मुझ पर बेअसर गया ...
बहुत खूब
बधाई
रचना

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

अनु जी

१)आपके इस शेर मै थोडा त्रुटी लगी
"दुनिया वालो बेकार हैं मेरी ज़री पर रोक लगाना
सूरज हूँ जब चाहे चढ़ जाऊँ जब चाहे उतर गया ..............."

दूसरी लाइन कुछ सही मतलब नहीं दे रही .. ऐसा लगा जैसे काफिया मिलाने के लिए बनायीं गयी है
२) विराम चिह्नों के प्रयोग करने से कई जगह अर्थ बे-अर्थ हो गया है जैसे
"खुश हूँ की ना मेरा कोई वार बेअसर गया "
३)इस शेर की पहली और दूसरी पंक्ति मै मुझे समबन्ध ढूँढने मै परेशानी हुई
"इबादत-ए खुदा के तौर तरीके बदल जाते हैं …
जिस कूचे-गली से मेरा यार हो कर गया "
४) "झूठे" नहीं "जूठे".. अर्थ बदल जाता है..
५)इस शेर मै ख़ुशी को सुन कर.. आपकी रूह बीमार क्यों हुई.. पता नहीं :(
"तराना-ए-ख़ुशी वो सुना कर गया हैं “अनु”
थकी-थकी इस रूह को और बीमार कर गया "

बाकि कुछ शेर बहुत पसंद आये... और मुझे कहना ही पड़ेगा.. बहुत अच्छी कोशिश है..

सादर
शैलेश

दीपाली का कहना है कि -

उसका तसव्वुर जो ज़हन से हो कर गया ........
मेरा फिर कत्ल हुआ मैं फिर से मर गया ................
जबसे पी लिया हैं तेरे झूठे प्याले से पानी ....
हर शराब का असर मुझ पर बेअसर गया ...

तराना-ए-ख़ुशी वो सुना कर गया हैं “अनु”
थकी-थकी इस रूह को और बीमार कर गया

बहुत खूब लिखा है.

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

अनुराधा जी, पहला शे’र पसंद आया...
उसका तसव्वुर जो ज़हन से हो कर गया ........
मेरा फिर कत्ल हुआ मैं फिर से मर गया

जम्लोकि जी की बात पर ध्यान दें..

Anonymous का कहना है कि -

anu ji,
main gajal ke kayade kanun nahin janta.
par,mujhe gajal kafi pasand aayi.gajal ke jankaaron se maafi.
ALOK SINGH "SAHIL"

विश्व दीपक का कहना है कि -

बढिया रचना है।
कहीं-कहीं कुछ-कुछ कमी महसूस हो रही है, इसलिए गज़ल कहने से कतरा रहा हूँ।

Smart Indian का कहना है कि -

हैसियत दिखाने को एक ज़र्रा हटा जगह से ....
कई गाँव तबाह हुए एक शहर बिखर गया ...

बहुत खूब!

Anonymous का कहना है कि -

Hey Miss Sharma, U can improve da third stanza ,
6th stanza has different meaning for both da sentence .. Rest is touching ..as always..da last is one mind blowin..


--urs -- da last void..

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