१३ वें स्थान की कविता 'समसामयिक राम' के रचनाकार अरुण मिश्र अभी यूनिकोड (देवनागरी) टाइपिंग नहीं जानते , इसलिए यह कविता हमें स्कैन्ड रूप में मिली थी। पर इससे क्या हुआ, हिन्द-युग्म तो पाठकों की हर सेवा के लिए तैयार है। आप सभी से भी गुज़ारिश है कि प्रतिभागी बनकर शुरूआत तो करें, आगे सारे टूलों पर काम करने की जिम्मेदारी हमारी।
कविता- सम सामयिक राम
कवयिता- अरुण मिश्र
प्रजा करे राजा की रक्षा वोट-बैंक का राज हो गया
जग-कल्याण प्रतीक राम अब बहुमत का मोहताज़ हो गया
राम आत्मा राम सत्य है
राम नाम की महिमा अद्भुत
राम नकार रहे नालायक
क्यूँ उन्मादित किस मद में धुत
मानव! किस वैभव से कुण्ठित अजब तेरा अंदाज़ हो गया
जग-कल्याण प्रतीक राम अब बहुमत का मोहताज़ हो गया
रक्षा-स्रोत चरित गुण गाकर
भारत जगदगुरु कहलाया
दीपावली दशहरा का
क्यूँ अर्थ तुम्हारी समझ न आया
मानव के इस कलुष कृत्य से कलयुग का आगाज़ हो गया
जग-कल्याण प्रतीक राम अब बहुमत का मोहताज़ हो गया
इतिहासों के बड़े पारखी
मन के अन्दर कब झाँकोगे
जो अनादि है जो अनंत है
उसकी महिमा क्या आँकोगे
संस्कार रख दिये ताक पर बड़बोलों पर नाज़ हो गया
जग-कल्याण प्रतीक राम अब बहुमत का मोहताज़ हो गया
संस्कृति के अन्याय पक्षधर
सभी राम के गुण गाते हैं
राम-कृपा के फलस्वरूप ही
विश्व-गुरु हम कहलाते हैं
आस्था आहत है, कुतर्क से कितना विकृत समाज हो गया
जग-कल्याण प्रतीक राम अब बहुमत का मोहताज़ हो गया
ताज-महल मीनार और किले
इतिहासों के ही दर्पण हैं
सरयू जन्म-भूमि और गंगा
ये कहिये किसके दर्शन हैं?
सृष्टि सनातन सेतु पुरातन फिर क्या जाने आज हो गया
जग-कल्याण प्रतीक राम अब बहुमत का मोहताज़ हो गया
जजों की दृष्टि-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७, ७॰७५, ७॰६
औसत अंक- ७॰४५
स्थान- दूसरा
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७, ७॰४
औसत अंक- ७॰२०
स्थान- प्रथम
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी- कविता में प्रवाह है।उपदेशात्मक अधिक है बजाए इसके कि मन को गहरे छू जाए।
अंक- ४॰४
स्थान- तेरहवाँ
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
अरुण जी
कविता अच्छी है विषेशकर शिल्पगत प्रस्तुति किंतु कथ्य कमजोत है और सपाट भी। तार्किकता के अभाव में आपकी बात स्थापित नहीं हो सकी है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
सुंदर है.
बधाई.
नया पन कम है.
अवनीश तिवारी
अरुण जी, बहुत-बहुत बधाई.
आपकी कविता काफी रोचक लगी. प्रस्तुतीकरण सम्यक् लगा. किन्तु सुधार अपेक्षित है.
शुभकामना सहित,
मणि.
कविता परंपरा के प्रति एकांगी दृष्टिकोण को दर्शाती है।
इतान ही कहूँगा कि खूब पढ़े और समकालीन साहित्य को भी बघारें, आप काफ़ी अच्छा लिख सकते हैं।
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