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Tuesday, May 20, 2008

आवाजों का मसीहा


मैं जानता हूँ तुम मुझसे क्या चाहते हो
मौन
सहमति
पर क्या तुम सुन नही पाते आवाजें यादों के उन चीथडो की
जो लटके रहतीं हैं मेरे दीवारों पर
किसी पुराने फटे कोट की तरह
क्या भूले हो तुम कभी अपने घर का रास्ता
आवाजों के जंगल में
क्या कभी किसी आवाज़ ने कैद किया है तुम्हारी परछाई को
मैं जानता हूँ तुम मुझसे क्या चाहते हो
पर
क्या तुम सुन नही पाते आवाजों के आर्तनाद को
चीखती रहती हैं जो मेरी आँखों में उस छटपटाती चुप्पी को
क्या तुमने कभी नही सुनी है मेरे सपनो की सुगबुगाहट
मैं जानता हूँ तुम मुझसे क्या चाहते हो
पर क्षमा चाहता हूँ मैं हे देव
मैं सुन नहीं पाता तुम्हारी याचना के आदेशों को
चुप्पी के शोर में
माफ़ करना
पर
तुम मेरे मसीहा नही हो

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14 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

पावस,

आपकी रचना में बिम्बों की गहराई बहुत होती है जिससे कथ्य जीवंत हो उठता है।

पर क्या तुम सुन नही पाते आवाजें यादों के उन चीथडो की
जो लटके रहतीं हैं मेरे दीवारों पर
किसी पुराने फटे कोट की तरह

और रचना का अंत करने की आपकी शैली उसे मुकम्मल कविता बनाती है:

चुप्पी के शोर में
माफ़ करना
पर
तुम मेरे मसीहा नही हो

***राजीव रंजन प्रसाद

सीमा सचदेव का कहना है कि -

पावस जी आपकी लेखनी की पहचान होने लगी है हमे ,पहली ही पंक्ति से आपका आभास होने लगता है और जो बिम्ब आप चुन-चुनकर लाते है ,वो लाजवाब है
क्या कभी किसी आवाज़ ने कैद किया है तुम्हारी परछाई को
बधाई

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

-पर क्या तुम नहीं सुन पाते आवाजें यादों के उन चीथड़ों की
जो लटके रहती हैं मेरे दीवारों पर
किसी पुराने फटे कोट की तरह--
----------------------------
माफ करना
पर
तुम मेरे मसीहा नहीं हो।

--एक सशक्त रचना के रचना के लिए बधाई।
--देवेन्द्र पाण्डेय।

Unknown का कहना है कि -

मैं सुन नहीं पाता तुम्हारी याचना के आदेशों को
चुप्पी के शोर में
माफ़ करना
पर
तुम मेरे मसीहा नही हो

विरोधभासों का अद्भुत प्रयोग सुंदर .. ! शुभकामना

रंजू भाटिया का कहना है कि -

क्या तुम सुन नही पाते आवाजों के आर्तनाद को
चीखती रहती हैं जो मेरी आँखों में उस छटपटाती चुप्पी को
क्या तुमने कभी नही सुनी है मेरे सपनो की सुगबुगाहट



बहुत ही सुंदर ढंग से बात कही है आपने पावस जी ..अच्छी लगी आपकी रचना

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

पावस जी,

मैं जानता हूँ तुम मुझसे क्या चाहते हो
मौन
सहमति
पर क्या तुम सुन नही पाते आवाजें यादों के उन चीथडो की
जो लटके रहतीं हैं मेरे दीवारों पर
किसी पुराने फटे कोट की तरह

बहुत सुन्दर रचना मिली आपकी कलम से
बहुत बहुत धन्यवाद

ममता पंडित का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
ममता पंडित का कहना है कि -

क्या तुमने कभी नही सुनी है मेरे सपनो की सुगबुगाहट
पावसजी, आप सपनो की सुगबुगाहट तक भी पहुच गए, सच कहा है जहाँ न पहुंचे रवि वहाँ भी पहुंचे कवि , इस सुंदर रचना के लिए बधाई |

mehek का कहना है कि -

चुप्पी के शोर में
माफ़ करना
पर
तुम मेरे मसीहा नही हो
बहुत ही सुंदर ,

ismita का कहना है कि -

YOUR POEM IS REALLY VERY TOUCHING.....IT PRESENTS A PICTURE WHICH EVERYONE FACES ON SOME PHASE OF HIS LIFE...
KYA TUMNE KABHIE NAHIN SUNI HAI MERE SAPNO KI SUBBUGAHAT..
MAF KARNA PAR TUM MERE MASEEHA NAHI HO....
CONGRATULATIONS ...GREAT WORK.....
-ISMITA

Pooja Anil का कहना है कि -

पावस जी ,

बहुत ही गहराई लिए हुए है आपकी रचना

क्या तुम सुन नही पाते आवाजों के आर्तनाद को
चीखती रहती हैं जो मेरी आँखों में उस छटपटाती चुप्पी को
क्या तुमने कभी नही सुनी है मेरे सपनो की सुगबुगाहट

और

मैं सुन नहीं पाता तुम्हारी याचना के आदेशों को
चुप्पी के शोर में
माफ़ करना
पर
तुम मेरे मसीहा नही हो

बहुत ही करुण स्वर में एक कठोर फ़ैसला , अति सुंदर

^^पूजा अनिल

SahityaShilpi का कहना है कि -

सिर्फ़ एक शब्द- सुंदर!

Anonymous का कहना है कि -

अति सुंदर
आलोक सिंह "साहिल"

Unknown का कहना है कि -

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