मिली मुझे दुनिया सारी जब मिला मौला
भुला दूँ मै खुद को नाम की पिला मौला
गमों से टूट रहा शख्स हर यहां रोता,
भरा दुखों से जहां तुमसे है गिला मौला
चमन बना सहरा गुल यहां रहे मुर्झा,
बहार यूँ निखरे हर कली खिला मौला
दिखा चुका अपने खेल खूब वह शैतां,
सदा सदा के लिए अब उसे सुला मौला
बदी को भूल के इंसा करे मोहब्बत बस,
दिलों में प्रीत की ऐसी अलख जला मौला
करें सभी हर पल बंदगी खुदा तेरी,
तुझे पा जाने का मौका तो इक दिला मौला
कवि कुलवंत सिंह
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
बदी को भूल के इंसा करे मोहब्बत बस,
दिलों में प्रीत की ऐसी अलख जला मौला
सुंदर प्रार्थना है
बदी को भूल के इंसा करे मोहब्बत बस,
दिलों में प्रीत की ऐसी अलख जला मौला
करें सभी हर पल बंदगी खुदा तेरी,
तुझे पा जाने का मौका तो इक दिला मौला
wah bahut khubsurat badhai
मिली मुझे दुनियाँ सारी जब मिला मौला
भुला दूँ मैं खुद को नाम की पिला मौला
--सुंदर।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
आपकी क़व्वाली ठीक ठाक सी है कोई ख़ास नहीं बन सकी.
एक फेन
कुलवंत जी,
आप ने इसे ग़ज़ल कहा है, पर मुझे इसमें ग़ज़ल की बारीकियों की जगह कव्वाली की रवानगी नजर आती है ! कहीं कहीं लयभंग के साथ कशीश की कमी रचना के सौंदर्य पर प्रभाव डालती है लेकिन आपका सूफियाना मिजाज़ निहायत ही काबिले-तारीफ है !!!
गमों से टूट रहा शख्स हर यहां रोता,
भरा दुखों से जहां तुमसे है गिला मौला
क्या बात है! कुलवंत जी
कवि कुलवंत जी,
गजल बहुत प्यारी है पर चौथे और पाँचवे शे'र मे काफिया बिगड गया
क्योकि आपने मकते मे 'मिला' और 'गिला' लिया है इसलिए काफिया इ+ला था पर मे वो उ+ला और ला रह गया
सुमित भारद्वाज
कवि कुलवंत जी,
गजल बहुत प्यारी है पर चौथे और पाँचवे शे'र मे काफिया बिगड गया
क्योकि आपने मकते मे 'मिला' और 'गिला' लिया है इसलिए काफिया इ+ला था पर चौथे और पाँचवे शे'र मे वो उ+ला और ला रह गया
सुमित भारद्वाज
कुलवंत जी,
मै सुमित जी के बातों से सहमत हूँ | काफिया - इ + ला ही होना चाहिए था |
और अर्थ भी ज्यादा दुमदार नही लगे | कुल मिलकर सामान्य |
आपकी नयी रचना ले इंतज़ार में...
अवनीश तिवारी
Thanks for correcting me.. yes its mistake..
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