आँसू भी
जग हंसाई से डरते हैं!
पहले तो खुल कर बहते थे
अब अपनी ही आँखों से,
चोरों की तरह निकलते हैं!
कहीं लोग यह ना कहें
वो तो गयी..
यह देवदास बन गया है
मेरी आहें सिसक रहीं हैं!
उसे
कोई मिल गया है..
पहले तो देखते ही ना थी
पर अब
नज़रों का ध्यान नहीं रखती है!
उन नशीली आँखों में,
कुछ अलग सी
चमक दिखती है|
मेरी फटी हुई एड़ी में,
कोई काँटा चुभ गया है
आजकल सब बोलते हैं!
उसे
कोई मिल गया है..
मैने चाहा,
उसे हक भी था
चाहे जाने का
पर तब मैने नहीं सोचा था
एक हक और भी था
उसके पास
कि वो भी किसी को चाहे..
चाहत के बदले में आँसू देकर,
अब बड़ी ख़ुश है वो
अपने सारे हक लेकर!
अब मैं नहीं रोता,कभी नहीं
मेरे आँसू रोते हैं
उसका हक है ना इन पर!
जो अब अदा हो रहा है..
आँसू बेचारे असमंजस में हैं
रोएँ या हँसे?
कारण
उसे
कोई मिल गया है..
मेरी पीर
एकांत का चाकू देखे,
तो तरबूज़ की तरह फट जाती है
सोचता हूँ खा जाऊं
सामने पड़े,
जमे हुए लहू के अश्कों को
पर बीज बनकर,
वो सुनहरी यादें आ जाती हैं!
कहते हैं..
सुख-दुख सिक्के के दो पहलू होते हैं
मेरा जीवन,
खोटा सिक्का बन गया है
तरबूज़ो की फ़सल लहलहा रही है!
ज़ायज़ भी है
उसे
कोई मिल गया है..
इंसान हूँ
दर्द होता है
वो किसी को प्यार से देखे
दिल सुलग उठता है!
यही नियति है
कोई क्या कर सकता है?
इश्क़ में शायद..
सबको दर्द मिलता है!
जो रेल छूटी थी
पहले ख़ाली थी
अब
कोई चढ़ गया है!
मैं खड़ा
चुपचाप देख रहा हूँ
उसे
कोई मिल गया है..
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
20 कविताप्रेमियों का कहना है :
इंसान हूँ
दर्द होता है
वो किसी को प्यार से देखे
दिल सुलग उठता है!
यही नियति है
कोई क्या कर सकता है?
इश्क़ में शायद..
सबको दर्द मिलता है!
बहुत खूब इश्क का दर्द बखूबी निकला है आपकी कलम से विपुल जी :)
भाव अच्छे लगे इस रचना के ...शुभकामना के साथ
सस्नेह
रंजू
कभी कभी दर्द इतना बढ़ जाता है कि उसका कोई और रूप उतनी ही कुशलता से सृजित करना कठिन हो जाता है।
कविता ठीक ठाक है।
लम्बी हो गई है पर मारक नहीं बन पाई।
अगली कोशिश की फिर प्रतीक्षा है... :)
इश्क़ में शायद..
सबको दर्द मिलता है!
जो रेल छूटी थी
पहले ख़ाली थी
अब
कोई चढ़ गया है!
मैं खड़ा
चुपचाप देख रहा हूँ
उसे
कोई मिल गया है..
व्यथा उभर कर आयी है विपुल जी
विपुल जी
ऐसा लगता है प्रेशर कुकर का वालव समय से पहले खुल गया है. शैली अच्छी है परन्तु कविता पूरी तरह पकने से पहले ही कागज पर उतार दी गयी. शायद इसीलिये लम्बी हो गयी है. लिखना है कुछ पोस्ट करने के लिये इसलिये नहीं लिखना है. कविता को स्वयं जन्म लेने दो. जो तुमहें विवश करके उतर आये. तुम्हारे हाथों पर अधिकार कर ले.
बहुत सम्भावनायें हैं स्नेहाशीष
बहुत बढिया विपुल जी...
बस थोडी लम्बाई ज्यादा हो गयी है
बधाई
कविता में अनावश्यक विस्तार है और ऊपर से मारक तो बिलकुल नहीं है। मन से लिखिए।
अपनी कविताओं को टिप्पणी की कसौटी पर मत तौलिये, अपने भावों को सदा स्वच्छन्द रचना करते रहे। शुभकामनाऐं
भावों को उम्दा ढ़ग से रखा है, किन्तु थोड़ा भटकाव लगा है।
मेरी पीर
एकांत का चाकू देखे,
तो तरबूज़ की तरह फट जाती है
विपुल जी,क्या कर डाला आपने? कमाल की वेदना है आपकी कृति में
मस्त कर दिया आपने तो हम जैसे रसिकों को
अलोक सिंह "साहिल'
वाह बहुत सुन्दर उपमाएं दी है,., सुन्दर बिषय को कविता मै ढलने के लिए..
मुझे ये पंक्तिया बहुत पसंद आई
मेरी पीर
एकांत का चाकू देखे,
तो तरबूज़ की तरह फट जाती है
सोचता हूँ खा जाऊं
सामने पड़े,
जमे हुए लहू के अश्कों को
पर बीज बनकर,
वो सुनहरी यादें आ जाती हैं!
अच्छी कविता है....दर्द को बेहतर जीने लगे हैं आप......लेकिन थोडा कविताओं के और भी तेवर आजमाएं....बधाई.....
निखिल
आँसू भी
जग हंसाई से डरते हैं!
पहले तो खुल कर बहते थे
अब अपनी ही आँखों से,
चोरों की तरह निकलते हैं!
कहीं लोग यह ना कहें
वो तो गयी..
यह देवदास बन गया है
मेरी आहें सिसक रहीं हैं!
उसे
कोई मिल गया है..
इंसान हूँ
दर्द होता है
वो किसी को प्यार से देखे
दिल सुलग उठता है!
यही नियति है
कोई क्या कर सकता है?
इश्क़ में शायद..
सबको दर्द मिलता है!
जो रेल छूटी थी
पहले ख़ाली थी
अब
कोई चढ़ गया है!
मैं खड़ा
चुपचाप देख रहा हूँ
उसे
कोई मिल गया है..
भावुक पंक्तियाँ....
सुनीता यादव
विपुल भाई मान गये, क्या दर्द निकाला है...और जब दर्द निकलता है तो भटकाव भी होता है, क्योकीं हर दर्द पन्नों पर आने के लिये मचलने लगते है, फिर कवि कविता छोड खुद को लिखने लगता है... शुरुआत और अन्त बहुत अच्छा बन पडा है...बधाई स्वीकार करें.
दिल उस वक्त ना रोया था, जब हमने तुमको खोया था,
ये सुन दिल रो पडा की तुझको कोई मिल गया है.
मेरी पीर
एकांत का चाकू देखे,
तो तरबूज़ की तरह फट जाती है
सोचता हूँ खा जाऊं
सामने पड़े,
जमे हुए लहू के अश्कों को
पर बीज बनकर,
वो सुनहरी यादें आ जाती हैं!
जो रेल छूटी थी
पहले ख़ाली थी
अब कोई चढ़ गया है!
मैं खड़ा चुपचाप देख रहा हूँ
उसे कोई मिल गया है..
विपुल जी, रचना अच्छी है और भावपूर्ण भी, इसमें कोई संदेह नहीं। थोडी लम्बाई अनावश्यक है जिसका कारण आपका भावावेश और डूब कर लिखना है...आपका लेखन निरंतर निखर रहा है। बधाई स्वीकारें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
मेरे आँसू रोते हैं
उसका हक है ना इन पर!
जो अब अदा हो रहा है..
आँसू बेचारे असमंजस में हैं
रोएँ या हँसे?
कारण
उसे
कोई मिल गया है...
इंसान हूँ
दर्द होता है
वो किसी को प्यार से देखे
दिल सुलग उठता है!
यही नियति है
कोई क्या कर सकता है?
इश्क़ में शायद..
सबको दर्द मिलता है!
EMOTIONS SAHI HAIN....JO KAHANA CHAHATE THE SAAF UBHAR KE AA RAHA HAI....LIKHTE RAHIYE
मेरी पीर
एकांत का चाकू देखे,
तो तरबूज़ की तरह फट जाती है
सोचता हूँ खा जाऊं
सामने पड़े,
जमे हुए लहू के अश्कों को
पर बीज बनकर,
वो सुनहरी यादें आ जाती हैं!
वह वह बहुत खूब-----यह कुछ पंक्तियाँ ही एक कविता जैसी हैं --कविता लम्बी है मगर आप इसी में से तीन कवितायें बना सकते हैं-थोड़ा संशोधन करें-टूटे दिल की कसक पेड को क्या खूब बताया है लेकिन थोड़ा बिखरा गयी है-बस समेत लें और निखर आ जाएगा-dhnyawad
vipul sir...........
aap ne jo apne hraday ke bhavo ko jan panktiyon ke saath vyakt kiya vah bahut hii prasshnniya hai.........
bhavo ki abhivyaki bahut hii achhi hai.aasha hai aap aage bhi aisi hii rachnaye rach kar ,hum jaise apne prashshnshako ke dil per raaz karege.
aapka prashshnshak aur anuj :chanchal gandharva
विपुल भाई इस कविता ने मुझे बहुत ही तौच किया. शुरवात और अंत नि संदेह ही सुन्दर है. निरंतर आप ऊँचे
उठ रहे हैं. तारीफ को शब्द ही नहीं है मेरे पास .बहुत ही सुन्दर रचना.
अब मैं नहीं रोता,कभी नहीं
मेरे आँसू रोते हैं
उसका हक है ना इन पर!
सोचता हूँ खा जाऊं
सामने पड़े,
जमे हुए लहू के अश्कों को
पर बीज बनकर,
वो सुनहरी यादें आ जाती हैं!
विपुल,
दिल के दर्द को बखूबी शब्द दिये हैं तुमने। सारी बातें अपनी-सी लगती हैं। केवल यह लगा कि अंतिम पैराग्राफ पर मेहनत किया जा सकता था। वह एक कमजोर कड़ी है।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
vipul sir,i apriciate ur affort.it is realy a soul touching poem. keep writting.all the best.
विपुल ,
वियोगी होगा पहला कवि आह से निकला होगा गान;
उमड़ क आँख से चुपचाप बही होगी कविता अनजान.
तुम्हारी कविता वियोग का अच्छा उदाहरण है,मुझे तरबूज की फसल लहरा रही है, और वह किसी को प्यार से देखे दिल सुलग उठता है.ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी तुम्हारी ये पंक्तियाँ विरह की वेदना और कविता में जान फूंक देती है.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)