१९ दिसम्बर को हिन्दी और नेपाली के प्रसिद्ध लेखक धुस्वाँ सायमी का निधन हो गया। हम उनका संक्षिप्त परिचय पहले भी प्रकाशित कर चुके हैं। आज आपके लिए उनकी कुछ कविताएँ लेकर आये हैं, क्योंकि सही अर्थों में एक साहित्यकार को श्रद्धाँजलि यही है कि उसके साहित्य को जन-जन तक पहुँचाया जाय।
शब्दों का आकाश
मैंने
हर मोर्चे पर सदा ही
तुमसे हार और मात खायी है
पता नहीं क्यों
तुमसे हारने में जीत महसूस होती है
आखिर
तुममें और मुझमें कोई फरक तो नहीं
मैं तो परछाईं मात्र हूँ
तुम
मेरी रूह हो मन-वचन हो
और मैं तुम्हारा कलेवर एक काया मात्र
फिर
तुम एक भावना हो एक दर्शन हो दृष्टि हो
मैं तो एक भाषा हूँ जिसे सिर्फ संवाद आती है
और तुम एक मंदिर भी हो
जहाँ मैं एक प्रार्थना हूँ एक पुजारी हूँ।
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मुझे
नहीं मरना है
किसी और की मौत में
साथ ही
किसी और की जिन्दगी उधार लेकर
जीना भी नहीं है मुझे
मुझे
जिन्दगी भी अपनी
और मौत भी अपनी
भोगने की लालसा है
क्योंकि
कोई मसीहा नहीं हूँ मैं
क्राइस्ट नहीं बुद्ध नहीं गाँधी नहीं
और
न ही कोई बंदर हूँ
अथवा किसी का पालतु कुत्ता
मैं तो
एक आदमी हूँ
एक छोटा सा अदना सा इन्सान
जिसे
कोई वाद या सिद्धान्त नहीं
सिर्फ यथार्थ समझ में आता है।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
10 कविताप्रेमियों का कहना है :
सही में यही सच्ची श्रद्धाँजलि है ... बहुत ही सुंदर लिखा है उन्होंने
तुम एक भावना हो एक दर्शन हो दृष्टि हो
मैं तो एक भाषा हूँ जिसे सिर्फ संवाद आती है
और तुम एक मंदिर भी हो
जहाँ मैं एक प्रार्थना हूँ एक पुजारी हूँ।
दोनों रचनायें बहुत ही गहराई लिये हुए हैं..
बहुत ही सुन्दर
तुममें और मुझमें कोई फरक तो नहीं
मैं तो परछाईं मात्र हूँ
तुम
मेरी रूह हो मन-वचन हो
और मैं तुम्हारा कलेवर एक काया मात्र
फिर
तुम एक भावना हो एक दर्शन हो दृष्टि हो
मैं तो एक भाषा हूँ जिसे सिर्फ संवाद आती है
और तुम एक मंदिर भी हो
जहाँ मैं एक प्रार्थना हूँ एक पुजारी हूँ।
वाह कितना सुन्दर ख्याल है
मुझे
नहीं मरना है
किसी और की मौत में
साथ ही
किसी और की जिन्दगी उधार लेकर
जीना भी नहीं है मुझे
मुझे
जिन्दगी भी अपनी
और मौत भी अपनी
भोगने की लालसा है
क्योंकि
कोई मसीहा नहीं हूँ मैं
क्राइस्ट नहीं बुद्ध नहीं गाँधी नहीं
और
न ही कोई बंदर हूँ
अथवा किसी का पालतु कुत्ता
मैं तो
एक आदमी हूँ
एक छोटा सा अदना सा इन्सान
जिसे
कोई वाद या सिद्धान्त नहीं
सिर्फ यथार्थ समझ में आता है।
वाह
सच में सायमी जी को पढ़ ने के बाद उनकी कमी खलना लाज़मी है
बहुत सुन्दर रचनाये पढ़ने को मिली हैं
...न ही कोई बंदर हूँ
अथवा किसी का पालतु कुत्ता
मैं तो
एक आदमी हूँ
एक छोटा सा अदना सा इन्सान
जिसे
कोई वाद या सिद्धान्त नहीं
सिर्फ यथार्थ समझ में आता है।
कवि को समझने के लिये इतनी पंक्तियाँ ही काफी हैं. धन्यवाद हिन्द युग्म!
बहुत सुन्दर कविता है । कवि इस संसार से कभी नहीं जाता। अपने साहित्य के माध्यम से सदा जीवित रहता है। उनका साहित्य हमेशा सबका मार्ग दर्शन करता रहेगा ।
ये मेरा विकट दुर्भाग्य है की मैं आज तक इन कविताओं से महरूम रह. आज जब पढने का मौका मिला तो मजा आ गया,
मैं हिंद युग्म के सभी अपने प्यारे साथियों को तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूँगा जिनकी कृपा से हमे यह शुभ अवसर मिला,
आनंदित भाव से
आलोक सिंह 'साहिल'
तुम एक भावना हो एक दर्शन हो दृष्टि हो
मेरी रूह हो मन-वचन हो
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एक आदमी हूँ
एक छोटा सा अदना सा इन्सान
जिसे
कोई वाद या सिद्धान्त नहीं
सिर्फ यथार्थ समझ में आता है
यथार्थवादी चिंतन....साहित्यकार का परिचय ...अच्छा लिखा आपने !
सुनीता
यह आवश्यक है कि हिन्द-युग्म के लेखक अपनी परम्परा, पड़ौसी की परम्परा, ग्लोबल लेखन से भी परीचित हों, इसके लिए इस तरह के प्रयास आवश्यक हैं। यह सही अर्थों में पूर्वज साहित्यकारों को दिया गया सम्मान भी है और सीखने का बहुत सुंदर प्रयास भी।
धन्यवाद हिन्द-युग्म
'तुम एक भावना हो---
मैं तो एक भाषा हूँ-----'
गहरा अर्थ छुपाये हुए ये पंक्तियाँ कवि की संवेदनाओं की ही व्याख्या कर रही हैं.
ऐसे कवि की कवितायें पढने को मिलीं,अच्छा लगा.
कोई भी रचनाकार कभी मरता नहीं है.अपनी रचनाओं में हमेशा जिंदा रहता है.
हम उनके लिखे से कुछ सीख लें सकें ,यही सच्ची श्रद्धाँजलि होगी.
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