1)तस्वीर
तेरी आँखो में
चमकते हुए
अपने ही चेहरे के अक़्स..
2)नदी का पानी
एक बहता हुआ सन्नाटा
धीरे धीरे तेरी यादो का..
3)सावन की बदरी
चलो!
प्यार का एक सपना
फिर से बुने
इन आंखो में भरी है
फिर से बुने
इन आंखो में भरी है
सावन की बदरी..
4)इन्द्रधनुष
सात रंगो से सज़ा
कोई नशीला गीत
दिखता हर रंग में
बस एक ही लफ़्ज़
प्रीत ..
4)इन्द्रधनुष
सात रंगो से सज़ा
कोई नशीला गीत
दिखता हर रंग में
बस एक ही लफ़्ज़
प्रीत ..
5)ख़ामोशी
तेरे दिल की अंतर गहराई से
मेरी नज़रो से दिल में उतरती..
6)रिश्ता
रूह से रूह का
एक बेनाम सा
पर दिल की अन्तस
गहराई में डूबा
क्या ज़रूरी है
इस को कोई नाम देना ..
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
18 कविताप्रेमियों का कहना है :
रंजना जी,
सभी क्षणिकायें सुन्दर बन पडी है... खास कर
तेरी आँखो में
चमकते हुए
अपने ही चेहरे के अक़्स..
चलो! प्यार का एक सपना
फिर से बुने
इन आंखो में भरी है सावन की बदरी..
रूह से रूह का
एक बेनाम सा
पर दिल की अन्तस
गहराई में डूबा
क्या ज़रूरी है
इस को कोई नाम देना
रूह से रूह का
एक बेनाम सा
पर दिल की अन्तस
गहराई में डूबा
क्या ज़रूरी है
इस को कोई नाम देना ..
IT REFLECTS D WAYS OF MY THOUGHT PROCESS. AAPNE BAKHUBI UKERA HAI SHABDO ME.
U know wat....ye short poem ke baare mein meko kuchh pata nahi tha....Ranju ji ne hin bataya ki dats also a sort of Poems..! :)
Well..agar kam shabdon mein badi baat kahne wali baat hai...den first tyme meko lag raha hai ki aapke poems ko samjhne ke liye thodaaaa sa dimag lagana pada hai meko..! :)
Nyway...wo kahte hain naa...aap kuchh bhi likhiye...best is always best...hats off 2 u ranju ji..! ;)
Keep doin dis....n yeah...meko bhi kuchh kuchh sikhate rahiye..like u always do..! :)
"कुछ यूँ ही" पढ़ने लगे तो हो गये भाव-बिभोर.
अपलक आखें ताकतीं छणिकाओं की ओर..
छणिकाओं की ओर लिये अतुलित सुन्दरता
पढ़ते पढ़ते थक गये पर जी नही भरता
कैसे व्यक्त अब हम करें रंजू जी आभार
लेकर आना शीघ्र ही 'कुछ यूँ ही' भाग-4
शुभकामनाएं व बधाई
-राघव
रंजना जी
सभी क्षणिकायें उत्कृष्ट है और हृदय स्पर्शी भी। "नदी का पानी तो बस कमाल की रचना है।
***राजीव रंजन प्रसाद
"रूह से रूह का
एक बेनाम सा
पर दिल की अन्तस
गहराई में डूबा
क्या ज़रूरी है
इस को कोई नाम देना"
"हमने देखी हैं इन आंखों में चमकती………दूर से रह्कर महसूस करो……की याद आपने एक बार फिर ताजा करा दी रंजू जी,तिलिसमी दुनिया वाला प्यार अब वाकई बेनाम हो चुका है।
शानदार!!
पिछले कुछ समय से आपके लेखन में बदलाव तो स्पष्ट दिख रहा था।
यह बदलाव इतना अच्छा होगा यह मैने नही सोचा था!!
वाकई बहुत शानदार!!
रूह से रूह का
एक बेनाम सा
पर दिल की अन्तस
गहराई में डूबा
क्या ज़रूरी है
इस को कोई नाम देना ..
निशब्द हूँ.....
एक बहता हुआ सन्नाटा
धीरे धीरे तेरी यादो का..
सात रंगो से सज़ा
कोई नशीला गीत
दिखता हर रंग में
बस एक ही लफ़्ज़
प्रीत ..
क्या ज़रूरी है
इस को कोई नाम देना ..
वाह! क्या बात है रंजू जी। हर क्षणिका एक-से बढकर एक है। दिल खुश हो गया।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
बहुत खूब रंजना जी
रंजना जी सभी क्षणिकाएँ बढिया हैं. खास तौर पर पाँचवी तक. छठी में नएपन का अभाव लगा मुझे.
नदी के पानी को कुछ इस तरह पढने की इच्छा हुई मेरी....
एक बहता हुआ जीवन
धीरे धीरे तेरी यादो का..
अति सुन्दर........
सावन की बदरी: कुछ कुछ ठीक है। पर बाकी सब तो जबरगस्ती लिखा हुआ है। किसी ने मजबूर किया था क्या लिखने को ? ऐसा लिखने से अच्छा है कि कुछ न लिखें।
तेरी आँखो में
चमकते हुए
अपने ही चेहरे के अक़्स..
रूह से रूह का
एक बेनाम सा
पर दिल की अन्तस
गहराई में डूबा
क्या ज़रूरी है
इस को कोई नाम देना ..
वाह..कुछ क्षणिकाएँ अच्छी बन पड़ी हैं....शुरू की क्षणिकाएँ बेहद संक्षिप्त होने की वजह से भाव स्पष्ट कर पाने में कमजोर लग रही हैं...ये मेरे अपने विचार हैं....
बस यही कहूँगा कि क्षणिकाएँ लिखना बेहद मुश्किल काम है.....
निखिल आनंद गिरि
वाह बहुत सुन्दर हैं.. सब के सब एक से बाद कर एक
बदहाई स्वीकार कीजिए ..
बहुत ही भावपूर्ण क्षणिकाएँ । हर क्षणिका जैसे कोई रोशनी में चमकता ओस बिंदु हो.
ऊपर से पाँचों क्षणिकाएँ अच्छी हैं। छठवीं में कुछ अतिरिक्त शब्द हैं- 'अन्तस' लिखने की आवश्यकता नहीं थी। क्षणिका विधा को अब आप समझने लगी हैं। नाप-तौल लिखना आने लगा है आपको। मैं बहुत खुश हूँ।
apki sari rachnaye bahut acchi hai kisi ek ke bare main kahoo to samaj nhi ayega ki unko siriol main kesse lagaoo isliye inhe ese hi rehne dete hai or ye esse hi acchi bhi lag rahi hai.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)