काव्य-पल्लवन सामूहिक कविता-लेखन
विषय - रिश्ते
विषय-चयन - HC
अंक - सत्रह
माह - अगस्त २००८
इस दुनिया की छोटी से छोटी ईकाई भी अपना पृथक अस्तित्व रखती है, लेकिन वहीं उसका ब्रह्माण्ड की शेष-सत्ता से विशिष्ट सम्बंध भी है। मनुष्य का जीवन भी इन्हीं विशिष्ट और विविध रिश्तों से पटा हुआ है। एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से सम्बन्ध विशिष्ट है। हिन्द-युग्म का हिन्दी से, तकनीक से, इंटरनेट से, कवियों से, पाठकों से, प्रतिभागियों से, लेखकों से, चित्रकारों से, गायकों से, संगीतकारों से, गीतों से, ग़ज़लों से, कहानियों से और पता नहीं किस-किस से गहरा नाता है।
सम्बन्धों की इसी ख़ासियत को ध्यान में रखते हुए हमने इस बार का काव्य-पल्लवन 'रिश्ते' विषय पर आयोजित किया है। २४ विविध रंगों से काव्य-पल्लवन की नई महफिल सजी है। हमें उम्मीद है कि पाठक इन कविताओं से अपना नाता जोड़ेंगे। यदि रस मिला, भाव मिला, कथ्य-तथ्य मिला तो हमारा आयोजन सफल भी हो जायेगा।
आपको यह प्रयास कैसा लग रहा है?-टिप्पणी द्वारा अवश्य बतावें।
*** प्रतिभागी ***
| अनुराग शर्मा | शैलेश जम्लोकि | सुरेन्दर कुमार 'अभिन्न' | सीमा स्मृति | चन्द्रकान्त सिंह | कमलप्रीत सिंह | सविता दत्ता | मेनका कुमारी | महेश कुमार वर्मा | विवेक रंजन श्रीवास्तव | सारिका सक्सेना "रिकु" | प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध" | आचार्य संजीव 'सलिल' | सधिकांत शर्मा | बसंत लाल "चमन" | विपिन चौधरी | प्रदीप मानोरिया | अनुराग पाठक | सन्तोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी | सतीश वाघमरे | सुरिन्दर रत्ती | अरविन्द चौहान | सुधीर सक्सेना 'सुधि' | रश्मि सिंह |
~~~अपने विचार, अपनी टिप्पणी दीजिए~~~
उनके सवालों जवाबात से अब आगे चला आया हूँ
कमजोरी-ऐ-जज़्बात से अब आगे चला आया हूँ
मुद्दई,मुंसिफ,कचहरी, छूट गए पीछे सब
तहरीर औ तकरार से अब आगे चला आया हूँ
उस दुनिया से तो हूँ दूर अभी भी यारों
इस दुनिया से ज़रूर आगे चला आया हूँ
बीच मंझधार खड़ा हूँ है भंवर आहों का
पुल हरेक रिश्ते का मैं आज जला आया हूँ।
--अनुराग शर्मा
दूर होके भी पास थी ऐसे
बुत मै कोई जाँ थी जैसे
हमराज बनी, अनजाने से
कहलाता क्या, ये रिश्ता है?
मन मै एक विश्वास सी बनके
याद तुम्हारी आंख से छलके
दिल पूछे अनजान सा बनके
तुमसे ये कैसा रिश्ता है?
तुम नाम वहां जब लेते हो.
दिल जैसे ये सुन लेता हो
इस रिश्ते को कोई नाँ नहीं
ये दिल से दिल का रिश्ता है
बेनाम सा रिश्ता यूँ पनपा है
फूल से भंवरा ज्यूँ लिपटा है
पलके आंखे, दिया और बाती
ऐसा ये अपना रिश्ता है.!!!!
--शैलेश जम्लोकि
आसमान से ऊँचे हरदम,
और सागर से गहरे रिश्ते.
दिल के अंधेरे मिटा देते हैं,
होते हैं बड़े सुनहरे रिश्ते.
खून के रिश्तों से बड़कर,
होते है दिल के गहरे रिश्ते .
मेंहदी रिश्ते,पायल रिश्ते
और होते हैं गजरे रिश्ते
रिश्तों के निगेहबान है रिश्ते
रिश्तों पे होते पहरे रिश्ते
कभी अंधे,गूंगे,बेसहारा और
हो जाते कभी क्यूँ बहरे रिश्ते ?
--सुरेन्दर कुमार 'अभिन्न'
इंसान थे हम,
देवता बना पूजते रहे 'वो
बेखबर इस बात से
कि पत्थरों की भी उम्र होती है
टूट के बिख्ार जाने पर
पूजने वाले पहचानते भी नहीं.
--सीमा स्मृति
रिश्ते कुछ खास होते हैं
शायद उनकी डोर उस प्रभु के पास होती है
जो वहां है जहां थोड़ी सी हवा है,थोड़ा सा आसमान है
अक्सर राह चलते कुछ रिश्ते हमें पकड़ कर ले जाते हैं वहां
जहां हम कभी नहीं गये होते
हम चीखते हैं कि नहीं जाना चाहते इस जहां को छोड़ कर
मगर एक हवशी ला पटकता है नए दरख्तों के तले
चिल्लप-पों के बीच अपनी ही आवाज लौट कर
दे जाती है दस्तक
आखिर क्यों हमें आज हर रिश्ते से डर लगता है?
रिश्ते तो रुई के फाहे है
फिर क्यों हम उन्हें नासूर समझ कर ठुकरा देते हैं?
शायद यह समय ही ऐसा है कि-
'हमें अपनी ही परछाईं से डर लगता है'
बदहवास से हम घूमते हैं नंगे पांव
शीशे की दीवारों में अपना माथा लटकाए
हम टहलते हैं सिर्फ अपने पुरवे की ओर
अजीब सी खलल मथ डालती है
और उसकी तपिश में हम सोचते हैं-
काश! कोई अपना भी होता !
--चन्द्रकान्त सिंह
सरोकार छूट जायें
नज़रें बदलती हैं
रास्ते बदल जायें तो
सूरतें बदलती हैं
मुलाक़ात फिर हो जाए
शायद किसी मोड़ पर
नीयतें आज तो
बदलने को मचलती हैं
हट गयीं जो बंदिशें
खुल गए हैं रास्ते
ज़रूरारें तो आज सभी
किसी और रुख फिसलतीं हैं
दिन हवाएं हो गए
और बंधनों के रास्ते
जज्बात की आंधी कहीं
मोम सी पिघलती है
देख कर पहचान पाएं
ये ताब नहीं रही उन में
पहचान कर भी देख जाएं
मजबूरियां बदलतीं हैं
सरोकार छूट जायें
नज़रें बदलतीं हैं
रास्ते बदल जायें
सूरतें बदलतीं हैं
--कमलप्रीत सिंह
आकाश से पटल तक
जीव चलता मात्र रिश्तों पर
कुछ लंबे समय तक टिकते हैं
कुछ बीच में दम तोड़ देते हैं
कुछ रिश्ते पैसों से बनते हैं
कुछ प्रेम प्रतीक भी होते हैं
कुछ क्षण भर के,कुछ युग-युग के
रिश्तों पर जीवन टिकता है
रिश्तों से जीवन बनता है
रिश्तों में दरार, विश्वास की कमी
रिश्तों में मिठास, प्रेम अनुभूति
एक जीवन, अनेक रिश्ते
जीवन से जुड़े सारे रिश्ते
निर्जीव सजीव सभी रिश्ते
रिश्तों का प्रतीक, स्वयं रिश्ते
--सविता दत्ता
किसी से दर्द का रिश्ता होता है,
किसी से प्यार का रिश्ता होता है,
फर्क क्या है, दोनों में
क्या है, अन्तर
'रिश्ता' तो होता है|
किसी को याद करते है, जखम जैसे
किसी को याद करते है, दवा जैसे
फर्क है, कुछ तो बोलो
बतलाओ क्या है, अन्तर
याद तो करते है दोनों को ही|
कोई दिल में रहता है, दुश्मन की तरह
कोई दिल में रहता है, दोस्त की तरह
कुछ भी फरक नही इसमे|
ना ही है कोई अन्तर|
दिल में तो रहते है दोनों ही|
याद करते है, सोचते है सबको
एक साँस से.... दूसरी साँस तक
और फिर अन्तिम साँस तक|
तानाबाना बुनते रहते है, रिश्तों के
सभी एक दुसरे के पूरक
इसके बिना वो नही, उसके बिना ये नहीं
सब एक ही माला के मोती
कोई सुंदर, कोई बदसूरत
कोई कठोर, कोई नरम
कोई कड़वा, कोई मधुर
फर्क क्या है? इसमे कुछ
क्या है? कुछ अन्तर
'रिश्ता' तो सबसे है
यादें तो सबसे जुड़ी है,
कुछ भयानक, कुछ सुंदर
इसके बिना वो नहीं, उसके बिना ये नहीं|
--मेनका कुमारी
पता नहीं चलता ये रिश्ता चीज होती है क्या
अरे कोई तो बताए ये रिश्ता चीज होती क्या
था कभी भाई-भाई का रिश्ता
कभी न बिछुड़ने वाला रिश्ता
जो हमेशा साथ-साथ खेलता
हमेशा साथ-साथ पढ़ता
हमेशा साथ-साथ खाता
हमेशा साथ-साथ रहता
पर आज जब वे बड़ा व समझदार हुए
तो दोनों एक-दूसरे के दुश्मन हुए
हथियार लेकर दोनों आमने-सामने हुए
भाई-भाई का रिश्ता दुश्मनी में बदल गया
पता नहीं चलता ये रिश्ता चीज होती है क्या
अरे कोई तो बताए ये रिश्ता चीज होती क्या
किया था शादी पति-पत्नी के रिश्ता के साथ
जीवन भर साथ निभाने को
पर रह गयी दहेज़ में कमी
तो न दिया उसे साथ रहने को
और जिन्दा ही पत्नी को जला डाला
क्योंकि था वह दहेज़ के पीछे मतवाला
था वह दहेज़ के पीछे मतवाला
जीवन भर साथ निभाने का रिश्ता दुश्मनी में बदल गया
पता नहीं चलता ये रिश्ता चीज होती है क्या
अरे कोई तो बताए ये रिश्ता चीज होती क्या
था पिता-पुत्र का रिश्ता
पिता ने उसे अपने बुढ़ापे का सहारा समझा
पर उसने तो दुश्मन से भी भयंकर निकला
निकाल दिया पिता को घर से
भूखे-प्यासे छोड़ दिया
नहीं मारा पिता तो उसने
जहर देकर मार दिया
बुढ़ापे का सहारा आज उसी का कातिल बना
था इन्सान पर आज वह हैवान बना
पता नहीं चलता ये रिश्ता चीज होती है क्या
अरे कोई तो बताए ये रिश्ता चीज होती क्या
ये रिश्ता चीज होती है क्या
--महेश कुमार वर्मा
मुलायम दूब पर,
शबनमी अहसास हैं रिश्ते
निभें तो सात जन्मों का,
अटल विश्वास हैं रिश्ते
जिस बरतन में रख्खा हो,
वैसी शक्ल ले पानी
कुछ ऐसा ही,
प्यार का अहसास हैं रिश्ते
कभी सिंदूर चुटकी भर,
कहीं बस काँच की चूड़ी
किसी रिश्ते में धागे सूत के,
इक इकरार हैं रिश्ते
कभी बेवजह रूठें,
कभी खुद ही मना भी लें
नया ही रंग हैं हर बार ,
प्यार का मनुहार हैं रिश्ते
अदालत में
बहुत तोड़ो,
कानूनी दाँव पेंचों से लेकिन
पुरानी
याद के झकोरों में, बसा संसार हैं रिश्ते
किसी को चोट पहुँचे तो ,
किसी को दर्द होता है
लगीं हैं जान की बाजी,
बचाने को महज रिश्ते
हमीं को हम ज्यादा तुम,
समझती हो मेरी हमदम
तुम्हीं बंधन तुम्हीं मुक्ती,
अजब विस्तार हैं रिश्ते
रिश्ते दिल का दर्पण हैं ,
बिना शर्तों समर्पण हैं
खरीदे से नहीं मिलते,
बड़े अनमोल हैं रिश्ते
जो
टूटे तो बिखर जाते हैं,
फूलों के परागों से
पँखुरी पँखुरी सहेजे गये,
सतत व्यवहार हैं रिश्ते
--विवेक रंजन श्रीवास्तव
नहीं जानती की तुम मेरे क्या हो
शायद हो मीत या शायद सखा हो
मिल जाती हैं सारी खुशियाँ जिसमें
अनमोल सा शायद तुम वो लम्हा हो
कह लेती हूँ तुमसे व्यथा दिल की अपनी
मां के मन सा कोमल तुम वो जज़्बा हो
नहीं है चाह तुमसे और कुछ भी पाने की
अनजाना अनसुना सा जैसे कोई रिश्ता हो
बंध गए हैं एक डोर मैं मन तेरे मेरे
नेह से भरा ये बंधन जैसे प्रेम पगा हो
अदभुत सा एक रिश्ता है बीच में हमारे
जो न पहले कहीं देखा हो न ही सुना हो
--सारिका सक्सेना "रिकु
कई रंग में रंगे दिखते हैं ,
निश्छल प्राण के रिश्ते
कई हैं खून के रिश्ते,
कई सम्मान के रिश्ते !!
जो सबको बाँधे रखते हैं,
मधुर संबँध बंधन में
वे होते प्रेम के रिश्ते,
सरल इंसान के रिश्ते !!
भरा है एक रस मीठा,
प्रकृति ने मधुर वाणी में
जिन्हें सुन मन हुलस उठता,
हैं मेहमान के रिश्ते !!
जो हुलसाते हैं मन को ,
हर्ष की शुभ भावनाओ से
वे होते यकायक
उद्भूत,
नये अरमान के रिश्ते !!
कभी होती भी देखी हैं,
अचानक यूँ मुलाकातें
बना जाती जो जीवन में,
मधुर वरदान के रिश्ते !!
मगर इस नये जमाने में,
चला है एक चलन बेढ़ब
जहाँ आतंक ने फैलाये,
बिन पहचान के रिश्ते !!
सभी भयभीत हैं जिनसे,
न मिलती कोई खबर जिनकी
जो हैं आतंकवादी दुश्मनों से,
जान के रिश्ते !!
--प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध"
दिल को दिल से जोड़ते रिश्ते मिलते हाथ
अपनी मंजिल पा सकें कदम अगर हों साथ
'सलिल' समूची ज़िन्दगी रिश्तों की जागीर
रिश्तों से ही आदमी बने गरीब-अमीर
रिश्ते-नाते घोलते प्रति पल मधुर मिठास
दाना रिश्ते पालते नादां करें खलास
रिश्ते ही इंसान की लिखते हैं तकदीर
रिश्ते बिन नाकाम ही होती हर तदबीर
बिगड़ी बात बने नहीं बिन रिश्ते लो मान
रिश्ते हैं तो लुटा दो एक दूजे पर जान
रिश्ते हैं रसनिधि अमर रिश्ते हैं रसखान
रिश्ते ही रसलीन हो हो जाते भगवान
रिश्ते ही करते अता आन- बान औ' शान
रिश्ते हित शैतान भी बन जाता इंसान
रिश्ते होली दिवाली रिश्ते क्रिसमस ईद
रिश्ते-नाते निभाना सचमुच 'सलिल' मुफीद
रिश्ते मधुर न रख सके लडे हिंद औ' पाक
रिश्तों में बिखराव गर तो रिश्ते नापाक
धर्म दीन मजहब नहीं आदम की पहचान
जो रिश्तों को निभाता सलिल वही गुणवान
नेह नर्मदा में नहा नित्य नवल जज-धार
रिश्ते सच्चे पलकर सलिल लुटा दे प्यार
--आचार्य संजीव 'सलिल'
तुम पर कैसा मान चढ़ा
इतरा कर इत-उत डोल रहे
जग में सेठ बने फ़िरते
बोल बड़े तुम बोल रहे
अरे बावरे, भूल गये तुम
नौ मास कहाँ पर थे,
अपनी तो तुम्हें सुध भी न थी
तुम किस से सहारे जी रहे थे.
तुम अंगुली पकड़ के चलते थे,
तुम गोदी-गोई झूमे थे
जो भी मुँह से माँग लिया
पल भर में हाज़िर कार देते थे.
तेरे खाने पर ही खाती वो,
तेरे सोने पर ही सोती वो,
जो तेरा तनिक जी घबराता
देवों के आगे रोती वो.
माँ के ऋण को क्या भर पायेगा
इस जग में कोई बेटा
सात जनम भी कम सेवा को
ऋण भरी, हलका बेटा.
आशीष मात का जिस सर है
वो आगे बढ़ता जायेगा
हे मात तुम्हें यूँ स्मरण कर
’शशि’ आजीवन रोता जायेगा
’शशि’ आजीवन रोता जायेगा
--सधिकांत शर्मा
रिश्ते कहते है किसको
अब तक समझ न पाया
रिश्तो के रेलमपेल में
बस स्वार्थ ही स्वार्थ नजर आया ।
जग ने पाया क्या
बना के रिश्तों की लड़ियाँ
मिल न सका कभी आपस में
संबंधो की बेमेल कड़ियाँ ।
तू मेरा है मै तेरा हूँ
बस इतना कहना ही क्या रिश्ता है ?
संग न चल पाता दो पग भी
हाय ! ये कैसा रिश्ता-नाता है ।
क्या करूँ कवायद इन रिश्तों की
रूप इनके है बड़े निराले
देते तोहफे कामयाबी के कहीं
तो बरसाते कहीं हार के पाले ।
रिश्तो की गहराई का अब तक
थाह ना ले पाया है कोई
अपनापन का मुखौटा पहने
शोषण करता है हर कोई ।
साधू हो या दुर्जन कोई
मतलब के रिश्ते निभाते है
दिल की चंद खुशी के खातिर
रिश्तो का बलिदान चढाते है ।
रिश्तो के चक्रव्यूह में फँसकर ही
आज "चमन "का ये हाल है
अपना-अपना कहके सबने लुटा
अपनी हस्ती ही यारों बदहाल है ।।
--बसंत लाल "चमन"
हर रिश्ते के पास हमने अलग कहानी देखी
अपने दुख-सुख देखे, अपनी हंसी-खुशी देखी
प्रेम के हिस्से में आया महान दुख
और छोटी खुशियाँ देखी
खून के रिश्ते में कम होता खून देखा
एक रिश्ता जो हमने बडे मनोयोग से बनाया
उनमें नमक कुछ ज्यादा था
जब वो रिश्ता टूटा
तो दिल में ही नहीं, आँखों तक में
नमक उतर आया
माना हमारे हाथ बंधे हुए हैं
पर आँखें तो पूरी तरह से खुली हुई हैं
हम खुली आँखों से
एक के बाद एक सपनें के टुटनें को देखते हुए
अपनी बेबसी को कोसते रहे
जिन रिश्तों में खाली जगह थी
उन खाली जगहों में झाडियाँ बेशुमार उग आयी थी
उन खरपतवारों की मात्रा हर बारिश में बढती ही गयी
और हमारी उनकी नजदीक आने की सम्भावना
लगभग खत्म होती चली गई
हर रिश्ता अपना दाना पानी
ले कर आता है और तमाम उमर
उसी पर गुजर बसर करता है
हर रिश्ते की अलग परिभाषा
तैयार की हमने और उसी पर चलते रहे
तमाम रूकावटों के बावजूद।
--विपिन चौधरी
दिल में छिपी जो बात ,वो ज़ाहिर न कीजिये |
राज बे-परदा न हो , रुसबा न कीजिये ||
रिश्ता हो अपना कोई भी, हमराज ही रहो
रिश्तों की बात है यही , न बदनाम कीजिये ||
चाहे रहो रकीब पर, रिश्ता तो है सही ,
इस दुश्मनी को भी "रिश्ता" नाम दीजिये ||
पाकीज़गी खुसूसियत रिश्तों में ये रहे ,
ता-उम्र ज़िंदगी में, निभाया ही कीजिये ||
रूह से बनते हैं ये , सांस में मौजूद हैं ,
कहना ज़रूरी हो तो , रिश्ता उसे कह दीजिये ||
हैं मुख्तलिफ से नाम मगर काम दो ही हैं ,
रिश्तों में या नफरत करो , या प्यार कीजिये ||
मिट जाए ये नफरत सदा सारे जहान से ,
हो प्यार बस चारों तरफ़ बस प्यार कीजिये ||
*रकीब = दुश्मन , पाकीज़गी =पवित्रता, खुसूसियत = विशेषता , मुख्तलिफ = विभिन्न
--प्रदीप मानोरिया
तिनके तिनके से मिल कर हुए एक हैं !
चन्द कागज़ के टुकडों पे हम बंट गए !!
सारी धरती को परिवार कहते रहे ,
फिर भी नक्शों ने बांधे हमारे कदम !
रोक हम तो परिंदों को पाए नहीं ..
तेरे मेरे जहाजों पर हम डट गए !!
चन्द कागज़ के टुकडों पर हम बंट गए !
कुछ ना सूझा, बे-मतलब का मजहब लिखा
जब था काँटा सुमन, सांप चन्दन का संग !
बेर केले के संग का हवाला दिया
बे बचे रह गए और हम फट गए !!
चन्द कागज़ के टुकडों पे हम बंट गए !!
चन्द कागज़ के टुकडों पे हम बंट गए !!
--अनुराग पाठक
बिखर रहे हैं देखो रिश्ते, परिवार पुरानी चीज हुई।
नर नारी का सौदा करता, नारी नर से दूर हुई।।
बचपन बच्चों का छिनता है।
भ्रूण हत्या कैसी ममता है?
बच्चा घर पर रहे अकेला,
नर-नारी की ये समता है?
बाप तो नौकरी करता ही था, मां भी अब मजदूर हुई।
नर नारी का सौदा करता, नारी नर से दूर हुई।।
कुटुंब पुरानी बात हुई है।
रिश्ते देखो, छुई-मुई हैं।
वृद्धाश्रम में बुजुर्ग है पहुंचे,
पति-पत्नी में तलाक हुई है।
नर-नारी अब नहीं है पूरक, भावुकता काफूर हुई।
नर नारी का सौदा करता, नारी नर से दूर हुई।।
नर नारी, वश रहे जरूरत।
कहीं रहो, दुनिया¡ खुबसूरत।
शादी की तुम बात करो मत,
फिगर सजाओ, बन जाओ मूरत।
मुझको पति नहीं जरूरी, नारी तन कर खड़ी हुई।
नर नारी का सौदा करता, नारी नर से दूर हुई।।
वैयक्तिक स्वतंत्रता ने है तोड़ा।
बिखर रहा है, प्राकृतिक जोड़ा।
शादी अब बंधन लगती है,
बिन शादी ही, बिस्तर तोड़ा।
समलैंगिक सम्बन्ध बढ़ रहे, एड्स आज सामान्य हुई।
नर नारी का सौदा करता, नारी नर से दूर हुई।।
बहन-भाई का रिश्ता टूटा।
गुरू-शिष्या का भांडा फूटा।
वासना आज है प्रेम कहाती,
जमीन किसी की,गाढ़ो खूंटा।
रिश्ते आज मखोल बन रहे, मानवता बेजार हुई।
नर नारी का सौदा करता, नारी नर से दूर हुई।।
--सन्तोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
दोतरफा सरहद पर क्या धूम मची है गश्तों की
कहानियाँ यहाँ हमने खूब रची है रिश्तों की
खोजती रही हो तुम आशियाने दुनिया भर के
इसी शहरके पिछवाडे, वहीं गली है रिश्तों की
जाहिर ये है के अब तो, हम दोस्त नहीं रह पाएंगे
बात यहाँ है अपनों की, बात चली है रिश्तों की
रोक नहीं अब पाऊंगा मैं ये बहाव इन अश्कों का
सदियों से इन नदियों में ही नांव चली है रिश्तों की
ले-देके मिलकियत बस इतनी जुटा पाया हूं मैं
चंद ख्वाब सजे हैं आँखोंमें और नमी है रिश्तों की
अमीर बडा कहलाता, भरे पडे खजाने पुश्तों से
मेहेरबाँ जिंदगी भी है, सिर्फ कमी है रिश्तों की
क्या बटवारों की किश्तोंसे, बच निकलेंगी ये इमारतें
हाय! फिसलते रेत पे हमने नीव रखी है रिश्तों की
जरा जमीं पे आकर देखो, क्या रखा है जन्नत में
इन्सानों की बस्ती में बारात सजी है रिश्तोंकी !
--सतीश वाघमरे
वो बोले तुमसे मेरे सारे रिश्ते नाते हैं,
मुझे वो शोला भी शबनम नज़र आते हैं,
दो तरफा ज़ुबां का चलन जान गये हम,
मैं दूरी रखना चाहता हूँ वो क़रीब आते हैं,
दौलत-ओ-हुस्न खींच लाता है सबको,
वरना कौन किसी को अपना बनाते हैं,
पलकों पे बिठाने का इरादा था मेरा,
वो हर बार ही हमें दगा दे जाते हैं,
रिश्ते क़ायम रखनें की नसीहत देते हैं,
रिश्ते जोड़नेवाले, तोड़ने की जहमत उठाते हैं
ख़ून के रिश्ते पे यक़ीं था भरोसा था "रत्ती"
दौलत की ख़ातिर बाप-बेटे उलझ जाते हैं
--सुरिन्दर रत्ती
क्यों नहीं सुनाई पडती हैं मेरी अजन्मी धडकनें तुमको माँ,
क्यों नही महसूस होती मेरी अजन्मी अठखेलियाँ तुमको माँ.
क्या सोच पाती हो कि मुझे तुम से भी हैं कुछ आशाएँ माँ,
तुम्हारी गोद में प्यार पाने की उत्सुकता है मुझमें भी माँ.
और पिता की बाहों मे झूलने की चाह मुझको है अभी माँ,
तुम्हारे आंगन में पाजेब की झंकार मुझे है गुंजानी अभी माँ.
और भैय्या की राखी अभी से मेरे नन्हे दिल में रखी है माँ,
उसकी सूनी कलाई अभी से मुझको दिखाई पडती है माँ.
क्यों सोचती हो मेरी मौत अभी से मेरी प्यारी सी माँ,
थोडा तो झाँक लेने दो मुझे अपने सुनहरे आंगन में माँ.
क्यों तोड डालना चाह्ती हो तुम इस पावन रिश्ते को मेरी माँ,
क्यों मेरी अबोध निशब्द चीख तुम तक पहूँचती नही है मेरी माँ
--अरविन्द चौहान
रिश्ते खून के
होते जा रहे हैं धूमिल!
छोटे-छोटे शुद्र स्वार्थ की
पत्तलें-दोने चाटने की ललक
जीवन में जब से हो गई है शामिल!
हुजूर यह एक अरब से भी अधिक
आबादी का देश है, जहाँ
सभी की अपनी-अपनी परेशानियाँ हैं;
निहायत घटियापन का परिवेश है.
कभी-कभी तो लगता है,
संबंध अब स्याही नहीं रहे,
पेंसिल की लिखावट हो गए हैं.
जिन्हें जब चाहे रबड़ से मिटा सकते हैं.
नाते-रिश्ते अपने जीवन से
हटा सकते हैं, और सिमट सकते हैं
अपने खोल में. इसके लिए घोल लेते हैं,
खूबसूरती से कडुवापन
अपने दो मीठे बनावटी बोल में.
पर जानता हूँ मैं और
जानते हैं आप भी कि
यह एक ख़तरनाक साजिश है,
जो खून के रिश्तों के बीच
रची जा रही है और
साजिश रचने वाले गैर नहीं,
आपना ही खून है.
तो फिर यह कैसा जुनून है?
इसे आप क्या कहेंगे?
निरक्षर हैं इसलिए?
ज्यादा पढे-लिखे हैं इसलिए?
जी नहीं, यह खून की निरर्थक गरमी है.
इसलिए रिश्तों के नाम पर इतनी बेशर्मी है.
जब तक पिता, बेटे में खोजेगा दोष,
धारावाहिक सीरियल देख-देख,
सास-बहू निकालेंगी आपसी खोट.
छूटेंगे एक-दूजे पर व्यंग्य के तीर.
तब तक जारी रहेगी
रिश्तों के धूमिल होने की पीर.
यह हमारे भीतर के
अहँकार का मसला है.
इसीलिए जारी यह सिलसिला है.
---सुधीर सक्सेना 'सुधि'
यूँ तो मानव का जब से
हुआ अस्तित्व
और शुरू हुआ विकास
तभी से
शुरू हुआ, उसके चाहतो का संसार
हर चीज उसने बनाई
ताकि
थोड़ा मिल सके आराम
हर वस्तु से, हर जिन्दगी से
क्षणिक ही सही
पर उसने चाहा
थोड़ा सा प्यार
जब होश संभाली
और बुद्धि विकसित हुई
तब पता चला
इससे पहले रह चुकी हूं
बंद दीवारों के बीच
किसी तरुणी के गर्भ-गृह में
उस वक़्त, जब मस्तिष्क न था
न थी कोई स्मृति
दुनिया से न लगाव था न विरक्ति
उसने मुझे पाला
उसी ने दिया मुझे आकार
समर्पित है उसको ये साभार
जिसने दिया सबसे पहले
थोड़ा सा प्यार
सोचती हूं कभी-कभी
सबसे पहले, शुरू हुआ होगा
उर में सांसो का आना-जाना
जिससे हुआ पहला मिलन
वो रहा होगा पवन
खुला जब होगा
पलकों का शामियाना
वो अवस्था होगी अवचेतन
सामने होगी सृष्टि
और अचंभित रही होगी दृष्टि
जिसने जिन्दगी का आगे किया प्रसार
उसकी भी निवेदित हैं
थोड़ा सा प्यार
जाने किन-किन हाथों के
स्पर्श में प्यार मिला
कैसे-कैसे शैशव ढला
किस-किस ने दुआए की
कैसे मिली जीने की शक्ति
किसकी लगी मुझे भक्ति
ये तो मालूम नहीं
पर, जिस-जिस स्पर्श ने
मेरे जीने के बढ़ाये आसार
उन्हें कर रही याद है
थोड़ा सा प्यार
याद तो नहीं
पर शायद
सुनी-सुनायी बातों का असर हें
गोद ही होता था बिस्तर
और लोरियों में बीतती रातें
कभी सोते तो कभी जागते
अद्भुत होता है वो रिश्ता
शिशु और ममता का
लोरी और निद्रा का
कि अभी भी
कभी यूँ लगता हें
जैसे जेहन में गूंज रही है झंकार
वो छिपा हुआ
थोड़ा सा प्यार
--रश्मि सिंह
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
43 कविताप्रेमियों का कहना है :
रिश्तो पर इतनी रचनाये पढ़ कर अच्छा लगा.जिसमे शैलेश जम्लोकी जी,सीमा स्मृति तथा रस्मी सिंह की कविता विशेष अच्छी लगी.
अनुराग शर्मा जी
उनके सवालों जवाबात से अब आगे चला आया हूँ
कमजोरी-ऐ-जज़्बात से अब आगे चला आया हूँ
बहुत सुन्दर जी
शैलेष जमलोकी
बेनाम सा रिश्ता यूँ पनपा है
फूल से भंवरा ज्यूँ लिपटा है
पलके आंखे, दिया और बाती
ऐसा ये अपना रिश्ता है.!!!!
वाह
सुरेन्दर जीकभी अंधे,गूंगे,बेसहारा और
हो जाते कभी क्यूँ बहरे रिश्ते ?
सही प्रश्न है।
सीमा स्मृति जी
दो शब्द रिश्तो पर
इंसान थे हम,
देवता बना पूजते रहे 'वो
बेखबर इस बात से
कि पत्थरों की भी उम्र होती है
टूट के बिख्ार जाने पर
पूजने वाले पहचानते भी नहीं.
अति सुन्दर
चन्दकान्त जी
शीशे की दीवारों में अपना माथा लटकाए
हम टहलते हैं सिर्फ अपने पुरवे की ओर
अजीब सी खलल मथ डालती है
और उसकी तपिश में हम सोचते हैं-
काश! कोई अपना भी होता !
बढिया लिखा है।
कमलप्रीत जी
दिन हवाएं हो गए
और बंधनों के रास्ते
जज्बात की आंधी कहीं
मोम सी पिघलती है
देख कर पहचान पाएं
बहुत खूब
सविता दत्ता जी
कुछ रिश्ते पैसों से बनते हैं
कुछ प्रेम प्रतीक भी होते हैं
कुछ क्षण भर के,कुछ युग-युग के
रिश्तों पर जीवन टिकता है
रिश्तों से जीवन बनता है
कितना सच लिखा है।
मेनका जी
किसी से दर्द का रिश्ता होता है,
किसी से प्यार का रिश्ता होता है,
फर्क क्या है, दोनों में
क्या है, अन्तर
'रिश्ता' तो होता है|
सुन्दर लिखा है।
महेश जी
भूखे-प्यासे छोड़ दिया
नहीं मारा पिता तो उसने
जहर देकर मार दिया
बुढ़ापे का सहारा आज उसी का कातिल बना
था इन्सान पर आज वह हैवान बना
पता नहीं चलता ये रिश्ता चीज होती है क्या
अरे कोई तो बताए ये रिश्ता चीज होती क्या
ये रिश्ता चीज होती है क्या
कड़वा सच बयान किया है
विवेक रंजन जी
बड़े अनमोल हैं रिश्ते
जो
टूटे तो बिखर जाते हैं,
फूलों के परागों से
पँखुरी पँखुरी सहेजे गये,
सतत व्यवहार हैं रिश्ते
अति सुन्दर।
सारिका सक्सेना
बंध गए हैं एक डोर मैं मन तेरे मेरे
नेह से भरा ये बंधन जैसे प्रेम पगा हो
अदभुत सा एक रिश्ता है बीच में हमारे
जो न पहले कहीं देखा हो न ही सुना हो
बहुत सुन्दर
प्रो सी वी चला है एक चलन बेढ़ब
जहाँ आतंक ने फैलाये,
बिन पहचान के रिश्ते !!
सभी भयभीत हैं जिनसे,
न मिलती कोई खबर जिनकी
जो हैं आतंकवादी दुश्मनों से,
जान के रिश्ते !!
अति सुन्दर और मर्म को छुने वाला ।
आचार्य सजीव
धर्म दीन मजहब नहीं आदम की पहचान
जो रिश्तों को निभाता सलिल वही गुणवान
नेह नर्मदा में नहा नित्य नवल जज-धार
रिश्ते सच्चे पलकर सलिल लुटा दे प्यार
अच्छा लिखा है।
शशिकान्त जी
आशीष मात का जिस सर है
वो आगे बढ़ता जायेगा
हे मात तुम्हें यूँ स्मरण कर
’शशि’ आजीवन रोता जायेगा
’शशि’ आजीवन रोता जायेगा
सही लिखा है।
बसंत लाल जी
रिश्तो की गहराई का अब तक
थाह ना ले पाया है कोई
अपनापन का मुखौटा पहने
शोषण करता है हर कोई ।
साधू हो या दुर्जन कोई
एक कदम सच है।
विपिन चौधरी जी
हर रिश्ता अपना दाना पानी
ले कर आता है और तमाम उमर
उसी पर गुजर बसर करता है
हर रिश्ते की अलग परिभाषा
तैयार की हमने और उसी पर चलते रहे
तमाम रूकावटों के बावजूद।
प्रदीप मनौरिया जी
रिश्तों में या नफरत करो , या प्यार कीजिये ||
मिट जाए ये नफरत सदा सारे जहान से ,
हो प्यार बस चारों तरफ़ बस प्यार कीजिये ||
आपकी रचना सबसे अच्छी लगी। बधाई
अनुराग पाठक जी
तिनके तिनके से मिल कर हुए एक हैं !
चन्द कागज़ के टुकडों पे हम बंट गए !!
सही और सुन्दर लिखा है।
संतोष गौड़ जी
बहन-भाई का रिश्ता टूटा।
गुरू-शिष्या का भांडा फूटा।
वासना आज है प्रेम कहाती,
जमीन किसी की,गाढ़ो खूंटा।
रिश्ते आज मखोल बन रहे, मानवता बेजार हुई।
नर नारी का सौदा करता, नारी नर से दूर हुई।।
वाह क्या बात कही है। बहुत अच्छे।
संतोष वाघमरे जी
दोतरफा सरहद पर क्या धूम मची है गश्तों की
कहानियाँ यहाँ हमने खूब रची है रिश्तों की
खोजती रही हो तुम आशियाने दुनिया भर के
इसी शहरके पिछवाडे, वहीं गली है रिश्तों की
बहुत अच्छा लिखा है
सुरिन्दर रत्ती जी
रिश्ते क़ायम रखनें की नसीहत देते हैं,
रिश्ते जोड़नेवाले, तोड़ने की जहमत उठाते हैं
ख़ून के रिश्ते पे यक़ीं था भरोसा था "रत्ती"
दौलत की ख़ातिर बाप-बेटे उलझ जाते हैं
सुन्दर शेर।
अरविन्द चौहान जी
क्यों सोचती हो मेरी मौत अभी से मेरी प्यारी सी माँ,
थोडा तो झाँक लेने दो मुझे अपने सुनहरे आंगन में माँ.
क्यों तोड डालना चाह्ती हो तुम इस पावन रिश्ते को मेरी माँ,
क्यों मेरी अबोध निशब्द चीख तुम तक पहूँचती नही है मेरी माँ
बहुत प्रभावशाली लिखा है।
सुधीर सक्सेना जी
रिश्तों के धूमिल होने की पीर.
यह हमारे भीतर के
अहँकार का मसला है.
इसीलिए जारी यह सिलसिला है.
सही कहा है।
रश्मि सिंह जी
सुनी-सुनायी बातों का असर हें
गोद ही होता था बिस्तर
और लोरियों में बीतती रातें
कभी सोते तो कभी जागते
अद्भुत होता है वो रिश्ता
शिशु और ममता का
लोरी और निद्रा का
कि अभी भी
कभी यूँ लगता हें
जैसे जेहन में गूंज रही है झंकार
वो छिपा हुआ
थोड़ा सा प्यार
अच्छा लिखा है।
रिश्तों के विभिन्न रूपों को २४ कविताओं के माध्यम से देखना एक अनूठा और सुंदर अनुभव है. सभी प्रतिभागियों और हिंद-युग्म को हार्दिक धन्यवाद!
रिश्ते विषय पर अति सुंदर रचनायें आई हैं . बधाई. भाई संजीव सलिल से निवेदन किया था और वे भी हिन्द युग्म के रिश्तों के बंधन में जुड़ गये हैं , स्वागत . आशा है अब उन्हें हि्द युग्म के साथी निरंतर पढ़ सकेंगे .
| अनुराग शर्मा | शैलेश जम्लोकि | सुरेन्दर कुमार 'अभिन्न' | सीमा स्मृति | चन्द्रकान्त सिंह | कमलप्रीत सिंह | सविता दत्ता | मेनका कुमारी | महेश कुमार वर्मा | सारिका सक्सेना "रिकु" | प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध" | आचार्य संजीव 'सलिल' | सधिकांत शर्मा | बसंत लाल "चमन" | विपिन चौधरी | प्रदीप मानोरिया | अनुराग पाठक | सन्तोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी | सतीश वाघमरे | सुरिन्दर रत्ती | अरविन्द चौहान | सुधीर सक्सेना 'सुधि' | रश्मि सिंह |सभी की रचनाये मुझे अच्छी लगीं
मुझे कहीं हि्द युग्म के मित्र बार बार तरह तरह की सलाह देने वाला ही न समझने लगें पर आयोजन की बेहतरी हेतु विचार आते हैं तो स्वयं को रोक ही नही पाता , सो एक सुझाव है कि क्या अगला कोई आयोजन विधा के अनुसार किया जावे ? अर्थात केवल छंद बद्ध कविता पर रचनायें हो या कभी मुक्त छँद पर ही रचनायें आमंत्रित की जावें .....
यद्यपि इस प्रयोग से रचनाओ की संख्या कम होने का डर है , पर सभी मित्र अपने परिचय क्षेत्र में व्यापक प्रचार कर इससे निपट सकते हैँ ....
सभी पाठको के अभिमत की प्रत्याशा में
विवेक
रिश्ते विषय पर अच्छी कवितायें पढ़ने को मिली।
सभी ने अलग अलग रिश्ते चुने...
विवेक रंजन जी से सहमत हूँ.. इससे जो नये हैं उन्हें कुछ सीखने को मिल जायेगा.. अपनी बात करूँ तो मुझे अलग अलग विधाऒं की बिल्कुल भी जानकारी नहीं है... कोशिश करेंगे तो सीखेंगे..
जिस विधा में काव्यपल्लवन हो उस के बारे में संक्षेप में जानकारी भी मिल जाये तो बढ़िया हो जाये... :-)
रिश्तों के निगेहबान है रिश्ते
रिश्तों पे होते पहरे रिश्ते
suresh ji bahut hi badhiya
sunder ati sunder sabhi rachnaye ek se badh ke ek
saader
rachana
rishte vishay par kavitaayein achhi lagi.sabhi ko badhayee.
रिश्तों की बात चली
बात यहाँ तक पंहुची
कि दशों दिशाओं से रिश्तों की नदियाँ बहकर
हिन्द-युग्म को
महासागर का रूप प्रदान कर गयीं।
इस अनुभूती को किस रिश्ते का नाम दूँ ?
कवि-मित्र!
सच कहता हूँ तो उन्हें अच्छा नही लगता,
झूठ कहता हूँ तो मेरे दिल को चुभता है........
इस लिए सच कहना चाहता हूँ
२४ रचनाये पढने को मिली मगर कुछ ने ही प्रभावित किया बाकी रचनाये मुझे तो औसत ही लगी
मै यह कदापि नही कहना चाहता
की किसी ने खराब लिखा या
व्यक्ति विशेष की रचना मुझे पसंद नही आई या
मै इससे अच्छा लिख सकता हूँ
मगर मै ये जरूर कहना चाहता हूँ की कुछ गुंजाइश रह गई पढ़ कर लगा कुछ कसर रह गई
ग़ालिब का शेर बिल्कुल सटीक बैठ रहा है
हजारों ख्वाहिशे ऐसी
की हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान
लेकिन फिर भी कम निकले .........
यह बात मै पिछले काव्य पल्लवन से तुलना में भी कह सकता हूँ
पिछले काव्य पल्लवन में एक से एक रचनाएँ पढने को मिली है .................
((((((((((((मुझे कहीं हि्द युग्म के मित्र बार बार तरह तरह की सलाह देने वाला ही न समझने लगें पर आयोजन की बेहतरी हेतु विचार आते हैं तो स्वयं को रोक ही नही पाता , सो एक सुझाव है कि क्या अगला कोई आयोजन विधा के अनुसार किया जावे ? अर्थात केवल छंद बद्ध कविता पर रचनायें हो या कभी मुक्त छँद पर ही रचनायें आमंत्रित की जावें .....
यद्यपि इस प्रयोग से रचनाओ की संख्या कम होने का डर है , पर सभी मित्र अपने परिचय क्षेत्र में व्यापक प्रचार कर इससे निपट सकते हैँ ....)))))))))))))
विवेक
विवेक जी मै भी आपसे पूर्ण सहमत हूँ ऐसा होना चाहिए और जल्दी होना चाहिए ...
आपका वीनस केसरी
एक विषय पर चयनित ७-१० कविता ही प्रकाशित करें .पर्काशित सभी कविताओं के आगे लेखक कम से कम यूनिकवि -लेखक का नाम तो देना चाहिये rshmi
वैसे तो रिश्ते शीर्षक की सारी ही कविताओं में भाव की मिश्री घुली हुई है,फिर भी विशेषरूप से विवेकरंजन श्रीवास्तव और आचार्य सलिल का आभारी हूं जिनके कवित्व ने कविता और रिश्ता दोनों की मर्यादा का सफल निर्वहन किया है।
रिश्तों के छांव तले
लम्बे समय तक बैठे रहने को जी चाहता है
इतनी ग़मजदा है दुनिया कि इससे परे
भावों के बंधन में बंधने को जी चाहता है
हिन्दयुग्म का आभारी हूं कि उन्होंने मुझे स्थान दिया,और अपने कुनबे में बतौर साथी सहर्ष स्वीकारा ।
अनुराग शर्मा की सुंदर पंक्तियाँ हैं
बीच मंझधार खड़ा हूँ है भंवर आहों का
पुल हरेक रिश्ते का मैं आज जला आया हूँ।
शैलेश जम्लोकी जी की यह पंक्तियाँ कबीले-ऐ-तारीफ हैं
बेनाम सा रिश्ता यूँ पनपा है
फूल से भंवरा ज्यूँ लिपटा है
पलके आंखे, दिया और बाती
ऐसा ये अपना रिश्ता है.!!!!
कमलप्रीत जी की यह पंक्तियाँ अच्छी लगी
दिन हवाएं हो गए
और बंधनों के रास्ते
जज्बात की आंधी कहीं
मोम सी पिघलती
सविता जी इन पंक्तियों के लिए बधाई
एक जीवन, अनेक रिश्ते
जीवन से जुड़े सारे रिश्ते
निर्जीव सजीव सभी रिश्ते
रिश्तों का प्रतीक, स्वयं रिश्ते
विवेकरंजन जी आपकी यह शुरुआती पंक्तियाँ ही सरे विषय को स्पष्ट कर देती हैं
मुलायम दूब पर,
शबनमी अहसास हैं रिश्ते
निभें तो सात जन्मों का,
अटल विश्वास हैं रिश्ते
सारिका जी की सुंदर अभिव्यक्ति
नहीं है चाह तुमसे और कुछ भी पाने की
अनजाना अनसुना सा जैसे कोई रिश्ता हों
श्री श्रीवास्तव जी द्वारा रचित अत्यन्त सुगठित भावपूर्ण पंक्तियाँ
कई रंग में रंगे दिखते हैं ,
निश्छल प्राण के रिश्ते
कई हैं खून के रिश्ते,
कई सम्मान के रिश्ते !!
सभी को बधाई
प्रदीप मानोरिया
विपिन जी चौधरी
हर रिश्ते के पास हमने अलग कहानी देखी
अपने दुख-सुख देखे, अपनी हंसी-खुशी देखी
इसके स्थान पर यह पंक्तियाँ होती तो शायद और सुंदर शुरुआत हों सकती थी
हर रिश्ते के पास हमने अलग कहानी देखी
अपने दुख-सुख देखे, बचपन और जवानी देखी
हस्त्क्षेपिक सलाह के लिए क्षमा चाहता हूँ
प्रदीप मनोरिया
प्रथम प्रयास था मेरा काव्यपल्लावन के साथ जुड़ने का श्रेय शैलेश जी की निरंतर मिलती मेल्स को दूंगी ........जिन्हें पहले कभी इतनी गंभीरता से नहीं लिया धन्यवाद आपको शैलेश जी .....एक ही विषय पर इतने लोगों की सोच इतनी भिन्न हो सकती है पढ़ कर बेहद आनंद आया .......अबसे पहले कविया या ग़ज़ल की तकनीकी जानकारी नहीं रखती थी मेरे लिए कविता सिर्फ़ एक मध्यम था अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का .......भाग्यशाली हूँ की अब वो सब सीख पाउंगी जो नहीं जानती थी पहले.......
धन्यवाद शोभा जी,विवेक जी,प्रदीप जी पढने और सराहने का...
इतनी रचनाएं थीं और सभी ने प्रभावित किया .........
हिन्दयुग्म की आभारी हूं कि उन्होंने मुझे स्थान दिया,और अपने कुनबे में सहर्ष स्वीकारा ।
राष्ट्रप्रेमी जी
यथार्थ कहती पंक्तियाँ
बहन-भाई का रिश्ता टूटा।
गुरू-शिष्या का भांडा फूटा।
वासना आज है प्रेम कहाती,
जमीन किसी की,गाढ़ो खूंटा।
रिश्ते आज मखोल बन रहे, मानवता बेजार हुई।
नर नारी का सौदा करता, नारी नर से दूर हुई।।
सतीश बाघमारे जी
बहुत सुंदर पंक्तियाँ
जरा जमीं पे आकर देखो, क्या रखा है जन्नत में
इन्सानों की बस्ती में बारात सजी है रिश्तोंकी !
सुरिंदर रत्ती जी
सच ही कहा है
दो तरफा ज़ुबां का चलन जान गये हम,
मैं दूरी रखना चाहता हूँ वो क़रीब आते हैं,
अरविन्द चौहान जी
आपकी कविता पहकर यह पंक्तियाँ याद आ गयीं
बेटे की चाहत में मां तुम इतना भी भूल गयी
बहनों के शव पर पग रख कर भाई ने पाई धरती है
हक़ जन्म का मेरा मत छीनो मुझमें भी आस चहकती है
रश्मि जी
बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं
गोद ही होता था बिस्तर
और लोरियों में बीतती रातें
कभी सोते तो कभी जागते
अद्भुत होता है वो रिश्ता
शिशु और ममता का
लोरी और निद्रा का
उम्मीद है आप सभी को मेरी ग़ज़ल /कविता पसंद आयी होगी
प्रदीप मानोरिया
बीच मंझधार खड़ा हूँ है भंवर आहों का
पुल हरेक रिश्ते का मैं आज जला आया हूँ।
अनुराग जी का ये शेर बहुत अच्छा लगा
शैलेश जी की पुरी कविता अच्छी लगी
साथ ही अनुराग शर्मा,शैलेश जम्लोकि,सुरेन्दर कुमार 'अभिन्न',सीमा स्मृति,चन्द्रकान्त सिंह, कमलप्रीत सिंह,सविता दत्ता,मेनका कुमारी,महेश कुमार वर्मा,विवेक रंजन श्रीवास्तव जी की कविताएं भी पसंद आई
बाकी सब की कविताएं भी अच्छी लगी
पर सबसे जयादा प्रभावित किया संतोष जी की कविता ने काफ़ी अच्छी रचना
rishte par likhi sari kavitayen, bahut achi lagin, sab ke alag jazbaat dikhe. alag vichar padhne ko mile
सुधीर जी
संबंध अब स्याही नहीं रहे, सच कहा आपने सुधीर जी, अब कोई रामलाल अपने हाथ पर 'रामलाल पिता दशरथलाल' नही गुदवाता. आपने इस विडम्बना को ठीक पकड़ा हैं कि यह 'हमारे भीतर के
अहँकार का मसला है.इसीलिए जारी यह सिलसिला है.' रिश्तो कि सोंधी सुगंध कैसे सडांध में बदल रही हैं, यह कविता इस सच को बखूबी बयां करती हैं.
HC जी ,
आशा है कि आपने अब तक आपके द्वारा प्रस्तावित सुंदर विषय रिश्ते पर आयोजित यह बढ़िया अंक देख लिया होगा , कृपया अब तो अपनी पहचान सार्वजनिक कर दीजीये !
पिताजी प्रो.सीबी श्रीवास्तव जी को मैं ही कम्प्यूटर पर ये वर्चुअल पेजेज दिखलाता हूँ , उन्होंने भी मुक्त कंठ से सारे आयोजन , रचनाओको सराहा है व प्रतिभागियों तथा व्यवस्थापको तक उनका साधुवाद प्रेषित करने कहा है .
अच्छी कविताओं के लिए सभी को बधाई |
सर्व श्री सुरेन्द्र कुमार अभिन्न, शैलेश जम्लोकी, संतोष कुमार गौड़ राष्ट्रप्रेमी की रचनाये विशेष अच्छी लगी
.
विनय के जोशी
Dear Rashmi Ji,
First of all i want to offer you my thank to giving us people such lovely, intense, deep and real lines.
Your lines are so practicle and these are common thoughts, which happenes and comes in every body's mind but you have got the skill to organise and present these thoughts into the words and hence give us all such lovely presentation of our thoughts.
I wish you all the luck for your life, May god bless you.
संतोष गौड़ जी
बहुत सुन्दर
शैलेष जमलोकी जी
बेनाम सा रिश्ता यूँ पनपा है
फूल से भंवरा ज्यूँ लिपटा है
पलके आंखे, दिया और बाती
ऐसा ये अपना रिश्ता है.!!!!
वाह
shri anurag ji
i read comments about sanskrit ved mantras, need to reform in hindu temples, and also your poem collection "patjharh sawan vasant bahar".
your collection of rishte and 24 poems is also worth reading.
your poem ahsaas is a really a good poem. it needs appreciation especially.
with regards,
-Om Sapra,
N-22, Dr. Mukherji Nagr,
Delhi-110009
9818180932
rishte hai to hai zindagi...........varna kya khak hai zindagi.............rishton se hai pyaari zindagi .......varna nirash hai zindagi....
rishte hai to hai zindagi
varna kya khak hai zindagi
rishton se hai pyaari zindagi
varna nirash hai zindagi
बहुत सुंदर
कुछ अनजानी सी वो तो एक पहेली थी।
जाने किस नगर से आई वो अकेली थी।
सुंदर मन की वो रंग में सलोनी सावली थी।
मीठी मीठी सी कोयल जैसी उसकी बोली थी।
चहक चहक कर आंगन में ही खेली थी।
मेरे मन को भाए उसकी सूरत भोली थी।
मन में समाऊ कैसे उसको वो नार नवेली थी।
कुछ तो बात अलग थी उसमें वो तो मेरी सहेली थी।
बहुत ही सुन्दर कविताऐं।
बहुत ही सुन्दर कविताऐं।
रिश्तो का नायाब खजाना
रिश्तो का नायाब खजाना
nike air force 1 ray ban sunglasses michael kors handbags outlet adidas nmd r1 air force 1 shoes nike store cheap jordans michael kors handbags cheap nike shoes michael kors handbags kobe 9 nike huarache cheap oakley sunglasses pandora outlet birkenstock sandals michael kors uk yeezy boost 350 black michael kors outlet cheap oakley sunglasses cheap oakley sunglasses converse trainers michael kors handbags michael kors handbags wholesale michael kors handbags michael kors handbags cheap jordans chaussure louboutin ed hardy outlet michael kors outlet store cheap basketball shoes ralph lauren cheap michael kors handbags michael kors handbags nike huarache polo ralph lauren outlet nike store uk michael kors outlet online toms shoes michael kors handbags cheap nike shoes sale salomon boots michael kors outlet nike roshe michael kors outlet michael kors handbags wholesale michael kors handbags clearance jordan shoes moncler outlet michael kors handbags sale michael kors handbags adidas nmd michael kors handbags wholesale oakley sunglasses nike trainers michael kors handbags outlet michael kors handbags nike trainers ed hardy uk nike tn michael kors handbags fitflops sale clearance michael kors outlet michael kors handbags outlet replica watches ralph lauren outlet online air jordan uk converse shoes oakley sunglasses nike air huarache michael kors handbags pandora jewelry birkenstocks michael kors handbags michael kors nike huarache trainers nike blazer michael kors outlet nike trainers uk cheap ray ban sunglasses supra shoes sale christian louboutin outlet nike air huarache supra shoes fitflops shoes cheap ray bans michael kors handbags sale ed hardy fitflops sale clearance nike huarache nike trainers uk christian louboutin shoes jordan shoes michael kors handbags wholesale cheap michael kors handbags michael kors handbags chaussure louboutin pas new balance outlet
red valentino
valentino shoes
jimmy choo
jimmy choo shoes
skechers shoes
skechers outlet
ghd flat iron
ghd hair straighteners
omega watches
रिश्तों पर कविताओं के अनूठे संग्रह को पढ़ने का अवसर मिला। प्रत्येक कविता रिश्तों के एक नए पहलू से हमारा परिचय कराती है। इस प्रकार के शीर्षक आधारित विषयों पर काव्य संग्रह निकलते रहने चाहिए।
Bahut sunder. Rishto ki ye kavitaye.
Bahut sunder. Rishto ki ye kavitaye.
Halat kaise bhi ho wakt ke sath tal jata h.
Par wakt me rishton ka rang badal jata h.!!
Right
Nice comment
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)