चलिए अब १४वीं कविता की बात कर लेते हैं। इस कविता की रचनाकारा हिन्द-युग्म के लिए बिलकुल नई हैं। इन्हें भी यूनिकोड टाइपिंग नहीं आती, लेकिन कब तक बचेंगी, हम सिखा ही देंगे।
कविता - एक ग़ज़ल
कवयित्री- अनुराधा शर्मा, फ़रीदाबाद (हरियाणा)
मिट्टी भी अब, इंसानों सी, ज़हरीली हो गयी है
एक ख्वाब चलो आसमाँ पर भी बोया जाये
बहुत पहना, नकाब झूठी मुस्कुराहट का
चलो हकीकत के गले लग के, आज रोया जाये
इकट्ठा कर लिया बहुत, औरों का छीन-छीन कर
अब अपना कुछ, अपनों की भीड़ में खोया जाये
झेली बहुत, तेज भागती-दौड़ती, बेवज़ह सी ज़िंदगी
कच्ची मिट्टी के फ़र्श पर, कुछ देर सोया जाये
बहुत भर लिया पेट अपना, भूखा रख के औरों को
अपने हिस्से का किसी को खिला के, रूह को धोया जाये
जजों की दृष्टि-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५, ७॰५, ७॰५
औसत अंक- ६॰६७
स्थान- दसवाँ
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰८, ७॰९
औसत अंक- ६॰८५
स्थान- चौथा
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी- ग़ज़ल पर अभी बहुत अभ्यास करना शेष है। और गहरे उतरिए।
अंक- ३
स्थान- चौदहवाँ
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
शिल्प की बात तो बाद में पहले ख़याल सभी अपने हों यह ख़याल रहे; या जो फ़ेमस गज़लें हैं, उनसे थोडा फ़ासला बनाए रहें।
:)
एक ख्वाब चलो आसमाँ पर भी बोया जाये
बहुत खूब! अनुराधाजी
अनुराधा जी,
मिट्टी भी अब, इंसानों सी, ज़हरीली हो गयी है
एक ख्वाब चलो आसमाँ पर भी बोया जाये
अच्छे भाव हैं। हाँ ’बहुत’ की पुनरूक्ति ठीक नही लगी।
जी बहुत सुन्दर रचना है ... मन्त्र मुग्ध कर दिया आपने तो
झेली बहुत, तेज भागती-दौड़ती, बेवज़ह सी ज़िंदगी
कच्ची मिट्टी के फ़र्श पर, कुछ देर सोया जाये
ये एक शेर ही काफी है अनुराधा जी के शब्दों की गहराई समझने के लिए.....
कुछ कसाव की कमी थी, इसीलिए कविता थोडी निचले पायदान पर रह गई, वरना ये शीर्ष की कविताओं में भी आ सकती थी...
बधाई.
निखिल आनंद गिरि
अनुराधा जी
अच्छी ग़ज़ल लिखी है
बहुत भर लिया पेट अपना, भूखा रख के औरों को
अपने हिस्से का किसी को खिला के, रूह को धोया जाये
बहुत -बहुत बधाई
सुंदर है यह रचना ..यह शेर बहुत अच्छा लगा
झेली बहुत, तेज भागती-दौड़ती, बेवज़ह सी ज़िंदगी
कच्ची मिट्टी के फ़र्श पर, कुछ देर सोया जाये
अनुराधा जी,
गहरे भाव लिये गजल है.. सच में जमी पर ख्वावों की खेती मुमकिन नहीं.
हकीकत के गले मिल कर रोना, मिट्टी के फ़्रश पर सोन और भीड में खोना आप की क्लपना शकित का रूप हैं
बधाई.
अनुराधा जी बधाई हो आपकी गज़ल पसन्द आयी। खासतौर पर ये-
बहुत पहना, नकाब झूठी मुस्कुराहट का
चलो हकीकत के गले लग के, आज रोया जाये
बहुत सुंदर है.
लेकिन ग़ज़ल का शीर्षक नही पता चला ?
अवनीश तिवारी
मिट्टी भी अब, इंसानों सी, ज़हरीली हो गयी है
एक ख्वाब चलो आसमाँ पर भी बोया जाये
झेली बहुत, तेज भागती-दौड़ती, बेवज़ह सी ज़िंदगी
कच्ची मिट्टी के फ़र्श पर, कुछ देर सोया जाये
बहुत खूब।
*** राजीव रंजन प्रसाद
अनुपम गजल है अनुराधा जी
बहुत कांटे की बात कही है आपने
बहुत ख़ूब अनु..
एक सुंदर रचना के लिए बधाई ..
आपके शे'रों की दूसरी पंक्ति किसी मशहूर शेर से प्रभावित लगती है। लेकिन शुरूआती लेखन में इतना सबकुछ चलता है। अच्छी बात यह है कि आपने भावों को सख्ती से पकड़ा है।
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