न जाने किस मिटटी के,
बने होते हैं ख्वाब ये,
बारहा गिरते हैं पलकों से
टूट टूट कर,
मगर मौत नही आती इन्हें।
कहीं से उम्मीद की कोई हवा चलती है,
और धड़कने लगते हैं,
सांस लेने लगते हैं, फिर एक बार,
मगर किसी रोज यूं भी होता है,
कि मर जाता है कोई ख्वाब,
पलकों से गिर कर टूटता है,
चूर हो जाता है,
और उम्मीदों की हवा भी जैसे बंद हो जाती है,
उस रोज,
जिंदगी भी सो जाती है,
मौत का कफ़न ओढ़ कर,
इस इंतज़ार में कि -
शायद फिर कोई ख्वाब आये,
इस नींद से जगाये ।
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छा है.
जिंदगी भी सो जाती है,
मौत का कफ़न ओढ़ कर,
इस इंतज़ार में कि -
शायद फिर कोई ख्वाब आये,
इस नींद से जगाये ।
सुंदर है.
अवनीश तिवारी
प्रिय सजीव
जीवन एक बहुत बडा यथार्थ है, जो इतने सारे घटकों से मिलकर बना है कि उन सब का एक समग्र चित्र देख पाना औसत व्यक्ति के लिये कठिन है. इतना ही नहीं, कई घटक अपने आप में इतने वृहद एवं सर्वव्यापी होते हैं कि कई बार घटक को ही पूर्ण यथार्थ समझ लिया जाता है.
इन में से एक घटक को लेकर आपने काव्य विधा में बहुत अच्छा एवं एकदम सही विश्लेषण प्रस्तुत किया है.
मैं पिछले 6 महीने से आपका काव्य पढता आया हूं. हर बार कुछ न कुछ नया मिल जाता है. ताज्जुब है कि आप की कविताओं में विषयों की पुनरावृत्ति नहीं नजर आती है. ईश्वर ने जरूर आपको इस विधा में असामान्य योग्यता प्रदान की है.
रचना करते रहें -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??
न जाने किस मिटटी के,
बने होते हैं ख्वाब ये,
....
कहीं से उम्मीद की कोई हवा चलती है,
और धड़कने लगते हैं,
सांस लेने लगते हैं,
....
और उम्मीदों की हवा भी जैसे बंद हो जाती है,
....
शायद फिर कोई ख्वाब आये,
इस नींद से जगाये ।
सजीव जी !
आज ऐसे लगता है कि युग्म पर कविताओं की लाटरी खुल गयी है. क्या उद्धृत करूं, क्या छोड़ूं .. एक पाठक के आनंद में विभोर हो सब कुछ भूलकर जैसे स्वयं को कुछ पल खो देना चाहता हूं...
बढिया सजीव जी!
उस रोज,
जिंदगी भी सो जाती है,
मौत का कफ़न ओढ़ कर,
इस इंतज़ार में कि -
शायद फिर कोई ख्वाब आये,
इस नींद से जगाये ।
ख्वाबों और जिंदगी का इतना बढिया ताल-मेल मैने पहले कहीं नहीं पढा है। सजीव जी , आपकी लेखनी को नमन!
-विश्व दीपक 'तन्हा'
सजीव जी बेहद खूबसूरत ज़िंदगी और ख्वाब दोनों को बहुत सुंदर तरीके से आपने अपनी कविता में दर्शाया है
दिल में उतर जाने वाली रचना है यह ......बधाई सुंदर रचना के लिए !!
सजीव जी,
वाकई सजीव कविता..
तालियाँ बजा रहा हूँ, काश तालियाँ यहाँ लिख पाता..
सजीव जी
प्यारी सी कविता लिखी है । थोड़ी सी निराशा भी दिखाई दे रही है --
कहीं से उम्मीद की कोई हवा चलती है,
और धड़कने लगते हैं,
सांस लेने लगते हैं, फिर एक बार,
मगर किसी रोज यूं भी होता है,
कि मर जाता है कोई ख्वाब,
पलकों से गिर कर टूटता है,
चिन्ता ना करें --ये सब क्रम से चलता रहता है । कभी सुख, कभी दुख । हारे नहीं इन्सान बस । सस्नेह
सजीव जी,
एक और सुन्दर रचना... मुझे शास्त्री जी की बातों से इतेफ़ाक है उन्होंने सही कहा है कि जीवन के हर अक्स को एक ही कविता में ढालना एक कढिन कार्य है...और हर बार एक विविधता कवि की विचार विशालता को दर्शाती है
बधाई
वाह सजीव जी बहुत ही सुन्दर कविता और कितनी सच्चाई इसमें, सही है जिन्दगी एक ख्वाब है, इसी तरह लिख्ते रहिए…अम इंतजार कर रहे हैं आप की नयी रचना का
अच्छी लगी कविता।
यूँ ही लिखते रहिए सजीव जी
सजीव जी! आपकी रचनाओं की विविधता और उनका सौन्दर्य दोनों ही हर बार मुझे स्तब्ध कर देते हैं. यही इस बार भी हुआ है. क्या इसके बाद कुछ और कहने की आवश्यकता रह जाती है??
आभार!
सजीव जी!!
सुंदर रचना है...शब्दों को बहुत अच्छे से सजाया है..आपने....
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न जाने किस मिटटी के,
बने होते हैं ख्वाब ये,
कहीं से उम्मीद की कोई हवा चलती है,
और धड़कने लगते हैं,
जिंदगी भी सो जाती है,
मौत का कफ़न ओढ़ कर,
इस इंतज़ार में कि -
शायद फिर कोई ख्वाब आये,
इस नींद से जगाये ।
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अच्छा लिखा है आपने सजीव लिखते रहे
न जाने किस मिटटी के,
बने होते हैं ख्वाब ये,
....
कहीं से उम्मीद की कोई हवा चलती है,
और धड़कने लगते हैं,
सांस लेने लगते हैं,
....
और उम्मीदों की हवा भी जैसे बंद हो जाती है,
....
शायद फिर कोई ख्वाब आये,
इस नींद से जगाये ।
सुन्दर रचना सजीव जी
न जाने किस मिटटी के,
बने होते हैं ख्वाब ये,
बारहा गिरते हैं पलकों से
टूट टूट कर,
मगर मौत नही आती इन्हें।
सजीव जी, उम्दा लिखा है आपने। पढ़कर आनंद आ गया।
न जाने किस मिटटी के,
बने होते हैं ख्वाब ये,
बारहा गिरते हैं पलकों से
टूट टूट कर,
मगर मौत नही आती इन्हें।
बहुत सुन्दर सत्य .... सच में ख्वाब है जो रोज बनते है फिर टूटते है लेकिन मरते नहीं... मन को छू गई !!!!!
सजीव जी,
आप सच में एक कवि की तरह सोचते हैं। लेकिन इन सपनों की दुनिया से निकलकर बाहर आइए, आपको बहुत कुछ करना है।
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