अरूण मित्तल अद्भुत हिन्द-युग्म में लम्बे समय से दिलचस्पी ले रहे हैं और हमारे आयोजनों में लगातार शिरकत कर रहे हैं। पिछले माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में भी इन्होंने भाग लिया था और इनकी गज़ल छठवें पायदान पर थी। आइए पढ़ते हैं-
पुरस्कृत कविता- ग़ज़ल
देखिये न ये उनकी शरारत है क्या
पूछते हैं वो मुझसे मुहब्बत है क्या
आ गया तुमको चलना अंधेरे में पर
मत कहो रोशनी की जरूरत है क्या
हमको सारे वफ़ा करने वाले मिले
इतनी उम्दा हमारी भी किस्मत है क्या
सर झुकाता है जिसको ये सारा जहाँ
उस खुदा से भली कोई सूरत है क्या
दे चुका हूँ मैं सब तुमको अपना सुनो
दुनिया वालो तुम्हें अब शिकायत है क्या
तुमने सच को हमेशा कहा चीखकर
तुमको ख़ुद से ही 'अद्भुत' अदावत है क्या
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ५, ७॰४, ७॰२५
औसत अंक- ६॰४१२५
स्थान- छठवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५, ६, ५, ६॰४१२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰६०३१२५
स्थान- छठवाँ
पुरस्कार- शशिकांत 'सदैव' की ओर से उनके शायरी-संग्रह दर्द की क़तरन की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
10 कविताप्रेमियों का कहना है :
ghazal ka pehla sher sidha hi dil mein utar gaya...
aur aakhri do sher to masha allah...lajawab...
आ गया तुमको चलना अंधेरे में पर
मत कहो रोशनी की जरूरत है क्या
बहुत अच्छा!
आ गया तुमको चलना अंधेरे में पर
मत कहो रोशनी की जरूरत है क्या
----यह शेर सचमुच लाजवाब है।
-----देवेन्द्र पाण्डेय।
बहुत अच्छा है |
-- अवनीश तिवारी
देखिये न ये उनकी शरारत है क्या
पूछते हैं वो मुझसे मुहब्बत है क्या
क्या बात है!
दे चुका हूँ मैं सब तुमको अपना सुनो
दुनिया वालो तुम्हें अब शिकायत है क्या
वाह जनाब बढ़िया ग़ज़ल लिखी है आपने
बहुत ही बढिया गजल
मजा आ गया।
एक एक शे'र लाजवाब है
सुमित भारद्वाज
बहुत सुंदर ,बधाई
आ गया तुमको चलना अंधेरे में पर
मत कहो रोशनी की जरूरत है क्या
अद्भुत जी की अद्भुत गजल ..
बढिया....
बेहतरीन गजल
आलोक सिंह "साहिल"
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)