प्रतियोगी कविताओं की माला से हम १६ कविताएँ गिन चुके हैं। ४ कविताएँ और बची हैं। आज हम १७वीं कविता प्रकाशित कर रहे हैं। इस स्थान के कवि दीपेन्द्र शर्मा हिन्द-युग्म के लिए बिलकुल नया चेहरा हैं। हम आशा करते हैं कवि दीपेन्द्र शर्मा इसी प्रकार हमारी गतिविधियों में हिस्सा लेकर हमारा हौसला बढ़ायेंगे।
पुरस्कृत कविता- एक तेरा
एक तेरा सपन सलोना है, एक मन का खाली कोना है
मानो हँसना तुम बिन एक पल, दूजे पल तुम बिन रोना है
क्योँ ऐसी तस्वीर बनाई, जिसमे तुम रंग भर न पाई
क्या इज्जत दूं उस बदली को, जो छाई तो पर बरस ना पाई
यही विधाता की मरजी, कुदरत का जादू टोना है
एक तेरा सपन सलोना है, एक मन का खाली कोना है
इस मृदुल सांस को राह दिखाने, अपनी उपलब्धि पर इतराने
फिर से आये हैं स्वप्न नए कुछ, इन जागी आँखों में सो जाने
तेरी यादों की डोरी को यूँ ही लम्बा होना है
एक तेरा सपन सलोना है, एक मन का खाली कोना है
नया नया मन का दर्पण, हर चेहरे में तेरा दर्शन
जल की भांति निर्मलता पर, तन न्योछावर मन भी अर्पण
सौ टुकडों में बँटे हुए, दर्पण को अभी संजोना है
एक तेरा सपन सलोना है, एक मन का खाली कोना है
एक तेरा सपन सलोना है, एक मन का खाली कोना है
मानो हँसना तुम बिन एक पल, दूजे पल तुम बिन रोना है
जजों की दृष्टि-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰६, ६॰५
औसत अंक- ६॰०५
स्थान- बीसवाँ
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰२५, ७॰४, ५॰८५, ६॰०५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰३८७५
स्थान- सत्रहवाँ
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
दीपेंद्र जी क्या टोना कर dala
बहुत acchhe.
alok singh "sahil"
एक तेरा सपन सलोना है, एक मन का खाली कोना है
मानो हँसना तुम बिन एक पल, दूजे पल तुम बिन रोना है
क्योँ ऐसी तस्वीर बनाई, जिसमे तुम रंग भर न पाई
क्या इज्जत दूं उस बदली को, जो छाई तो पर बरस ना पाई
bahut achha !
sunita yadav
आपमें अच्छे गीतकार के लक्षण दिख रहे हैं। लेकिन शायद गीत के छंदशास्त्र पर अभी आपने पर्याप्त काम नहीं किया है। ज़रा सा उस ओर भी ध्यान दें और विषयों को वैयक्तिक से सामाजिक करें। नीरज बन जायेंगे। अगली बार हेतु शुभकामनाएँ।
आप की कविता में कुछ कमी सी लग रही है.
थोड़ा कच्चापन है.अगर सहमत हों तो-
मेरे ख्याल से आप अपनी कविता को फ़िर से पढिये और शब्दों को इधर उधर कर के या हेर फेर कर के दोबारा गठन करिये --देखिये एक बहुत अच्छा गीत तैयार हो जाएगा.क्यों कि भाव अच्छे हैं.
अच्छा प्रयास है.
लिखते रहिये.शुभकामनाएं.
दीपेन्द्र जी,
बहुत अच्छा प्रयास है..
सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है चाहे कितना भी परिपक्व क्यूँ ना हो सो बस कोशिश करतें रहें
बहुत बहुत बधाई
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