जाने कहाँ क्या घट जाये...
जाने कब बम फट जाये....
ले साइकल स्कूल ना जाये;
मुन्ना इतना घवराये......
भूखा रहने को राजी अब;
टिफिन उठाते कतराये....
जाने कहाँ क्या घट जाये....
जाने कब बम फट जाये.....
प्रभु के सन्मुख शांति प्रार्थना;
अजान; जान भी ले लेगी,
मन्दिर के घंटों की प्रतिध्वनि;
चीत्कार बन खेलेगी,
हिमगिरि से लेकर जलधिपार;
किस ठोर कहाँ कोई शहर मिले,
जहाँ न खूनी होली हो और
जहाँ न बर्बर कहर मिले,
जहाँ न बम की दहल देहरी दहलाये...
जाने कहाँ क्या घट जाये.....
जाने कब बम फट जाये.....
ज्वर से जलता लाल गोद में;
लेकर बैठी कब से माँ,
बिलख रही पर ! बख्सो बख्सो;
अस्पताल नहीं ले जाना,
बिखर गया जो अस्पताल में
माँटी कहाँ समेटुंगी,
कम से कम अब इतना तो है
आँचल में भर बैठुँगी,
रह रह आंसू टपकाये.........
जाने कहाँ क्या घट जाये...
जाने कब बम फट जाये...
बंगलोर; बमलोर हुआ आह !
शहर गुलाबी लाल हुआ;
बममई हो गयी अब बम्बई;
सूरत, बदसूरत ! कमाल हुआ,
कम्पित कलकत्ता, देहली दहली;
किस ओर नही लो बबाल हुआ,
चैन से जीना ! मसखरी हा हा...
चैन से मरना तक; बेहाल हुआ,
किस लिये योनि मानव पाये....
जाने कहाँ क्या घट जाये .....
जाने कब बम फट जाये .....
06-08-2008
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
9 कविताप्रेमियों का कहना है :
achhi kavita hai.bahut hi saral dhang se aj ki jvalant samasyao ka varadan kiya gaya hai.
सही लिखा है न जाने कब कहाँ क्या हो जाए ..कोई भरोसा नही रहा अब .बाजार जाओ तो दहशत है ..कहीं भी लोग कम और पुलिस जायदा नज़र आ रही है आज कल ...आपने अच्छे ढंग से इस बात को लफ्जों में समेटा है
Bharosa uth gaya ab aadami haiwan dikhta hai..
beautifully articlulated poem..
कुछ घटता है घट जाने दो।
बम फटता है फट जाने दो।
आतंकवाद से मेरे देश की
दिशा नहीं बदलेगी।
आतंकवाद से लोगों की
सोंच नहीं बदलेगी।
एक बार नहीं सौ बार फटे बम
हम हिम्मत ना हारेंगे।
बम फोड़ थकेंगे आतंकवादी औ
एक दिन खुद से हारेंगे।
यह जीवन इस माटी का
मिटता है मिट जाने दो।
बम फटता है फट जाने दो।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
राघव जी,
प्रासंगिक रचना, द्विज जी की पंक्तियों का स्मरण कराती हुई-
विष की प्यास बंधु शोणित से
आज बुझाई यहाँ जा रही
ऐ मेरे भगवान बता दो
दुनिया अब यह कहाँ जा रही
बंगलोर; बमलोर हुआ आह !
शहर गुलाबी लाल हुआ;
बममई हो गयी अब बम्बई;
भूपेन्द्र जी ! आपने सही चित्र खींचा है।
किन्तु हर विस्फोट के बाद जनजीवन पुन: सामान्य
हो जाय, (कोई दंगा न भड़के) यही आतंकवादियों
के मुँह पर तमाचा होगा क्योंकि दंगा भड़कने से
आतंकवादियों का उद्देश्य पूरा होता है
बहुत अच्छी रचना भूपेंद्र जी एक एक लाइन सार्थक लगी
बहुत ही सरल ढंग से आपने पूरी स्थिति बयान कर दिया
पढ़कर अच्छा लगा
राघव जी!
सरल एवं सीधे शब्दों में आपने अपने अंदाज को जवां रखा है। अब समझ नहीं आ रहा कि आपकी रचना की तारीफ करूँ या रचना का मर्म समझकर शोक मनाऊँ!
आप सफल हुए हैं। बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
बहुत ही प्रिया रचना.बहुत अच्छा लगा.
बधाई स्वीकार करें बड़े भाई.
आलोक सिंह "साहिल"
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)