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Wednesday, October 31, 2007

सिन्धु और सरिता


सितम्बर माह की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता से आज हम आखिरी कविता लेकर आये हैं। हम पिछले २ महीनों से प्रतियोगिता की उत्कृष्ट २० कविताएँ एक-एक करके प्रकाशित करते हैं। २०वीं कविता 'सिन्धु और सरिता' की रचयिता दिव्या श्रीवास्तव पिछले ४-५ महीनों से प्रतियोगिता में भाग ले रही हैं और लगभग हर बार इनकी कविता प्रकाशित हुई है। लेखन की इस स्थिरता को हमारा नमन।

कविता- सिन्धु और सरिता

कवयित्री- दिव्या श्रीवास्तव, कोलकाता



सत्य है, मुझे तुमसे प्रेम है...
मेरा प्रेम और तुम्हारा प्रेम
भिन्न है...
तुम्हारा प्रेम सिन्धु है,
उतावला, चंचल...
कभी-कभी निर्मोही,
मेरा प्रेम सरिता है,
शांत स्निग्ध-सा बहता हुआ...
सिन्धु लहरों को टकराता,
उफनता...सरिता को स्वयं में
विलीन करना चाहता है...
सरिता, धीरे धीरे शृंखलाओं
से उतरती, सपने बुनती है
प्रिय से मिलन की..
मेरी आँखों में
वही सपने हैं
और तुममें बस
पाने की चाह...
अपने हर संशय
को ले सरिता...सिन्धु
के गर्भ में जा
मिलती है...
वो मिलन कितना
अनोखा है एवं
दोनों संग में
बहते हैं
अपना अस्तित्व खोकर
यही तो प्रेम है...
सत्य है
मुझे तुमसे प्रेम है...

रिज़ल्ट-कार्ड
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७, ९, ५॰५, ६॰१५, ६॰६
औसत अंक- ६॰८५
स्थान- ग्यारहवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-६॰७५, ८॰३, ४, ६॰८५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰४७५
स्थान- बीसवाँ
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

Excellent !!!!!!!!बहुत ही सुन्दर बन है.


बधायी.

अवनीश तिवारी

शोभा का कहना है कि -

दिव्या जी
प्रेम का इतना सुन्दर वर्णन किया है कि पढ़कर मैं भाव विभोर हो गई हूँ ।
तुम्हारा प्रेम सिन्धु है,
उतावला, चंचल...
कभी-कभी निर्मोही,
मेरा प्रेम सरिता है,
शांत स्निग्ध-सा बहता हुआ...
सिन्धु लहरों को टकराता,
उफनता...सरिता को स्वयं में
आप सच में हृदय की अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने में सफल हुई हैं । बधाई स्वीकारें ।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

अपने हर संशय
को ले सरिता...सिन्धु
के गर्भ में जा
मिलती है...
वो मिलन कितना
अनोखा है एवं
दोनों संग में
बहते हैं
अपना अस्तित्व खोकर
यही तो प्रेम है...
सत्य है
मुझे तुमसे प्रेम है...

सचमुच प्रेम की गहरी अनुभूति के साथ लिखी गयी एक गहरी कविता। बधाई।

*** राजीव रंजन प्रसाद

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

कविता की शुरूआत से ऐसा लगता है कि सरिता को सिन्धु से प्रेम तो है लेकिन सिन्धु का सरिता के लिए प्रेम उतना महान नहीं है जितनी की सरिता को अपेक्षा है। और सरिता की गति पर कविता खत्म होती है। मुझे कविता बहुत कड़ीगत नहीं लगी। फ़िर भी अच्छी लगी। आपका हिन्द-युग्म प्रेम बना रहे।

Sajeev का कहना है कि -

waah kya baat hai , bahut hi sundar, sundu- sarita ke madhyam se aapne stri-purush ke mool swabhaav ka aakar de diya hai

गीता पंडित का कहना है कि -

अपने हर संशय
को ले सरिता...सिन्धु
के गर्भ में जा
मिलती है...
वो मिलन कितना
अनोखा है एवं
दोनों संग में
बहते हैं
अपना अस्तित्व खोकर
यही तो प्रेम है...
सत्य है
मुझे तुमसे प्रेम है...


बहुत सुन्दर
यही तो प्रेम है...दिव्या जी


बधायी.

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