इस माह की अंतिम कविता प्रतियोगिता की २०वीं कविता के रूप में हम लेकर हाज़िर हैं। ६-७ महीनों से प्रतियोगिता में भाग ले रही दिव्या श्रीवास्तव लगभग हर बार ही टॉप २० में रहती हैं।
कविता - कथाओं का चक्रव्यूह
कवयित्री- दिव्या श्रीवास्तव, कोलकाता
शोभित सम्पूर्ण नवीन कथा
वही परिचित-सी है अकथनीय व्यथा
परिचित है तथापि नवीन है,
रंगों से परिपूर्ण; फिर भी रंग-हीन है......
दो विपरीत धाराओं से जुड़ी हुई,
यह कहानी है सीधी और मुड़ी हुई,
कहानी लिखित है और मौखिक भी,
कहानी के पात्र लौकिक हैं और अलौकिक भी;
स्वत: हीं होते हैं कहानी के पात्र उजागर
ज्यों प्रात: काल उदित होता है दिवाकर......
रसात्मक कहानी में डूबी हुई
मन हारे मैं हूँ अकारण उबी हुई......
दर्शित-अदर्शित घटनाक्रमों का चक्रव्यूह है,
इस कथा में अनेक कथाओ का समूह है;
हर कथा दूसरी कथाओं का दर्पण है
ज्यों हर रात्रि में प्रात: काल का समर्पण है;
पढ़े कोई इसे चक्षु और श्रवण बंद किए,
हर एक जड़ और मूल को पसंद किए;
सारी उदासीनता और उत्साह समेटे हुए,
समझे लोकजन बरगद के छांव में बैठे हुए;
तनिक क्षण अफरातफरी को दूर फेंक कर,
नैनों को गीला कर, धूप में हस्त-पाँव सेक कर;
कथाओं की चर्चा करें अपने अंत:स्थल में,
प्राप्त हो सारांश हमें इस धरती या जल में......
निरूद्देश्य यूं हीं किसी क्षण में
शायद हम जान जाएँ
यह कथा नहीं हमारा जीवन है.....
जजों की दृष्टि-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६, ७॰७५, ५॰४
औसत अंक- ६॰३८
स्थान- तेरहवाँ
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ३, ५
औसत अंक- ४
स्थान- बीसवाँ
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
दो विपरीत धाराओं से जुड़ी हुई,
यह कहानी है सीधी और मुड़ी हुई,
कहानी लिखित है और मौखिक भी,
कहानी के पात्र लौकिक हैं और अलौकिक भी;
स्वत: हीं होते हैं कहानी के पात्र उजागर
ज्यों प्रात: काल उदित होता है दिवाकर......
रसात्मक कहानी में डूबी हुई
मन हारे मैं हूँ अकारण उबी हुई......
सुंदर भाव
सुन्दर भावयुक्त रचना है,
दर्शित-अदर्शित घटनाक्रमों का चक्रव्यूह है,
इस कथा में अनेक कथाओ का समूह है;
हर कथा दूसरी कथाओं का दर्पण है
ज्यों हर रात्रि में प्रात: काल का समर्पण है;
पढ़े कोई इसे चक्षु और श्रवण बंद किए,
हर एक जड़ और मूल को पसंद किए;
सारी उदासीनता और उत्साह समेटे हुए,
समझे लोकजन बरगद के छांव में बैठे हुए;
तनिक क्षण अफरातफरी को दूर फेंक कर,
नैनों को गीला कर, धूप में हस्त-पाँव सेक कर;
कथाओं की चर्चा करें अपने अंत:स्थल में,
प्राप्त हो सारांश हमें इस धरती या जल में......
बधाई
विषय तो आप हर बार बढ़िया चुनती हैं, लेकिन शब्द ऐसे रखती हैं, जो कम लोगों को समझ में आये। आज की कविता लिखिए।
दिव्या जी,
भाव तो आपके अच्छे हैं, पर कविता बाँध नहीं पाई। दूसरे पद्य में एक ही शब्द (कहानी) काफी बार आता है जो मेरी समझ में उचित नहीं है। आये तो हर बार उसका विलग मतलब निकले तो उसका फायदा भी है। एक ही शब्द का बार-बार प्रयोग कविता को उबाऊ बनाता है।
धन्यवाद,
तपन शर्मा
वाह आपका जीवन देखने का ये नजरिया बहुत पसंद आया...
निरूद्देश्य यूं हीं किसी क्षण में
शायद हम जान जाएँ
यह कथा नहीं हमारा जीवन है.....
हर कथा दूसरी कथाओं का दर्पण है
ज्यों हर रात्रि में प्रात: काल का समर्पण है;
पढ़े कोई इसे चक्षु और श्रवण बंद किए,
हर एक जड़ और मूल को पसंद किए;
सारी उदासीनता और उत्साह समेटे हुए,
समझे लोकजन बरगद के छांव में बैठे हुए;
दो विपरीत धाराओं से जुड़ी हुई,
यह कहानी है सीधी और मुड़ी हुई,
कहानी लिखित है और मौखिक भी,
कहानी के पात्र लौकिक हैं और अलौकिक भी;
स्वत: हीं होते हैं कहानी के पात्र उजागर
ज्यों प्रात: काल उदित होता है दिवाकर......
रसात्मक कहानी में डूबी हुई
मन हारे मैं हूँ अकारण उबी हुई......
खूब सुन्दोर दिव्या जी ...
सुनीता यादव
दिव्या जी,
निरूद्देश्य यूं हीं किसी क्षण में
शायद हम जान जाएँ
यह कथा नहीं हमारा जीवन है.....
आपको भी पढता जाता हूँ....अच्छा लिखती हैं आप...जल्दी ही शीर्ष पर पहुंचे, कामना है....
निखिल आनंद गिरि
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