सब ने इतनी सुंदर सुंदर क्षणिकाएँ लिखी है ..मैंने सोचा की मैं भी इस विधा में कुछ कोशिश करूँ :) अब कितनी कामयाब हुई हूँ
आप सब के विचार जान के ही यह पता चलेगा :) शुक्रिया
1.खामोशी ..
कभी कभी कुछ कहना भी
कितना अजब सा हो जाता है
खामोश रह कर भी दिल सब कुछ
कैसे कह जाता है ??
2. उलझन
बनो तुम चाहे
मेरी कविता
चाहे बनो अर्थ
चाहे बनो संवाद,
पर मत बनो
ऐसी उलझन
जिसे में कभी
सुलझा न सकूं!
3.जिन्दगी
कितना अच्छा हो न..
कि मैं कुछ न बोलूं
और तुम सब समझ जाओ
और जिन्दगी यूं ही
प्यार से गुजर जाए !
4.तन्हा
चाँद भी तन्हा
तारे भी हैं अकेले
और हम भी उदास से
उनकी राह तकते हैं
तीनो हैं तन्हा एक साथ
फ़िर भी क्यों इस कदर
अकेले से दिखते हैं ?
5.साथ -साथ
अभी मौसम ने मिज़ाज
बदला नही है..
गरम हवा भी जला रही है
फ़िर भी हैं हम साथ- साथ
यह बात फिजा को कुछ महका रही है!
6. चुपके से
आओ बेठो मेरे पास
और कुछ चुपके
से कह जाओ
पर न जगाना
उन उलझनों को
जिनको थपथपा
के मैंने सुलाया है अभी !
7.. दर्द
यह दर्द भी अजीब शै है
जिद्दी मेहमान सा..
दिल में बस जाता है
फ़िर चाहे इसको
पुचकारो ,संभालो जितना
यह उतना ही नयनों से
छलक जाता है!
8.प्रेम की एक नई भाषा
यूं मुझे मुस्कराता देख के
दिल में खुशी के दीप न जलाओ
देखो इस के पीछे बहते कुछ आंसू ,
और हैं कुछ सर्द सी आहें,
एक दबी घुटी सी चाह ,
आओ झांको मेरी नज़रों में
और प्रेम की एक नई भाषा
फ़िर से पढ़ जाओ !!
9. टुकडे
जिन्दगी बीत गई यूं ही
बस टुकडे टुकड़े में,
ख़ुद को बाँट दिया
हमने न जाने
कितने टुकड़ों में
कभी तोड़े कुछ सपने
कभी अपने वजूद को
किया ख़ुद से पराया
पर कब जीते हैं हम
सिर्फ़ हमने लिए
यह दिल कभी समझ नही पाया !!
10. तन्हाई
बहुत जिद्दी है मेरी तन्हाई
जब तक होते हो तुम साथ
तो करके बहाने इसको सुला देती हूँ
पर जाते ही तुम्हारे
यह जाग के फ़िर से
मुझसे लिपट जाती है
अधिक तन्हा उदास हो जाती है !!
11.ख़त
लिखे थे तुमने दो ही ख़त मुझको
एक था जिसमे प्यार भरा था
और दूसरे में शिकवा गिला था
आज तक बस इसी सोच में हैं दिल
कौन सा ख़त भला था और
कौन सा बुरा था !!
12.कविता
लिख के अपने दिल की बातें
कविता का रूप दे देती हूँ
इसी बहाने ही सही
जिन्दगी के सपनो को
कुछ पल तो जी लेती हूँ !!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
33 कविताप्रेमियों का कहना है :
saari hi lines bilkul dil ko choone wali likhi gayi hain.......the work of ranjana ji is always the best one.......they all really touched my heart.......thanx a lot for writing such beautiful lines......
ab tak jitna parha tumhe ye sarvsgreshth laga mujhe aaj tum pahunch rahee ho wahan jahan ke liye kavita ka safar tum ne shuroo kiya tha
Anil masoomshayer
waise to all the poems written r vry gud but the poem "likhe they tumne do khat........." is really awesome....
u r the best .. bass usse jayada abb kya kaha jaye
mujhe to pata b nahi k क्षणिका विधा kyaa hoti hai....... bt ab pata chlaa k ye hoti hai.... i was known to this bt bas naam nahi pata tha
jaha tak baat hai aap ki safaltaa ki... meri taraf se SAFALTA ka MARK LAG CHUKAA HAI
SABHI RACHNAAYE BAHUT aachi thi itni aachi k shuru me sochaa tha ki 1 mention kungaa comment me bt jaqise jaise aage jata raha 1 sr badh k 1 sunder lagti rahi
great work.......only this i can say........i don't ha vmore wods 4 it in my shabad-kosh
रंजना जी,
आपकी इन क्षणिकाओं को पढते ही बरबस वाह!!! कर उठा। शायद अब तक युग्म पर प्रकाशित क्षणिकाओं में सबसे अनूठी आपकी क्षणिकायें ही हैं इस का कारण है इसमें प्रयुक्त शब्द और भाव..कभी किसी शेर पढने सी प्रतीति होती है तो कहीं पूरा सागर है इस गागर में।
बहुत प्रसंशनीय।
*** राजीव रंजन प्रसाद
रंजना जी विश्वास नहीं हो रहा कि आपने क्षणिकायें पहली बार लिखी हैं । गहरी और भावभीनी । किसी एक को कैसे उल्लेखित किया जाये न्यायसंगत नहीं होगा ।बार-बार पढने को दिल चाह रहा है ।
रंजना जी,
मुझे आपकी प्रेम भरी सभी कवितायें अच्छी लगती हैं। अपने अब तक जितनी भी गज़ल अथवा कविता लिखी हैं मेरे दिल को छुईं हैं। आज भी अच्छा लिखा है आपने। परन्तु यहाँ कुछ क्षणिकायें मुझे जमी नहीं। आप मुझसे वरिष्ठ हैं और मुझसे ज्यादा जानती हैं। निवेदन आप अन्यथा न लें, पहली "खामोशी" पढी सी लगी।कुछ नयापन नहीं था। अगली दो "उलझन" व "जिन्दगी" सादारण लगी। बाद में रंग जमने लगा और अंतिम क्षणिका यकीन मानिये दिल तक पहुँची।
लिख के अपने दिल की बातें
कविता का रूप दे देती हूँ
इसी बहाने ही सही
जिन्दगी के सपनो को
कुछ पल तो जी लेती हूँ !!
पर आप इससे बहुत अच्छा लिख सकती हैं। मैं उम्मीद करता हूँ कि अगली बार आप मेरी आँखों में आँसू ज़रूर लायेंगी।
तपन शर्मा
इन्हें सुन्दर क्षणिकायें कहूँ या सुन्दर मणिकायें समझ नहीं आ रहा...
सुबह सुबह ह्र्दयस्पर्शी पढकर चित्त प्रसन्न हुआ..
धन्यवाद
बहुत खूब!!
रंजना जी आइना अक्सर हमें वही दिखाता है जो हम देखना चाहते हैं और वह भी दिखाता है जो हम खुद में अभी तक नही देख पाए थे, तो क्यों ना इसी तरह आप अपने दर्पण में अपने कोण बदल बदल कर अपने आप को देखती रहें ताकि हर बार आपका एक नया रुप , आपके लेखन का हर कोण हम देख सकें।
खामोश रह कर भी दिल सब कुछ
कैसे कह जाता है ??
पर मत बनो
ऐसी उलझन
जिसे में कभी
सुलझा न सकूं!
पर न जगाना
उन उलझनों को
जिनको थपथपा
के मैंने सुलाया है अभी !
कौन सा ख़त भला था और
कौन सा बुरा था !!
बहुत सुंदर क्षणिकाएँ हैं रंजू जी। अब तो आप इस विधा में भी उतर गईं। अच्छी प्रतियोगिता होगी अब :)
बधाई स्वीकारें।
मुझे कुछ खास नहीं लगी । कारण सोचना पड़ेगा ? वैसे इतने लोगों ने प्रशंसा की है
तो कुछ तो होगा ही । सस्नेह
लिखे थे तुमने दो ही ख़त मुझको
एक था जिसमे प्यार भरा था
और दूसरे में शिकवा गिला था
आज तक बस इसी सोच में हैं दिल
कौन सा ख़त भला था और
कौन सा बुरा था !!
mujhe apki ye line bahut pasand aayee.aapne safal prayas kiya hai.par yakin janiye ap isase bhi behtar likh sakti hai.....sach me.
रंजना जी!
पहले प्रयास के लिहाज़ से क्षणिकायें बुरी नहीं हैं. आशा है कि अगली बार और बेहतर पढ़ने को मिलेगा.
Aapaki sabhi kavitayen bahut hi achhi lagi
Par sabhi mein dard ki anubhuti hai.
Ishwar ne jeevan khush rahne ke liye diya hai.
Dard mein bhi kuch khushiyon ke pal dhundh sakati hain aap
Ishwar de do jahan ki khushiyan aapako
In khushiyon ko apne ird gird hi bator sakati hain aap
वाह जी, बहुत खूब. बड़ी बड़ी गंभीर बातें बांध ली इन क्षणिकाओं में.
यही तो सुन्दरता है इनकी...
देखन में छोटी लगे,
घाव करे गंभीर..
यह काम सफलतापूर्वक करने की बधाई.
और प्रयास जारी रखें. कलम में धार है और पैने वार कर सकने की क्षमता है, शुभकामनायें.
hi
apki har kavita bahut achhii hoti hai . or is kavita ki bhi jitni tarif ki jaye utni kam hai.
kshanikayen acchi lagi....visheshkar ye panktiyaan...
चाँद भी तन्हा
तारे भी हैं अकेले
और हम भी उदास से
उनकी राह तकते हैं
तीनो हैं तन्हा एक साथ
फ़िर भी क्यों इस कदर
अकेले से दिखते हैं ?
In panktiyon mein jo pramukh bhav hai...aur jiss tarah usse dikhaya gaya hai, wah waqai prashansaniya hai...
ranjana ji bahut achha prayas kiya aapne aur safal bhi, tippaniyon ki varsha hone wali hai, kahin nazar na lag jaye, mmujhe 'jindagi" sabse achhi lagi badhai sweekar karen
ranju jee bohat achi site hay mujhaa pher k pata chalaa k ehsasaat kia hootey hain
thanx
moazzam ali
Ankhon main aansuo ko ubhar ne na diya,
Mitti pe motiyo ko bikhar ne na diya,
Jis raah pe pade the tere kadamo ke nishan,
Uss raah se kissi ko gujar ne na diya..
bAHUT KHUB HAR BAAT KI TARAH is baar bhi ek bahut hi prashansniya rachna . prastut kavita main bhav upmaon avam alkaron ka yothochit prayog hua hai
rachna ke liye sadhuwad
aapka sudhi pathak arvind
रंजना जी,
पहली, तीसरी और छठी ये तीनों क्षणिकाएँ ’कहने’ के इर्द-गिर्द घूमती हैं। इस तरह से इस भाव का कुछ ज्याद ही विस्तार हो गया है।
लिखे थे तुमने दो ही ख़त मुझको
एक था जिसमे प्यार भरा था
और दूसरे में शिकवा गिला था
आज तक बस इसी सोच में हैं दिल
कौन सा ख़त भला था और
कौन सा बुरा था !!
ये क्षणिका इतनी अच्छी है कि इस पर टिप्पनी करना अपनी बेवकूफ़ी सिद्ध करना होगा। बहुत पसंद आई। विधा कोइ भी हो आपकी लेखनी का मै पहले ही लोहा मान चुका हुँ।
हर कविता में अलग एक मतलब है .. पर सब काविताओ में एक भाव समान है की कवि खुद खामोश रहना चाहती है और जिन्दगी को और जिन्दगी के राज को आपने पास से छुते हुए निकलता देख रहीं है.... हर कविता बहुत बहुत अच्छी है... खामोशी, तनहा, जिन्दगी, साथ साथ, दर्द.... सब की सब बहुत बहुत गेहेरी और खामोश हें..... आपकी प्रतिभा इन छोटी कवितायो के साथ एक असीम उचायी पे पहुच गयी है.
रंजना जी अच्छा लगा क्षणिकायें पढ़कर वैसे आपकी प्रेम-पूर्ण कवितायें भी बहुत ही लुभावनी बन गई है और क्षणिका पढ़कर तो लगा कि आप माहिर है इसमें...बहुत-बहुत बधाई
शानू
agar kisi ke dil ne pyar na kiya ho tho use iska kya arth pata chalega magar is tothe hue dil se pocho ek ek akshar dil ki gahrahiyu me dobta jata hain
great
and thanx
मेरी खामोश उलझन
चुपके से जिन्दगी को तन्हा कर दें।
यह दर्द ही तो है
जो साथ साथ प्रेम की नयी भाषा मे
कविता कहना सीखाता है
इसी दर्द के साथ जिंदगी के
टुकडो को बान्ध मै फिर चल देती हूँ
नयी क्षणिका की तरफ
अच्छा लिखा है रंजना जी।
'ख़त' दिल को छू गई।
ranju..bahot achcha prayas hai.....
mujhe asi hi choo lene vali chhanikaaye bahot pasand hain.....qamyaab raho.........
सटीक, सुन्दर.......नयी विधा में महारत के लिये बधायी.
उलझन, जिन्दगी, दर्द और खत बहुत पसन्द आये
रंजना जी,
सर्वप्रथम तो इस बात के लिए बधाई स्वीकारिए कि आप हर बार कविता में प्रयोग करने की हिम्मत कर रही हैं और कुछ हद तक सफल भी हो रही हैं।
आपकी सभी क्षणिकाएँ नहीं प्रभावित करती क्योंकि किसी में भाव अधूरे रह गये हैं तो किसी में विस्तार। लेकिन इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता, एक-दो पढ़कर लगता है कि आप इसपर अपनी कलम चलाती रहें तो अवश्य कामयाब होंगी। इसके लिए आप अमृता प्रीतम की आधुनिक, अतुकांत पढ़िए, ग़ज़ब के रूपक प्रयोग करती हैं वो।
मुझे इसने प्रभावित किया-
लिखे थे तुमने दो ही ख़त मुझको
एक था जिसमे प्यार भरा था
और दूसरे में शिकवा गिला था
आज तक बस इसी सोच में हैं दिल
कौन सा ख़त भला था और
कौन सा बुरा था !!
bhaut acchi line likhi hai. sach main har line main pyar bhara hai.
लिखे थे तुमने दो ही ख़त मुझको
एक था जिसमे प्यार भरा था
और दूसरे में शिकवा गिला था
आज तक बस इसी सोच में हैं दिल
कौन सा ख़त भला था और
कौन सा बुरा था !!
aapki ye line to mujhe kafi acchi lagi.
लिखे थे तुमने ,
दो ही ख़त मुझको wahh!!
ma'am aapki rachnayein dil ko chune wali hai..grt work!!!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)