पर्वत की ऊंची चोटी पर
गिरता पड़ता चढ़ता
श्रमसाध्य बिन्दुओं के साथ
स्वेदसिक्त माथे को नवाता हुं
परन्तु ...
पाता हूँ अपने चारो ओर
मानव निर्मित कलाकृतियां
झण्डे ढोल मृदंग मजीरे और
जय हो का अनवरत तुमुल
बस ..
तुम्हें नहीं पाता हूं
कहां हो तुम ...
आकुल ...
धू धू जलती उर ज्वाला से
बहुधा निर्वाण...
यतीमन हो जाता है
भटकता हूं समय की धारा पर
खेते हुये जीवन नैया
देखता हूं .....
साल दर साल
बाढ़ पर बाढ़
अनसुलझे सवालों की
खणडहर होती...
सभ्यताओं के किले
नदी की कगारों के साथ
ढहती मृदाभित्तियां ...
उभरते हैं ....
अनवरत सलिलधारा में
प्रतिपल कटती ऊंची कगारों से
जीवाश्मों की भांति झलकती ....
झांकती ताकती स्मॄतियों के चित्र
और मैं पह्चानने लगता हूं
यह है क्षणभंगुर जीवन में भोगा हुआ
मेरा और तुम्हारा क्षणिक ...
गिरता पड़ता चढ़ता
श्रमसाध्य बिन्दुओं के साथ
स्वेदसिक्त माथे को नवाता हुं
परन्तु ...
पाता हूँ अपने चारो ओर
मानव निर्मित कलाकृतियां
झण्डे ढोल मृदंग मजीरे और
जय हो का अनवरत तुमुल
बस ..
तुम्हें नहीं पाता हूं
कहां हो तुम ...
आकुल ...
धू धू जलती उर ज्वाला से
बहुधा निर्वाण...
यतीमन हो जाता है
भटकता हूं समय की धारा पर
खेते हुये जीवन नैया
देखता हूं .....
साल दर साल
बाढ़ पर बाढ़
अनसुलझे सवालों की
खणडहर होती...
सभ्यताओं के किले
नदी की कगारों के साथ
ढहती मृदाभित्तियां ...
उभरते हैं ....
अनवरत सलिलधारा में
प्रतिपल कटती ऊंची कगारों से
जीवाश्मों की भांति झलकती ....
झांकती ताकती स्मॄतियों के चित्र
और मैं पह्चानने लगता हूं
यह है क्षणभंगुर जीवन में भोगा हुआ
मेरा और तुम्हारा क्षणिक ...
किन्तु अविभक्त साथ
हॄदय पर अंकित तुम्हारा हस्ताक्षर
अविभाज्य अमिट अविस्मृत
हॄदय पर अंकित तुम्हारा हस्ताक्षर
अविभाज्य अमिट अविस्मृत
अमर और कालातीत
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
12 कविताप्रेमियों का कहना है :
श्रीकांत जी
आपकी चिर-परिचित भाषा में एक अच्छी रचना..
यह है क्षणभंगुर जीवन में भोगा हुआ
मेरा और तुम्हारा क्षणिक ...किन्तु अविभक्त साथ
हॄदय पर अंकित तुम्हारा हस्ताक्षर
अविभाज्य अमिट अविस्मृत अमर और कालातीत
***राजीव रंजन प्रसाद
और मैं पह्चानने लगता हूं
यह है क्षणभंगुर जीवन में भोगा हुआ
मेरा और तुम्हारा क्षणिक ...
बहुत अच्छा भाव
श्रीकान्त जी
चिरपरिचित संस्कृत निष्ठ भाषा के साथ लिखी यह कविता बहुत ही सुन्दर बिम्ब लिए है-
अनवरत सलिलधारा में
प्रतिपल कटती ऊंची कगारों से
जीवाश्मों की भांति झलकती ....
झांकती ताकती स्मॄतियों के चित्र
और मैं पह्चानने लगता हूं
यह है क्षणभंगुर जीवन में भोगा हुआ
मेरा और तुम्हारा क्षणिक ...
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई
बहुत दिनों बाद आपका लिखा पढ़ा श्रीकांत जी अच्छी लगी आपकी रचना की यह पंक्तियाँ
झांकती ताकती स्मॄतियों के चित्र
और मैं पह्चानने लगता हूं
यह है क्षणभंगुर जीवन में भोगा हुआ
मेरा और तुम्हारा क्षणिक ...किन्तु अविभक्त साथ
हॄदय पर अंकित तुम्हारा हस्ताक्षर
अविभाज्य अमिट अविस्मृत अमर और कालातीत
बहुत खूब लिखा है आपने ..लिखते रहे ..
कांत जी,
हमारे हृदय पर कर गयी आपकी रचना हस्ताक्षर
बधाई..
क्या प्रभावी पंक्तियाँ है -
किन्तु अविभक्त साथ
हॄदय पर अंकित तुम्हारा हस्ताक्षर
अविभाज्य अमिट अविस्मृत
अमर और कालातीत
-- असरदार रचना है |
अवनीश तिवारी
श्रीकांत मिश्र जी ,
बहुत सारे अर्थ समेटे हुए आपकी कविता अच्छी लगी ( बहुत सारे इसलिए कि पहली बार पढ़ा तो लगा कि प्रेमिका के लिए लिखी गयी है , दूसरी बार भगवान् के लिए लगी , तीसरी बार मैंने पढी ही नहीं :)
पाता हूँ अपने चारो ओर
मानव निर्मित कलाकृतियां
झण्डे ढोल मृदंग मजीरे और
जय हो का अनवरत तुमुल
बस ..
तुम्हें नहीं पाता हूं
कहां हो तुम ...
बहुत खूब
^^पूजा अनिल
और मैं पह्चानने लगता हूं
यह है क्षणभंगुर जीवन में भोगा हुआ
मेरा और तुम्हारा क्षणिक
बहुत सुन्दर भाव,बधाई.
पाता हूँ अपने चारो ओर
मानव निर्मित कलाकृतियां
झण्डे ढोल मृदंग मजीरे और
जय हो का अनवरत तुमुल
बस ..
तुम्हें नहीं पाता हूं
काश कि सभी लोग इसी तरह सोचते तो धर्म के नाम पर होने वाले बाह्याडंबरों और उससे उपजते साम्प्रदायिक विद्वेष से समाज को मुक्ति मिल जाती.
सुंदर और प्रभावी रचना!
पाता हूँ अपने चारो ओर
मानव निर्मित कलाकृतियां
झण्डे ढोल मृदंग मजीरे और
जय हो का अनवरत तुमुल
बस ..
तुम्हें नहीं पाता हूं
इन पंक्तियों में जहाँ कवि मन अपनी विवशता बता रहा है वहीं अन्यास एक प्रश्न छोड़ रहा है की क्या जिस शोर शराबे को हम ईश्वर के गुन गान कहते हैं क्या वह सच में ईश्वर तक हमें पहुंचता है ?
झांकती ताकती स्मॄतियों के चित्र
और मैं पह्चानने लगता हूं
यह है क्षणभंगुर जीवन में भोगा हुआ
मेरा और तुम्हारा क्षणिक ...
किन्तु अविभक्त साथ
हॄदय पर अंकित तुम्हारा हस्ताक्षर
अविभाज्य अमिट अविस्मृत
अमर और कालातीत'
लेकिन इन पंक्तियों में यह समझ आता है की जो सच्चा भक्त है उस के हृदय में ईश्वर हमेशा किसी न किसी रूप में रहता है--अपनी मौजूदगी का अहसास कराता रहता है....
बहुत ही सुंदर रचना......badhayee
shreekant ji aapki rachana hradya par hastakshar karne wali hai. padh kar accha laga. aapki aage bhi aisi hi rachanaye padhne ko milegi aisi umeed.
shreekant ji aapki rachana hradya par hastakshar karne wali hai. padh kar accha laga. aapki aage bhi aisi hi rachanaye padhne ko milegi aisi umeed.
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