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Friday, September 07, 2007

रात



चाँद को सीने से लगाए,
सितारों की सेज पर,
टिमटिमा रही है रात.

सूरज की थकी हुई,
आँखों से बहती,
सपनो की शराब,
हसीन तस्सवुरों के महल,
चुभती हुई उलझनों से परे,
नींद के झरोखों से झांक कर,
मुस्कुरा रही है रात.

नींद जहाँ नही सोयी है,
उन आँखों में भी है,
बोलती तनहाईयों की महक,
दर्द की खामोश कराह,
जुगनुओं की कौंधती चमक,
थमी थमी हलचल को,
फ़िर सुला रही है रात.

और भी हैं कुछ,
आवारा से ख़्याल,
हवाओं मे घुले घुले से,
जिनके पैरों मे चक्कर है,
उनको होंठों से चूमकर,
नगमा सा बन कर कुछ,
गुनगुना रही है रात.


------ सजीव सारथी ------

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

18 कविताप्रेमियों का कहना है :

Shastri JC Philip का कहना है कि -

आज सुबह एकदम से इस कविता पर नजर पडी. एक सांस मे पूर पढ गया. कविता ने हृदय को छू लिया.

दुसरे पाठ में कविता समझ में आने लगी क्योंकि रचनाकार ने खुल कर प्रतीकों का उपयोग किया है.

सजीव, आपकी कलम वाकी में रचनात्मक रूप से सजीव है. इसे नियमित रूप से उपयोग में लाये.

मेरी आप से यह शिकायत है कि आप कम लिखते हैं -- शास्त्री जे सी फिलिप

मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!

Anonymous का कहना है कि -

Nice and Touchingly Expressive

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

सजीव जी,

कविता मन को पंछी के पंख से स्पर्श करती है।

चाँद को सीने से लगाए,
सितारों की सेज पर,
टिमटिमा रही है रात.

कल्पना जैसे जैसे आपकी कविता में साकार होती गयी है गहरी होती गयी है -मध्यरात्रि की निद्रा की तरह।

नींद जहाँ नही सोयी है,
उन आँखों में भी है,
बोलती तनहाईयों की महक,
दर्द की खामोश कराह,
जुगनुओं की कौंधती चमक,
थमी थमी हलचल को,
फ़िर सुला रही है रात.

इन पंक्तियों पर तो केवल वह गीत गुनगुनाया जा सकता है - कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो...

हवाओं मे घुले घुले से,
जिनके पैरों मे चक्कर है,
उनको होंठों से चूमकर,
नगमा सा बन कर कुछ,
गुनगुना रही है रात.

आपको कोटिश: साधुवाद, इतनी अच्छी कविता पढवाने के लिये।

*** राजीव रंजन प्रसाद

रंजू भाटिया का कहना है कि -

वाह सजीव जी बहुत ही सुद्नर रचना लिखी है दिल को छू लिया है इस ने ..

और भी हैं कुछ,
आवारा से ख़्याल,
हवाओं मे घुले घुले से,
जिनके पैरों मे चक्कर है,
उनको होंठों से चूमकर,
नगमा सा बन कर कुछ,
गुनगुना रही है रात.


बेहद खूबसूरत पंक्तियां हैं ..बधाई सुंदर रचना के लिए !!

SahityaShilpi का कहना है कि -

सजीव जी!
बहुत खूब! आपकी रात सचमुच हसीन है. बहुत बहुत बधाई!

सुनीता शानू का कहना है कि -

बहुत सुन्दर कविता है सजीव जी पाठक को बांध लेने की शक्ति होती है आपकी रचनाओ में...बधाई स्वीकार करें...

शानू

anuradha srivastav का कहना है कि -

सजीव जी रात का वर्णन वो भी इतनी सजीवता से ......... बहुत पसन्द आया ।जो भी लिखते हैं वो एक नवीन संदर्भ में
,नये रुप में सामने आता है पूरी
चित्रात्मकता के साथ ।
सूरज की थकी हुई,
आँखों से बहती,
सपनो की शराब,
हसीन तस्सवुरों के महल,
चुभती हुई उलझनों से परे,
नींद के झरोखों से झांक कर,
मुस्कुरा रही है रात.

गरिमा का कहना है कि -

वाह! मनमोहक कविता बनी है।
रात बहुत खुबसुरत सी होती है, पर अब अन्दाजा लगाना मुश्किल है कि रात सुन्दर है या आपकी कविता.. बधाई।

शोभा का कहना है कि -

सजीव जी
रात का बहुत ही मनोहारी चित्रण किया है आपने । रात के इतने सारे रूप --- मज़ा आ गया ।
भाव और भाषा दोनो ही बेजोड़ हैं । विशेष रूप से रुपक और मानवीकरण का प्रयोग
प्रभावशाली बन पड़ है । निम्न पंक्तियों पर विशेष दाद देना चाहूँगी---
सूरज की थकी हुई,
आँखों से बहती,
सपनो की शराब,
हसीन तस्सवुरों के महल,
चुभती हुई उलझनों से परे,
नींद के झरोखों से झांक कर,
मुस्कुरा रही है रात.
शुभकामनाओं सहित

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

बहुत अच्छा लिखा है आपने सजीव जी।
कविता पूरी प्रवाहमय है और बिम्ब तो खूबसूरत हैं ही।
नींद जहाँ नही सोयी है,
उन आँखों में भी है,
बोलती तनहाईयों की महक,
दर्द की खामोश कराह

नगमा सा बन कर कुछ,
गुनगुना रही है रात।

लिखते रहें।

Anita kumar का कहना है कि -

सजीव जी
बहुत सुन्दर रचना हैं, सौंदर्यवाद और दार्शनिकता दोनों खुल कर सामने आये हैं।
नींद जहाँ नही सोयी है,
उन आँखों में भी है,
बोलती तनहाईयों की महक,
दर्द की खामोश कराह,
जुगनुओं की कौंधती चमक,
थमी थमी हलचल को,
फ़िर सुला रही है रात.

बहुत खूब…।

विश्व दीपक का कहना है कि -

नींद जहाँ नही सोयी है,
उन आँखों में भी है,
बोलती तनहाईयों की महक,
दर्द की खामोश कराह,
जुगनुओं की कौंधती चमक,

जिनके पैरों मे चक्कर है,
उनको होंठों से चूमकर,
नगमा सा बन कर कुछ,
गुनगुना रही है रात.

रात का सुंदर वर्णन किया है आपने सजीव जी। एक-एक दृश्य को सजीव कर दिया है आप्ने। रात के हर अप्रतीम क्षण को मैं महसूस कर रहा हूँ। इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं। इसी तरह लिखते रहें और अपने अनुभव से हमें लाभान्वित करते रहें।

रजनी भार्गव का कहना है कि -

सुन्दर भावनाएँ समेटी हैं.

RAVI KANT का कहना है कि -

सजीव जी,
बेहद उम्दा लिखा है आपने, साधुवाद!

सूरज की थकी हुई,
आँखों से बहती,
सपनो की शराब,
हसीन तस्सवुरों के महल,
चुभती हुई उलझनों से परे,
नींद के झरोखों से झांक कर,
मुस्कुरा रही है रात.

बहुत सुन्दर!

Mohinder56 का कहना है कि -

सजीव जी,
भावनाओं को कल्पना की सुन्दर उडान दी है आपने.
बधायी

Dr. Seema Kumar का कहना है कि -

रात पर बहुत अच्छी कविता । पढ़कर बहुत अच्छा लगा .. बहुत सजीव चित्रण ! बधाई ।

चुभती हुई उलझनों से परे,
नींद के झरोखों से झांक कर,
मुस्कुरा रही है रात.

नींद जहाँ नही सोयी है,
उन आँखों में भी है,
बोलती तनहाईयों की महक,
दर्द की खामोश कराह,
जुगनुओं की कौंधती चमक,
थमी थमी हलचल को,
फ़िर सुला रही है रात.

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

सजीव जी,

डॉ॰ कविता वाचक्नवी जी ने चर्चा के दौरान एक बात की सीख मुझे दी थी कि नये साहित्यकारों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कहीं वो रिपीट तो नहीं कर रहे? यह कैसे पता चलेगा कि रिपीटिशन है कि नहीं? इसके लिए ज़रूरी है अपनी परम्परा को खूब पढ़ना।

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार अमृता प्रीतम ने रात, चाँद, चाँदनी, सूरज, रोशनी, अँधेरा, किरणें, बादल, लकड़ी, हाँडी, चूल्हा आदि उपमानों को प्रयोग करके सैकड़ो कविताएँ लिखी है और इनका उपमा के रूप में चमत्कारिक प्रयोग किया है।

उन्हीं की एक कविता 'रात मेरी' अपनी बात स्पष्ट करने के लिए लिख रहा हूँ।

मेरी रात जाग रही है, तेरा ख़्याल सा आया

सूरज का पेड़ खड़ा था
किसे ने किरणें तोड़ लीं
और किसी ने चाँद का गोटा
आसमान से उधेड़ दिया

किसी की नींद को
सपनों ने क्यों बुला लिया
सितारे खड़े रह गये
आसमान ने दरवाज़ा भिड़का दिया

मेरे इश्क के जख़्म
तेरी याद ने सिये थे
आज मैंने टाँके खोल कर
वह धागा तुझे लौटा दिया

तेरे इश्क़ की पाक़ किताब
कितनी दर्दनाक है
आज मैंने इंतज़ार का
हर सफ़ा फाड़ दिया

यह कविता बहुत बड़ी है॰॰॰॰ अवसर मिले तो पढ़िएगा।

मैं इस माध्यम से सिर्फ़ इतना कहना चाह रहा हूँ कि साहित्यकार को जल्द ही अपनी शैली पकड़ लेनी चाहिए।

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