ऐसा बहुत कम हुआ है कि प्रतियोगिता की कोई कविता किसी जज को इतनी पसंद आ गई हो कि वो उसे १० में १० अंक देने को लालायित हो जाय। लेकिन इस बार अनुराधा शर्मा की नज़्म ने यह कमाल किया है। यद्यपि अनुराधा शर्मा की ग़ज़लें/नज़्में हिन्द-युग्म पर कई बार प्रकाशित हो चुकी है (। लेकिन इस बार की नज़्म जजों को बहुत अधिक पसंद आई है।
पुरस्कृत कविता- एक नज़्म
अनुराधा की अन्य रचनाएँ
ग़ज़ल
बहुत सा फ़र्क है
दिल एक चार दीवारों वाला कमरा
तेरे होने से तेरे ना होने तक के सफर….को लिखूँ तो..
वाकई
बहुत कुछ नहीं बदला
जिंदगी में ख़जालत* ज़रा
सी कम हुई
इसलिए वज़ह मिल ही जाती हैं जीने की
वक़्त तो भागता हैं, आदतन
पर अब इसके साथ भागते हुए, मैं हाँफ जाती हूँ
जल्दी
इस दुनिया के घूमने की रफ़्तार और
तबदीली यूँ परेशाँ करती हैं
की दिन तो झाकते में, आँखों से निकल के भाग जाता हैं
और रात को मेरा हाथ पकड़ा जाता हैं
और ये रात मेरी तरहा,
पड़ी रहती हैं,
हिलती-डुलती नहीं, अरसे तक
एक रात जाने कितनी और रातें समेटे लिए आती है मेरे लिए
कि तेरे ना होने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता मुझे
मैं खुश हूँ बहुत
सब कुछ वैसा ही हैं
जैसा होना चाहिए
ख़राब नहीं लगती ये दुनियादारी
मेरी नज़रें तारो को आपस में
जोड़ने का खेल नहीं खेलती
किस्मत बेकार की बात लगने लगी हैं
खुदी को तमाम झंझटों में फँसाये रखना
कहाँ मुश्किल होता है
बुजुर्ग यादों को याद करने का वक़्त नहीं मिलता
कुछ भी तो नहीं बदला
तुम्हारे ना होने से
बस अब मैं खुद से झूठ बोलने लगी हूँ
*ख़जालत- शर्म, लज्जा
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५, ४, ६, ६॰७५, ७॰५
औसत अंक- ५॰८५
स्थान- सातवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६॰२, ९॰५, ५॰८५(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰१८३३
स्थान- दूसरा
पुरस्कार- मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें। संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी अपना काव्य-संग्रह 'दिखा देंगे जमाने को' भेंट करेंगे। तत्वमीमांसक डॉ॰ गरिमा तिवारी 'येलो पिरामिड' भेंट करेंगी।
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
खुदी को तमाम झंझटों में फँसाये रखना
कहाँ मुश्किल होता है
बुजुर्ग यादों को याद करने का वक़्त नहीं मिलता
-- बिल्कुल नज्म अच्छी बनी है |
बधाई
अवनीश तिवारी
पुरस्कार की बधाई अनुराधा जी
सच में अच्छी नज़्म है पढ़कर अच्छा लगा
bahut achhi kavita hai.last ki panktiya bahut hi achhi hai.kud se jhut bolne ka dava karke bhi jhut na bolana vakai lajavab hai
अनुराधा जी आपकी नज़्म इतनी अच्छी लगी कि आपकी लिखी - गज़ल- और -बहुत सा फर्क है- भी पढ़ गया जिसे मैने पहले नहीं पढ़ा था। तीनो रचनाएं एक से बढ़कर एक हैं।---बस इतना ही कहुँगा --वाह। क्या बात है।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
बधाई जी.
आलोक सिंह "साहिल"
दिल से निकली हुई बातें सीधे दिल तक पहूँचती हैं, शब्द और भाव सब चीजें इनके पीछे चलती नजर आती हैं ..
aap sabhi ke sehyog ke liye, me abhari hu... aur aap sabhi ne jo pratikriya di, uske liye..... bahut bahut dhaneyvaad, aapka
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