अट्टालिकाओं
निर्मित कुआँ
खासंते वाहन
उगलते धुआं
सुलगती चिमनियाँ
जहरीले आगार
जबरन तन नौचते
विद्युत भुजंग तार
ज्ञापन विज्ञापन
छाती में कीले
दिल खुरचे
नाम छीले
छिकती खिड़कियाँ
बेसुध वातायन
उतावले राहगीर
घृणित सिंचन
फ़िर भी
जिन्दा है
सब कुछ सहते
सभ्यों की
असभ्यता
उर में धरते
क्यूँ कि,
पेड़ आत्महत्या
नही करते |
.
विनय के जोशी
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
क्यूँ कि,
पेड़ आत्महत्या
नही करते |
. वाह! टीस उठ गई.बहुत ही मारक प्रस्तुति
आलोक सिंह "साहिल"
अद्वितीय कविता.अन्तिम पंक्तिया बहुत ही सुंदर है.जोशी जी इतनी सुंदर कविता के लिए बहुत-बहुत बधाई कम शब्दों में बहुत बढ़िया प्रस्तुतीकरण
क्यूँ कि,
पेड़ आत्महत्या
नही करते |..
जबर्द्स्त अंत... बहुत अच्छा...
बहुत ही खूब विनय जी कुछ पंक्तियों में आपने कितनी बड़ी बात कह दी
सिर्फ़ पेड़ नही प्रकृति में मौजूद हर वजूद जिंदा है क्युकी ये आत्महत्या नही करते
बहुत खूब !!!!!
ये बात सही है
जहाँ न पहुंचे रवि , शशि
वहां पहुचे कवि .
एक मूक , बधिर की आवाज आपने सुनी और एक एक शब्द को बड़े तहे दिल से कविता के माला में गुंथा ...
आपको ढेर सारा साधुवाद
बहुत ही बेहतरीन कविता
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