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Thursday, November 15, 2007

राष्ट्रपिता (सातवीं कविता)


आज हम उस कवि की कविता की बात करने जा रहे हैं जिन्होंने पहली बार कविता लिखी और हमारी प्रतियोगिता में भाग लिया और टॉप १० में जगह बना ली। इनकी कविता 'नुसरत' ने सितम्बर माह की प्रतियोगिता में यह कमाल दिखाया था। अक्टूबर महीने में इन्होंने 'राष्ट्रपिता' नाम की कविता लिखी और फ़िर से टॉप १० में ७वें स्थान पर दर्ज़ हैं।
जी हाँ, हमलोग सन्नी चंचलानी की बात कर रहे हैं--

>नाम : सन्नी चंचलानी
शिक्षा : वाणिज्य स्नातक, वर्तमान में सिम्बोसिस पुणे से दूरस्थ एम॰बी॰ए॰ कर रहे हैं
जन्मस्थान : झाँसी (उ॰प्र॰)
निवास : रायपुर (छ॰ग॰) पिछले चार वर्षों से
कार्य : रेलिगेयर सिक्यूरिटी लिमिटेड में रिलेशनशिप मैनेज़र
प्रेरणा : जब रायपुर आये थे तो बहुत अकेले थे, कोई मित्र नहीं था, मगर किसी ने कहा है कि जब पुस्तकें पास हों तो मित्रों की कमी नहीं खलती। पढ़ने का शौक हुआ, फ़िर धीरे-धीरे कलम भी चलाने लगे। मगर कोई रचना पूरी नहीं कर पाये। एक बार यूँ ही पुरानी किताबों की दुकान से 'हंस' खरीदी और लगातार खरीदने लगे। कविताएँ पढ़ी और पहली कविता लिखी 'नुसरत' हंस को भेजने के लिए, लेकिन भेज दी हिन्द-युग्म को। जहाँ इसे सराहना मिली और मुझे लिखने की प्रेरणा। अब लगातार लिखने का मन बनाया है। कविता के अलावा हिन्दी की अन्य विधाओं में भी कलम चलाना चाहते हैं।

उद्देश्य : एन्टरप्रेन्योर बनना चाहते हैं, अपनी कम्पनी खोलना चाहते हैं। 'ऑक्सीजन' नाम का क्लब ४ लोगों के साथ मिलकर बनाये हैं जिसके माध्यम से देश, शहरों और गाँवों का विकास का करना चाहते हैं। पहला प्रोजेक्ट रायपुर शहर को धूल मुक्त करना चाहते हैं।

राष्ट्रपिता

एक अधनंगा संत
नंगे पैर चलता पथरीली सतह पर
धर्म का उपदेश दिये बिना
छेड़ता धर्मयुद्ध निरंकुशता के विरूद्ध
आश्चर्य! शस्त्र के नाम पर एक लाठी
प्रहार के लिए नहीं
सहारा दुर्बल काया के लिए
स्वयं सहारे की आवश्यकता वाला
कैसे लड़ेगा उस साम्राज्य से जिसमें कभी अस्त ही
न होता हो दिनकर
कैसे विजयी होगा इस महासंग्राम में
निस्वार्थ!! निस्वार्थ भावना से है वो भारत के साथ
सत्य, अहिंसा की शक्तियाँ हैं उसके पास
अवश्य करेगा वह वरण
विजयश्री का
वृत्ताकार काँच के पृष्ठ में छोटी , पुरानी
परन्तु चमकती आँखें जिनमें है पीड़ा, दर्द
न सिर्फ अपनों के लिए अपितु सुदूर बसे
काले मानवों के लिए भी
संग है वो हर कमजोर, दमित और उत्प्रेरित के
बिना किसी शर्त के
न तख्त की चिंता , न ताज की चाहत
चाहिए उसे केवल स्वराज
शुमार किया जाएगा उसे सदी के महानतम व्यक्तियों में
युगों तक होगी उसकी पूजा
बुद्धिजीवी लिखेंगे लेख
बच्चे कहेंगे कहानी
युवा रचेंगे कविताएँ उस पर
वह कहलाएगा इस भारत का
राष्ट्रपिता

जजों की दृष्टि-


प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६, ७॰५, ७॰६
औसत अंक- ७॰०३
स्थान- सातवाँ


द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰१, ६॰५
औसत अंक- ५॰८
स्थान- दसवाँ


तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी- कविता अच्छी है, किन्तु व्याकरण की भूल ने किरकिरी का काम किया। एक बात और ----- ‘काले मानव’ प्रयोग को उचित नहीं कहा जा सकता।
अंक- ६॰५
स्थान- प्रथम


अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
बापू आज राष्ट्रपिता हैं, और वे उस विजयश्री का वरण कर चुके, जिसके किये जाने की बात कवि कहता है। पाठक को रचना भ्रमित करती है।
कला पक्ष: ६॰६/१०
भाव पक्ष: ६/१०
कुल योग: १२॰६/२०


पुरस्कार- डॉ॰ कविता वाचक्नवी की काव्य-पुस्तक 'मैं चल तो दूँ' की स्वहस्ताक्षरित प्रति


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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

आपके भाव अच्छे है.
पहली रचना के लिए बधाई.
जजों के सलाह को जरुर समझे
कई सुधार होने चाहिए
और लिखे. :)
अवनीश तिवारी

"राज" का कहना है कि -

सन्नी जी!!
पहली रचना के लिये बधाई हो...
शीर्षक और भाव दोनों बहुत अच्छे है....
*********************************

युगों तक होगी उसकी पूजा
बुद्धिजीवी लिखेंगे लेख
बच्चे कहेंगे कहानी
युवा रचेंगे कविताएँ उस पर
वह कहलाएगा इस भारत का
राष्ट्रपिता
*************************
शुभकामनायें!!!

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

अच्छा लिख रहे हैं, लेखनी रुकनी नहीं चाहिये..

साधूवाद

व्याकुल ... का कहना है कि -

स्वयं सहारे की आवश्यकता वाला
कैसे लड़ेगा उस साम्राज्य से जिसमें कभी अस्त ही
न होता हो दिनकर
कैसे विजयी होगा इस महासंग्राम में
निस्वार्थ!! निस्वार्थ भावना से है वो भारत के साथ
सत्य, अहिंसा की शक्तियाँ हैं उसके पास
अवश्य करेगा वह वरण
विजयश्री का
सन्नी जी ,
बहुत खूब लिखा आपने ...आपकी ही तरह मैंने भी एक नई रचना लिखी थी मगर सिर्फ़ अपने लिए ... कारण कहाँ भेजू...तब मेरे एक मित्र ने मुझे हिंद युग्म के विषय के बारे में बताया और वह मैंने यहाँ पर भेज दी ....मुझे खुशी है की मेरी उस कविता को यहाँ पर आठवां स्थान मिला ...उससे भी ज्यादा खुशी मुझे इस बात की है की हिंद युग्म हम जैसे नए कवियों को भी पुरा सम्मान देते हुए हमारी कविताओं को उचित स्थान पर रखता है ....आज इसी के माध्यम से हम सब एक दुसरे से जुड़े हुए हैं ...आप इसी प्रकार रचना लिखते रहिये ....हम सब हमेशा आप के साथ है ...आप का उत्साह बढाने के लिए ....

आप का साथी .....

Unknown का कहना है कि -

सन्नी जी

राष्ट्रपिता पर लेखनी का उठना ही आपके भावों को अभिव्यक्ति दे रहा है उस पर भी एक भावपूर्ण रचना की प्रस्तुति
हार्दिक शुभकामनायें

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सुन्दर लगी आपकी कविता ..पहली रचना के लिये बधाई ...शुभकामनायें

शोभा का कहना है कि -

सन्नी जी
राष्ट पिता का जो चित्र आपने खींचा है वह प्रभावी है । देश का युवा यदि यही सोच रखे यही सपना है ।
सहारा दुर्बल काया के लिए
स्वयं सहारे की आवश्यकता वाला
कैसे लड़ेगा उस साम्राज्य से जिसमें कभी अस्त ही
न होता हो दिनकर
कैसे विजयी होगा इस महासंग्राम में
निस्वार्थ!! निस्वार्थ भावना से है वो भारत के साथ
सत्य, अहिंसा की शक्तियाँ हैं उसके पास
ऐसा ही विश्वास बनाएँ रखें । सस्नेह

anuradha srivastav का कहना है कि -

लिखते रहिये .........आपकी रचना अच्छी लगी।

Admin का कहना है कि -

गाधीं एक ऎसा विषय है जिसे जितना सराहा जाए कम है। यहां तक कि बापू की प्रंशंसा में लिखना भी गागर में सागर भरने के समान है परन्तु लेखक एक हद तक इसमें सफल रहे हैं। अगली बार अधिक बेहतर की उम्मीद में।

दिवाकर मणि का कहना है कि -

सुन्दर रचना !!
तथ्यों को और सुस्पष्टता के साथ रखने की जरुरत. ऐसा लगता है कि यह रचना गाँधी जी के आरंभिकावस्था में लिखी गई हो. जो बातें आपने उठाई हैं वे पहले से ही स्थापित है. खैर....

आपकी रचना को पढ़कर बहुत पहले लिखी यह पंक्तियाँ याद आ गईं कि-
गाँधी बापू राष्ट्रपिता कितने पाए नाम
सत्य-अहिंसा को लेकर लड़ा स्वाधीनता-संग्राम

और इसी रचना के अंतिम अंश-
गाँधी केवल याद आते हो अक्तूबर के दूसरी को
शेष दिवस तेरी मूर्ति पर, चढ़ती है बीट कबूतरी को.

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

गाँधी के व्यक्तित्व हो कम शब्दों में व्यक्त करना हो तो यही कहना ठीक है-

'दे दी हमें आजादी, बिना खड़ग बिना ढाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल'

लेकिन आपका यह प्रयास भी प्रसंशनीय है। आप अच्छा लिख रहे हैं। दोनों बार ‍टॉप १० में आपका बने रहना इस बात का प्रमाण भी है।

पीयूष जी,

आप लाजवाब पेंटिंग करते हैं। एक कैनवास पर कविता के सारे भाव आप जिस प्रकार उकेर रहे हैं, मैं तो भाई फैन हो गया हूँ आपका।

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