'हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' अपने आयोजन के दूसरे वर्ष की ओर बढ़ रही है और यह बहुत हर्ष का विषय है कि शहरों से शुरू होकर कस्बों तक पहुँच चुकी है। स्वछंद व मुक्त महिलाओं से चलकर गृहणियों तक पहुँच चुकी है। हिन्द-युग्म, के फरवरी २००८ माह की प्रतियोगिता में बहुत से ऑफलाइन कवियों ने भाग लिया। कइयों ने विश्व पुस्तक मेला में लेखनी की पाण्डुलिपियाँ पकड़ाई तो कुछ-एक ने स्कैन करके भेजा।
कुल ४७ प्रतिभागी कवियों ने भाग लिया और तीन चरणों में निर्णय कराया गया। हिन्द-युग्म की इस प्रतियोगिता का निर्णय बहुत ही गुप्त तरीके से कराया जाता है। किसी भी निर्णयकर्ता को न तो दूसरे निर्णयकर्ताओं के नाम पता होते हैं और न ही रचनाकारों के नाम-पते।
यूनिकवयित्री- किरणबाला देवी
हिन्द-युग्म की यूनिकवि प्रतियोगिता का परिणाम इस बार युग्म के लिए एक विशेष अर्थ इस मायने में भी रखता है कि युग्म का घोषित लक्ष्य इस बार के परिणाम से बिल्कुल मेल खाता है। इस बार की यूनिकवयित्री श्रीमती किरणबाला देवी इंटरनेट और पत्रिकाओं की चमक से बिल्कुल दूर एक साधारण ग्रामीण परिवेश से निकल कर देवभूमि हिमाचल के हमीरपुर में बी एड की छात्रा हैं। पिछले दिनों जब अंतरजाल पर यूनिकोड-हिन्दी के प्रयोग पर एक व्याख्यान देने हेतु हमारे साथी श्रीकान्त मिश्र 'कान्त' तृषा शिक्षण संस्थान पहुँचे तो वहाँ छात्रा किरणबाला को कविता पाठ के दौरान सुना, तो उनकी रचनात्मकता से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें हिन्द-युग्म यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग लेने हेतु प्रोत्साहित किया।
यह भी एक सुखद संयोग ही है कि मात्र आडियो से टाइप कर, 'एक चिकनी किताब' शीर्षक की इस रचना को युग्म ने मात्र प्रतियोगिता में सम्मिलित ही नहीं किया अपितु यह आज सभी चरणों से निकल कर प्रथम स्थान पर पहुँच गयी है। किरणबाला जैसे मेधावी रचनाकार जो प्रकृति के साथ अपनी संवेदनशील रचनाएं जीवन में लिखते, जीते हुए प्रायः ग्रामीण परिवेश में ही खो जाते हैं, युग्म के प्रयास से आज हमारे सन्मुख है। इसी प्रयास की अभिनव खोज हैं, इस बार की यूनिकवयित्री श्रीमती किरणबाला। यहाँ पर यह भी उल्लेख करना प्रासंगिक है कि जिस प्रकार के सामाजिक परिवेश से किरणबाला जैसी महिला रचनाकार आती हैं वहाँ से उनका सम्पूर्ण परिचय भी सहज उपलब्ध नहीं हो पाता है।
पुरस्कृत कविता- एक चिकनी किताब
एक चिकनी किताब
उसके –
खुरदरे हाथों में
रख दी गई
एक चिकनी किताब
उसने उसे
सिर से लगाया
और सारा घर खोज आया
पर…
उसके रखने योग्य स्थान
कहीं पर नहीं पाया
आले पर चुहचुहाती
ढेवरी थी
छप्पर का फूस
अधसड़ा और काला था
उसकी खपच्चियाँ
घुन आई थी…
वहाँ उसको खोजता भी
तो कैसे…
कठबक्से पर लिसलिसा
नोन तेल गुड़ था
मोरचा लगे कनस्तर में
मकई….
कहाँ रखे वो…
वो रंगीन ‘चिकनी किताब’
जो उसे बहुत सलोनी थी
जैसे कि गरम ताजी राख़
उसने उसे बार-बार सूँघा
बार-बार सहलाया
दुलराया…
फिर ….
उसे एक हाँडी में रखकर
खूँटी पर टाँग आया
दूसरे दिन जब वह
खेत से थका हारा आया
तो उसने, उस किताब को
चूहों द्वारा कुतरा हुआ पाया
वो रूआँसा हुआ, घबराया
गम के मारे फिर
सरकारी मदरसे नहीं आया
खुद को कोसता रहा
राम जी की मरजी
जो वो पढ़ नहीं पाया
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ७॰५, ७॰१
औसत अंक- ६॰८६६७
स्थान- तीसरा
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ७॰२, ७, ६॰८६६७(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰५९१६६७
स्थान- दूसरा
अंतिम जज की टिप्पणी-
कविता के हर मानक पर खरी रचना। मन उद्वेलित, आँख नम करने में सक्षम तो है ही पाठक को सोचने पर विवश भी करती है।
कला पक्ष: ९/१०
भाव पक्ष: ९/१०
कुल योग: १८/२०
पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु १०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र। चूँकि इन्होंने मार्च माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविताएँ प्रकाशित करने की सहमति जताई है, अतः प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द ईनाम।
प्रथम स्थान प्राप्त कविता 'एक चिकनी किताब' का कविता पाठ भी आप श्रीमती किरणबाला के स्वर में सुन सकते हैं।
उपर्युक्त प्लेयर से नहीं सुन पा रहे हों नीचे के लिंक से डाउनलोड कर लें।
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लगभग ऐसी ही कहानी इस बार की यूनिपाठक सम्मान प्राप्त करने वाली पाठिका की है। यद्यपि अल्पना वर्मा, गीता पंडित, सीमा गुप्ता, आलोक सिंह 'साहिल' और अवनीश एस॰ तिवारी ने बहुत अधिक टिप्पणियाँ की हैं, लेकिन हमने इन सभी पाठकों को यूनिपाठक के सम्मान से नवाज़ चुके हैं, इसलिए इनकी पठनीयता को नमन करने की कुछ और पहल हम जल्द ही करने वाले हैं। हम इन सभी पाठकों का धन्यवाद करते हुए यही निवेदन करना चाहेंगे कि हिन्द-युग्म को इसी प्रकार से पढ़ते हुए हमारा प्रोत्साहन करते रहें।
यूनिपाठिका- महक
तो हम इस बार की पाठिका की बात कर रहे थे। उपर्युक्त पाठकों के अतिरिक्त हिन्द-युग्म की गतिविधियों पर जिस पाठिका की बराबर नज़र रही उनका नाम है 'महक', जो हिन्द-युग्म पर पिछले ३-४ महीनों से सक्रिय हैं। पहले वो रोमन में टिप्पणियाँ लिखती थीं, लेकिन हिन्द-युग्म के आग्रह पर फरवरी माह से यूनिकोड में करने लगी हैं। हिन्द-युग्म ने जब इनसे ये बताकर कि ये फरवरी २००८ की यूनिपाठिका हैं, इनका परिचय मँगाया तो इन्होंने बताया कि पारिवारिक बंदिशों के कारण ये अपना परिचय, चित्र, पता आदि इंटरनेट पर नहीं प्रकाशित कर सकतीं, लेकिन हिन्द-युग्म परिवार का हिस्सा बने रहना चाहती हैं। हिन्द-युग्म ने कुछ-एक उदाहरण देकर इनसे परिचय भेजने का पुनर्निवेदन भेजा, लेकिन इन्होंने इतना ही बताया कि ये महाराष्ट्र राज्य से हैं, मराठी इनकी मातृभाषा है, आजकल ये अख़बार कम हिन्द-युग्म ज़्यादा पढ़ती हैं।
हिन्द-युग्म ने इन्हें ही यूनिपाठिका बनाने का निश्चय किया है और यह मानकर चल रहा है कि कभी न कभी इन तक इनके नाम की पुरस्कार सामग्री पहुँचायेगा।
पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु २०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति पत्र।
दूसरे स्थान का पाठक हमने जिन्हें चुना है वो यद्यपि हिन्द-युग्म को अनियमितता के साथ पढ़ते रहे हैं, लेकिन जितना भी पढ़ा है उतना भी हमारे प्रोत्साहन के लिए पर्याप्त है।
मुम्बई, महाराष्ट्र निवासी सुरिन्दर रत्ती को हम दूसरे स्थान का पाठक चुनकर उन्हें प्रो॰ सी॰ बी॰ श्रीवास्तव 'विदग्ध' की रचनावली 'वतन को नमन' भेंट करते हैं।
क्रमशः तीसरे और चौथे स्थान के पाठकों ने भी हमें बहुत कम पढ़ा लेकिन हम इन्हें पाठक चुनकर इनकी पठनियता का सम्मान करना चाहते हैं। बर्बाद देहलवी (शशि कुमार) और राज भाटिया को हम प्रो॰ सी॰ बी॰ श्रीवास्तव 'विदग्ध' का कविता-संग्रह 'वतन को नमन' भेंट करते हैं।
इसके अतिरिक्त हम दिवाकर मणि, अभिधा, अंजु गर्ग, हेमज्योत्सना परासर, ममता गुप्ता, आशा जोगलेकर, अनुराग आर्या आदि पाठकों का धन्यवाद करना चाहेंगे जिन्होंने हिन्द-युग्म को बहुत कम पढ़ा, लेकिन पढ़ा। और यह आग्रह भी करना चाहेंगे कि पाठक के रूप में अपनी सक्रियता बढ़ायें।
उन अन्य ९ कवियों के नाम जोकि टॉप १० में हैं, जिन्हें हम कथाकार सूरज प्रकाश द्वारा संपादित कहानी-संग्रह 'कथा-दशक' भेंट करेंगे, हैं-
पीयूष पण्डया, हौशंगाबाद (म॰प्र॰)
अनिल जिंगर, मुम्बई
अनुराग आर्या
प्रेमचंद सहजवाला, नई दिल्ली
तपन शर्मा, नई दिल्ली
पावस नीर, ग़ाज़ियाबाद (उ॰प्र॰)
रमेश शर्मा 'अनु', नई दिल्ली
विनय के॰ जोशी, उदयपुर (राज॰)
संजीव कुमार गोयल 'सत्य', नागपुर (महाराष्ट्र)
हम एक और खुशख़बरी देना चाहेंगे कि हिन्द-युग्म मार्च माह से प्रतियोगिता की शीर्ष ३० कविताएँ प्रकाशित किया करेगा। हम कविता को बिना अधिक भूमिका दिये ही कविता प्रकाशित करके कविताओं के असली निर्णयकर्ता पाठकों की नज़र कर देंगे।
उन २० कवियों के नाम जिन्होंने टॉप ३० में स्थान बनाया और जिनकी कविताएँ ३१ मार्च तक एक-एक करके हिन्द-युग्म पर प्रकाशित होंगी-
डॉ॰ सुरेखा भट्ट, मनिपाल
विवेक रंजन श्रीवास्तव 'विनम्र', जबलपुर (म॰प्र॰)
विनय गुदारी, महात्मा गाँधी संस्थान, मॉरीशस
बर्बाद देहलवी, नई दिल्ली
महावीर रावत 'मसिरा उत्तराँचली', उत्तराखंड
सुदर्शन गुप्ता, झलवार (राज॰)
जीतेश नौगरैया
प्रगति सक्सेना, फरीदाबाद (हरियाणा)
अक्षय शर्मा, नई दिल्ली
अरूण मित्तल 'अद्भुत', नोएडा (उ॰ प्र॰)
कवि दीपेन्द्र, मेरठ (उ॰ प्र॰)
गरिमा सिंह
नागेन्द्र पाठक, दिल्ली
हर्ष कुमार
गुलशन, मॉरीशस
महक
दिव्या माथुर, नेहरू सेंटर, लंदन
सुरिन्दर रत्ती, मुम्बई
अंजु गर्ग, फरीदाबाद (हरियाणा)
सुनील प्रताप सिंह 'तेरा दीवाना', बेंगलूरु (कर्नाटक)
टॉप ३० के सभी कवियों से निवेदन है कि वो अपनी प्रतियोगिता में भेजी जा चुकी कविताएँ ३१ मार्च तक कहीं और प्रकाशनार्थ न भेजें।
हम निम्नलिखित कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे जिन्होंने प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह निवेदन भी करना चाहेंगे कि परिणामों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए बारम्बार इस प्रतियोगिता में भाग लेकर अपनी रचनात्मकता सिद्ध करें।
अवनीश एस॰ तिवारी, मुम्बई
शिवानी सिंह, दिल्ली
दिव्य प्रकाश दुबे, पुणे
डॉ॰ मीनू, दिल्ली
सतीश वाघमरे
सीमा गुप्ता, गुड़गाँव (हरियाणा)
शम्भूनाथ
देवेन्द्र कुमार मिश्र, छत्तरपुर (म॰ प्र॰)
प्रकाश यादव 'निर्भीक', शाहजहाँपुर (उ॰प्र॰)
आशुतोष शर्मा, मेरठ (उ॰प्र॰)
मानवेन्द्र शर्मा, दिल्ली
डॉ॰ महेन्द्र कौशिक, दिल्ली
सोहैल आज़म, दिल्ली
राहुल उपाध्याय, सिएटल, अमेरिका
राजश्री सुब्रमनी, कोयम्बटूर (तमिलनाडू)
कृष्ण
रिज़वान रजा, दिल्ली
नये रचनाकार व पाठक जो इस प्रतियोगिता में भाग लेना चाहते हैं वो यहाँ से पूरा विवरण प्राप्त करें।
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40 कविताप्रेमियों का कहना है :
किरण बाला जी को बहुत बहुत बधाई जिन्होंने ग्रामीण प्रसिथियों में रह कर भी इतना अच्छा कर दिखाया
बहुत बहुत बधाई किरण जी
सरकारी मदरसे नहीं आया
खुद को कोसता रहा
राम जी की मरजी
जो वो पढ़ नहीं पाया
इन पंक्तियों ने काफी कुछ भावुक कर दिया
लिखते रहिये
महक जी आपको भी बहुत बहुत बधाई
यूनिपाठक के रूप में देखकर आपको बहुत बहुत बधाई और साथ में आप कवियत्री के रूप में भी किंतु घर से साथ न मिलना जेसी बातएं सुनकर दुःख होता है आप कोशिश करते रहिये आपको सफलता मिलती रहेगी
सभी कवियों और पाठकों को बहुत बहुत बधाई
किरण बाला देवी एवं महक को हार्दिक बधाई..
कवि कुलवंत
pहम हिन्दयुग्म के बहुत आभारी है ,इस सम्मान के लिए ,कुछ बातें बस के परे होती है,,उन्हें भूलें और हमारी खुशियों में शामिल हो..
किरण जी बहुत बहुत बधाई ,कविता अंतरंग तक छु गई .
बाकि सभी कविमित्रों और यूनी पाठको को तहे दिल से बधाई
"बहुत बहुत बधाई किरण जी यूनिकवियत्री की उपलब्धी पर
सरकारी मदरसे नहीं आया
खुद को कोसता रहा
राम जी की मरजी
जो वो पढ़ नहीं पाया
" बड़ी ही भावपूर्ण रचना ,
महक जी आपको भी बहुत बहुत बधाई
यूनिपाठक के रूप में देखकर बहुत बहुत खुशी हुई .
बाकी सभी कवियों और पाठकों को बहुत बहुत बधाई
Regards
हिन्द-युग्म के आँगन में उतरी देखो 'किरण' प्यारी
उज़ियारे उपवन में हो गयी और अधिक हुई उजियारी
और अधिक हुई उजियारी,'महक'से महक रहा मन
अक्षय प्रेम-दुलार चक्षु हाँ, चहक रहा मन
कलरव यूँ ही बढ़े, समूह ना घटने पाये..
पाकर ऐसा साथ, हर्ष उर भरता जाये..
- किरण जी व महक जी सहित सभी प्रतिभागियो एवं प्रिय पठकों को बहुत बहुत बधाई..
ऐसे ही स्नेह बनाये रखें बहुत सुखद एहसास होता है आपका साथ पाकर्
-
KIRAN JI BAHUT BAHUT BADHAAI UNI KAVIYITARI BANANE PAR AUR MAHAK JI APP KO BHI UNI PAATHAK VIJETA HONE PAR BAHUT BAHUT BADHAAI.....SEEMA
आपने बिल्कुल सही लिखा है, युग्म अपने लक्ष्य में कमियाब हुआ है, और किरण की कविता सचमुच एक उत्कृष्ट रचना है, मुझे अगर युग्म पर गर्व है तो कुछ ग़लत नही है, तथाकथित बुद्दिजिवियों के सोच के परे भी कुछ ऐसे रचनाकार हैं जिन्हें दुनिया की आंख कभी देख नही पाती, और देख ले तो भी अनदेखा ही रहने देती है, किरण उनमे से एक है, जो युग्म के मध्यम से दुनिया के सामने आयी है, बहुत बहुत बधाई.... इस हीरे को खोजने के लिए ...महक को भी बधाई.....
किरण बाला जी की "एक चिकनी किताब" मामूली रचना नहीं है. उन के साधारण, ग्रामीण वातावरण का ज़िक्र हुआ. यह रचना उसी ज़मीन के धरातल की वास्तविकता से उपजी है. जैसे मैला आंचल [फणीश्वर नाथ रेणु] और ’बहुत दिनों तक चक्की रोयी’ [बाबा नागर्जुन] नामक रचनाएं.
उदीयमान कलाकारों में किरण बाला जी की गिनती काफ़ी ऊंची सीढ़ी पर होगी.
महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’
किरण जी और महक जी दोनों को ढेरों बधाइयाँ। ये बहुत शुभ संकेत है युग्म के आगे बढ़ने का। हिदुस्तान व विश्व के हर कोने से हिन्दी रचनायें लिखने वाले लोगों को आगे आने में मदद मिल रही है। अगर युग्म ने ये पहल न करी होती तो किरण जी द्वारा लिखी इतनी खूबसूरत और सच्ची कविता कभी पढ़ने को नहीं मिलती। ऐसी ही अनगिनत डायरियों के पन्ने हैं जो अभी आगे आने बाकी हैं। मिशन जारी रखें।
बाकी सभी प्रतियोगियों को भी बधाई।
bahut bahut badhai vijetaon ko. kripay is tarah ki pratiyogitaye jaari rakhen.
महक जी, बुरा नहीं मानियेगा। आपकी मातृभाषा मराठी है और यहाँ हिन्दी में लिखती हैं। कहीं आपको ठाकरे परिवार का तो भय नहीं है। हा हा।
मजाक को अन्यथा न लें। पिछला कमेंट लिखने के बाद ऐसे ही ये बात सूझ गई।
हमे बधाई देनेवाले सभी जन का बहुत शुक्रान ,अपनी मातृभाषा से हम सब स्नेह रखते है ,हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है,हम सब पहले हिन्दी है,फिर बाकि,बरोबर न.:):)
किरंबाला जी बहुत बहुत मुबारकबाद,सबसे बड़ी बात ये रही कि आपकी कविता आपकी आवाज में सुनाने को भी मिला,बेहतरीन.
बहुत खूब कहा इन पंक्तियों में -
उसे एक हाँडी में रखकर
खूँटी पर टाँग आया
दूसरे दिन जब वह
खेत से थका हारा आया
तो उसने, उस किताब को
चूहों द्वारा कुतरा हुआ पाया
वो रूआँसा हुआ, घबराया
गम के मारे फिर
सरकारी मदरसे नहीं आया
खुद को कोसता रहा
राम जी की मरजी
जो वो पढ़ नहीं पाया
लाजवाब,उम्मीद है निरंतर आपको पढने को मिलेगा,हर सोमवार रहेगा आपका इंतजार
शुभकामनाओं समेत
आलोक सिंह "साहिल"
महक जी,आपके विषय में क्या कहें?विगत कुछ समय से आपने हमारे युग्म को अपनी कविताओं और समीक्षाओं से guljar कर रखा है,aajtak ये सिर्फ़ हम mahsus करते थे पर आज खुले मुंह आपकी महक को स्वीकार भी किया गया,बहुत बहुत शुभाम्नाएं
आशा है आप यूं ही युग्म को महकती रहेंगी
आलोक सिंह "साहिल"
किरण जी,
बधाई देने के साथ ही यह कहना चाहूंगा कि आपकी यह रचना असाधारण है। कविता सपाट तरीके से किसी कथ्य का प्रस्तुतिकरण नहीं करती जैसा कि आज कल की ज्यादातर नयी कविताओं की खामी है अपितु मन को गहरे छेद कर पिघले शीशे सा उतर जाना शब्दों में कविता के तत्वों के कारण हो पाता है। आपको प्रतियोगिता में जीत की हार्दिक बधाई।
युनिपाठिका महक जी को भी हार्दिक बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत बहुत बधाई किरण जी और महक जी आप दोनों को !!
यूनिपाठक के रूप में देखकर आपको बहुत बहुत बधाई किरण जी और महक जी आप दोनों को !!
यूनिपाठक के रूप में देखकर आपको बहुत बहुत बधाई किरण जी और महक जी आप दोनों को !!
किरण जी बधाई के साथ ही मैं आप का आभार भी जताना चाहूंगा कि आपने वो बहुत से लफ्ज जो शहरों की लोहे तले दबी संवेदनाओं में खोकर रह गए हैं को हमारे सामने इतने भावुक अंदाज में रखा। मुझे नहीं लगता जो ग्रामीण प्रवेश में रहते हैं, लेकिन पढ़े लिखे और गिर्द घटती चीजों को संवेदना से देखते हैं, उन्हें अभावग्रस्त मानना चाहिए। मुझे लगता है आपके पास कलम की पुंजी है, जो आपके वहां पर अनुपलब्ध चीजों की कमी पर हावी है। संवाद सब अभावों को मिटा देता है। हां आपने अपनी कविता में न पढ़ पाने को जिन दो पहलुओं से रखा है, वो प्रशंसनीय हैं। पहला पहलू ये कि हमें पढ़े लिखे खुद को बहुत चतुर समझते हैं, लेकिन छोटी सी मुसीबत आते ही अवसादग्रस्त हो जाते हैं, जबकि आपकी कविता का पात्र जो देश के हर गांव में मिलेगा इस घटना को कितनी सहजता से लेता है और भगवान की मर्जी समझ सकून से रहता है। दूसरा पहलू ये कि अनपढ़ता कितनी खतरनाक है, हम बजाए चीजों को समझे बस हर असफलता को भगवान की मर्जी मान कर आशाहीन हो जाते हैं।
मैं सबसे पहले तो हिन्द-युग्म को बधाई देना चाहुंगी जिन के अथक परिश्रम से हिन्दी की पहुंच दूर दूर तक फ़ैल रही है और कई ऐसे लोगों को मुखरित होने में मदद कर रही है, भाषा के अभाव में,जिनके मुँह सिले हुए थे।
किरण जी और महक जी दोनों को मेरी तरफ़ से बधाई न शुभकामनाएं। किरण जी को मैं भी शत प्रतिशत अंक देना चाहुँगी इतनी अच्छी कविता के लिए( मैं ये कविता अपने पास सहेज कर रख लेना चाहुँगी अगर किरण जी को एतराज न हो तो) और महक जी तो खास तौर पर प्रंशसा की पात्र हैं। हमें गर्व है ऐसे देश के नागरिकों पर जो जाति, धर्म, भाषा के सकुंचित दायरे से ऊपर उठे हैं । महक जी आप को सही रुप में बधाई देने का जो तरीका मुझे समझ में आ रहा है वो ये कि आज से मैं मराठी सीखना शुरु कर दूँगी। कहिए क्या सिखायेगीं आप मुझे? आप से सीखने में अति प्रसन्नता होगी।
किरण जी यूनी कवियत्री बनने पर आप को बहुत बहुत बधाईयाँ.
'''सरकारी मदरसे नहीं आया
खुद को कोसता रहा
राम जी की मरजी
जो वो पढ़ नहीं पाया''
आप की कविता वास्तविकता के क़रीब ,अभिव्यक्ति में सक्षम है ,मन को छू जाती है.
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यूनीपाठिका 'महक आप को भी बहुत बधाई.
March 03, 2008 2:35 PM
किरण जी,
अद्भुत !
निर्बंध लघु छंद में आंचलिक शब्दों का सुंदर समायोजन कविता के कथ्य को यथोचित गाम्भीर्य के साथ वहन करने में सक्षम है ! आप यूनिकवि सम्मान की वास्तविक अधिकारी हैं ! शुभ कामनाएं !!
साथ में महक जी को यूनिपठिका बनने की बधाई !
किरण जी और महक जी को बधाई देता हूँ, नए कवियों का हौसला बढ़ाने के लिए मैं हिन्दयुग्म की पुरी टीम को धन्यवाद देता हूँ, मैं हिंदयुग्म से फरवरी ०८ में ही शामिल हुआ हूँ, बहुत खुशी हुई, मैं मुम्बई काव्य गोष्ठी हुई थी उसमे शामिल था इसका श्रेय कवि कुलवंत जी और श्री अवनीश तिवारी को जाता है इससे पहले मैंने हिन्दयुग्म का नाम नहीं सुना था, आप सभी कवि मित्रों को मेरा प्रणाम और शुभ कामनाएं - सुरिंदर रत्ती, मुम्बई
kiran ji aapko "mahak"ti hui hardik badhai.
हिन्दी युग्म की युनिकवि ननने पर किरन जी को बहुत बहुत बधाई यकीनन बहुत ही मार्मिक व ह्र्दय स्पर्शी कविता है
महक जी आपको भी युनिपाठिका बनने पर हार्दिक बधाई
सभी प्रतियोगियों को बहुत-बहुत बधाई।
किरण जी एवं महक जी को विशेष बधाई।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
असाधारण,वास्तविक एवं उत्कृष्ट रचना ...किरण जी आप को
ढेर सारी शुभकामनाएं ...महक जी यूनिपाठक के रूप में देखकर
बहुत बहुत खुशी हुई ...बधाई हो
Kiran Bala ji aapko uni kavi hone keliye meri hardik shubkamnayien.
aapki kavitha bahut hi Achi hai.
Kiranji aap isi tarah apni kalam chalathe rahiye.
Saath hi uni patak mahakji ko bhi meri or se shubkamnayien.
Sabhi anya unikavion ko bhi bahut bahut badhai.
सच में यह बहुत हर्ष की बात है कि हिन्द-युग्म असली मेधा तक पहुँच पाया है। किरणबाला की कविता में बहुत बड़ी कवयित्री के दर्शन होते हैं। हिन्द-युग्म की यह कोशिश होनी चाहिए कि वो किरणबाला को इंटरनेट-प्रयोग का प्रशिक्षण देकर उनकी अभिव्यक्ति को दुनिया तक लाने का रास्ता दे सके।
महक जी जैसे पाठक ही हिन्द-युग्म की शक्ति हैं। आप हमेशा अपना स्नेह बनाये रखें ।
सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद।
सभी विजेताओं को अनेक अनेक बधाई |
कान्त जी के प्रयास की सफलता दिख रही है |
उन्हें विशेष रूप से बधाई |
आशा है आप सभी सकिय होकर युग्म को सफल बनायेंगे |
अवनीश तिवारी
किरण जी ....और.....
महक जी .....आप दोनों को...
हार्दिक बधाई |
किरणबाला जी को यूनिकवयित्री व महक जी को यूनिपाठिका बनने पर हार्दिक बधाई! ऐसे श्रेष्ठ रचनाकारों व सजग पाठकों का जुड़ना हिन्द-युग्म और हिन्दी के लिये हर्ष का विषय है. आशा है कि हिन्दी को ऐसे अनमोल हीरे आगे भी मिलते रहेंगे.
किरणबाला जी आपकी रचना कई अर्थों में विशेष है. आपकी रचनात्मक प्रतिभा को नमन!
यही तो खासियत है इस टेक्नोलॉजी की किरण जी .आपने वहां अपने मन की बात लिखी ओर हमने यहाँ पढ़ ली ,ओर कही इसे जुडा हुआ भी पाया .महक जी को तो यदा कदा पड़ता रहता हूँ ,आपको पढ़कर अच्छा लगा . बधाई हो ....आशा है यूं ही दिल की बात लिखती रहेगी .
किरण मेरिया तरफ़ा ते बोत बोत बधाई... ईंया ही लिखदी रेणा... हाली बडी दूरा तक जाणा है
किरण जी महक जी बहुत बधाई | महक जी आपको विशेष बधाई| पढ़ना, लिखने से अधिक कठिन काम है |
kiran ji chikani kitab ..khurdare haathon mein..dil ko chune wali kavita..marmsparshi rachna...ek sach..
badhai sweekar karein..
mehek..congrats to you also..
बेहतरीन कविता,,,,.,हिमाचल से हमें बहुत ही संजीदा रचनाकार मिली हैं...आपको बधाई...
महक,
आप तो हिन्दयुग्म से पहले ही जुड़ चुकी हैं...ये पुरस्कार तो औपचारिक हैं,,,,.
अब युग्म परिवार से अपना परिचय बताएंगी तो अच्छा लगेगा...
बधाई..
ये भी सुखद संयोग है कि महिला दिवस वाले महीने में युग्म को कवियत्री और पाठिका ही मिलीं....
निखिल आनंद गिरि
कविता बहुत अच्छी है। काश वे भी- पढ नहीं तो सुन पाते---जिनके लिए-जिनके कारण- इस कविता का जन्म हुआ।-----देवेन्द्र पाण्डेय-सारनाथ-वाराणसी
यहाँ पर मैं महक जी को बधाई देने के साथ साथ उन महानुभाव का कुछ ध्यान भी दिलाना चाहता हूँ जिन्होंने सुनकर कविता का टंकण किया है । अन्तिम पंक्ति में है- (जैसा मैने सुना) “वह पढ़ ही नहीं पाया ।” इसमें “ही” छूट गया है । तथा बीच में अट्ठारहवीं पंक्ति में है- “वह वहाँ खोंसता भी तो कैसे” इसकी जगह लिख दिया गया है- “वह वहाँ खोजता भी तो कैसे” । सम्भव है कि टंकण करने वाले ने खोंसना-क्रिया का अधिक प्रयोग न होते देखकर सुनकर भी समझा हो कि यहाँ खोंसता नहीं हो सकता । यदि ऐसा है तो बताना चाहूँगा कि खोंसना क्रिया होती है और उसका अर्थ है घुसेड़ना । जैसा परिवेश है, यह शब्द उसी के अनुकूल है । वहाँ प्रसंग भी खोजता के अनुकूल नहीं है । खोजना स्थान को था और खोंसना किताब को । छप्पर तो खुद ही एक प्रस्तावित स्थान है ।
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