सुमन कुमार सिंह का नाम पाठकों के लिए नया हो सकता हैं क्योंकि भले सुमन कुमार सिंह हिन्द-युग्म की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता में बहुत पहले से भाग लेते रहे हैं, लेकिन टॉप १० में आने का पहला मौका है। इनकी कविता 'एक नई ज़िदंगी के लिए' ने चौथा स्थान बनाया है।
सुमन कुमार सिंह ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से अपनी पूरी शिक्षा ग्रहण की है। जन्तु विज्ञान से १९८६ में पीएचडी की उपाधि अर्जित करने के बाद ये राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, पुसा, बिहार में सहायक प्राध्यापक (मत्स्यकी) के पद पर नियुक्त हुए और वर्तमान में कॉलेज ऑफ़ फिशरीज़, धोली (मुजफ्फरपुर), बिहार में सह-प्राध्यापक के पद पर कार्य कर रहे हैं। अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति कविता के रूप में करने की आदत स्कूल के दिनों से रही है, लेकिन कभी उन्हें पत्र-पत्रिकाओं में नहीं भेज पाये। ये समझते हैं कि हर वो इंसानी दिल जो धड़कना जानता है वो कविता करना भी जानता है।
जन्मतिथि- ८-२-१९५८
जन्मस्थान- रोहतस, बिहार
पता- डॉ॰ सुमन कुमार सिंह
एसोसिएट प्रोफेशर
कॉलेज़ ऑफ फिशरीज़
धोली (मुजफ्फपुर), बिहार-८४३१२१
पुरस्कृत कविता- एक नई ज़िंदगी के लिए
मेरी खिड़की के ठीक सामने...
वो सूखा हुआ पेड़...
न जाने कब से खडा है
न जाने कब तक खडा रहेगा.....
पिछले साल इसकी डालियाँ...
यूँ सूखी न थीं...
हरी-हरी पत्तियों क बीच
कोपलें फूटी थीं
हवा के साथ
बड़ी मादक
सुगंध आती थी...
सुबह-शाम
पक्षियों की खुसुर-फुसुर से
सारी फिजां पे
छा जाती थी
एक नूर की चादर...
मगर
इस साल न पत्तियाँ हैं
न नई कोपलें..
बाकि सबकुछ वैसा ही है...
मैं पहले की तरह
फिर खिड़की पर बैठा हूँ
हवा अब भी आ रही है
टकरा के...
उन सूनसान सूखी डालियों से...
मगर
वो मादक सुगंध कहाँ
पक्षियों का
आत्मविभोर
मदमस्त कर देनेवाला
संगीत कहाँ..
सारी फिजां
जैसे सो रही है
खामोशी की चादर ताने
मौसम बदल रहा है
मगर
चांदनी रातों में भी
ये पेड़ बड़ा ही
भयावह दिखता है
आज ठीक तीन साल बाद
मैं फिर उसी खिड़की पर
टकटकी लगाये
देख रहा हूँ
उस पेड़ को
मगर
वहाँ तो
अब कुछ भी नहीं
कोई कह रहा था
काट दिया गया
इंसानी दरिंदों द्वारा
मानव स्वार्थ क लिए
हाँ!
उस पेड़ के
कटे हिस्से से
एक छोटा-सा
मगर
बिलकुल नया-सा
एक पौधा
उग आया है
अब ये पौधा
बंजर नहीं
पत्तियां भी हैं
हवा में एक महक
आने लगी है
लेकिन
बिलकुल नई महक
तो ये
उस विशालकाय पेड़ का
शायद नया जन्म है
मौत क बाद
ये धीरे-धीरे
बड़ा होगा
एक नए पेड़ के आकार में...
हाँ!
अब सब कुछ लौट आएगा
नई पत्तियां
नई कोपलें
नई महक
सबकुछ नया-नया
अब
फिर बिखर जायेगी फिजां में
पक्षियों का शोर
अब फिर मिटा डालेगा
फिजां के सन्नाटे को
सचमुच
अब सबकुछ लौट आया है
तो फिर
हम क्यूँ ढोए जा रहे हैं
अपनी माजी की
दुरूह यादों को
अंत जरूरी है
एक नई
खुशहाल जिन्दगी के लिए
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमैंट में मिले अंक- ७॰७५, ६, ६॰८
औसत अंक- ६॰८५
स्थान- छठवाँ
द्वितीय चरण के जजमैंट में मिले अंक- ५, ६॰८५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰९२५
स्थान- दसवाँ
तृतीय चरण के जज की टिप्पणी-कविता दो-तीन जगहों पर भटकती है। अंत से पहले का हिस्सा पर्यावरण और उसके उल्लासपूर्ण जीवन की स्मृतियों से जोड़ता है, इसका प्रतीक पेड़ एक दिन सूख जाता है,फिर काट दिया जाता है। अंत तक आते हुए कवि 'काट दिए जाने को' जीवन की नई शुरूआत के लिए जस्टीफाई भी करता है, लेकिन उससे पहले कवि इसकी भर्त्सना करता है; "॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰इंसानी दरिंदों द्वारा"। असल में पूरी कविता गहराई में अपने अंत और इसके शीर्षक से नहीं जुड़ती। असल में ये दो अलग-अलग कविताएँ हैं, जिन्हें एक साथ लिख दिया गया है। कवि को यह समझदारी विकसित करनी चाहिए, हालाँकि शिल्प अच्छा है।
मौलिकता: ४/॰१ कथ्य: ३/१॰५ शिल्प: ३/२॰५
कुल- ४॰१
स्थान- नौवाँ
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता का कथ्य प्रभावित करता है लेकिन कवि ने अपने ऑबजर्वेशन को बुनने में आवश्यकता से अधिक शब्द खर्च कर दिये।
कला पक्ष: ६/१०
भाव पक्ष: ६॰५/१०
कुल योग: १२॰५/२०
पुरस्कार- ऋषिकेश खोडके 'रूह' की काव्य-पुस्तक 'शब्दयज्ञ' की स्वहस्ताक्षरित प्रति
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
behad sundar inspirational kavita hai,aashavadi,hum kyun dho rahe hai,purane jakhm,naya kopla tho aayega hi maut ke baad.sahi hai.
उस पेड़ के
कटे हिस्से से
एक छोटा-सा
मगर
बिलकुल नया-सा
एक पौधा
उग आया है
अब ये पौधा
बंजर नहीं
पत्तियां भी हैं
हवा में एक महक
आने लगी है
लेकिन
बिलकुल नई महक
तो ये
उस विशालकाय पेड़ का
शायद नया जन्म है
मौत क बाद
ये धीरे-धीरे
बड़ा होगा
एक नए पेड़ के आकार में...
हाँ!
अब सब कुछ लौट आएगा
नई पत्तियां
नई कोपलें
नई महक
सबकुछ नया-नया
"बहुत खूब , एक नये उम्मीद के साथ एक नई आशा जगती ये कवीता काफी अच्छी लगी ,बहुत बहुत बधाई"
सुमन जी,
वहाँ तो
अब कुछ भी नहीं
कोई कह रहा था
काट दिया गया
इंसानी दरिंदों द्वारा
मानव स्वार्थ क लिए
सूखे हुए पेड़ को काटने पर आपकी पीड़ा हैरान करती है पाठक को खासकर तब जबकि परिणाम मे यह फ़िर से सुखद हो गया है कविता के अंत में।
इस अंश को हटा दें तो बाकी कविता अच्छी है।
सुमन जी,
अच्छी कविता है.. परंतु कांत जी से सहमति जताते हुए यही कहुँगा की कविता का अंत कविता को थोडा कमजोर कर रहा है..
सुमन सर जोरदार कविता के लिए बधाई पर climex थोड़ा और दमदार होना चाहिए.खैर, चौथे स्थान पर विराजने के लिए बधाई.
आलोक सिंह "साहिल"
पुरस्कार के लिए आप को बधाई.
**कविता अच्छी है. पुराने के गमन के साथ नए का आगमन हो जाता है.यह दुनिया की रीत है.
*निराशाओं में न जीते रहने की सीख और उसका कारन देते हुए देते हुए यह कविता आशा का संचार करने का प्रयास कर रही है.
*बस थोड़ा लम्बी हो गयी है यही एक कमी समझ आ रही है. जैसे' नई पत्तियां
नई कोपलें' में कोई एक पंक्ति भी बहुत थी---और-
'शायद नया जन्म है
मौत क बाद'
में अगर सिर्फ़ शायद नया जनम' पंक्ति भी काफ़ी थी--धन्यवाद.
मैं भी निर्णायकों से सहमत हूँ। लेकिन यह मानता हूँ कि यह कविता कवि की अंतिम रचना नहीं है। कवि के पास यदि साफ विजन आ गया तो बहुत कुछ रच सकता है, क्योंकि कवि में आग है। बस अभी उसमें भटकाव है।
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