काव्य-प्रेमियो,
अब हम सितम्बर महीने के अंत की ओर बढ़ रहे हैं। अगस्त माह की 'यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता से १९ कविताओं का प्रकाशन हो चुका है। आज हम आखिरी किश्त लेकर आये हैं। इस स्थान की कविता के रचयिता काव्य-प्रेमियों के बीच बहुत प्रसिद्ध हैं। हिन्द-युग्म लिखने-पढ़ने वालों को हमेशा इन्होंने अपनी काव्य-पुस्तक भेंट कर पठनियता और रचनाधर्मिता को नमन किया है। अप्रैल माह से अब तक लगातार हमारी प्रतियोगिता में भाग लेकर हमारे प्रयास को प्रोत्साहित कर रहे हैं। शेष इनकी कविता कहेगी-
कविता- वीरों का कर्तव्य
कवयिता- कवि कुलवंत सिंह, मुम्बई
साहस संकल्प से साध सिद्धि,
विजय़ी समर में शूर बुद्धि,
दृढ़ निश्चय उन्माद प्रवृद्धि,
ज्वाला सी कर चिंतन शुद्धि ।
कायरता की पहचान भीति है,
अंगार शूरता की प्रवृत्ति है,
पराधीन जीवन विकृति है,
नहीं मृत्यु की पुनरावृत्ति है ।
भर हुंकार प्रलय ला दो,
गर्जन से अनल फैला दो,
शक्ति प्रबल भुजा भर लो,
प्राणों को पावक कर लो ।
अनय विरुद्ध आवाज उठा दो,
स्वर उन्माद घोष बना दो,
शीश भले निछावर कर दो,
आँच आन पर आने न दो ।
जीवन में हो मरु तपन,
सीने में धधकती अगन,
लक्ष्य हो असीम गगन,
कंपित हो जग देख लगन ।
शृंगार सृष्टि करती वीरों का,
पथ प्रकृति संवारती वीरों का,
आहुति अनल निश्चय वीरों का,
शत्रु संहार धर्म वीरों का ।
चट्टानों सा मन दृढ़ कर लो,
तन बलिष्ठ सुदृढ़ कर लो,
निर्भयता का वरण कर लो,
उन्माद शूरता को कर लो ।
तपन सूर्य की वश कर लो,
प्रचण्ड प्रदाह हृदय धर लो,
तूफानों को संग कर लो,
शौर्य प्रबल अजेय धर लो ।
गगन भेदी रण-शंख बजा दो,
वज्र को तुम चूर बना दो,
विजय दुंदुभि स्वर लहरा दो,
श्रेय ध्वजा व्योम फहरा दो ।
रोष दंभ वीरों को वर्जित,
करुणा, विनय वीरों को शोभित,
दीन, कातर हों कभी न शोषित,
सत्य, न्याय से रहो सुशोभित ।
रिज़ल्ट-कार्ड
--------------------------------------------------------------------------------
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८॰३१२५, ७॰४६४२८५
औसत अंक- ७॰८८८३९२
स्थान- बीसवाँ
--------------------------------------------------------------------------------
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-६, ७॰८८८३९२(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰९४४१९६
स्थान- बीसवाँ
--------------------------------------------------------------------------------
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
7 कविताप्रेमियों का कहना है :
कुलवंत जी,
सुन्दर रचना!
साहस संकल्प से साध सिद्धि,
विजय़ी समर में शूर बुद्धि,
दृढ़ निश्चय उन्माद प्रवृद्धि,
ज्वाला सी कर चिंतन शुद्धि ।
ठीक कहा आपने साहस और संकल्प का होना आवश्यक है वीरों में। साथ ही-
रोष दंभ वीरों को वर्जित,
करुणा, विनय वीरों को शोभित,
दीन, कातर हों कभी न शोषित,
सत्य, न्याय से रहो सुशोभित ।
इस तरह से आपने वीरता का सच्चा पहलू उजागर किया है।
जीवन में हो मरु तपन,
सीने में धधकती अगन,
लक्ष्य हो असीम गगन,
कंपित हो जग देख लगन
प्रेरित करती है कविता, कुछ कर गुजरने को, बधाई
कुलवंत जी,
सुन्दर रचना !
एक प्रेरक कविता के रूप में
आपकी कविता उभर कर आयी है..
मुझे आपकी भाषा ने प्रभावित किया...
और भी लिखियेगा...
कुलवंत जी,आपका लिखा हुआ पढना मुझे हमेशा ही अच्छा लगता है
यह रचना भी अच्छी लगी बहुत बहुत बधाई आपको
कुलवंत जी,
आपके भाव और शिल्प कसे हुए हैं। इस रचना के लिये आप बधाई के पात्र हैं।
*** राजीव रंजन प्रसाद
acchi kavita hai !!
हिन्द-युग्म पर वीर रस की कविताओं का अभाव था, आपने इस कविता द्वारा इस रस में योगदान दिया है। धन्यवाद।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)