अब हम टॉप १० से आगे बढ़ते हैं। ग्याहरवें स्थान पर वरिष्ठ कवि श्यामल सुमन जी की रचना है 'जागरण' । श्यामल जी हिन्द के लिए नये नहीं हैं , लेकिन हाँ यदा-कदा विचरण करने वाले पाठक हैं। आज उन्हीं की कविता के साथ जागरण की जाय।
कविता- जागरण
कवि- श्यामल सुमन, जमशेदपुर (झारखण्ड)
बीस घरों के राग रंग में, अस्सी चूल्हे बंद हुए क्यों?
लोकतंत्र के प्रायः प्रहरी, इतने आज दबंग हुए क्यों?
दुबक गए घर बुद्धिजीवी, खुद को मान सुरक्षित।
चहुँओर है धुआँ-धुआँ ही, यह क्यों नहीं परिलक्षित?
दग्ध हुई मानवता जिसको, मिलकर नहीं सहलायेंगे।
तो इस आग में हम भी जल जायेंगे।।
जन के सर, पग धर ही कोई, लोकतंत्र के मंदिर जाता।
पद, पैसा, प्रभुता की खातिर, अपना सुर और राग सुनाता।
उनकी चिन्ता किसे सताती, जो जन राष्ट्र की धमनी है।
यही व्यवस्था की निष्ठुरता, उग्रवाद की जननी है।
राष्ट्रवाद उपहास बनेगा, यदि हम न कुछ कर पायेंगे।
तो इस आग में हम भी जल जायेंगे।।
बना हिन्द बाजार जहाँ नित, गिद्ध विदेशी मँडराते हैं।
यहीं के श्रम और साधन पे, परचम अपना फहराते हैं।
विश्वग्राम नहीं छद्म गुलामी, का लेकर आया पैगाम।
आजादी के नव-विहान हित, अलख जगायें हम अविराम।
सजग रहे माली उपवन का, तभी सुमन खिल पायेंगे।
या इस आग में हम भी जल जायेंगे।।
जजों की दृष्टि-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७, ७॰७५, ७॰३
औसत अंक- ७॰३५
स्थान- चौथा
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७, ७॰२
औसत अंक- ७॰१०
स्थान- दूसरा
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी- केवल बयान कभी कविता नहीं बन पाता। जो मुद्दे मन को गहरे तक मथते हैं, उन पर सम्भवत: अधिक सहजता व काव्यात्मकता से लिखा जा सकता है। सरोकारों की गहराई भी पकड़िए।
अंक- ५
स्थान- ग्यारहवाँ
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4 कविताप्रेमियों का कहना है :
बना हिन्द बाजार जहाँ नित, गिद्ध विदेशी मँडराते हैं।
यहीं के श्रम और साधन पे, परचम अपना फहराते हैं।
विश्वग्राम नहीं छद्म गुलामी, का लेकर आया पैगाम।
आजादी के नव-विहान हित, अलख जगायें हम अविराम।
सजग रहे माली उपवन का, तभी सुमन खिल पायेंगे।
या इस आग में हम भी जल जायेंगे।।
बहुत सुन्दर कविता! अच्छा चित्रण है
कड़ी की अन्तिम लाइन बोलते समय
लय-भंग होता है
श्यामल सुमन जी,
बहुत ही प्रसंशनीय गीत बन पडा है, गहरी सोच है पाठक को उर्जावत करने में सफल रचना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
प्रेरित करने वाली कविता है.
अवनीश तिवरी
जब लय में कविता लिखी जा रही हो तो छंदविधान का सदैव निर्वाह अपेक्षित है। प्रतीत होता है कि आपने इस कविता का आवश्यक अभ्यास नहीं किया था। वैसे कविताओं को प्रकाशित करने का यह उद्देश्य यहाँ पूरा होता है। निम्न पंक्तियाँ पसंद आईं।
बना हिन्द बाजार जहाँ नित, गिद्ध विदेशी मँडराते हैं।
यहीं के श्रम और साधन पे, परचम अपना फहराते हैं।
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