जीवन दायी देखो कैसा जीवन ग्राही बन गया,
लहर लहर बन गयी कहर; एक तबाही बन गया
बह गये सब खेत मवेशी, खोर लवारे बह गये,
बह गये सब चौका चूल्हे, घेर उसारे बह गये,
जल में डूबा छितिज छोर, जाने कहाँ से उफन गया......
जीवन दायी देखो ...........................
टूट गयीं सब सडकें पुल पथ, टूट गये सब पेड़ रूख,
आंतें टूटी बहुत अबोध हाय! सह न सकीं जो विकट भूख,
कितनों की सिन्दूर चूड़ियाँ, कितनों का यौवन गया,
जीवन दायी देखो ...........................
पंजों के बल खड़ा आस में, कोई पास में आयेगा,
जल ने जकड रखा है लेकिन शायद वो बच जायेगा,
अकड़ गयी लो वृद्ध की काया, एक और जीवन गया,
जीवन दायी देखो ...........................
मेला भाई छो ला है, उथकल; मेले छंग खेलेगा,
अभी जगाउंगा जो इछको, मेली लोती ले लेगा,
नहीं पता, अनजान अबोध, भाई करने चिर-शयन गया
जीवन दायी देखो ...........................
किया तांडव शांत मौन अब, जल मग्न हुई धरती सारी
जो निर्जन में बचे अगर, जन-जन को लेगी बीमारी
शहर बना शमशान अनौखा, कोई न ओढकर गया कफन गया
जीवन दायी देखो ...........................
जीवन दायी देखो कैसा जीवन ग्राही बन गया...............
23-06-2008
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
आंतें टूटी बहुत अबोध हाय! सह न सकीं जो विकट भूख,
कितनों की सिन्दूर चूड़ियाँ, कितनों का यौवन गया
बहुत ही मर्मस्पर्शी भाव
भूपेन्द्र राघव जी-
बाढ़ की विभीषिका व्यक्त करती आपकी रचना हॄदय स्पर्शी है।
---यहाँ गंगा में भी बाढ़ आई है।
मणीकर्णिका घाट (स्मशान घाट) में लाशें ऊपर गली किनारे जलाई जा रही हैं।
अचानक आई बाढ़ में कई पीपे बह गए।
३०-३० कीलो की मछलियाँ घाट किनारे तड़फड़ाने लगीं। लोग हाथों में पकड़-पकड़कर अपने घर ले जाने लगे।
जहाँ घाट किनारे लोग परेशान हैं वहीं दूर दराज से लोग बाढ़ का मजा लूटने आ रहे हैं।
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--तेज बही पानी में
घूम रही घूमरी
काला सा कीड़ा
घूम रहा
झूम रहा।
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-देवेन्द्र पाण्डेय।
किया तांडव शांत मौन अब, जल मग्न हुई धरती सारी
जो निर्जन में बचे अगर, जन-जन को लेगी बीमारी
शहर बना शमशान अनौखा, कोई न ओढकर गया कफन गया
जीवन दायी देखो ...........................
जीवन दायी देखो कैसा जीवन ग्राही बन गया...............
इसे मैं मर्मस्पर्शी नही कहूंगा ! मर्मस्पर्शी तो बाबा नागार्जुन की कविता "बाढ़ के बाद" थी ! यह तो मर्मभेदी है !
धन्यवाद !!!!
पंजों के बल खड़ा आस में, कोई पास में आयेगा,
जल ने जकड रखा है लेकिन शायद वो बच जायेगा,
अकड़ गयी लो वृद्ध की काया, एक और जीवन गया,
जीवन दायी देखो ...........................
भूपेन्द्र जी ! बहुत करुण चित्रण है
भूपेन्द्र जी,
कविता के नामसे ही दिल और दिमाग पर यह रचना छा गयी. अंतत: गलेमें आह और वाह के बीच निर्णय न हो सका . नि:शब्द अभिवादन सहित.
बाढ़ का मार्मिक चित्रण किया है आपने इस रचना में ....
भूपेंद्र राघव जी
अपने भावों को कव्यात्मक रूप मे प्रस्तुत करने का यह ढंग बहुत ही सुंदर है.हर शब्द हर पंक्ति मर्म स्पर्शी है. बधाई स्वीकारें
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