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Tuesday, June 17, 2008

तुम्हारी पदचाप



समय की दीवार पर
पल की खिड़की से
झांकता तुम्हारा चेहरा
पुरवा के झोंको संग
होठों की कोर पर
‘स्मित का बादल’ ले आता है
घाटी में फैले
समतल खेतो की
धानी हरियाली ....
'स्नेहिल चादर'
पहाडों पर सीढ़ीदार
खेतों की हलचल,
हरियल की फुर्र के साथ
बहुधा उड़ जाती है

दशकों बाद 'कालेज कंपाउण्ड' में
'वय की चादर' ओढे....
चश्में के पीछे से झांकती
तुम्हारी आँखें देखती होंगी
बदले हुए कैम्पस में
अदृश्य पटल पर ...
‘स्मृतियों के चलचित्र’
मचलता होगा मन
चीड़ और देवदार के तनों पर ...
उंगलियों की पोरों पर ...
पाने को पुनः 'वही स्पर्श'

और मैं जानता हूँ
पहाड़ की चोटी पर
ऊपर चढ़ती पगडण्डी पर
अनगिन पगचिन्हों में
मौजूद हैं तुम्हारे पदचिन्ह

हाँ युग के साथ बदला है
... बहुत कुछ
किंतु वो बर्फीली चोटियाँ,
वो शाखें ...
और अलमस्त छांव
खुशी से झूम रही हैं
बरसते हुए बादलों के संग
क्योंकि ....
पहचानती हैं वो आज भी
चोटी के मन्दिर में
प्रतीक्षित नयनों में बसा संताप
और अपने आंगन में ...
आज तुम्हारी पदचाप

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18 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

This topic have a tendency to become boring but with your creativeness its great.

Anonymous का कहना है कि -

Such a nice blog. I hope you will create another post like this.

Anonymous का कहना है कि -

wala pulos imo blog.

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

तुम्हारी पदचाप--------
प्यारी सी-अपनी सी है।
मगर कहीं कोई, कमी सी है।
---देवेन्द्र पाण्डेय।

Anonymous का कहना है कि -

apne ap mein khubsurat bhav aur shab liye ek sundar kavita badhai

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

विशेषताएँ तो देखो -
१. भाव से ओत प्रोत है

२. ऐसे प्रतीक लिए गये है - जैसे -
समय की दीवार पर
पल की खिड़की से
झांकता तुम्हारा चेहरा

३. अपने आप में नूतन भी है

४. कुछ नए शब्द जैसे - 'कालेज कंपाउण्ड' , कैम्पस जो आपकी शैली से भिन्न है |

कुल मिलाकर एक नवीन तरह की रचना आपकी तरफ़ से...

अवनीश तिवारी

Smart Indian का कहना है कि -

अति सुंदर

Harihar का कहना है कि -

दशकों बाद 'कालेज कंपाउण्ड' में
'वय की चादर' ओढे....
चश्में के पीछे से झांकती
तुम्हारी आँखें देखती होंगी
बदले हुए कैम्पस में
अदृश्य पटल पर ...
‘स्मृतियों के चलचित्र’
...
बहुत बढ़िया श्रीकान्त जी

Sajeev का कहना है कि -

सुंदर

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

भावयुक्त कविता, पूर्ववत शैली में कुछ नये शब्द-संकलन यादों के झरोखों से..

सीमा सचदेव का कहना है कि -

और मैं जानता हूँ
पहाड़ की चोटी पर
ऊपर चढ़ती पगडण्डी पर
अनगिन पगचिन्हों में
मौजूद हैं तुम्हारे पदचिन्ह sundar

Alpana Verma का कहना है कि -

श्रीकांत जी आपने प्रतीकों को बेहद सुंदर तरीके से प्रयोग किया है.
चित्र भी पसंद आया.
कविता भावों से ओत प्रोत है.
बहुत ही खूबसूरत प्यारी सी प्रस्तुति--
बधाई.

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत खूब .बहुत सुंदर भाव लिखे हैं ..

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

हाँ युग के साथ बदला है
... बहुत कुछ
किंतु वो बर्फीली चोटियाँ,
वो शाखें ...
और अलमस्त छांव
खुशी से झूम रही हैं

उत्तम बहुत उत्तम!
कविता पढ्कर याद आया-
कब तक?
बच पायेंगी,
बर्फ़ीली चोटियां ये,
कब तक?
देखने को मिलेंगी,
वो शाखें,
कहीं ऐसा ना हो,
हम कर रहे हैं दोहन,
जिस तरह,
कविता में ही रह जायं शाखें,
या देखे चित्रों में,
और अलमस्त छांव,
तो बचेगी ही कहां?
बिना शाखों के,
और कवि लिखेगा,
सुनापन है,
तन्हाई है,
आज तो कहीं से हवा आई है,
खुशी से झूम रही हैं
तन्हाई है.

Anonymous का कहना है कि -

मन पुलकित हो उठा,
आलोक सिंह "साहिल"

Unknown का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
Unknown का कहना है कि -

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