अगस्त की प्रतियोगिता की ख़ास बात यह रही कि इसमें हमें कुछ नये हस्ताक्षर मिले। इस बार की टॉप १० लिस्ट में ६ नाम नये हैं। यह हमारे लिये गर्व की बात है। इससे यह पता चल रहा है कि इंटरनेट पर सक्रिय रचनाकारों में भी हलचल हो रही है। आज सातवें स्थान की हलचल----
कविता -भूख
रचयिता- पंकज रामेन्दू मानव, नई दिल्ली
जब घुटने से सिकुड़ा पेट दबाया जाता है
जब मुँह खोल कर हवा को खाया जाता है
जब रातें, रात भर करवट लेती हैं
जब सुबह देर से होती है
जब चाँद में रोटी दिखती है
तब दिल में यह आवाज़ उठती है
भूख ऐसी ही होती है
भूख ऐसी ही होती है
जब गिद्ध मरने की राहें तकता है
जब कचरे में भी कुछ स्वादिष्ट दिखता है
जब कलम चलाने वाला बार-बार दाल-चावल लिखता है
जब एक वक़्त की खातिर जिगर का टुकड़ा बिकता है
जब रातें सूरज पर भारी होती हैं
तब दिल से एक आवाज़ होती है
भूख ऐसी ही होती है
भूख ऐसी ही होती है
जब हांडी में चम्मच घुमाने का कौशल दिखलाया जाता है
जब चूल्हे की आँच से बच्चों का दिल बहलाया जाता है
जब माँ बच्चों की कहानी सुना, फुसलाती है
जब सेहत की बातें बता ज़्यादा पानी पिलवाती है
जब रोटी की बातें ही आनंदित कर जाती हैं
तब दिल से एक हूक उठती है
भूख ऐसी ही होती है
भूख ऐसी ही होती है
जब पेट का आकार बड़ा सा लगता है
जब इंसान भगवान पर दोष मढ़ता है
जब भरी हुई थाली महबूबा लगती है
जब महबूबा सुंदर कम स्वादिष्ट ज़्यादा दिखती है
तब दिल से एक हूक उठती है
भूख ऐसी ही होती है
भूख ऐसी ही होती है
जब एक टुकड़ा ज़िंदगी पर भारी लगता है
जब तिल-तिल कर जीना लाचारी लगता है
जब बातें रास नहीं आती
जब हंसना फनकारी लगता है
जब एक निवाले पर लड़ती भौंक सुनाई देती है
तब दिल से एक हूक उठती है
भूख ऐसी ही होती है
भूख ऐसी ही होती है
रिज़ल्ट-कार्ड
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ९॰५, ८॰८२१४२८
औसत अंक- ९॰१६०७१४
स्थान- तीसरा
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-८॰७५, ९॰१६०७१४ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ८॰९५५३५७
स्थान- तीसरा
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-ठीक-ठाक रचना है। वर्तनी भी। कुछ और गंभीर होना होगा। कुछ प्रयोग अवशिष्ट को भरने का प्रयास- से लगते हैं। सामाजिक स्थिति पर विस्तार से कही गई है।
अंक- ४॰५
स्थान- सातवाँ या अठवाँ
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
एक अच्छा प्रयास। भूख को ले कर कई बिम्ब संवेदित करते हैं तो कई कवि के संवेदना उकेरने के प्रयास को ही कम कर देते हैं उदाहरण के लिये " जब महबूबा सुन्दर कम स्वादिष्ट ज्यादा दिखती है"
कला पक्ष: ६॰६/१०
भाव पक्ष: ७/१०
कुल योग: १३॰६/२०
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पुरस्कार- डॉ॰ कविता वाचक्नवी की काव्य-पुस्तक 'मैं चल तो दूँ' की स्वहस्ताक्षरित प्रति
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
पंकज जी
अच्छी कविता है । समाज की विषमता का यथार्थ वर्णन किया गया है ।
भाव और भाषा दोनो ही सुन्दर हैं । समाज के प्रति जो जागरूक है वही
सच्चा कवि है । बधाई स्वीकारें ।
ek ghazal yaad ho aayi-
bhukhe bachon ki tasalli ke liye
maa ne fir paani pakaya der tak,
pankaj aapne do jagah awaaz aur baki sab jagah hook shabd ka istemaal kiya hai kya yah tankan ki galti hai ya jaan kar kiya prayog hai
पंकज जी,
बहुत सुन्दर भाव हैं। एक संपूर्ण कविता के लिए बधाई।
जब कलम चलाने वाला बार-बार दाल-चावल लिखता है
जब एक वक़्त की खातिर जिगर का टुकड़ा बिकता है
जब भरी हुई थाली महबूबा लगती है
जब महबूबा सुंदर कम स्वादिष्ट ज़्यादा दिखती है
तब दिल से एक हूक उठती है
भूख ऐसी ही होती है
भूख ऐसी ही होती है
आपकी सृजन-शक्ति लाजवाब है। उम्मीदें बढ़ गईं हैं।
पंकज जी,
एक अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
अच्छी कविता पंकज जी
बधाई ...
पंकज जी!
अच्छी कविता है. माननीय निर्णायकों की सम्मति पर ध्यान दीजियेगा.
कविता भूख को विस्तार तो देती है, मगर प्रवाह नहीं रख पाती। कोई छंद किसी गति तो कोई छंद किसी गति से आगे बढ़ती है। मेरे विचार से इसे अतुकांत लिखा जाता तो और प्रभावी होती। फ़िर भी आपमें दम तो है ही। अगली बार के लिए शुभकामनाएँ।
पंकज जी "सम्वेदना "विषय पर आपकी रचना ने अत्यन्त प्रभावित किया था ।लेकिन इसने दिल को छु लिया भूख का इतना सम्वेदनशील,सटीक और सजीव चित्रण ..... काबिले तारीफ है । बधाई !!!!
जब हांडी में चम्मच घुमाने का कौशल दिखलाया जाता है
जब चूल्हे की आँच से बच्चों का दिल बहलाया जाता है
जब माँ बच्चों की कहानी सुना, फुसलाती है
जब सेहत की बातें बता ज़्यादा पानी पिलवाती है
जब रोटी की बातें ही आनंदित कर जाती हैं
तब दिल से एक हूक उठती है
भूख ऐसी ही होती है
भूख ऐसी ही होती है
जी हाँ भूख ऐसी ही होती है... मार्मिक वर्णन है... आँसु आ गये पढ कर।
पंकज जी,
मुझे कविता बहुत पसन्द आई।
जब चाँद में रोटी दिखती है
जब हांडी में चम्मच घुमाने का कौशल दिखलाया जाता है
जब चूल्हे की आँच से बच्चों का दिल बहलाया जाता है
जब माँ बच्चों की कहानी सुना, फुसलाती है
जब सेहत की बातें बता ज़्यादा पानी पिलवाती है
जब पेट का आकार बड़ा सा लगता है
जब इंसान भगवान पर दोष मढ़ता है
जब भरी हुई थाली महबूबा लगती है
जब महबूबा सुंदर कम स्वादिष्ट ज़्यादा दिखती है
जब एक टुकड़ा ज़िंदगी पर भारी लगता है
आपके काव्य को नमन।
भूख की परिभाषा को विस्तार देती हुई सुन्दर कविता है... इस कल्पना को वही जी सकता है जिसने इसे करीब से देखा हो.....बधायी.
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