यूनिकवि प्रतियोगिता में ३ बार शीर्ष १० में स्थान बना चुके वाराणसी निवासी देवेन्द्र कुमार पाण्डेय इस बार भी यूनिकवि बनने से चूक गये। देवेन्द्र इसे अपना दुर्भाग्य ही मानते हैं। मार्च माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में इनकी कविता 'मुट्ठी भर धूप' ने कमाल किया था, तो वहीं अप्रैल माह में इन्होंने 'प्रतीक्षा' नाम से आप-बीती लिखकर सभी का मन मोहा था। तीसरी बार मई माह में 'सफेद कबूतर' का ज़ादू चला और इस बार 'मैं न भीगा' लेकर आपके समक्ष प्रस्तुत हैं। देवेन्द्र जी हमारे जून माह के यूनिपाठक भी हैं।
पुरस्कृत कविता- मैं न भीगा
शाम जब बारिश हुई
झम झमा झम - झम झमा झम -झम झमा झम - झम।
मैं न भीगा - मैं न भीगा - मैं न भीगा
ओढ़ कर छतरी चला था
मैं न भीगा।
भीगीं सड़कें, भीगीं गलियाँ, पेंड़-पौधे, सबके घर आंगन
और वह भी, था नहीं, जिसका जरा भी, भीगने का मन
मैं न भीगा - मैं न भीगा - मैं न भीगा
ओढ़ कर छतरी चला था
मैं न भीगा।
चाहता था भीग जाऊँ------
झर रही हर बूँद की स्वर लहरियों में डूब जाऊँ----
टरटराऊँ
फुदक उछलूँ
खेत की नव-क्यारियों में
कुहुक-कुहकूँ बनके कोयल
आम की नव-डालियों में
झूम कर नाचूँ कि जैसे नाचते हैं मोर वन में
दौड़ जाऊँ
तोड़ लाऊँ
एक बादल
औ. निचोड़ूँ सर पे अपने
भीग जाऊँ
डूब जाऊँ---
हाय लेकिन मैं न भीगा।
ओढ़कर छतरी चला था
मोह में मैं पड़ा था
मुझसे मेरा मैं बड़ा था
मैं न भीगा - मैं न भीगा - मैं न भीगा।
सोचता ही रह गया
देखता ही रह गया
फेंकनी थी छतरिया
ओढ़ता ही रह गया
शाम जब बारिश हुई
प्रेम की बारिश हुई
मैं न भीगा - मैं न भीगा - मैं न भीगा
एक समुंदर बह रहा था
एक कतरा पी न पाया
उम्र लम्बी चाहता था
एक लम्हा जी न पाया
चाहता था युगों से
प्रेम की बरसात हो
भीग जाऊँ-डूब जाऊँ
और प्रीतम साथ हों
हाय लेकिन मैं न भीगा।
ओढ़कर छतरी चला था
मोह में मैं पड़ा था
मुझसे मेरा मैं बड़ा था
मैं न भीगा - मैं न भीगा - मैं न भीगा।
सोचता ही रह गया
देखता ही रह गया
फेंकनी थी छतरिया
ओढ़ता ही रह गया
शाम जब बारिश हुई
प्रेम की बारिश हुई
झम झमा झम - झम झमा झम - झम झमा झम - झम।
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६॰६०, ७॰५
औसत अंक- ७॰०५
स्थान- प्रथम
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ६, ४, ६॰९, ७॰०५(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰९९
स्थान- द्वितीय
पुरस्कार- मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें। संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी अपना काव्य-संग्रह 'मौत से जिजीविषा तक' भेंट करेंगे।
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
अरे वाह, देवेन्द्र जी !
आप नही भींगे पर आपकी कविता ने तो मेरा पोर-पोर भींगा दिया !!!
निःशब्द हूँ ...
अति सुंदर, देवेन्द्र जी. आनंद आ गया पढ़ कर. अखबारों से चुने शब्दों से बने लंबे वाक्यों वाली अर्थहीन, लम्बी व नीरस तथाकथित कविताओं और सतही भावों पर चिपकाए हुए शब्दों से बनी तथाकथित ग़ज़लों के बीच में आपकी यह उत्साह भरी कविता एक सुखद अनुभव है. इस माह की प्रतियोगिता के लिए शुभकामनाएं.
मन भीग गया आपकी कविता से .. बहुत अच्छा
दिव्य प्रकाश
सुंदर |
बधाई |
अवनीश तिवारी
एक बार यदि असफल हुए तो ये दुर्भाग्य नही है देवेन्द्र जी
असफलता आपको और अच्छा काम करने को प्रेरित करती है
कैर इस माह के लिए यूनिपाठक के लिए बधाई
आप तो बच गए हमें भिंगो दिया.
आलोक सिंह "साहिल"
कविता की गहराई में उतरे तो हम भी भीग गए
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