दिसम्बर २००७ की यूनिकवयित्री दिव्या श्रीवास्तव हिन्द-युग्म पर अब जाकर दुबारा सक्रिय हुई हैं और जुलाई माह की प्रतियोगिता के लिए दुबारा एक कविता भेजी हैं। उनकी यह कविता छठवें पायदान पर भी आई है। हम इनसे आग्रह करेंगे कि ये नियमित लेखन करें।
पुरस्कृत कविता- अकेलापन
ये मार्ग सीधा
उस पेड़ के निकट
जाता है..
पेड़ के तीन और
मोटे-पतले
लंबे-नाटे
मकान है. ...
वह पेड़
अकेला खड़ा है
मकानों के मध्य....
उस पेड़ के पत्ते
हरे नहीं...
लाल है..
सिंदूरी लाल..
उन पर सुनहरे फूल
खिले हुए हैं...
प्रतीत होता है .
जैसे....
आग का जलता गोला
झूल रहा है..
आकाश और ज़मीन
के बीच में..
पेड़ दर्शनीय है..
अनोखा है...
इस पर बरसों से
शोध
हो रहे हैं..
पेड़ का रहस्य...
रहस्य ही है
अब तक......
आज मैं उस
पेड़ के सामने
खड़ी थी....
देखा मैंने...
मेरे तन पे
लाल पत्तियाँ
उग आयीं हैं..
सुनहरे पुष्प
प्रस्फुटित हो
रहे हैं..
इस क्षण
पेड़ और मैं,
मैं और पेड़..
एक में हो गए हैं..
व्यथा ने व्यथा को
अंगीकार कर लिया है..
अकेलापन उसका और
मेरा कुछ क्षण
को ही सही..
सिमट तो गया है...
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५॰५, ५॰५, ६॰५५, ६॰७५
औसत अंक- ६॰०७५
स्थान- चौथा
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५॰७, ६॰५, ६॰०७५(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰०९१६६६
स्थान- छठवाँ
पुरस्कार- मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें। संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी अपना काव्य-संग्रह 'दिखा देंगे जमाने को' भेंट करेंगे।
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
पेड़ और मैं,
मैं और पेड़..
एक में हो गए हैं..
व्यथा ने व्यथा को
अंगीकार कर लिया है..
अकेलापन उसका और
मेरा कुछ क्षण
को ही सही..
सिमट तो गया है...
बहुत खूब दिव्याजी !
बहुत ही बेहतरीन लिखा दिव्या जी,बधाई स्वीकार करें.
आलोक सिंह "साहिल"
इस क्षण
पेड़ और मैं,
मैं और पेड़..
एक में हो गए हैं..
व्यथा ने व्यथा को
अंगीकार कर लिया है..
अकेलापन उसका और
मेरा कुछ क्षण
को ही सही..
सिमट तो गया है...
बहुत अच्छा लिखा
सुमित भारद्वाज
बहुत अच्छे दिव्या जी,
बधाई...
बहुत अच्छी कविता।
--देवेन्द्र पाण्डेय.
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